RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
असलम:"मोना मैं तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूँ. मैं जनता हूँ के तुम मुझ से प्यार नही करती पर धीरे धीरे करने लगो गी. मैं तुम से वादा करता हूँ के तुम्हारी हर मुस्किल मे तुम्हारा साथ दूँगा. कभी भी ज़िंदगी मे तुम्हारे पे कोई तकलीफ़ नही आने दूँगा. तुम्हारे साथ तुमहारे परिवार का भी पूरी तरहा से ध्यान रखूँगा. आज मेरा हाथ थाम लो, वादा करता हूँ ज़िंदगी मे कभी ठोकर नही खाने दूँगा. मोना क्या तुम मेरे से शादी करोगी?" अब तक मोना का अगर कांपना थोड़ा कम हो भी गया था तो जो हो रहा था वो उसे किसी भयानक सपने से कम नही लग रहा था. मोना तो लगता था अपनी आवाज़ ही खो बैठी थी ये सब सुन कर. मन मे कितने ही सवाल उठ रहे थे जैसे "ये क्या कह रहे हैं आप? अली के बारे मे तो सौचो?" वगिरा वगिरा पर उसके मुँह से एक शब्द भी निकल नही पा रहा था. असलाम सहाब ने आख़िर ये खामोशी खुद ही तोड़ी.
असलम:"कोई बात नही मोना मुझे आप की खामोशी ने जवाब दे दिया है जो शायद आप नही दे पा रही. मैं ही शायद बेवकूफ़ हूँ जो अपने मन मे जो कुछ भी था आप को सॉफ सॉफ बता दिया. खेर अगर आप को मेरे प्यार की कदर नही तो कोई बात नही मैं समझ सकता हूँ. अगर हो सके तो इतना अहेसान तो कर दी जिएगा के जो कुछ मैने कहा है वो हमारे बीच मे रहने दीजिएगा. किरण भी आती होगी, बेहतर है उसके आने से पहले मे चला जाउ. आप फिकर मत की जिए आइन्दा आप को कभी परेशान नही करूँगा." ये कह कर असलाम सहाब उठे और दरवाज़े की तरफ चल दिए.
मोना:"रु...रुकिये." असलम सहाब ये सुन कर वहीं रुक गये. बड़ी मुस्किल से अपने आप को काबू मे करते हुए मोना ने कहा
मोना:"मुझे ये शादी कबूल है." असलाम सहाब की तो ये सुन कर ख़ुसी की कोई इंतेहा ही नही रही.
असलम:"मोना मुझे पता था के मे जो सौच रहा हूँ वो ग़लत नही. आप भी भी अपनी खुशी से मुझ से शादी करना चाहती हैं ये जान कर मुझे जितनी खुशी हुई है इसका आप अंदाज़ा नही लगा सकती." मोना ये सुन कर चुप ही रही.
असलम:"अगर आप बुरा ना मानो तो कल ही शादी कर लेते हैं. आप की बेहन की शादी का समय भी सर पे आता जा रहा है. वहाँ जा कर आप के शोहार के तौर पर जब मे सब कुछ करूँगा तो लोग भी बाते नही करेंगे. क्या आप को कोई एतराज तो नही?"
मोना:"नही......जैसे आप की मर्ज़ी."
असलम:"ठीक है आप फिर मुझे इजाज़त दें मैं चल कर शादी की तैयारियाँ करता हूँ. कल सुबह आप को लेने आ जाउन्गा." ये कह कर वो तो जल्दी से चले गये पर मोना की आँखौं मे रुका हुआ आँसू का सैलाब बहने लगा. उसके मुँह से कोई आवाज़ नही निकल रही थी बस आँसू का दरिया बह रहा था. हर आँसू मे अरमानो की एक लाश बह रही थी. थोड़ी देर बाद किरण जो खाना लेकर आई तो मोना को इस हाल मे देख कर उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी. बड़ी मुस्किल से उसने मोना को चुप कराया और उस से पूछा के हुआ क्या है? मोना ने उसे जो कुछ भी हुआ बता दिया.
किरण:"तेरा दिमाग़ तो खराब नही हो गया? ये क्या करने लगी है टू? पेसौं के लिए अपने प्यार, खुशियो सब को कुर्बान कर रही है? और अली का क्या? सौचा है उसके दिल पे क्या बीते गी जब जिसे वो पागलौं की तरहा चाहता है उसके बाप से ही शादी कर लेगी? पागल हो गयी है क्या?"
मोना:"अगर अपनी बूढ़ी मा और बेहन का सहारा बनना पागलपन है तो हां मैं पागल हो गयी हूँ. जो कुछ भी तूने कहा सब का मुझे पता है पर क्या ये सब बाते उन कुर्बानियो से बढ़ कर हैं जो मेरे माता पिता ने दी? क्या मैं उनके लिए अपनी एक खुशी कुर्बान नही कर सकती?" ये सुन कर किरण की आँखौं से आँसू बहने लगे. उसने भी तो क्या कुछ अपनी मा के लिए किया था. आज जब वो उस ज़िंदगी से निकल ही आई थी तो मोना के साथ ये होता देख उसका दिल गम से फटने लगा.
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