RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
सरहद:"क्या मैं ग़लत समय पे तो नही आ गया?"
मोना:"मुझे तो खुद कुछ समझ मे नही आ रहा. किरण और करायेदार के बीच नैन लड़ाई हो रही थी. तुम पहले अंदर तो आओ बाकी सब भी तमाशा देखेंगे ऐसे तो." सरहद घर के अंदर आ गया और दरवाज़ा बंद कर दिया.
मनोज:"साली कुतिया कल तक तो चंद टाको के लिए मेरा बिस्तर गरम करती रही है और आज तेरी इतनी जुरत के तू मेरे मुँह लग रही है?" ये आवाज़ जो सरहद के कानो मे पड़ी तो उसका तो खून खूल उठा. जल्दी से वो आवाज़ की सिमत मे भागा. जो ड्रॉयिंग रूम मे घुसा तो देखा मनोज ने किरण को बालो से पकड़ रखा है और ऐसे लग रहा था जैसे के वो उसका खून ही पी जाएगा. ये देख सरहद का तो गुस्से से खून खोल उठा. उसने ज़ोर से जा कर एक घूँसा मनोज के मुँह पर मार दिया. मनोज जो सही तरहा से सरहद को अपनी ओर आते देख भी नही पाया था दूर जा कर गिरा और किरण उसकी गिरिफ़्ट से आज़ाद हो गयी. भाग के ज़ोर से एक लात सरहद ने ज़मीन पे गिरे हुए मनोज के मुँह पे जो मारी तो उसकी नाक से खून निकलने लगा. थोड़ी ही देर मे दोनो घुथम गुथा हुए पड़े थे. मनोज अब थोड़ा सा संभाल तो गया था लेकिन जो मार उसे पड़ चुकी थी उसकी वजा से उसका सर घूम रहा था. सरहद के सर पे तो वैसे ही खून सवार था. उसने जम के मनोज की पिटाई की जब तक के वो खुद थक के हांपने ना लग गया. थोड़ी देर बाद जो मनोज ने थोड़ा होश संभाला तो सरहद को बोलना शुरू हुआ.
मनोज:"ठीक है मैं जा रहा हूँ यहाँ से पर मेरी एक बात याद रखना. कल तक मेरे टुकड़ो पे पलने वाली अगर आज मेरे साथ ये करवा सकती है तो तेरी भी कभी नही बने गी." ये कह कर वो धीरे से उठा और अपने मुँह से खून सॉफ करता हुआ घर से बाहर चला गया. सरहद ने जो किरण की ओर देखा तो वो रो रही थी और उसके होंठ से खून निकल रहा था. ज़रूर मनोज ने उसे सरहद के आने से पहले मारा होगा. जल्दी से वो किरण की ओर गया और उसके आँसू सॉफ करने लगा. मोना भी किरण का खून सॉफ करने लगी और दोनो उसे चुप कराने लगे.
सरहद:"बस बस सब ठीक हो जाएगा प्लीज़ तुम रो मत."
किरण:"सरहद मुझे तुम्हे और मोना को कुछ बताना है."
मोना:"किरण तुम अभी चुप हो जाओ हम बाद मे बात कर लेंगे ना."
सरहद:"हां मोना ठीक कह रही है."
किरण:"नही कुछ बाते इंतेज़ार नही कर सकती." ये कह कर वो सब कुछ कैसे उसके पिता के देहांत के बाद उन्हे पेसौं की ज़रूरत पड़ी से ले कर जो कुछ भी मनोज ने किया सब कुछ बताने लगी. जब वो सब कुछ बता के चुप हुई तो उसके साथ साथ मोना की आँखौं से भी आँसू निकल रहे थे और सरहद की आँखे भी नम हो गयी थी.
किरण:"बोलो क्या अब भी तुम एक ऐसी लड़की के साथ जो पेसौं की खातिर किसी की रखैल रही हे से दोस्ती बढ़ाना चाहोगे?" सरहद ने ये सुन कर धीरे से उसका चेहरा अपने हाथो से पकड़ा और उसके आँसू सॉफ करते हुए बोला.
सरहद:"आज मैं भी तुम्हे एक राज़ बताना चाहता हूँ. मैं 1-2 दिन नही, सालो से तुम्हे चाहता हूँ. आज ये सब कुछ जानने के बाद तो मेरे दिल मे तुम्हारे लिए प्यार और भी बढ़ गया है. कौन भला अपनी मा के लिए इतना कुछ कर सकती है जो तुमने किया है? किरण मैं तुम्हे बहुत चाहता हूँ और सारी ज़िंदगी चाहता रहूँगा." ये सुन कर किरण की आँखौं से फिर आँसू निकलने लगे पर इस बार वो खुशी के आँसू थे. दोनो एक दोसरे के सीने से लिपट गये. मोना भी ये देख उन दोनो के लिए बहुत खुश थी. थोड़ी देर बाद जब किरण ने अपने आँसू पौंछ लिए तो बोली
किरण:"चलो मैं तुम्हे अपनी मा से मिलाती हूँ." जब वो उसके कमरे मे गये तो उसकी मा की लाश बिस्तर पर पड़ी थी और आँखौं से बहने वाले आँसू अभी तक पूरी तरहा से खुसक नही हुए थे..
अच्छे बुरे वक़्त तो सभी की ज़िंदगी मे आते हैं लेकिन ना वक़्त रुकता है और नही ज़िंदगी आगे बढ़ने से रुकती है. बीते हुए कल मे रहने वाले ज़िंदगी की दौड़ मे बहुत पीछे रह जाते हैं और हिम्मत ना हारने वाले ही अपनी मंज़िल पे पोहन्च पाते हैं. किरण की मा को गुज़रे अब 3 महीने हो गये थे. मोना की दोस्ती और सरहद के प्यार की वजा से ही वो इस सदमे को सह पाई थी. सरहद और वो कुछ ही अरसे मे एक दूजे के बहुत करीब आ गये थे. लगता था जैसे एक दूजे को सदियों से जानते हो. सरहद तो उसे सालो से चाहता था और अब जब वो उसे मिल ही चुकी थी तो उसकी ज़िंदगी की सब से बड़ी खोवाहिश भी पूरी हो गयी थी. मनोज भी उस दिन के बाद कभी लौट कर नही आया. ऐसे लोग वैसे भी अपने अगले शिकार की ऑर चले जाते हैं आंड बदक़िस्मती से दुनिया भरी पड़ी है ऐसी लड़कियो से जिन की मजबूरी का ये फ़ायदा उठाते रहे. जहाँ किरण और सरहद इतने जल्दी ही एक दूजे के करीब आ गये थे वहाँ ऐसा अली और मोना के बीच मे नही हुआ था. कहीं ना कहीं दोनो के दिमाग़ पे जो भी उस दिन अली के घर मे हुआ उसका असर तो ज़रूर हुआ था. पर धीरे धीरे ही सही दोनो फिर से अच्छे दोस्त तो बन गये थे और मन ही मन ये भी जानते थे के उन्हे एक दूजे से प्यार है. ना तो अली ने ज़रूरत से ज़्यादा करीब आने की कोशिश की तो ना ही मोना को कोई जल्दी थी. शायद उस दिन जो हुआ उसके बाद दोनो को इतनी अकल तो आ ही गयी थी के दोनो अभी इतने बड़े कदम उठाने के काबिल नही. जहाँ मोना अपने माता पिता के सहारा बनने के लिए दिन रात मेहनत कर रही थी तो वहीं अब अली भी ज़िंदगी मे पहली बार पढ़ाई मे ध्यान देने लग गया था. वो भी कल को मोना को पाने के लिए ज़िंदगी को संजीदगी से लेने लगा.
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