RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग--12
गतान्क से आगे..................
किरण:"मनोज मैं चाहती हूँ के तुम ये घर फॉरन खाली कर दो. किरण अब यहाँ तुम्हारी जगह रहेगी." मोना को ये सुन कर हैरत तो हुई के किरण ने एक दम से मनोज को निकलने का कहा है और वो भी इस रूखे लहजे से पर मनोज के लिए तो जैसे ज़मीन ही फॅट गयी थी. उसकी ठोकरो पे पलने वाली उससे ये कह किस तरहा रही है उसे तो यकीन ही नही आ रहा था. मोना की वजह से अपने घुस्से पे काबू पाते हुए वो बोलना शुरू हुआ
मनोज:"किरण जी आप होश मे तो हैं ना? आप को पता भी है ये आप क्या कह रही हैं?"
किरण:"मुझे अछी तरहा मालूम है के मैं क्या कह रही हूँ. अपना समान उठाओ और निकल जाओ मेरे घर से." कोशिश करने के बावजूद मनोज का गुस्सा बर्दाश्त से बाहर होने लगा.
मनोज:"तुम्हे पता है ना के तुम किस से बात कर रही हो?"
किरण:"अच्छी तरहा से मालूम है. मैं एक ऐसे वहशी दरिंदे से बात कर रही हूँ जो दूसरो की मजबूरियो से खेलता है. पर ना तो अब मैं मजबूर हूँ और ना ही तुम्हारे जैसे ज़लील इंसान की शक्ल भी देखना चाहती हूँ." इतने आरसे से जो नफ़रत किरण के दिल मे लावे की तरहा पैदा हो रही थी आज वो फॅट कर बाहर आ गयी थी. दोसरि ओर मनोज को यकीन ही नही आ रहा था के ये वो ही लड़की है जिस की उसके सामने ज़ुबान तक नही खुलती थी. अब तो उसे मोना की भी फिकर नही थी और वो गुस्से से पागल हो चुका था.
मनोज:"साली रंडी दिखा दी ना तूने अपनी औकात. बोल हरमज़ड़ी क्या नया यार मिल गया है तुझे?"
किरण:"अपनी बकवास बंद करो और दफ़ा हो जाओ यहाँ से."
मनोज:"तो जानती है ना मे कौन हूँ? साली तेरे साथ तेरी मा को भी सड़को पे नंगा ना नचाया तो मेरा नाम भी मनोज नही. देखता हूँ मैं भी के किसी का बाप भी मुझे केसे इस घर से निकाल सकता है?" मोना उन दोनो की बाते सुन कर हैरान-ओ-परेशान वहाँ खड़ी थी. "ये हो क्या रहा है?" उसे तो यकीन ही नही आ रहा था जो आँखौं से देख और कानो से सुन रही थी. ऐसे मे घर की घेंटी बजी. मनोज और किरण तो एक दूसरे को बुरा भला कहने मे इतने मसरूफ़ थे के उन्हो ने परवाह ही नही की के घर की घेंटी बजी है. सहमी हुई हालत मे मोना ने जा कर दरवाज़ा जो खोला तो सामने सरहद खड़ा था. शोर शराबा सुन कर वो भी थोड़ा घबरा गया.
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