RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग--11
गतान्क से आगे..................
मोना:"अंकल आप इस प्यार से यहाँ आए मेरे लिए ये ही बहुत है और मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत नही."
असलम:"क्या आप ने अभी तक उस बात के लिए माफ़ नही किया?"
मोना:"नही नही अंकल वो बात नही. हम ग़रीबो के पास बस अपनी इज़्ज़त और आत्म सम्मान के इलावा क्या होता है? आप के बेटे ने एक बात तो सही कही थी, मेरा रिश्ता ही अभी क्या है? फिर आप ही बताइए मैं किस रिश्ते से आप से मदद ले सकती हूँ?"
असलम:"बेटी रिश्ते का क्या है? खून के रिश्ते ही तो सिर्फ़ रिश्ते नही होते ना? अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं चाहूँगा के कल को तुम हमारे घर दुल्हन बन के आओ. बोलो अब क्या ये रिश्ता तुम्हे कबूल है?" मोना को तो ऐसे जवाब की तवको ही नही की थी. ये सुन कर उसका चेहरा शरम से टमाटर की तरहा लाल हो गया. उसके चेरे पे ये शरम असलम साहब ने भी फॉरन महसूस की और उन्हे बहुत अछी लगी. एक बार फिर उन्हे अपनी मरहूम धरम पत्नी की याद आ गयी. "आज अगर वो ज़िंदा होती तो उसने भी कितनी खुश होना था?" वो सौचने लगे. बड़ी मुस्किल से मोना उन्हे जवाब दे पाई
मोना:"जी." इसी दौरान किरण भी चाइ और पकोडे ले कर आ गयी.
असलम:"बेटी इस की क्या ज़रूरत थी?"
किरण:"अंकल मुझे तो बुरा लग रहा है के आप पहली बार आए और मैं कुछ ज़्यादा नही कर पाई. अगर पता होता के आप आ रहे हैं तो पहले से ही तैयारी शुरू कर देते."
असलम:"नही नही ये भी बहुत ज़्यादा है. वैसे किरण बेटी अगर आप बुरा ना मानो तो आप से एक गुज़ारिश कर सकता हूँ?"
किरण:"अंकल गुज़ारिश कैसी? आप बेटी समझ कर हूकम दीजिए."
असलम:"जीतो रहो बेटी. तुम ने ये बात कह कर साबित कर दिया के जो मैने जैसा तुम्हारे बारे मे सौचा है वो ठीक है. वैसे तो मैं मोना के लिए अछी से अछी रहने के लिए जगह का इंटेज़ाम कर सकता हूँ पर एक अकेली लड़की को देल्ही जैसे शहर मे सर छुपाने के लिए छत से ज़्यादा ज़रूरत ऐसे साथ की होती है जो उस पे बुराई का साया भी ना पड़ने दे. फिर आप तो उसकी दोस्त भी हो. अगर आप बुरा ना मानो तो क्या मोना यहाँ आप के साथ रह सकती है?"
किरण:"अंकल मोना मेरे लिए मेरी बेहन की तरहा है. मुझे तो खुशी होगी अगर वो यहाँ मेरे साथ रहे तो."
असलम:"बेटी अब जो मैं कहने जा रहा हूँ उम्मीद है आप उसका बुरा नही मनाओगी. आप के घर आने से पहले मे आप के बारे मैने थोड़ी बहुत पूछ ताछ की थी. आप के पिता के देहांत का जान कर बहुत दुख हुआ. ये भी पता चला के आप के यहा कोई हाउस गेस्ट रहते हैं. मैं समझ सकता हूँ के आप के लिए घर का गुज़ारा चलाना कितना मुस्किल होता होगा. बेटी अब मोना आप के घर पे हमारी अमानत के तोर पे रहेगी. इस दुनिया के जितने मुँह हैं उतनी बाते करते हैं. मैं चाहता हूँ के आप उस करायेदार को यहाँ से रवाना कर दें. रही आप के खर्चे की बात तो आज से उसका ज़िम्मा मेरा है. अभी आप ये रख लो और हर महीने मैं खर्चा पहुचा दिया करूँगा. अगर किसी और चीज़ की ज़रोरत पड़े तो बिलाझीजक मुझे फोन कर दीजिए गा. ये मेरा कार्ड भी साथ मे है." ये कहते हुए असलम सहाब ने नोटो की एक बड़ी गड़डी निकाल के अपने कार्ड समेत किरण को थमा दी. नोटो को देखते ही किरण की आँखे चमक उठी और साथ मे उनके खर्चा उठाने का सुन वो बहुत खुश हो गयी. आख़िर किसी तरहा से उस मनोज से जान छुड़ाने का मौका तो मिला.
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