RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
सरहद:"यहाँ मेरे साथ आने का शुक्रिया." उसने थोड़ा सा शर्मा के कहा. उसका ये ही भोलापन तो किरण को अच्छा लगता था.
किरण:"इस मे कौनसी बड़ी बात है? फिर भी इतना ही आहेसन मान रहे हो तो मेरा बिल भी भर देना." आज भी किरण का चंचल्पन कभी कभार वापिस आ ही जाता था. वैसे मुस्कुराती हुई सरहद को वो बहुत अछी लगी. इस किरण को तो ही वो बचपन से देख रहा था पर पछले कुछ आरसे से वो जाने कहाँ खो गयी थी? जहाँ एक तरफ वो उसकी संजीदगी और दूसरे लड़को को पास ना आने देने की वजा से बहुत खुश था वहाँ साथ ही साथ वो इस शोख चंचल किरण को मिस भी करने लगा था.
सरहद:"जी ज़रूर. इस से बढ़ के मेरे लिए और खुशी क्या होगी? वैसे अगर आप बुरा ना माने तो एक बात कहू?"
किरण:"कह के देखो फिर सोचूँगी के बुरा मानने वाली बात है के नही?" कुछ समय ही सही पर वो मनोज, अपने हालात सब को भूल के इन सब चीज़ो से आज़ाद एक दोस्त के साथ बात चीत का मज़ा ले रही थी.
सरहद:"आप यौंही हंसते मुस्कुराते अछी लगती हैं. संजीदा ना रहा करो ज़्यादा." उसकी इस बात ने जाने कहाँ से किरण के अंदर छुपे गम के तार को फिर से छेड़ दिया था.
किरण:"ये हँसी कब साथ देती है? अगर ज़्यादा हँसो भी तो आँखौं से आँसू निकल आते हैं. जब के गम अगर दुनिया मे आप के साथ और कोई भी ना हो तब भी आप का साथ नही छोड़ते." ये कह कर वो तो चुप ही गयी और ना जाने किन ख्यालो मे खो गयी पर उसकी बात का सरहद पे गहरा असर हुआ. इस खोबसूरत चंचल लड़की ने अपने दिल पे कितने गम छुपा कर रखे हुए हैं इनका आहेसास पहली दफ़ा उसे तब हुआ. "मैं ये तो नही जानता के क्या चेएज़ तुम्हे इतना परेशान कर रही है किरण पर हां ये वादा zअरोओऱ करता हूँ के एक दिन तुम्हे इन गमो से छुटकारा दिला कर ही दम लूँगा." ये वादा दिल ही दिल उसने अपने आप से किया.
अली भाग के घर से बाहर निकला पर मोना कहीं नज़र नही आ रही थी. वो जल्दी से अपनी गाड़ी मे बैठ कर मोना को ढूँदने लगा लेकिन वो तो गायब ही हो गयी थी. मोबाइल पे भी फोन किए लेकिन मोबाइल भी मोना ने बंद कर दिया था. उसकी परेशानी गुस्से मे बदलने लगी और ये गुस्सा घर जा कर वो इमरान पे निकालने लगा. असलम साहब जो घर पोहन्चे तो एक जंग का सा समा था. उनके दोनो बेटो की आवाज़ से घर गूँज रहा था और साथ ही साथ उनकी बहू के रोने की आवाज़ भी महसूस हो रही थी. परेशानी से भाग कर वो जिस जगह से शोर आ रहा था वहाँ पोहन्चे तो देखा के इमरान के कमरे के बाहर दोनो भाईयों ने एक दोसरे का गिरेबान पकड़ा हुआ है और एक दूजे को बुरा भला कह रहे हैं. उन से थोड़ी ही दूर बेचारी आईशा रोई जा रही थी. असलम साहब को देखते साथ ही वो भाग कर उनके पास आई और रोते रोते कहा.
आईशा:"अब्बा जी देखिए ना ये दोनो क्या कर रहे हैं?"
असलम:"ये क्या हो रहा है?" उन्हो ने गूँजती हुई आवाज़ मे जो कहा तो उनके दोनो बेटे उनकी ओर देखने लगे. उन्हे देखते साथ ही दोनो ने एक दूजे के गिरेबान छोड़ दिए.
असलम:"मैं पूछता हूँ के ये हो क्या रहा है?" उनके ये कहने की देर थी के दोनो उँची उँची अपनी कहानी सुनाने लगे.
असलम:"चुप कर जाओ तुम दोनो! बहू तुम बताओ क्या हुआ है?" आईशा जल्दी जल्दी जो कुछ भी हुआ बताने लगी. जब वो सारा किस्सा सुना कर चुप हो गयी तो कुछ देर के लिए खामोशी छा गयी. आख़िर असलम साहब ने ये खामोशी तोड़ी.
असलम:"इमरान क्या ये ही तमीज़ सिखाई है तुम्हे मैने? और अली क्या तुम इतने बड़े हो गये हो के अपने भाई का गिरेबान पकड़ने लगो?"
इमरान:"ये घर मे ऐसे किसी भी लड़की को ले आए और मैं चुप चाप तमाशा देखता रहू क्या?" उसने गुस्से से पूछा.
असलम:"आवाज़ आहिस्ता करो! क्या सही है और क्या ग़लत उसका फ़ैसला लेने के लिए अभी तुम्हारा बाप ज़िंदा है. अगर ये उस लड़की को घर ले भी आया तो एक घर आए हुए मेहमान के साथ बदतमीज़ी करते तुम्हे शर्म नही आई?" ये सुन कर इमरान ने अपना सर झुका लिया.
असलम:"कौन लड़की थी वो अली सच सच बताओ?" ये सुन कर अली मोना के बारे मे सब कुछ बताने लगा. जब वो सारी कहानी सुना चुका तो असलम साहब ने पूछा.
असलम:"क्या तुम उससे प्यार करते हो?"
अली:"जी बाबा."
असलम:"तुम अपनी पढ़ाई पे ध्यान दो और उसकी फिकर मत करो. जैसे ही तुम्हे पता चले के वो कहाँ है मुझे बता देना. मैं उसके रहने सहने का बंदोबस्त कर दूँगा. आगे तुम दोनो का क्या करना है ये मुझे सौचने के लिए वक़्त दो. और हां एक बात कान खोल के तुम दोनो सुन लो. आज के बाद इस घर मे ऐसा कोई तमाशा हुआ तो तुम दोनो को घर से निकाल दूँगा. अब जाओ दूर हो जाओ मेरी नज़रौं से." वो सब तो अपने अपने कमरो मे चुप कर के चले गये पर असलम सहाब सौचने लगे "कौन है ये लड़की और इसका अब क्या किया जाए?"........
क्रमशः....................
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