RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
अली:"प्यार कोई कारोबार तो नही जिस का ऩफा नुकसान सौच कर किया जाए. ये तो दिल मे जनम लेने वाला एक ऐसा आहेसास है जो लाखो करोड़ो के बीच मे बस एक चेहरे को मन मे बसा लेता है. भूल जाओ हम दोनो के दरमियाँ के फरक को. बस ये देखो के तुम्हारे सामने जो खड़ा है वो भी तुम्हारी तरहा एक इंसान है जिस के सीने मे तुम्हारे लिए ही दिल धड़कता है. क्या तुम्हारे दिल मे भी मेरे लिए प्यार है? क्या तुम भी मुझे उस दीवानगी से ही चाहती हो जैसे मे तुम्हे चाहता हूँ?" एक बार फिर दोनो के बीच मे खामोसी आ गयी. दिमाग़ था के कह रहा था मोना ना चल ऐसे रास्ते पर जिस की मंज़िल कोई नही और दिल था के कह रहा था के जिस सफ़र मे हमसफ़र ही साथ ना हो उसकी मंज़िल पे पोहन्च जाने का भी क्या फ़ायदा?
मोना:"मैं भी तुम्हे बहुत चाहती हूँ." दिल और दिमाग़ की इस जंग मे आख़िर कामयाबी दिल की ही हुई. मोना ने शर्मा कर अपनी पलके झुका ली और उसके ख़ौबसूरत गाल शर्माहट की वजा से लाल हो रहे थे. अली का दिल तो ख़ुसी से पागल हो रहा था ये सुन कर. उसने बड़े प्यार से मोना का हाथ थाम लिया.
अली:"तुम सौच भी नही सकती मोना के आज तुम ने मुझे कितनी बड़ी खुशी दी है. मे वादा करता हूँ के तुम्हे कभी तन्हा नही छोड़ूँगा."
मोना:"मुझे तुम्हारा और तुम्हारी मोहबत का आएतबार है पर अली मैं अपनी ज़िमेदारियो से मुँह नही मोड़ सकती."
अली:"आरे कह कौन रहा है तुम्हे? तुम्हारे माता पिता क्या मेरे माता पिता नही? मैं वादा करता हूँ के तुम्हारा सहारा बनूंगा और तुम्हारी सब ज़िमेदारियाँ आज से मेरी हैं. हम मिल के इन सब को निभाएँगे." उसकी बात सुन कर मोना की आँखौं से दो आँसू छलक गये. पर ये आँसू खुशी के थे. अली ने बड़े प्यार से उसके चेहरे से आँसू पौछ दिए.
अली:"आरे पगली अब रोना कैसा? अब तो हम अपने जीवन का आगाज़ करेंगे. जितना रोना था रो चुकी, अब तुम्हारी आँखौं मे आँसू नही आने चाहिए." ये सुन कर मोना कर चेहरा खिल उठा. भगवान के घर देर है पर अंधेर नही. वो सौच रही थी के वो कितनी खुशनसीब है के इतना प्यार करने वाला हम सफ़र मिल गया है उसे.
अली:"आरे कहाँ खो गयी? चलो अब क्या यहीं बैठे रहना है? घर चलते हैं."ये कह कर उसने मोना के हाथ से उसका सूटकेस पकड़ा और गाड़ी मे रखने लगा. थोड़ी ही देर मे दोनो अली के घर की जानिब गाड़ी मे बैठ कर जाने लगे. क्या उन दोनो के नये जीवन की ये शुरूवात थी?
थोड़ी देर बाद दोनो अली को घर पोहन्च गये. उसके पिता असलम सहाब दुकान पे थे और आम तौर पे तो बड़े भाई इमरान भी उतने बजे काम पे होते थे पर उस दिन तबीयात कुछ खराब होने की वजा से घर पे रुक गये थे. ड्रॉयिंग रूम मे मोना को बैठा कर अली उसके लिए कोल्ड ड्रिंक लेने चला गया. उसी दौरान इमरान मियाँ भी उनकी आवाज़ सुन कर कमरे से निकल आए. जो देखा तो एक लड़की अपने सूटकेस के साथ ड्रॉयिंग रूम मे बैठी हुई थी. दुकान दारो की यादशत बहुत पक्की होती है. एक नज़र मे ही पहचान गये के ये वोई लड़की है जो अली के साथ उनकी दुकान पे आई थी. वो दुनियादार बंदा था और एक नज़र मे ही भाँप गया के माजरा क्या है?.....
मोना ने जब इमरान को वहाँ खड़े उस घूरते देखा तो थोड़ा घबरा गयी. उस दिन दुकान पे अली ने बताया था के ये उसके बड़े भाई हैं इस लिए ये तो उसे पता था के वो कौन हैं?
मोना:"नमस्ते" उसने धीरे से उन्हे देख कर कहा. इमरान बगैर कोई जवाब दिए सीधा रसोई की तरफ चलने लगे. जब वहाँ गये तो देखा के उनकी धरम पत्नी पकोडे तल रही थी और अली ग्लासो मे कोल्ड ड्रिंक्स डाल रहा था. एक तो पहले ही से तबीयत खराब थी उपर से मोना को ऐसे देख कर उसे नज़ाने क्यूँ गुस्सा भी चढ़ गया था.
इमरान:"मैं पूछ सकता हूँ के ये क्या हो रहा है?" उस ने गुस्से से पूछा तो उसकी धरम पत्नी ने उसे शांत करने की कोशिश की.
शा:"क्या कर रहे हैं आप? घर मे मेहमान आई है कुछ तो ख़याल की जिए."
इमरान:"बिन बुलाए मेहमानो से केसे पेश आते हैं मुझे बखूबी पता है. तुम बीच मे मत बोलो."
अली:"भाई धीरे बोलिए. ये फज़ूल का तमाशा करने की क्या ज़रूरत है?"
इमरान:"मैं तमाशा कर रहा हूँ? ये लड़की जिसे तुम उसके बोरिये बिस्तरे के साथ घर ले आए हो वो क्या कोई कम तमाशा है?"
क्रमशः....................
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