RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
अगले दिन कॉलेज के बाद किरण और मोना अली के साथ उसकी गाड़ी पे बैठ गयी. उसकी सालगिरह पे उसके वालिद ने ये गाड़ी उससे तोफे मे दी थी. जहाँ किरण उस मे बैठ के सौच रही थी के पटेल की गाढ़ी के मुक़ाबले मे ये एक दम ख़टरा है तो वहाँ मोना गाड़ी मे बैठ अपने आप को एक महारानी की तरहा महसूस कर रही थी.
अली:"मेरे ख़याल से पहले खाना खा लेते हैं. मुझे पता है के मेरी तरहा आप दोनो को भी भूक लगी होगी. यहाँ पास ही एक बहुत मशहूर रेस्टोरेंट भी है."
मोना:"नही नही इस तकलूफ की क्या ज़रूरत है? वैसे भी मुझे
भूक नही लगी."
किरण:"आरे भूक केसे नही लगी मेडम को? और जब वो इतने प्यार से कह ही रहे हैं तो हम उनका दिल तो नही तोड़ सकते ना?" ये बात उसने इस अदा से कही के अली का मूह लाल हो गया और मोना किरण को दिल ही दिल मे कोसने लगी. उसकी फ्लर्ट करने की आदत मोना को बहुत बुरी लगती थी लेकिन अब तक वो ये तो जान ही चुकी थी के किरण दिल की बुरी नही.अली:"मोना जी दोस्तों मे कैसा तकलीफ़? वैसे भी रेस्टोरेंट आ ही गया है. देल्ही अपने खाने के लिए भी बहुत मशहूर है और इस रेस्टोरेंट को तो 100 बरस से भी ज़्यादा हो गये हैं." सच तो ये है के मुस्किल से 30 बरस भी नही हुए होंगे लेकिन 100 साल का होने का बोर्ड फिर भी लगाया हुआ था. कम से कम खाना सच मे बहुत अच्छा था. किरण ने हमेशा की तरहा जम के खाया. उसकी भूक मर्दो से कम ना थी. पर उसको ऐसे ख़ाता देख कर कॉलेज के लड़के और भी उस से मुतसिर होते थे. एक दौर था जब जो लड़कियाँ शर्मा कर थोड़ा सा खाती थी उनको पसंद किया जाता था. उस दौर मे मर्द उनको खानदानी औरत समझते थे. आज कल के दौर मे जो लड़कियाँ बेबाक हो कर फास्ट फुड और जो भी खाने को मिले उस पे टूट पड़ती थी उनको पसंद किया जाता था. शायद आज कल के लड़को की सौच ये थी के जब ऐसी लड़कियो को भूक इतनी लगती है तो शरीर की भूक भी बहुत लगती होगी.
खाना खाते हुए अली ने उससे उसके घर बार और माता पिता के बारे मे पूछना शुरू कर दिया. इस तरहा के सवाल जवाब मोना को नर्वस कर दिया करते थे लेकिन अली की हर बात मे उससे एक सच्चाई और मुख्लिस्पन देखता था जो उसे ऐसा महसूस करता था जैसे वो एक दूजे को जन्मो से जानते हों. अब तक किरण भी ये तो समझ गयी थी के अली उस मे नही बल्कि मोना मे दिलचस्पी रखता है. उसे ऐसा देख कर बहुत अच्छा लगा क्यूँ के उसकी मोना बहुत ही अच्छी लड़की थी जिसे बनाव सिंगार ना करने की वजा से कुछ लड़के ज़्यादा लाइन नही मारते थे तो जो कोशिश भी करते थे उनको वो घास नही डालती थी. पर यहाँ पहली बार वो उसे किसी लड़के से बगैर घबराए बात करते देख बहुत खुश थी. वैसे भी अली भले घर का लड़का था और मोना की तरहा वो भी दूसरी लड़कियो को घास नही डालता था. अगर इन दोनो का घर बस जाए तो जोड़ी बुहुत ही अच्छी लगे गी. जहाँ किरण ने अपने ज़हन मे उनकी शादी भी करवा दी थी वहाँ वो दोनो अभी तक एक दूसरे से बस छोटे मोटे सवाल ही पूछ पाए थे.
खाने के बाद वो उन दोनो को कुछ देल्ही के तारीखी मक़ामात देखने ले गया. देल्ही ने भी मुगलों के दौर से ले कर अंग्रेज़ो की हुक्मरानी तक, और फिर आज़ादी के बाद हर चंद साल बाद वोई पुराने वादो के साथ नये नेताओ को अपने पे राज करते देखा था. इन सब बातो के बावजूद देल्ही का हुसन फीका नही पड़ा था बल्कि शराब की बोतल की तरहा वक़्त गुज़रने के साथ साथ और भी ज़्यादा निखरा था. बाद मे वो सब लाइनाये शॉपिंग पे चले गये. उन दोनो को मुतसिर करने के लिए वो उन्हे अपनी दुकान पे ले गया. जब वो उनकी चीज़ो के पेसे देने लगा तो मोना ने सॉफ मना कर दिया जिसे देख किरण का मुँह बन गया. दुकान पे उसके वालिद साहब नही थे उस वक़्त पर बड़े भाई थे. उसने उन्हे कह दिया के उसकी दोस्त हैं इस लिए खास डिसकाउंट दें. भाई जी ने कह दिया के फिकर ना करो आप के दोस्त हैं तो वो तो मिलेगा ही ना? बाज़ारी केमटाउन के मुक़ाबले पर दोनो लड़कियाँ 2-300 ज़्यादा दे कर खुशी खुशी दुकान से बाहर आ गया के अच्छा डिसकाउंट मिला है. किरण का घर रास्ते मे आता था इस लिए उसे पहले उतार दिया. उसे उतार कर गाड़ी अभी थोड़ी ही दूर गयी थी के उस ने मोना से पूछा
अली:"मोना जी अगर आप बुरा ना माने तो पास ही आइस क्रीम की दुकान है. क्या हम आइस क्रीम खाने चले?" सॉफ ज़ाहिर है वो भला केसे हां कह सकती थी लेकिन उसके मुँह से सिर्फ़ एक शब्द ही निकल पाया
मोना:"जी ज़रूर." अपने मुँह से निकले शब्द पे उससे खुद ही यकीन नही आ रहा था और ना जाने उसके दिल की धड़कन क्यूँ तेज होने लगी थी?.
जाने ये कैसा आहेसास था? कितने घंटे से तो वो अली के साथ बाहर फिर रही थी फिर ऐसा क्यूँ था के किरण के साथ ना होने की वजा से अब अलग सा महसूस हो रहा था? ये पहली बार था के वो ऐसे किसी भी लड़के के साथ अकेली कहीं गयी हो और जैसा वो अली के बारे मे महसूस कर रही थी ये भी एक नया अहेसास ही था. बार बार घबरा के वो मुस्कुराने लगती थी और उसका खोबसूरत चेहरा भी खिल सा गया था. जहाँ अली उसकी घबराहट को दूर करने के लिए उससे छोटे मोटे सवाल कर रहा था वहाँ उसके जवाब जी और नही तक ही थे.
अली:"क्या बात है आप कुछ घबराई हुई सी लग रही हैं. खेर तो है?"
मोना:"न...नही ऐसी बात नही." एक बार फिर उन दोनो की आँखे मिली और इस बार बिना कुछ बोले दोनो एक दूजे की आँखौं मे देखते रहे. इंसान की आँखे भी कभी कभार वो बात जो वो कह नही पा रहा होता चुपके से कह देती हैं. आँखे वैसे भी रूह की तस्वीर होती हैं और पतलून के अंदर की सच्चाई इन से झलक ही जाती है.
रात जब मोना अपने बिस्तर पे लेटी हुई थी तो आँखौं से नींद जाने कहाँ चली गयी थी? "क्या मैं जैसा महसूस कर रही हूँ वैसे वो भी कर रहा होगा? आज जो मी उसकी आँखौं मे देखा क्या ये ही प्यार है?" ऐसा सौचते हुए जाने कहाँ से उसे उसके माता पिता याद आ गये और वो अपने सपनो की दुनिया से निकल आई. "कहाँ का प्यार? एक अमीर घर के लड़के को मैं ही मिलूँगी प्यार करने के लिए? शायद दूसरे लड़को की तरहा ये भी किरण मे ही दिलचस्पी रखता होगा और उसके बारे मे ज़्यादा जानने के लिए उसकी दोस्त से दोस्ती कर रहा होगा. वैसे भी मैं यहाँ इन कामो के लिए थोड़े ही आई हूँ? मुझे तो अपने पेरौं पे खड़े होना है ताकि अपने माता पिता का सहारा बन सकू. ऐसे रईसजादो से दूर ही रहू तो इस मे ही भलाई है." कहने को उसने ये अपने आप को कह तो दिया पर दिल था के मानने को तैयार नही था. सच तो ये था के वो माने या ना माने पर उसके दिल मे एक जगा तो अली ने बना ही ली थी. दोसरि और अली के नींदें तो वैसे भी जब से मोना को देखा था उड़ ही गयी थी. आज जो सारा दिन उसके साथ गुज़ारा और उससे पास से देखा तो दिल और भी उसकी और खेंचा चला गया था. बार बार उसके बारे मे सौच के मुस्कुराने लगता और अब बुरी तरहा से उसकी अपनी ज़िंदगी मे कमी को महसूस करना अगर प्यार नही तो और क्या था?
ए दिल जिनकी याद मे तो बेचैन है
क्या वो भी तेरे प्यार मे बेचैन है?
क्या तेरी तरहा उनकी नींद भी कहीं खो गयी है?
क्या उनको पाके ही मिलना तुझे अब चैन है?
क्रमशः....................
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