RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग--5
गतान्क से आगे..................
अली:"आरे आप तो कुछ खा ही नही रही. क्या बात है खाना आप को पसंद नही आया?"
मोना:"नही ऐसी तो बात नही. मैने सही तरहा से खाया है."
अली:"वैसे खाकसार को अली कहते हैं." ये कहते हुए अली ने अपना हाथ मोना की तरफ बढ़ा दिया. मोना ने थोड़ा हिचकिचाते हुए उससे हाथ मिला लिया.
मोना:"मोना"
अली:"बहुत खुशी हुई आप से मिल कर मोना जी. 3 महीने मे पहली बार आप से बात कर पाया हूँ." वैसे तो उसकी बात मे ऐसा कुछ नही था लेकिन जाने क्यूँ मोना को ये सुन कर थोड़ी शरमा गयी.
मोना:"जा..जी."
अली:"तो फिर कैसा लगा आप को हमारा देल्ही?"
मोना:"ठीक है." इतने मे किरण भी वहाँ आ गयी.
किरण:"अली खेर तो है? क्या लाइन मार रहे हो मेरे पीछे पीछे?" मोना का ये सुन कर मुँह टमाटर की तरहा लाल हो गया. "ये किरण भी ना कुछ सौचती है और ना समझती है और जो मन मे आता है बक देती है." वो मन ही मन सौचने लगी.
अली:"आरे नही मैं तो इन से पूछ रहा था के इनको देल्ही कैसा लगा?"
किरण:"घर से बाहर निकले गी तो कुछ देखे गी ना ये?"
मोना:"किरण!"
किरण:"तो क्या ग़लत कह रही हूँ मैं? मेरी जान तुम्हारी आंटी के घर के बाहर भी एक दुनिया बस्ती है जो बहुत खूबसूरत है. उस दुनिया मे कब कदम रखो गी?"
मोना:"अब तू बस भी करेगी?"
अली:"बुरा ना मानीएगा मोना जी पर कह तो ये ठीक ही कह रही हैं ना? अगर आप बुरा ना माने तो क्या मे आप दोनो को कल देल्ही दर्शन पे ले जा सकता हूँ?"
किरण:"क्यूँ नही? ये मेम साहब तो वरना घर से खुद निकलैंगी ही नही."
मोना:"शुक्रिया पर मे किसी को कोई ज़हमत नही देना चाहती. आप दोनो हो आओ ना."
अली:"आरे दोस्तों मे ज़हमत कैसी? वो अलग बात है के अगर अब आप हमे दोस्ती के काबिल ना समझो तो." अब तक कितने ही लड़के मोना से दोस्ती करने की कोशिश कर चुके थे लेकिन उन सब की नज़रे मोना उसकी जिस्म की तरफ देखती महसूस कर लेती थी या फिर कुछ की तो बातो से कि घमंड सॉफ महसूस होता था. पहली बार मोना ने एक ऐसा लड़का देखा जिस की आँखौं और बातो मे उसने सच्चाई देखी. ऐसे मे उसके मूह से जो निकला उससे किरण तो क्या खुद वो भी हैरान हो गयी.
मोना:"ठीक है फिर कल चलते हैं." ऐसे मे उनकी आँखे पहली बार मिली और एक नया आहेसास पहली बार मोना को महसूस हुआ........
असलम साहब ने ज़िंदगी मे उन्च नीच, खुशियाँ और गम सब कुछ तो देखे थे. ज़िंदगी के इस दौर मे आ कर आज जब वो पलट के देखते थे तो सब कुछ एक सपना सा तो लगता था. भला देल्ही जैसे शहर मे बिना जान पहचान के अपना कारोबार खड़ा कर लेना कहाँ कोई मामूली बात थी? ये सफ़र इतना आसान हरगिज़ नही था जितना के बाहर से देखने वालो को लगता होगा. उन्हो ने वो वक़्त भी देखे थे जब घर मे फाकॉ की हालत आ गयी थी. उस दौर से भी गुज़रे थे जहाँ खुद अपने पे ही भरोसा कमजोर पड़ गया था. ऐसे मे एक उनकी बेवी ही थी जिनका भरोसा उन पे कभी नही टूटा. अंधेरे मे तो साया भी साथ छोड़ जाता है लेकिन एक सच्चा हमसफ़र साथ नही छोड़ता. आज भी जब उन्हे अपनी मरहूम बीबी याद आती थी तो दम घुटने लगता था और आँखे भीग जाती थी. "क्या मैं उसको वो सब सुख दे पाया जिन की वो हक़दार थी?" ऐसे सवाल अक्सर उनके दिल मे आते थे. सच तो ये था के 2 जवान बेटो के बाप और अपना कारोब्बर होने के बावजूद उनको ज़िंदगी मे एक कमी महसूस होती थी. सब कुछ होते हुए भी यौं महसूस होता था जैसे कुछ भी तो नही है. इन ही सोचों और तन्हाई ने उन्हे अपनी उमर से भी ज़्यादा बुढ्ढा कर दिया था. इंसान की उमर हक़ीकत मे उतनी ही होती है जैसा वो महसूस करता है. "एक बार अली का घर बस जाए फिर तो मैं भी अपनी सब ज़िमेदारियो से आज़ाद हो कर वहाँ जा सकूँगा जहाँ वो मेरा इंतेज़ार कर रही होगी. " सिगरेट का कश लगाते हुए वो सौचने लगे.
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