Chudai Story ज़िंदगी के रंग
12-01-2018, 12:13 AM,
#1
Information  Chudai Story ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग--1

आज जिस प्यार मे पागल फिरते हो

कल उस से ही दिल तुडवाओगे

आज जिन दोस्तो की दोस्ती पे नाज़ है

कल उन से ही पीठ पे छुरा खाओगे

है मतलब की दुनिया साली

यहाँ कोई किसी का यार नही

उपर से ये ज़िंदगी भी है बेवफा

कब साँस साथ छोड़ जाए कोई अएतबार नही

ज़िंदगी को जितना समझने की कोशिश करोगे

उतना ही इसकी उलझनों मे उलझ जाओगे

आज जिस मौत से डर के भागे फिरते हो

एक दिन वो भी आएगा

जब इसको भी ज़िंदगी से ज़्यादा हसीन पाओगे

नैनीताल के छोटे से गाओं की लड़की के सपने बहुत बड़े थे. उसकी ज़िंदगी से भरी खूबसूरत आँखे एक नयी दुनिया को देखने के सपने बचपन से ही आँखो मे बुन रही थी. वो दूसरी लड़कियो की तरहा छोटी सी उमर मे शादी कर के घर ग्रहस्ती संभालने की बजाए कुछ ऐसा करना चाहती थी जिस से ना सिर्फ़ उसके माता पिता का नाम रोशन हो बल्कि पूरा देश उस पे गर्व कर सके. अपने ख्वाओ की तरहा उसका नाम भी बहुत ही सुंदर था, मोना. मोना बचपन से ही अपनी हम उमर लड़कियो मे सब से सुंदर दिखती थी और ज्यूँ ज्यूँ उसकी उमर बढ़ी, उसका हुस्न भी दिल नॅशिन होता चला गया. लंबा कद, भर पूर कशिश हल्का सांवला रंग, भरी हुई छातियाँ जो वो जब भी साँस लेती थी हिलती हुई हर जवान लड़के को उसकी तरफ ललचाई हुई नज़ारो से देखने पर मजबूर कर देती थी. उसके घने लंबे बाल जब खुले होते थे तो उसकी पीठ पर हवा से लहराते बहुत सुंदर लगते थे. नैनीताल के कितने ही छोरे इन ज़ुल्फो से खेलने को मच्छल रहे थे. उसकी बादाम जैसी गहरी आँखे ज़िंदगी से यूँ भरी हुई थी के अगर मुर्दे को भी गौर से देख ले तो उस मे जान डाल दें. मोना के गुलाब जैसे सुंदर होंठ हंसते हुए उसके मोतियों की तरहा चमकते दाँतों के साथ अंधेरे मे भी उजाला कर देते थे. इन होंठों का रस चूसने को कितने की भंवरे उसके इर्द गिर्द मंडराते रहते थे मगर ना ही उसने कभी किसी को घास डाली और ना ही कभी किसी मे इतनी हिम्मत हुई की अपने मन की बात उसको कह सके

शायद इस की एक वजह ये भी थी के नैनीताल मे सब ही मोना के पिता मास्टर दीना नाथ का बहुत अेहतराम करते थे. उन्हो ने अपनी सारी ज़िंदगी इंसानियत और प्यार का पाठ पढ़ाते हुए गुज़ार दी थी. दीना नाथ की बस ऐक ही बेटी थी और वो उनकी आँखो का तारा थी. उनको फखर था के उनकी बिटिया पढ़ लिख कर देश की सेवा करना चाहती थी. जहाँ मोना के पिता अपनी बिटिया के ख्वाब सुन कर खुशी से फूले ना समाते थे वहाँ उस की मा पूजा अंदर ही अंदर बहुत घबराती थी. वो जानती थी के ये दुनिया बड़ी ही ज़ालिम है और कितनी कलियाँ जो खिलने के ख्वाब देखती हैं उन को ये खिलने से पहले ही मुरझाने पे मजबूर कर देती है. वो रोज़ाना पूजा पाठ करने के बाद ये ही दुआ भगवान से माँगा करती थी के उस की मासूम बिटिया इस हवस से भरे दरिंदे समाज से बची रहे और अपने पागलपन के खोवाब छोड़ कर अपने हाथ पीले कर के अपना घर बसा ले. मगर भगवान को भी कुछ और ही मंज़ूर था..........

दीना नाथ जी ने ज़िंदगी भर इज़्ज़त तो बहुत कमाई थी मगर एक छोटे गाओं का स्कूल टीचर अपनी थोड़ी इस तनख़्वा से भला क्या जोड़ सकता है? बनिया उधार ना करे तो घर का चूल्हा ठंडा हो जाए ऐसे सफेद पोशौं का तो. इस के बावजूद मास्टर जी ने अपनी बिटिया को अपनी हसियत से बढ़ कर ज़िंदगी की हर खुशी देने की कोशिश की थी. परंतु जब बात मोना के देल्ही के बड़े कॉलेज मे जा के पढ़ने की आई तो बेचारे दीना नाथ जी वो कैसे पूरी कर सकते थे? दिल ही दिल मे मास्टर जी बहुत रो रहे थे और उस वक़्त से डर रहे थे जब उन्हे मोना का ये सपना तोड़ना पड़ेगा पर ज़िंदगी कभी कभार ग़रीबो पे भी मुस्कुरा देती है. उनकी इस समस्या को मोना ने खुद ही सुलझा दिया जब उससे देल्ही कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग मे स्कॉलरशिप मिल गयी. मास्टर जी की खुशी तो आसमान को छू रही थी और पहली बार मोना की माता पूजा को भी ऐसा लगा के उनकी बिटिया के सपने सच मे साकार होंगे. पूरा परिवार बहुत खुश था परंतु ग़रीबो की खुशियाँ और नेताओं के वादे ज़्यादा देर नही टिकते. अभी इस खुशी को वो सही तरहा से महसूस भी नही कर पाए थे के एक नयी समस्या खड़ी हो गयी, मोना देल्ही मे रहेगी कहाँ? कॅंपस फी तो देने की गुंजाइश नही थी मास्टर जी की और भला कोनसा बॅंक एक जल्द ही रिटाइर होने वाले मास्टर को लोन देता है? सच पूछिए तो बॅंक लोन तो बने ही अमीरों को और अमीर करने और ग़रीबो को सदा उन की गुलामी करने के लिए हैं. परिवार के तीनो सदस्य इस समस्या का उपाय निकालने के लिए सोचने लगे पर कुछ ही देर मे उन की उम्मीदें ख़तम होती नज़र आने लगी. दीना नाथ जी और मोना तो बस हिम्मत हार ही चुके थे जब पूजा ने ये कहा......

पूजा:"आरे हां ये पहले क्यूँ नही सोचा मैने?" मोना और मास्टर जी की आँखों मे एक बार फिर उम्मीद की किरण नज़र आने लगी और वो पूजा की तरफ देखने लगे.

मास्टर जी:"आरे भली मानस अब कुछ बताओ गी भी के नही?"

पूजा:"आप को मेरी बचपन की सहेली ममता याद है ना? सुना है कि उसका घर तो वैसे भी किसी महल से कम नहीं. उसके पास होगी तो मुझे इस की चिंता भी नही होगी. आप कहो तो तुरंत फोन पे बात करती हूँ उस से." ममता का नाम सुनते ही मास्टर जी के चेहरे से ख़ुसी चली गयी थी.

मास्टर जी:"आरी ओह भगवान किस दुनिया मे रहती है तू? ये बचपन की दोस्तियाँ जवानी मे बचपन की सुनी कहानियों जैसी हो जाती हैं. कहाँ वो और कहाँ हम? भला वो क्यूँ मोना को अपने घर रहने की इजाज़त देंगे? ऐसी उम्मीद ही मत बांधो के कल को अपनी ही नज़रौं मे ही शर्मिंदा हो जाओ."



पूजा:"आअप भी ना बस.....मेरी तो बेहन की तरहा है वो. भला अपनी बेहन से मदद लेने मे कैसी शरम? जब उसने डॉक्टर सहाब के साथ भाग कर शादी की थी तो हमने ही उन्हे अपने घर मे जगह दी थी ना? आज भी नही भूली वो इस बात को. आप चिंता मत की जिए और मुझे उससे बात करने दी जिए." मास्टर जी अभी भी इस बात से पूरी तरहा से सहमत नही हुए थे. उन्हो ने ऐसा कभी पूजा को कहा तो नही मगर उन्हे ममता हमेशा बहुत मतलबी लगी थी. पर शायद वो ही उसको समझने मे भूल कर गये हों? ये ही उम्मीद लगाए वो पूजा को बाज़ार फोन करने के लिए ले गये.

ममता पूजा से केवल 2 साल छोटी थी मगर जिस की ज़िंदगी मे धन की कोई फिकर ना हो उस के चेहरे पर गम के काले बादल महसूस भी नही होते. ये ही वजह थी के ममता पूजा से दिखने मे 8-9 साल छोटी लगती थी. जवानी के ज़माने मे उस के हुश्न के चर्चे पूरे नानिताल मे थे. इन ही जवानी के जल्वो को देख कर तो उसने देल्ही से आए डॉक्टर किसन कुमार का दिल मोह लिया था. ममता की सगाई बचपन मे ही उसकी मौसी के बेटे से हो गयी थी. जब ममता और डॉक्टर जी के कारनामो के किस्से घर मे पोहन्चे तो ममता को घर मे क़ैद कर दिया गया. ऐसे मे ना सिर्फ़ उसको घर से भागने मे बल्कि कुछ दिन अपने घर भी पूजा ने छुपने दिया था. देल्ही मे डॉक्टर सहाब के परिवार ने ममता को ना सिर्फ़ अपनाया बल्कि उसको हर वो खुशी दी जो एक ब्याह के लाई गयी बहू को दी जाती हैं. एक पागलपन की हद तक चाहने वाले पति के होने के बावजूद ममता नैनीताल की तरहा देल्ही मे भी सब मर्दों के मन मोहने मे लगी रहती थी. दूसरो के अपनी ओर देख कर आहे भरते देखने मे उससे बहुत मज़ा आता था. डॉक्टर साहब के सब दोस्त भी भाबी के जलवों के शेदाई थे. जब डॉक्टर जी ने अपनी धरम पत्नी के साथ अलग घर लिया तो वो दोस्त जो पहले ज़्यादा मिलते भी नही थे उनका भी घर मे आना जाना शुरू हो गया. डॉक्टर साहब ममता से बहुत ही प्यार करते थे. उनके मन मे कभी किसी किस्म का शक नही आया बल्कि वो खुश थे के ममता को तब भी कंपनी मिल जाती थी, जब वो काम मे मसरूफ़ रहते थे. वो अपने दोस्तों के भी शूकर गुज़ार थे जो ममता को इतने मेह्न्गे तोहफे दिया करते थे. सच मे वो बहुत किस्मत वाले थे जो ऐसी धरम पत्नी और दोस्त उन्हे मिले थे. ममता देल्ही की पार्टी लाइफ की भी बड़ी शैदाई थी. फिर चाहे पार्टी किसी के जनम दिन की हो या बस दोस्तो मे गेट टुग्दर ही हो, सब कुछ उसके ही इर्द गिर्द घुमा करता था. आज इस उमर मे भी वो अपनी लाइफ मे बहुत खुश रहती थी. जवानी की वो बहार भले ही अब ना रही हो, फिर भी वो अपने आप को देल्ही की जवान तितलियौं मे घेरे रखती थी और अपने गंदे चुटकुलो के कारण भी बहुत मशहूर थी. एक दिन अचानक उन्हे जब अपनी मूँह बोली बेहन पूजा का फोन आया और उसने मोना के बारे मे बता कर ये पूछा के क्या वो उसके पास रह सकती है तो कुछ पल तो वो चुप रही फिर कुछ सोच कर हां कर दी. आज के ज़माने मे अच्छे काम करने वाले मिलते ही कहाँ थे और फिर एक जवान लड़की उनके साथ हर पार्टी मे नज़र आए गी तो निगाहे उन पे भी तो जमी रहेंगी. उनकी बिटिया तो सीधे मुँह उनसे बात भी नही करती थी जब से उसने ममता को डॉक्टर साहब के दोस्त मिश्रा जी की बाहौं मे एक दिन स्कूल से जल्दी घर आ के देख लिया था. भला पूछो ये भी कोई बड़ी बात है? देल्ही जैसे बड़े शहरों मे तो ऐसी छोटी छोटी बातों की कोई आहेमियत ही नही है. अगर डॉक्टर जी भी ममता को मिश्रा जी के साथ देख लेते तो बुरा ना मानते तो फिर ये कल की लड़की क्यूँ इतनी नाराज़ है? ऐसे मे ममता को मोना का ख़याल आ गया जिसे आखरी बार बस साल पहले ही उस ने नैनीताल देखा था.

ममता:"मोना........ह्म्‍म्म....

...क्या नैनीताल की हुस्न की ये परी भी मेरी तरहा सब को अपना दीवाना बना पाएगी? लगती तो बहुत शर्मीली है मगर मेरे साथ रहे गी तो जीना सीख लेगी." ये सोचते हुए एक मक्कार सी हँसी ममता के चेहरे पे आ गयी.

दोसरि तरफ मोना कुछ दिन बाद देल्ही जाने वाली ट्रेन पर नैनीताल से बैठ गयी. ट्रेन मे बैठे 2 जवान और एक बुढ्ढा भी अपनी आँखो से मोना के कपड़े उतारने मे लगे हुए थे. पर खुआबों की दुनिया मे खोई मोना ने ये महसूस नही किया और अपनी छाती से गिरे दुपट्टे को ठीक नही किया. वैसे भी ये तो आँखो से पीने वाले रसिया थे, बहुत जल्द ही वो देल्ही के भेड़ियो के बीच मे रहने वाली थी.

ममता कितने ही देर चुप चाप अपने आगे हाथ मे घिसा हुआ सूटकेस पकड़ी लड़की को देखती रही. ट्रेन स्टेशन का शोर और भीड़ भाड़ भी उसे इस लड़की के सामने नज़र नही आ रहे थे. क्या ये वो ही लड़की है जिसे मैने नैनीताल मे देखा था? लड़की तो वो ही थी पर फरक ये था के उस दिन मोना ने अपने सब से अच्छे कपड़े ममता के आने की वजा से पहने हुए थे और उस की सहेली ने उसका मेक अप भी किया था. आज वो जैसे आम तोर पे सीधे साधे कपड़े पहने बगैर मेक अप के होती है वैसे ही थी. सर पे पूजा ने जाने से पहले उसके मालिश भी कर दी थी और तेल की बू अभी तक गयी नही थी. "बाप रे बाप! पार्टी पे ले जाना तो छोड़ो, इसको तो नौकरानी के तौर पे भी मैं किसी से मिला नही पाउन्गि." ममता सोचने लगी. मोना ममता को ऐसे देखते हुए बहुत घबरा रही थी पर ममता घूर्ना बंद ही नही कर रही थी और ना ही कुछ बोल रही थी. आख़िर हिम्मत कर के मोना ने ही अपना मूँह खोला....

मोना:"ना...नमस्ते ममता आंटी". "आंटी! इस को मैं आंटी नज़र आती हूँ?" ममता अगर मोना को देख कर कुछ खास खुश नही हुई थी तो अब ये लफ्ज़ सुन कर तो उसका दिल कर रहा था के इस जाहिल लड़की को ट्रेन मे वापिस बिठा के नैनीताल भेज दे. बड़ी मुस्किल से उसने अपना गुस्सा काबू मे रख कर नौकर को कहा...

ममता:"बंसी, मेडम का सूटकेस गाड़ी मे रखो." ममता ने ये चंद इल्फ़ाज़ भी इस लहजे मे कहे थे के मोना का डर से खून खुसक हो गया. ट्रेन स्टेशन से घर तक के सफ़र मे दोनो गाड़ी मे चुप रहे. बस कुछ था तो देल्ही की सड़कों का शोर और गाड़ी मे "पप्पू कॅन'ट डॅन्स साला" की सीडी बज रही थी. घर पोहन्च्ने के बाद ममता ने पहली बार मोना से बात की......

क्रमशः....................
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