Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
11-18-2018, 12:35 PM,
#23
RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
मैं और ज़ुबैर दोनों ही रूही बाजी के ख्यालों में गुम थे और आज जो कुछ हुआ.. उस पर बहुत खुश थे। हम दोनों ने ही आज तक कभी किसी लड़की को असल में नंगी नहीं देखा था और आज असली मम्मे देखे भी थे.. तो अपनी ही सग़ी बहन के..
मुझे यह सोच पागल किए दे रही थी कि अब मैं रोज़ अपनी बहन के खूबसूरत जिस्म का दीदार किया करूँगा..
क्या हुआ.. जो सिर्फ़ ऊपरी जिस्म ही है.. और हो सकता है कि बाजी जल्द ही पूरी नंगी होने पर आमादा हो ही जाएँ।
ज़ुबैर की आवाज़ पर मेरी सोच का सिलसिला टूटा..
वो कह रहा था- भाई आपका क्या ख़याल है.. क्या हम बाजी को इस बात पर तैयार कर लेंगे कि पूरी नंगी होकर हमारे सामने बैठा करें?
मैं ज़ुबैर के इस सवाल पर सिर्फ़ मुस्कुराने लगा.. जो मैं सोच रहा था वही ज़ुबैर.. मतलब हम दोनों की सोच एक ही लाइन पर जा रही है।
‘भाई कितना मज़ा आएगा ना.. अगर ऐसा हो जाए..’ ज़ुबैर ने छत को देखते हुए गायब दिमाग से कहा। 
‘यार मैं प्लान कर रहा हूँ कि अब आगे क्या करना है.. बस तुम अपना दिमाग मत लगाना.. और जो मैं कहूँ या करूँ बस वैसे ही होने देना.. ओके.. मैं नहीं चाहता कि कोई गड़बड़ हो और बाजी हमसे नाराज़ हो जाएँ.. बस अब कोई प्लान सोचने के बजाए बाजी के दूधों को सोच और सोने की कोशिश करो और मुझे भी सोने दो।’ 
मैंने ज़ुबैर को डाँटने के अंदाज़ में कहा और आँखें बंद करके सोचने लगा कि अब क्या करना है और ये ही सोचते-सोचते ना जाने कब नींद ने आ दबोचा।
अगले दिन मैं कॉलेज से जल्दी निकला और घर वापस आते हुए अपने दोस्त से 3 नई सीडीज़ भी लेता आया। मैं चाहता था कि आज बाजी जब रात में हमारे कमरे में आएं.. तो पहले से ही गर्म हों..
जब मैं घर पहुँचा तो 2 बज रहे थे। अम्मी.. रूही बाजी और ज़ुबैर बैठे खाना खा रहे थे।
मैंने सबको सलाम किया और हाथ-मुँह धोकर खाने के लिए बैठ गया।
खाने के बाद हम वहाँ ही बैठे टीवी देख रहे थे.. तो अम्मी उठीं और सोने के लिए अपने कमरे में चली गईं।
रूही बाजी और ज़ुबैर वहाँ ही थे।
मैंने बिला वजह ही चैनल चेंज करना शुरू किए.. तो एक चैनल पर हॉट सीन बस शुरू ही हुआ था और लड़का-लड़की किसिंग कर रहे थे।
मैं उससे चैनल पर रुक गया।
बाजी ने दबी आवाज़ में कहा- वसीम क्या हिमाक़त है ये.. अम्मी किसी भी वक़्त बाहर आ सकती हैं.. चैनल चेंज करो..
ज़ुबैर मेरा साथ देने के लिए फ़ौरन बोला- कुछ नहीं होता बाजी.. अम्मी का दरवाज़ा खुलेगा तो आवाज़ आ ही जाएगी.. तो भाई चैनल चेंज कर देंगे। 
बाजी ने अपना मख़सूस लिबास यानि क़मीज़-सलवार और सिर पर स्कार्फ बाँधा हुआ था और बड़ी सी चादर लपेट रखी थी और टांग पर टांग रखे हुए बैठी थीं। 
मैंने बाजी को देखते हुए कहा- सोहनी सी बाजी… क्या ख़याल है आज दिन की रोशनी में अपने प्यारे से दुद्धुओं का दीदार करा दो ना.. मेरे जेहन से उनका ख्याल निकल ही नहीं रहा है प्लीज़.. बाजीईइ..
बाजी फ़ौरन घबरा कर बोलीं- तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? बिल्कुल ही उल्टी बात करने लगते हो।
‘चलो ना यार.. मज़ा आएगा ना बाजी.. डरते हुए ये सब करने का मज़ा ही अलग है।’ मैंने कहा और बाजी को देखते हुए अपनी पैंट की ज़िप खोली और लण्ड बाहर निकाल कर अपने हाथ से सहलाने लगा।
बाजी के साथ-साथ ज़ुबैर भी तकरीबन उछल ही पड़ा- ये क्या है भाई.. मूवी देखना और बात है.. आप फ़ौरन चैनल चेंज कर सकते हो.. लेकिन ये?
वो कुछ डरे-डरे से लहजे में बोला। 
मैंने हाथ को मक्खी उड़ाने के स्टाइल में लहराया और कहा- कुछ नहीं होता यार.. चलो बाजी.. मैंने आपको दिन की रोशनी में अपना लण्ड दिखा दिया है.. अब आप भी दिखाओ ना?
बाजी अभी भी ‘नहीं.. नहीं..’ करने लगीं.. तो मैंने ज़ुबैर को इशारा किया- चलो ज़ुबैर शुरू हो जाओ..
मेरे कहने पर ज़ुबैर ने भी अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और हाथ में पकड़ लिया.. लेकिन वो अभी भी डरा हुआ सा था। 
बाजी ने ज़ुबैर को हैरत से देखा और मेरी तरफ इशारा करके कहा- ये तो है ही खबीस.. तुम्हें किस पागल कुत्ते ने काटा है.. अम्मी बाहर आ गईं तो पता लग जाएगा सबको। 
ज़ुबैर को डरते देख कर मैंने बाजी को कहा- बाजी अभी भी टाइम है.. मान लो नहीं तो..
बाजी फ़ौरन बोलीं- नहीं तो क्या??
मैंने मुस्कुरा कर बाजी को देखा और ज़ुबैर की टाँगों के बीच बैठते हुए कहा- नहीं तो ये.. और ज़ुबैर का लण्ड अपने मुँह में ले लिया।
बाजी खौफ से पीली पड़ गईं और अपनी जगह से खड़ी होती हुई बोलीं- बस करो वसीम.. खुदा के लिए उठो.. अम्मी बाहर आ गईं तो..
मैंने बाजी की बात काट कर कहा- अगर अम्मी बाहर आईं.. तो इस सबकी जिम्मेदारी आप पर होगी.. आप दिखा दो ना.. देख लिए जाने के डर से ये सब करते हुए आपको मज़ा नहीं आएगा क्या। इसमें अजीब सा मज़ा है बाजी प्लीज़ करके तो देखो..
बाजी ने डरते हुए ही अम्मी के दरवाज़े और बाहर वाले मेन गेट पर नज़र डाली और कहा- वसीम छोड़ो ना प्लीज़ उठो.. ये सब कमरे में कर लेंगे ना..
मैंने अनसुनी करते हुए कोई जवाब नहीं दिया और अपना मुँह ज़ुबैर के लण्ड पर चलाते-चलाते बाजी को क़मीज़ उठाने का इशारा कर दिया।
बाजी ने झिझकते-झिझकते झुक कर अपनी चादर समेत क़मीज़ के दामन को पकड़ा..
तो मेरा दिल भी धक-धक करने लगा।
मैं ज़ाहिर तो बहुत कर रहा था कि मुझे परवाह नहीं.. और शायद मुझे अपनी इतनी परवाह भी नहीं थी.. लेकिन बाजी को ये करता देख कर मुझ पर भी खौफ कायम हो गया था कि कहीं सचमुच ही अम्मी बाहर आ गईं.. या बाहर से कोई घर में दाखिल हुआ.. और उन्होंने ये देख लिया तो क्या होगा..
इसके आगे मुझसे सोचा ही नहीं गया।
मैंने धक-धक करते दिल के साथ अम्मी के दरवाज़े पर नज़र डाली। 
अम्मी का कमरा बाजी की बैक की तरफ था और बाहर का मेन गेट उनके दायें और हमारी बाईं तरफ़ था।
फिर मैंने बाजी को देखा.. उन्होंने अपनी चादर और क़मीज़ के दामन को थामा हुआ था और घुटनों से ऊपर उठा रखा था।
बाजी ने खौफजदा सी आवाज़ में कहा- वसीम तुम अम्मी के दरवाज़े का ध्यान रखना और ज़ुबैर तुम बाहर वाले गेट को भी देखते रहना.. अच्छा। 
यह कह कर बाजी ने अपनी चादर और क़मीज़ को अपनी गर्दन तक उठा दिया। बाजी ने ब्लैक कलर की ब्रा पहनी हुई थी और ब्लैक ब्रा से झाँकते गुलाबी-गुलाबी मम्मों का ऊपरी हिस्सा क़यामत ढहा रहा था। मैंने कुछ देर इस मंज़र को अपनी नज़र में सामने देखने के बाद.. डरी हुई आवाज़ में आहिस्तगी से कहा- बाजी अपना ब्रा भी उठाओ ना प्लीज़.. 
और शायद बाजी को भी अब इस सब में मज़ा आने लगा था.. उन्होंने गर्दन घुमा कर अम्मी के कमरे के दरवाज़े को और फिर बाहर वाले दरवाज़े को देखा और एक झटके में अपनी ब्रा भी ऊपर कर दी।
इसी के साथ मेरे दिल की धड़कन बिल्कुल रुक गईं..
मुझ पर वो ही कैफियत हावी होने लगी थी.. जो कल बाजी के सीने के उभारों को देख कर हुई थी।
मैं चंद लम्हें ऐसे ही अपनी खूबसूरत सी बहन के प्यारे से मम्मों को देखता रहा और फिर उनके हसीन भूरे गुलाबी निप्पलों पर नज़र जमाए हुए एकदम गुमशुदा दिमाग की कैफियत में जैसे ही बाजी की तरफ बढ़ा तो…
बाजी ने फ़ौरन अपनी क़मीज़ नीचे कर दी.. और चादर और क़मीज़ के ऊपर से ही अपने ब्रा को मम्मों पर सैट करने लगीं।
फिर उन्होंने अपना हाथ चादर के अन्दर डाला और खड़े-खड़े ही थोड़ी सी टाँगें खोलीं और घुटनों को बेंड करते हुए अपनी सलवार से ही टाँगों के बीच वाली जगह को साफ कर लिया।

मैंने ये देखा तो हँसते हुए तंज़िया अंदाज़ में कहा- बाजीजान इतने में ही गीली हो गई हो.. और नखरे इतने कर रही थीं।
‘बकवास मत कर खबीस.. मैं नखरे नहीं कर रही थी.. अगर अम्मी या कोई और आ जाता ना.. तो फिर तुम्हें पता चलता।’
बाजी ने ये कहा और फिर अपना लिबास सही करने लगीं। 
ज़ुबैर पहले ही अपना लण्ड अन्दर कर चुका था.. मैंने भी अपना लण्ड पैंट में डाला और ज़िप बंद करते हुए कहा- अच्छा सच-सच बताओ बाजी.. मज़ा आया ना आपको..
बाजी को खामोश देख कर मैंने फिर कहा- बाजी झूठ मत बोलना.. आपको हम दोनों की कसम.. सच बताओ?
मेरी बात सुन कर बाजी मुस्कुरा दीं और अपने कमरे की तरफ चल पड़ीं। 
फिर 4-5 क़दम बाद रुक कर पलटीं और मुझे आँख मार कर बड़े फिल्मी स्टाइल में कहा- एकदम झकास्स्स..
और कमरे में चली गईं।
अब मैं सोचने लगा कि हमारी बहन का ये स्टाइल भी बहुत खूब है.. जो वो अक्सर जाते-जाते पलट कर हमें मुतमइन कर जाती हैं। 
आज रात फिर बाजी हमारे कमरे में आईं और अपनी क़मीज़ उतार कर सोफे पर बैठ गईं।
ज़ुबैर और मैंने बाजी को देखते-देखते ही उनके सामने एक-दूसरे को चोदा.. और अब रोज ही ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। 
तक़रीबन एक हफ्ते तक यही करते रहने के बाद एक रात जब चुदाई करते हुए ज़ुबैर और मैं डिसचार्ज हुए.. तो बाजी भी तब तक दो बार अपना पानी छोड़ चुकी थीं। 
हम तीनों अपनी-अपनी ड्रेस पहन रहे थे कि बाजी ने अपनी क़मीज़ पहनते-पहनते कहा- यार आज कुछ मज़ा नहीं आया है.. कुछ और दिखाओ मुझे.. कुछ नया दिखाओ.. ये डेली तुम लोगों को एक ही काम करते देख-देख कर अब बोर हो गई हूँ.. अब कुछ चेंज लाओ। 
ज़ुबैर ने कहा- किस किस्म का चेंज लाएं बाजी?
बाजी ने कहा- ये मुझे नहीं पता.. लेकिन बस कुछ मज़ेदार सा हो।
मैंने बाजी को देखते हुए कहा- बाजी जान हम तो जो कर सकते थे.. सब कर ही लिया है.. हमारे पास तो कुछ नया है नहीं.. यदि कुछ चेंज ही चाहती हो.. तो आप ही हमें कुछ नया दिखा दो। 
बाजी मुस्कुराईं और चादर को अपने जिस्म से लपेटते हुए कहा- वसीम तुम से तो मैं इतनी अच्छी तरह वाक़िफ़ हूँ कि तुम्हारी शक्ल देख कर ही मुझे पता चल जाता है कि तुम क्या चाह रहे हो.. कमीनों.. मैं अच्छी तरह से समझती हूँ कि तुम क्या सोच रहे हो.. लेकिन याद रखना.. जो तुम सोच रहे ही न.. वो कभी नहीं हो सकता और इसके बारे में सोचना भी मत.. पहले ही कभी-कभी मैं बहुत गिल्टी फील करती हूँ कि ये सब कर रही हूँ!
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