Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:42 AM,
#34
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
चारो तरफ घना अँधेरा छाया हुआ था और बेहोश पड़ी थी मोहिनी इधर मोहन खून में नहाया हुआ था दिव्या कुछ मन्त्र पढ़ रही थी ताकि उसकी रूह को कैद कर सके और तभी होश आया उस प्रेम दीवानी को जिसने प्रेम के लिए हर सरहद तोड़ दी थी 



आंसू और पानी से भीगी आँखों से उसने देखा की मोहन कैसे पल पल मौत किट तरफ जा रहा है तो अपने आप को संभालते हुए वो उठी उसकी आँखों के आंसू सूखने लगे और वहा पर क्रोध की अग्नि जलने लगी 



उसकीसांसे जलने लगी जैसे जैसे बरसात उस से टकरा रही थी बुँदे भाप बन कर उड़ने लगे उसके चांदी जैसे बाल दहकने लगे हरी आँखे क्रोध के मारे लाल हो गयी थी किसी नागिन की तरह फुफकारती हुई वो बढ़ने लगी संयुक्ता की तरफ 



और उसके पास आने वाले हर पेड़ पौधे घास जल उठे थे दूर गाँव के मंदिर में घंटिया अपने आप बज उठी थी मंदिर में दीपक जल गया था मोहिनी लौट आई थी नागिन की शक्तिया लौट आई थी महा चंडालिनी नाग कुमारी मोहिनी को अपना स्वरूप मिल गया था वापिस 



मोहिनी ने अपना नाग्रूप धारण कर लिया था उस अँधेरे में जैसे चांदी चमक उठी थी एक पल को दोनों माँ बेटियों की आँखे हैरत के मारे फटी रह गयी थी मोहिनी की जहरीली फुफकार पड़ी संयुक्ता के ऊपर और वो जलने लगी मोहन गिरा धरती पर 



मोहिनी की आँखे क्रोध से दाहक रही थी उसने अपनी कुंदिली में जकड़ लिया महरानी की रूह को और किसी शीशे की तरह तोड़ दिया 



“माँ, नहीं माँ नहीं ” दिव्या चिल्लाई 



“नागिन, तो लौट आई है तेरी शक्तिया पर कोई बात नहीं आ तू और तेरी शक्तिया सबको पीस डालूंगी मैं आज ”


मोहिनी नारी रूप में आई और बोली- दिव्या, चल फिर देखते है मेरी प्रीत सच्ची है या तेरी जिद और दोनों में मल्ल युद्ध आरम्भ हो गया कभी वो भारी तो कभी वो भारी कभी शक्तिया प्रयोग करे तो कभी गाली गलौच भोर होने में कुछ हिज समय शेष था पर बाज़ी की हार जीत का फैसला अभी हुआ नहीं था 



एक महाप्रेतनी और एक बल्शाली नागीन कैसे बात बने और फिर होश आया मोहन को अपनी सांसो की किसी तरह सँभालते हुए आया दोनों के बीच और बोला- रुक जाओ दोनों रुक जाओ , बंद करो ये लड़ाई बंद करो 



दोनों पल भर के लिए रुक गयी 



मोहन- दिव्या शांत हो जाओ , जिद छोड़ दो मेरी मित्रता का मान रखो अगर कभी भी तुमने एक पल को भी अगर मुझे अपना माना है है तो ये जिद छोड़ दो 



ये क्या कह दिया मोहन ने कभी अपना माना है , मैंने तो सिर्फ तुम्हे ही अपना माना है मोहन 
मोहन- तो फिर क्यों ये क्रोध दिव्या हम सब कब तक ऐसे उलझे रहेंगे माना की मैं तुम्हे प्रेम तो नहीं दे सकता पर मित्रता तो प्रेम से भी अनमोल है दिव्या और देखो अनमोल तो तुम्हरे ही पास है 



“छोड़ दो ये जिद राजकुमारी कब तक इस मोह में फसी रहोगे ”


सबने मुद कर देखा तो वही साधू खड़े थे सबने हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और उनहोंने स्वीकार किया 
“देव, पर मुझे तो कुछ नहीं मिला तब भी और अब भी ”


“राजकुमारी तुमने प्रेम का मर्म कभी समझा नहीं अगर समझ जाती तो इतनी परेशानी होती ही नहीं असली प्रेम किसी को पाना नहीं बल्कि त्याग करना है ”


“परन्तु ”


“राजकुमारी, एक सहस्त्र साल तक तुमने अपने आप को सजा दी , पर अब तुम्हरे मुक्त होने का समय हो गया है मोहन और मोहिनी को एक होने दो उन्हें पूर्ण होने दो मैं तुम्हे वचन देता हु की तुम्हारा अहम् किरदार होगा इनके आगामी जीवन में , कालन्तर में तुम इनकी पुत्री के रूप में जनम लोगी ”
अब साक्षात महादेव के आगे दिव्या क्या बोलती बस हाथ जोड़ दिए और अगले ही पल वो गायब हो गयी सब शांत हो गया अब वो मुखातिब हुए प्रेमी जोड़े से 



“मोहिनी, ये तुम्हारी तपस्या का ही प्रताप है की आज तुम्हरी सारी शक्तिया वापिस तुम्हे प्राप्त हो गयी परन्तु चूँकि अब तुम्हे मोहन के साथ विवाहित जीवन शुरू करना है तो आज के बाद तुम कभी नागरूप में नहीं आओगी जब तक की ऐसी कोई गहन आवश्यकता नहीं आन पड़े नान्गंश तुम रहोगी पर बस हर पच्चीस बरस में एक बार तुम इस रूप में आओगी और मोहन सदा खुश रहो आबाद रहो अगले 100 वर्षो तक तुम्हारा ये विवाहित जीवन रहेगा परन्तु मेरा वचन है की हर जनम में तुम दोनों ही एक दुसरे के जीवन साथी बनोगे काले बादल हट रहे है नया सवेरा तुम्हारा इंतजार कर रहा है ”


दोनों ने साधू के पाँव पकड़ लिए पर अगले ही पल कुछ नहीं था सिवया उन दोनों के और उनके प्रेम क साक्षी उस कीकर के पेड़ के 



दोनों ने शिव मंदिर में विवाह कर लिया और महल की मरम्मत के बाद उसी में बस गए कुछ बरस बाद उनको एक बेटी हुई जिसका नाम रखा गया दिव्या 



पर दिव्या का जनम दोनों के लिए एक सवाल लेकर आया था की क्या दिव्या इन्सान है या नागिन और इसका जवाब तो बस आने वाले वक़्त के पास ही था


End
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