Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:40 AM,
#21
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
बस एक झटका और चकोर की चूत खिल जानी थी पर तभी किसी की आवाज को मोहन के कानो ने सुना और पल भर में वो समझ गया उसने अपनी धोती पहनी और भागा बाहर की और , राजमहल से सैनिक आये थे उसे बुलाने राजकुमारी दिव्या ने तुरंत उसे बुलवाया था चकोर की आँखों में आग देखि उसने पर उसका जाना जरुरी था तो वो निकल गया महल के लिए 



इधर राजकुमार पृथ्वी डूबा था संगीता के ख्यालो में अपनी छोटी माँ के रूप का दीवाना होता जा रहा था वो बस एक बार संगीता के गुलाब की पंखुडियो से होंठो को छू लेना चाहता था वो एक बार उसकी उस प्यारी सी चूत को निहारना चाहता था पर कैसे कैसे कहे वो संगीता से अपने मन की बात आखिर मर्यादा का मान भी तो रखना था उसको 



पर ये जिस्म की आग रिश्तो की मर्यादा को झुलसा देने वाली थी, दिव्या बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी मोहन का और जैसे ही मोहन उसके कमरे में गया जब लोक लाज भूल कर वो मोहन से लिपट गयी अब मोहन क्या बोले चुप ही रहा 



दिव्या- ओह मोहन तुम कहा चले गए थे तुम्हारे बिना मेरा मन एक पल भी नहीं लगता 



मोहन- घर जाना भी तो जरुरी है राजकुमारी 



दिव्या- कितनी बार कहा है हमे सिर्फ दिव्या कहा करो 



मोहन- जी 



दिव्या- मोहन हमे तुमसे कुछ कहना है 



मोहन- जी आदेश 



वो- आदेश नहीं निवेदन 



मोहन- कैसा निवेदन 



वो- हम प्रेम करने लगे है तुमसे मोहन 



प्रेम एक राजकुमारी का एक बंजारे के साथ क्या कहेगी दुनिया और क्या सोचेंगे राजाजी , मोहन तो खुद किसी और का हो चूका था अब दिव्या ने इजहारे मोहब्बत कर दिया था अब मोहन क्या जवाब दे बस चुपचाप खड़ा रहा 



दिव्या- चुप क्यों हो मोहन, क्या तुम भी हमसे प्यार नहीं करते 



मोहन- राजकुमारी जी, ये ठीक नहीं है 



वो- क्या ठीक नहीं है मोहन , तुम एक बार हां, तो कहो तमाम सुख तुम्हारे कदमो में होंगे


मोहन- राजकुमारी जी, बात वो नहीं है दरअसल मैं स्वयम किसी और को अपना दिल दे चूका हु अब उसको ना कैसे कहू 



दिव्या- हम तुम्हारा संदेसा उसको भिजवा देंगे 



मोहन- आप मेरे प्राण मांग लीजिये एक पल में न्योछावर कर दूंगा पर आपसे प्रेम मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता 



दिव्या- मोहन क्या कमी है मुझमे, क्या मैं सुंदर नहीं अगर तुम्हे कोई कमी लगती अहि तो मुझे बताओ पर मेरे प्रेम को ना ठुकराओ 



मोहन- आपके प्रेम का मैं सम्मान करता हु पर मैं किसी और का हो चूका हु 



अब दिव्या को गुस्सा आया बोली- तो अभी वो मोहिनी इतना इतराती ही 



तो क्या दिव्या को पता था मोहिनी के बारे में , हां पता होगा तभी तो कह रही है सोचा मोहन ने 



मोहन- आपको जब सब पता है तो फिर आप समझिये जरा 



दिव्या- तुम समझो मोहन 



मोहन- मैं क्षमा चाहूँगा 



मोहन पलटा और दिव्या चीखी- मोहन तुम बस मेरे हो बस मेरे किसी और का नहीं होने दूंगी मैं 



अब वो क्या जाने वो तो हो चूका किसी और का प्रीत का गुलाबी रंग चढ़ चूका था मोहन पर पहले ही अब तो बस फाग खेलना था उसे पर फाग में रंग प्रीत का बिखरना था या जुदाई का ये देखना बाकी थी ये प्रेम की कैसी परीक्षा होनी थी जिसमे झुलसना सबको था 



पृथ्वी आधी रात को जा पंहुचा संगीता के पास 



“पुत्र, तुम इस समय”


“माँ, एक परेशानी ने घेरा है समझ नहीं आ रहा की क्या करू तो आपके पास आ गया ”


अब संगीता तो जानती ही थी की पृथ्वी को क्या परेशानी है वो बस मुस्कुराई बोली- कोई बात नहीं हमारे पास सो जाओ 



“आपके पास कैसे ”


“एक माँ के साथ सोने में पुत्र को कैसी शर्म ”


“पुत्र को तो कोई दिक्कत नहीं माँ, पर मेरे अंदर एक नीच इंसान है जो अपनी माँ से ही प्रेम कर बैठा है उसका क्या ”
संगीता- मैं जानती हु पुत्र की तुम्हारे मन में क्या द्वन्द चल रहा है और मैं उसे गलत भी नहीं मानती बेशक हम रिश्तो की बेडियो से जकड़े हुए है पर हमारे सीने में एक दिल धडकता है और फिर प्रेम कहा किसी में भेद भाव करता है हम जानते है की तुम हमे चाहने लगे हो

और अब हमे भी तुम्हारा ये प्रेम स्वीकार है पर पृथ्वी ये प्रेम का अंकुर बस हम दोनों के मन में ही रहना चाहिए 
संगीता तो चाहती ही थी और अब वो इसमें और देर नहीं करना चाहती थी कितनी आसानी से उसने पृथ्वी की तमाम मुश्किलों को सुलझा दिया था वो बिस्तर से उतर कर पृथिवी के पास आई और अपने रसीले होंठो को उसके होंठो से जोड़ दिया माँ बेटे का रिश्ता अब पति-पत्नी का होने वाला था 



संगीता पृथ्वी के होंठो का पूरा मजा ले रही थी पल पल दोनों के जिस्मो से वस्त्र कम होते जा रहे थे और कुछ पलो बाद दोनों नंगे थे पृथ्वी ने संगीता को अपनी गोद में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया संगीता भी किसी से कम नहीं थी पृथ्वी का लंड संगीता की चूत से टकरा रहा था संगीता ने उसे अपने हाथो ने ले लिया 



इधर पृथ्वी संगीता की चूचियो पर टूट पड़ा था और उनके गुलाबी निप्पल को चूसने लगा था संगीता के तन बदन में बिजलिया दौड़ने लगी थी चूत का गीला पण बढ़ गया था , इधर पृथ्वी पहली बार किसी औरत के सम्पर्क में आया था पर ये खेल किसी को आता नहीं सब अपने आप ही सीख जाते है 




दोनों छातियो कठोरता से भर चुकी थी अब पृथ्वी संगीता के चिकने पेट को चाट रहा था और धीरे धीरे उसकी चूत की तरफ बढ़ रहा था संगीता अपने आँखे बंद किये उस लम्हे का इंतज़ार कर रही थी जब पृथ्वी के होंठ उसकी चूत को छुएंगे
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