Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:40 AM,
#20
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
“क्या कहा जरा फिर से कहना ”


“दोहराने की हमे आदत नहीं जो कह दिया हुकम हो गया ”


“हुकम हो गया, कल को तो किसी की सांसो से भी आपको तकलीफ होने लगी तो सांसे बंद करने का भी हुकम हो गया ऐसी की तैसी ऐसे हुकम की रही बात मोहन की तो मुझे उस से जुदा करदे इतना साहस किसी में नहीं ” बोली मोहिनी 



दिव्या- गुस्ताख लड़की पता नहीं क्यों हम तुम्हारी बाते सुन रहे है चाहे तो अभी हमारे सैनिक तुम्हरे सर को धड से अलग कर देंगे 



मोहिनि- गुमान ना करो राजकुमारी , घमंड किसी का नहीं चलता और फिर तुम्हारी तो बिसात ही क्या है तुमने आज तो कह दिया की मोहन से दूर चली जाऊ पर ये मुमकिन नहीं , मैं मोहन की और मोहन मेरा 



दिव्या- तो चलो ये भी देख लेते है देखलेना तुम्हे पता भी नहीं चलेगा कब वो तुम्हे छोड़ कर मेरे पास आ गया 



मोहिनी- कोशिश कर लो तुम्हारा भी वहम दूर हो जायेगा , तुमने कभी समझा नहीं नहीं प्रेम को मोहन को पाना तुम्हारा प्रेम नहीं बल्कि तुम्हारी जिद है उअर जिद किसी की कहा पूरी होती है कर लो कोशिश पर मोहन की हर साँस से बस एक ही आवाज आएगी मोहिनी मोहिनी 



मोहिनी दिव्या को व्ही छोड़ आगे बढ़ गयी जबकि दिव्या एक बार फिर मन मसोस कर रह गयी अब वो करे तो भी क्या करे वो कहा समझ सकती थी मोहन और मोहिनी के रिश्ते को पर वो भी तो मजबूर थी , अपने प्यार में वो भी तो चाहती थी मोहन को और ये चाहत आने वाले समय में क्या गुल खिलाने वाली थीये तो बस वक़्त ही जानता था 



इधर चकोर मौके की तलाश में थी की कब उसे अकेले में मोहन से बात करने ला मौका मिले पर मोहन व्यस्त था उसके बापू के साथ जो की बार बार उससे एक ही सवाल पूछ रहा था की ऐसा क्या है वो जो उससे छुपा रहा है पर मोहन उसकी बात को टाले जा रहा था अपने बहानो से 



इधर महल में पृथ्वी का जीना हराम हुआ मन बार बार करे की संगीता के पास ही जाकर बैठे उस से बात करे पर अपनी छोटी माँ के प्रति जो शर्म थी वो उसका रास्ता रोक लेती थी इधर संगीता लगातार उस पर अपनी अदाओ के डोरे डाल रही थी समय ऐसे ही गुजर रहा था 



और फिर एक रात मोहन अकेले बैठा था की उसे एक परछाई दिखी देखते ही वो समझ गया वो उसकी तरफ देखते ही मुस्कुराया चकोर उसके पास आके बैठ गयी और बोली- आजकल तो बड़े साहब हो गए हो मुझसे बात करने की फुर्सत ही नहीं तुम्हारी 



मोहन- ऐसा नही है बस उलझा हु अपने आप में 



वो- क्या हुआ 



मोहन- कुछ नहीं बस ऐसे ही 



चकोर- कुछ तो है जो मुझसे छुपा रहे हो 



मोहन वो- कुछ नहीं तू यहाँ इतनी रात को क्यों आई 



चकोर- तुझे भी पता है मैं यहाँ क्यों आई हु 



मोहन चुप रहा , चकोर ने अहिस्ता से अपना हाथ उसके लंड पर रखा और दबा दिया मोहन कुछ कहता इस से पहले चकोर ने उसे चुप रहने को कहा और उसका हाथ पकड़ कर अपनी झोपडी में ले आई 



मोहन- कोई आ जायेगा 



चकोर- कोई नहीं आएगा 



चकोर घुटनों के बल बैठी उसने मोहन की धोती को खोल दिया और उसके लंड को सहलाने लगी अपनी बहन के कोमल हाथो का स्पर्श मोहन को उत्तेजित करने लगा और कुछ ही पलो में उसका लंड हवा में झूलने लगा 



चकोर ने उसके सुपाडे को पीछे किया और मोहन के लंड की खुशबु को सूंघने लगी, और फिर कुछ देर बाद उसने अपने दहकते होंठ लंड पर रख दिए मोहन का पूरा बदन झनझना गया उसके पुरे सुपाडे को चकोर ने अपने मुह में भर लिया और उस पर अपनी जीभ फेरने लगी 



चकोर का दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था वो अपने भाई के लंड को चूस रही थी मोहन ने थोडा सा और लंड उसके मुह में सरका दिया उसने चकोर के सर को पकड़ा और लंड को आगे पीछे करने लगा बहुत देर तक वो उसे अपना लंड चुसवाता रहा 



फिर उसने चकोर को नंगी किया और उसकी गांड को मसलते हुए उसकी चूचियो को मुह में लेके चूसने लगा चकोर का बदन बुरी तरह से कांप रहा था जैसे की उसको बुखार चढ़ आया हो जल्दी ही उसकी चातिया कामुकता से फूल उठी थी उत्तेजना में वो खुद बारी बारी से मोहन को स्तनपान करवा रही थी 



जब तक उसके उभार कड़े ना होगये मोहन उनको चूसता रहा , अब उसने चकोर की टांगो को चौड़ा किया और निचे बैठते हुए अपने होंठ बहन की अनछुई चूत पर रख दिए चकोर तो जैसे पगला ही गयी मोहन की जीभ का खुरदुरापन अपनी चूत पर महसूस करते ही उसकी आँखे अपने आप बंद हो गयी 



बदन ढीला पड़ गया होंठो से गर्म आहे फूटने लगी जिनको वो चाह कर भी रोक नहीं सकती थी मोहन ने ऐसी चूत पहले नहीं चखी थी बेहद ही नमकीन रस उसका मोहन के होंठो को तर कर गया था चकोर के चूतडो को मजबूती से दबाते हुए वो उसकी चूत को चाट रहा था 



चकोर मोहन के सर को अपने चूत पे दबा रही थी ऐसी मस्ती चकोर ने आज से पहले कभी नहीं महसूस की थी आज वो मोहन से दिल खोल के चुदना चाहती थी क्योंकि एक बार पहले ही उसके हाथो से मौका निकल गया था पर इस बार वो कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी 



चकोर ने मोहन को वहा से हटाया और उसको लिटाते हुए खुद उसके ऊपर लेट गयी और अपने भाई के होंठो को चाटने लगी चूसने लगी दो जिस्म एक जान बन जाने को बेताब थे मोहन बहन को चुमते हुए उसके कुलहो को सहला रहा था धीरे धीरे 



कुछ देर की चूमा चाटी के बाद मोहन ने चकोर को अपने निचे ले लिया और उसकी टांगो को विपरीत दिशाओ में फैला दिया चकोर भी जानती थी की आगे क्या होने वाला है उसका बदन हलके हलके कांप रहा था और जैसे ही मोहन ने अपने लंड को उसकी चूत पे रखा मस्ती के मारे उसकी आँखे बंद हो गयी
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