RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहिनी खुश हो गयी अपने हाथो से चूरमा खिलाने लगी वो मोहन को उसकी उंगलिया मोहन के होंठो से जैसे ही टकराई मोहिनी झनझना गयी मन में प्रेम के पंछी ने उड़ान भरी आँखों में प्रेम के आंसू अपने हाथो से मोहन को भोजन जो करवा रही थी मोहन सोच रहा था की वो कैसे जान गयी थी की उसे चूरमा बहुत भाता था
चूरमे के साथ साथ मोहन मोहिनी की उंगलियों को भी चाट लेता मोहिनी को ऐसा सुकून आज स पहले कभी नहीं मिला था भोजन के बाद मोहन उसकी गोद में सर रख के लेट गया बोला- तुम इतना क्यों सताती हो मुझे मोहिनी क्यों स्वीकार नहीं करती मेरे प्रेम को
“मोहन, मैं तो बहुत पहले ही तुम्हारे प्रेम को स्वीकार कर लिया था बस एक ही नहीं पाई उलझी जो हु ”
“क्या सच मोहिनी, तुम्हे स्वीकार है एक बार फिर से कहो ”
“मुझे स्वीकार है मोहन महादेव की सौगंध मैं भी तुम्हे बहुत चाहती हु तुम्हारे प्रेम को स्वीकार करती हु मैं ”
मोहन उठ बैठा भर लिया मोहिनी को अपनी बाहों में , वो लिपट गयी अपने मोहन से ऐसे जैसे कोई सर्प लिपटे चंदन के पेड़ से बहुत देर तक वो लिपटे रहे एक दुसरे से अब मोहीनी शरमाई मोहन ने चूम लिया उसके होंठो पर मोहिनी पर जैसे कोई नशा सा हुआ ये क्या किया मोहन तुमने मोहिनी का ये पहला चुम्बन
मोहन दीवानो की तरह उसको चूमता रहा वो उसके आगोश में सिमटती रही बहुत देर बाद वो अलग हुए
“मोहिनी तुम अपने पिताजी का नाम बताओ मैं बापू से बात करता हु अपनी शादी की ”
“मैं बता दूंगी मोहन ”
“हां, मोहिनी अब मैं ज्यादा देर तुमसे जुदा नहीं रह सकता बस अब दुल्हन बनके मेरे पास आजाओ ”
वो मुस्कुराई पर दिल में दर्द था उसके दुल्हन बनकर, दुल्हन पर क्या ये मुमकिन था पर वो करे भी तो क्या करे प्रेम में हार गयी थी वो खुद को दूर भी तो नहीं जा सकती थी मोहन से और पास भी नहीं आ सकती थी ये मोहबत जी का जंजाल ही बन गयी थी
“जाने दो ना मोहन देर हो रही है देखो अंधेरा भी होने लगा है ”
“ना, अभी तो ठीक से देखा भी नहीं थारे को ”
“मैं कुण सा भागी जा री सु मोहन, काल फेर आउंगी पण तू एक वादा कर म्हां सु की आज रे बाद फेर कबे नाराज ना होगो ”
“”थारा, सर की सौंगंध पण तन्ने भी महारा प्यार रो वास्ता, जे म्हारा दिल नु दुखाया तो “
“मैं कल मिलूंगी पर अब जाने दे ”
तो कल मिलने का हुआ करार और वो दोनों ने बदला अपना अपना रास्ता आज मोहन बहुत ही ज्यादा खुश था बहुत ही ज्यादा खुश झूमता गाता वो डेरे पर आया बस अपने आप में मगन मुसकाय कभी शर्माए,
हाय रे इशक बस अब वो किसी तरह से घरवालो को मोहिनी के बारे में बताना चाहता था अब वो बकरार था उसे अपनी दुल्हन बना लेने को
दूसरी तरफ अभी अभी पृथ्वी महल में आया था आते ही उसने छोटी माँ के बारे में पूछा थो पता चला की वो अभी उद्यान में है तो वो उधर ही चल पड़ा ,
संगीता ने पृथ्वी को देखा और मन ही मन मुस्कुरा पड़ी उसने सब बांदियो को जाने का आदेश किया और कुछ ही पलो में राजकुमार अपनी छोटी माँ के सामने था
“माफ़ी चाहते है माँ, कल मैं आ नहीं पाया बस अभी लौटा हु ”
संगीता ने एक मादक अंगड़ाई ली फिर बोली- कोई नहीं पुत्र हमे ख़ुशी है की आते ही तुम अपनी छोटी माँ से मिलने आये हो
वो उठ कर चली और फिर एकाएक जैसे फिसली परन्तु पृथ्वी ने अपनी बलिष्ठ बाँहों में थाम लिया और वो जा लगी उसके सीने से पृथ्वी का एक हाथ उसकी पीठ पर था
और दूसरा उसके कुलहो पर वो कुछ कसमसाई और उसके होंठो पृथ्वी के गालो से जा टकराए पृथ्वी के अन्दर का पुरुष नारी के इस स्पर्श को महसूस करते ही अंगड़ाई लेने लगा
एक पल के लिए संगीता को उसने अपनी बहो में कस लिया संगीता को परम अनुभूति हुई पर जल्दी ही पृथ्वी ने उसे छोड़ दिया
“माँ, आप ठीक तो है ना ”
“शायद पैर में मोच आ गयी है पुत्र””
लाइए मैं आपको आपके विश्राम स्थल तक ले चलता हु “
पर थोडा सा चलते ही संगीता दर्द से लड़खड़ाई उसने पृथ्वी का कंधे पकड़ लिया
“आह मेरा पैर,”
पृथ्वी समझ गया की चलने में तक्ल्लीफ़ है तो उसने संगीता को अपनी गोद में उठा लिया और ले चला महल में पुत्र की बाँहों में संगीता एक अलग से सुख को महसूस कर रही थी
उसके मचलते उभार जैसे पृथ्वी के सीने में समा जाना चाहते थे अपने नितम्बो पर पृथ्वी के कठोर हाथो का स्पर्श पाकर संगीता के मन में एक हलचल मची पड़ी थी
उसके सरक गए आँचल ने राजकुमार के मन में भी एक आग जला दी थी आधे से ज्यादा उभार उन झीने से वस्त्रो से बाहर को उछल रहे थे नए नए जवान हुए पृथ्वी के लिए ये बड़ा ही हाहाकारी नजारा था
अपनी छोटी माँ के बदन की खुशबु को महसूस करते हुए वो संगीता को ले आया उसके कमरे में उसने उसे बिस्तर पर लिटाया और खुद उसके पास ही बैठ गया
कुछ देर दोनों में चुप्पी रही फिर वो बोला- माँ क्या मैं वैद्य जी को बुला लाऊ
संगीता- नहीं पुत्र, उसकी आवश्यकता नहीं
पृथ्वी- तो क्या माँ मैं आपके पैर दबा दू
संगीता के होंठो पर एक जहरीली मुस्कराहट फैल गयी उसने एक गहरी सांस ली और बोली- हां, इस से मुझे आराम मिलेगा
पृथ्वी को और क्या चाहिए था वो एक बार पहले ही ऐसे संगीता की चूत देख चूका था और अब फिर से उसका यही प्रयास था इसी लिए उसने पैर दबाने को कहा था
उसन संगीता के घागरे को घुटनों तक सरका दिया उसकी गोरी पिंडलिया चमक उठी जैस ही संगीता को वहा पर पृथ्वी का स्पर्श महसूस हुआ वो कांपने लगी उसे लग रहा था की जल्दी ही वो अपने इरादों में कामयाब हो जाएगी
आखिर उसका उद्देश्य तो यही था की पृथ्वी को अपने जिस्म का नशा लगाना ताकि वो उसकी हर बात माने, पृथ्वी संगीता की पैर दबा रहा था पुरे कमरे में सन्नाटा था बस दोनों की सांसे ही आवाज कर रही थी
तभी संगीता ने अपना दांव खेला और बोली- बेटे, क्या तुम थोडा सा और ऊपर दबा सकते हो वहा पर भी दर्द हो रहा है
पृथ्वी ने अब अपने हाथ घुटनों तक चलाने शुरू किये तो वो फिर बोली- यहाँ नहीं थोडा और ऊपर
इ ससे पहले की पृथ्वी कुछ कहता उसने उसका हाथ अपनी चिकनी मांसल जांघो पर रख दिया जैसे ही पृथ्वी ने हल्का सा दबाया संगीता ने आह भरी पृथ्वी उसकी जांघो से खेलने लगा
इधर संगीता की चूत में इतना कामरस भर गया था की उसकी जांघो तक चिपचिपाहट होने लगी थी और ऐसे ही पृथ्वी की उंगलिया जैसे ही जांघो के अंदरूनी हिस्से में गयी वो चूत के पानी से सन गयी
उफ्फ्फ्फ़ एक पुत्र के हाथ अपनी ही छोटी माँ के चूत के रस से सने हुए थे शर्म के मारे संगीता के गोर गाल और भी गुलाबी हो गए पर वो पृथ्वी को उअर तडपाना चाहती थी तो बोली- बस पुत्र अब आराम है
अब वो बेचारा क्या करता तो हुआ वापिस कमरे से और बाहर आते ही उसने अपनी उंगलियों को सुंघा संगीता की चूत के पानी की खुसबू से वो मस्त होने लगा उसका लंड फुफकारने लगा
इन सब बातो से बेखबर दिव्या बैठी थी महादेव मंदिर की सीढियों पर खोयी हुई थी अपने ख्यालो में सोच रही थी मोहन के बारे में की कैसे वो उस से कहे की
वो कितना प्यार करती है उस से जी नहीं सकती उसके बिना एक पल भी
और तभी उसे मोहिनी आती हुई दिखी पता नहीं क्यों मोहिनी को देखते ही उसे क्रोध आ जाता था और जबसे वो उस से हारी थी नफरत ही तो करने लगी थी वो उससे
अपने आप में मगन मोहिनी ने एक नजर भर भी नहीं देखा दिव्या को बस बढ़ गयी आगे को , इस राज्य की राजकुमारी का ऐसा अपमान ये कैसा दंभ था
मोहिनी का या खुमार था अपनी जीत का दिव्या को ये अच्छा नहीं लगा
उसने रोका मोहिनी को, “कहा जा रही हो ”
“कही भी तुमसे मतलब ”
“तुम आज के बाद उस मंदिर में नहीं आओगी ”
“क्यों भला , अब क्या भगवान् पर भी बस राजमहल वालो का अधिकार है ”
“हमने कहा ना की आज के बाद तुम इस मंदिर में नहीं आओगी ”
“मैं तो आउंगी , ”
“बड़ी घमंडी हो तुम, हमारे एक इशारे पर तुम कहा गायब हो जाओगी सोच भी ना पाओगी तुम ’”
अब हंसी मोहिनी फिर बोली- राजकुमारी , माना की हम आपकी प्रजा है पर यहाँ आने का अधिकार तो महाराज भी हमसे नहीं छीन सकते तो आपकी बिसात ही क्या है “
अब फुफकारी दिव्या- गुस्ताख लड़की, हम चाहे तो एक पल में तुम्हारे टुकड़े करवा दे हमने कह दिया सो कह दिया तुम नहीं आओगी मतलब नहीं आओगी
मोहिनि-मैं तो आउंगी क्या पता तुम्हारे जैसी चोर राजकुमारी फिर यहाँ से कुछ चुरा ले
दिव्या को ऐसे लगा की जैसे मोहिनी ने उसको थप्पड़ मार दिया हो वो उसे मारने को आगे बढ़ी पर मोहिनी ने उसको पकड़ा और उसका हाथ मरोड़ते हुए बोली- सुन दिव्या, अपने काम से काम रख तुम्हारा अपमान करना मेरा धर्म नहीं पर मर्यादा लांघने की कोशिश ना करना
मोहिनी चली मंदिर के अन्दर पर तभी दिव्या ने कुछ कहा की उसके पैर रुक गये वो वापिस मुड़ी
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