Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:39 AM,
#18
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
कहाँ तो ये बस प्रयास था मोहिनी का मोहन को मानाने का और कहा दिव्या बीच में कूद पड़ी थी अब मोहन ने और लगाई धुन दिव्या ने दिया आमंत्रण मोहिनी को तो भला वो कैसे स्वीकार न करती बात अब अभिमान पर जो आ गयी थी पर ये दंभ किसलिए , गुरूर एक की नजरो में तो दूसरी की नजरो में मनुहार अपने मोहन को मनाने की 

ये कैसी जिद कैसी मनुहार और खुद मोहन उसने तो आग्रह स्वीकार किया था अपनी प्रेयसी का अब जब तक मोहिनी खुद ना रुके मोहन की सांस टूटे ना यही तो परीक्षा लेता है प्रेम जो डूब गया समझो पार और जो झिझक गया वो रह गया खाली हाथ मेहंदी भी अपना रंग तब तक नहीं दिखाती जब तक उसको खूब पीसा न जाये 

और ये तो प्रेम का गुलाबी रंग था देखो आज कौन रंग जाए कौन पा जाये अपने प्रीतम को छोटी रानी संगीता की पूजा हुई खत्मआई वो बहर और जो देखा पल भर में ही जान गयी सब वो पर उनको दिव्या से ज्यादा उस दूसरी लड़की की फ़िक्र थी भला 52 न्रत्य में पारंगत राजकुमारी को कौन मात दे सके वाह रे इन्सान तेरा दम्ब्भ, खोखला अहंकार 

सुबह से शाम होने को आई सब लोग साक्षी थे उस मुकाबले के खुद संगीता हैरान थी की दिव्या को इतनी टक्कर घुंगरू कब के टूट चुके थे पर मोहन के सांस नहीं ये प्रमाण था की मोहिनी का कहा कितना मायने रखा करता था उसके लिए तन बदन पसीने से तर पर आँखों में अपनी अपनी प्यास नो घंटे होने को आये दिन छुप गया रात आई अब संगीता भी थोड़ी परेशां होने लगी थी 

भेजा फ़ौरन संदेसा महल खुद चंद्रभान भी चकित ये कैसा मुकाबला कैसी होड़ और किसलिए कहा एक राजकुमारी और कहा एक साधारण लड़की बताया रानी को और दौड़े महादेव स्थान हेतु और जो देखा आँखों ने जैसे मानने से ही मना कर दिया था वो लडकिया नहीं जैसे साक्षात आकाशीय बिजलिया उतर आई थी पलक झपकने से पहले वो कभी यहाँ कभी वहा 

“वाह अद्भुत अतुलनीय ” संयुक्ता के मुह से निकला मोहिनी के न्रत्य ने मन मोह लिया था उनका 

इधर दोनों लडकियों के पाँव घायल कट गए जगह जगह से पर चेहरे पर एक शिकन तक नहीं पैरो से रक्त की धार बहे पर होंठो पर मुस्कान और क्या अर्थ था इस मुस्कान का पूरी रात वो बीत गयी आस पास के लोग थक गए पर वो तीन ना जाने कैसा खेल खेल रहे थे वो उन्हें तो जैसे मालुम ही नहीं था की आस पास कौन था कौन नहीं बस था तो दिल में प्रेम अपना अपना 

36 घंटे बीत गए थे दिव्या का शरीर अब जवाब देने लगा था इधर मोहन की साँस अब दगा करने लगी थी पर मोहिनी जबतक नाचे वो ना रुके पल पल दिव्या की सांस फूले और फिर कुछ देर बाद वो बेहोश होकर गिर पड़ी , 

अनर्थ सब घबराये मोहन ने छोड़ी बंसी और भागा उसकी और बाहों में उठाया उसको एक बेफिक्री सी उसके शारीर में मोहिनी तुरंत एक गिलास ले आई थोडा सा पानी दिव्या को पिलाया और वो झट से उठी किसी ताजे खिले गुलाब की तरह 

“वाह वाह क्या बात क्या बात दिल प्रस्सन हो गया ” ये पुत्री तुम कौन हो 

मोहिनी ने अपना परिचय दिया राजा बहुत प्रस्सन 

“पुत्री मांगो क्या मांगती हो ”

“महाराज आपने अपने राज्य में हमे संरक्षण दिया आपका उपकार है बाकी किसी और चीज़ की कोई चाह नहीं ”

चंद्रभान और प्रसन्न, वाह पर उनका मन प्रस्सन था थो उन्होंने घोषणा की की मोहिनी पर दिव्या को एक एक बचन देते है की वो उन दोनों की एक मांग पूरी करने हेतु प्रतिबद्ध रहेंगे अब ये क्या कह दिया महाराज ने दोनों को एक सामान वचन ये कैसा वचन था और क्या भविष्य में महराज अपना वचन निभा पाएंगे 

इधर दिव्या जल रही थी अन्दर ही अंदर हार गयी वो एक साधारण लड़की से उसके अहंकार को बहुत चोट पहुची थी पर महाराज के आगे अब क्या कहे सब लोग चले वापिस महल के लिए मोहन भी 

“पानी नहीं पियोगे मुसाफिर ”

मोहिनी उसके पास आ गयी मोहन ने अपने होठो से लगाया मटके को वो ही ठंडा पानी शरबत से मीठा पूरा पी गया पर पेट नहीं भरा 

“जी नहीं भरा मेरा ”

मोहिनी मुस्कुराई एक गिलास में लायी पानी एक घूँट पिया और फिर वो गिलास मोहन को दिया और उस एक गिलास पानी की कुछ घूंटो में ही वो धाप गया चलने लगा 

“फिर कब आओगे ”

“”क्या पता “ आगे बढ़ गया वो 

जी तो चाहा मोहिनी का भी की अभी इसी पल लिपट जाए अपने मोहन से पर उसके पैरो में बेडिया बंधी थी वो करे भी तो क्या बस अपना कलेजा ही फूंक सकती थी अब मोहिनी के मन की व्यथा को कौन सुने , खैर, इधर दिव्या महल में आई उसको खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था एक साधरण लड़की से हार गयी थी वो कभी सामान तोड़े कभी बांदियो को गलिया दे बाल नोचे खुद के अब कौन समझाए उसको 

कुछ दिन गुजर गए इधर छोटी रानी संगीता को पता चल गया था की मोहन और संयुक्ता के बीच क्या रिश्ता पनप रहा था पर वो इस मामले में दिमाग से काम लेना चाहती थी वो हद से ज्यादा जलील करना चाहती थी संयुक्ता को पर उसके लिए उसे सही अवसर की तलाश थी और फिर अवसर आया भी 

संगीता को घुड़सवारी का शौक था तो उसके लिए एक नया घोडा आया था वो देखने ही जा रही थी की उसकी नजर राजकुमार पृथ्वी पर पड़ी मात्र एक धोती पहने वो अपना अभ्यास कर रहा था चौड़ा सीना बलिष्ठ भुजाये चेहरे पर सूर्य सा तेज संगीता एक 30 बरस की तेज औरत थी और उसकी भी वो ही समस्या थी की महाराज की कमजोरी ऊपर से संयुक्ता के कारन उसे लंड की खुराक बहुत कम मिलती थी और उसको कोई बच्चा भी नहीं था 


जैसे जैसे वो आगे बढ़ रही थी नजरे पृथ्वी के शरीर पर ही जमी थी अपने पुत्र समान पृथ्वी का ख्याल करके उसकी चूत गीली होने लगी अब कहा घुड़सवारी करनी थी वो वापिस अपने स्थान में आ गए उसके मन में ख्याल आने लगे की काश पृथ्वी उसे चोदे तो क्या मजा आएगा काम चढ़ने लगा उसको पर तभी उसके दिमाग में एक बात और आई जिससे उसके होठो पर एक मुस्कान आ गई

मोहन कुछ दिनों के लिए अपने डेरे में गया हुआ था महाराज और महारनी किसी दुसरे राज्य में मित्रः के यहाँ किसी विवाह में गए थे अब संगीता ने अपना खेल खेलने का विचार किया 

उसने पृथ्वी को संदेसा भेजा की छोटी माँ उससे अभी मिलना चाहती है पृथ्वी तुरंत आया संगीता ने आज इस तरह से श्रृंगार किया हुआ था की उसका आधे से ज्यादा बदन दिख रहा था 

पृथ्वी ने उसको ऐसे देखा तो वो एक पल ठिटक गया फिर बोला- आपने याद किया छोटी माँ 

“हां, बेटे आजकल तो तुम्हे अपनी छोटी माँ की बिलकुल याद नहीं आती कितने दिन हुए तुम हमसे एक बार भी मिलने नहीं आए ”

“ऐसा नहीं है माँ, बस आजकल थोड़ी जिमेदारिया बढ़ गयी है तो समय कम मिलता है ”

संगीता पृथ्वी के पास बैठ गयी दोनों की टाँगे आपस में टकरा रही थी और जैसे ही वो हल्का सा झुकी उसको उसके पूरी चूचियो के दर्शन होने लगे 

“ओह मेरे बच्चे ”

संगीता ने उसके माथे को चूमा पर इस तरह पृथ्वी का मुह उसकी चूचियो से दब गया अपनी छोटी माँ के बदन से आती मदहोश कर देने वाली खुशु से वो उत्तजित होने लगा संगीता ने थोड़ी देर ऐसे ही उसको मजा दिया फिर हट गयी 

“बेटे हम भी आजकल बहुत अकेले महसूस करते है अगर थोडा समय तुम हामरे साथ गुजरो तो हमे अच्छा लगेगा ”

“जी, मैं शाम को मिलता हु आपसे ”

पृथ्वी उठा तो वो भी उठ गयी और तभी पता नहीं कैसे उसके वस्त्रो का निचला हिस्सा खुल गया वो शरमाई इधर पृथ्वी ने अपनी छोटी माँ के उस खजाने के दर्शन कर लिए थे

जिसकी सबको चाह होती ही संगीता की चिकनी जांघे हलकी सी फूली हुई चूत बेहद छोटे छोटे बालो से ढकी हुई 

पर जब उसे अहसास हुआ की गलत है ऐसे देखना वो तुरंत कमरे से बाहर निकल गया संगीता मुस्काई, उसका दांव सही लग गया था बस जरुरत थी पृथ्वी को शीशे में उतारने की , 

मोहिनी बिस्तर पर करवटे बदल रही थी आजकल वो बहुत गुमसुम सी रहने लगी थी ना कुछ खाना पीना न कुछ और ख्याल बस डूबी रहती अपनी सोच में 

सखिया पूछती तो टाल देती अब बताये भी तो क्या बताये की क्या हाल है उसका पर छुपाये भी तो किस से मोहिनी की माँ जान गयी कुछ तो है बेटी के मन में पर क्या कैसे पता रहे आजकल बात भी तो नहीं करती 

वो किसी से वैसे भी वो जबसे परेशान थी जबसे मोहिनी ठीक हुई थी कुछ सोच कर आखिर उसने फैसला किया की वो बात करेगी उससे 

माँ- मोहिनी मुझे तुमसे कुछ बात करनी है 

वो-हां, माँ 

माँ- बेटी क्या तुझे कोई परेशानी है मैं देख रही हु तू कुछ दिनों से गुमसुम सी है 

वो-नहीं माँ ऐसी तो कोई बात नहीं थोड़ी कमजोरी है उसी की वजह से पर जल्दी ही मैं ठीक हो जाउंगी तू फ़िक्र मत कर 

माँ ने बहुत पुछा पर वो टाल गयी तो अब उसके पिता ही करे कुछ उपाय अब बेटी दुखी तो वो भी दुखी मोहन महल में नहीं था तो दिव्या का भी जी नहीं लग रहा था

पर वो खुल के मोहन से बात भी तो नहीं कर पाती थी और जब तक मोहन को अपने दिल की बात ना बताये तब तक उसे चैन आये नहीं तो करे तो क्या ये इश्क की दुश्वारिया ना जीने देती है ना चैन लेने देती है 

जबसे उसे पता चला था की मोहन ने उसकी खातिर जहर ले लिया था तो वो उसी पल्स इ उस से प्रेम करने लगी थी पर वो नादाँ मोहन के मन को टटोलने की कोशिश भी तो नहीं कर रही थी ना उसका हाल पूछे ना अपना बताये तो कैसे कोई बात बने बस अपने दुःख में आप ही तड़पे 


तड़प तो मोहन भी रहा था अपनी मोहिनी के लिए कितना प्रेम करता था वो उस से और वो थी की जानी ही नहीं यहा अगर कुछ जरुरी था तो बस इतना की एक दुसरे से बात की जाये पर इसी बात से सब बच रहे थे और दुखी थे , इधर संगीता इंतजार कर रही थी पृथ्वी का रात आधी बीत गयी थी पर राजकुमार ना आये 

खैर, अगला दिन हुआ मोहन निकला डेरे से और बैठ गया उसी कीकर के पेड़ के निचे बस बैठा रहा ना पुकारा उसने किसी को भी पर उसे तो आना ही था हर रोज इंतजार जो करती थी अपने मोहन प्यारे का देखते ही उसे वो मुस्कुराई और तेजी से बढ़ी उसकी और जाके सामने खड़ी हो गयी पर वो ना बोला बस नजरो को झुका लिया 

“मोहन, कब तक मुझसे नाराज रहोगे एक बार मेरी बात तो सुनो इतना हठ ठीक नहीं ”

“क्यों सुनु तुम्हारी बात आखिर क्या लगती हो तुम मेरी ”

“क्या तुम नहीं जानते मैं क्या लगती हु तुम्हारी ”

“नहीं जानता कितनी बार बताऊ तुम्हे नहीं जानता ”

“तो मत जानो , तुम्हारे लिए कुछ लायी थी मैंने अपने हाथो से बनाया है तुम खालो ”

“भूख नहीं है मुझे ”

“भूख नहीं है या मेरे हाथ से नहीं खाना चाहते ’

“तुम जानती हो ना की मैं तुम्हे कभी मना नहीं करता लाओ खिला दो ’
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RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी - by sexstories - 11-17-2018, 12:39 AM

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