Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:37 AM,
#11
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहिनी- मेरे साथ सखिया है और परिवार वाले भी तो मैं ज्यादा बात नहीं कर पाऊँगी पर कल मैं तुम्हे पक्का वही मिलूंगी 



दोनों ने आँखों में करार किया और मोहिनी आगे बढ़ गयी मोहन वही बैठ गया पर दिल में चाह बस मोहिनी को देखने की इधर संयुक्ता की झांटे जैसे सुलग रही थी पल पल वो बस मोहन को अपने करीब ही पाना चाहे उसका जी करे की मोहन अभी उसकी चूत को रगड दे पर सबकी अपनी अपनी मजबुरिया 



पर मोहन का मन तो बस था मोहिनी पर कभी यहाँ देखे कभी वहा देखे पर मोहिनी कब आये कब जाये आज तक ही वो ना समझा था तो अब क्या समझता तो हार कर मोहन बैठ गया एक तरफ और होंठो से लगा ली अपनी वही बांसुरी जी तो चाहा की छेड़ दे पर फिर उसने खुद को रोक लिया 



उसे भी तो अपने पिता का डर था जो उसके बंसी बजाने को सख्त खिलाफ था पर दिल पर कहा किसी का जोर चलता है तो मोहन के होंठो से बस एक आह सी निकली उसने पुकारा “”मोहिनी ”


और थोड़ी ही देर बाद मोहन को वो अपनी तरफ आते देखा , वो मुस्कुराया मोहिनी के रूप का जादू सर चढ़ के बोल रहा था उस तपती धुप में उसका यु आना जैसे बारिश की एक बूँद का होना था और फिर ये बाते कहा कोई शब्दों में समझा सकता है बस दिल होता है धड़कने होती है और होती है एक चाहत 



मोहिनी आकर मोहन के पास ही बैठ गयी बोली- कैसे उदास से बैठे हो 



वो- तुम्हारी ही याद आ रही थी 



मोहिनी-वो क्यों भला 



मोहन- अब यादो पर कहा मेरा बस चलता है 





वो- तो किसका चलता है 



मोहन-मैं क्या जानू 



वो- तो फिर कौन जाने 



मोहन- तुम जानो मोहिनी 



मोहिनी हंस पड़ी उसकी मुस्कान में न जाने कैसा जादू था 



“कुछ खाओगे मोहन ”


“हां, पर तुम्हारे साथ ”


दोनों साथ साथ मेला घुमने लगे मोहिनी के साथ मोहन खुद को किसी राजा से कम नहीं समझ रहा था फिर एक दुकान पर रुके मोहन ने जलेबिया ली उसको देने लगा 



“अपने हाथो से नहीं खिलाओगे मोहन ”


उफ्फ्फ कितनी सादगी से बहुत कुछ कह दिया था मोहिनी ने ये कहने को तो बस एक छोटी सी बात भर थी पर दिलवालों का हाल पता काना हो थो उनकी नजरो को पकडिये जनाब आँखों की गुस्ताखिया सब बयां कर देती है कुछ ऐसा ही हाल दोनों का था 



मोहन ने अपने हाथो से जलेबी खिलाई मोहिनी को फिर तो ना जाने क्या क्या ले आया वो उसके लिए बहुत देर तक दोनों घूमते रहे मेले में अपने आप में मगन और फिर आई वो बेला 



“देर हो गयी बहुत, मुझे जाना होगा मोहन ”


“ना जाओ ”


“जाना तो होगा नहीं जाउंगी तो फिर दुबारा कैसे आउंगी तुमसे मिलने ”


“जरुरी है क्या ”


“हां, ”


बस फिर मोहन ने कुछ नहीं कहा वो भी जानता था एक लड़की की दुश्वारियो को मोहिनी को बस जाते हुए देखता रहा वो ऐसा लगा की जैसे पल पल उसका कुछ साथ ले गयी हो वो इधर संयुक्ता की गांड जल रही थी उसकी चूत की आग उसका जीना हराम किये हुए थी उसे अपना रानी होने पे आज कोफ़्त सी हो रही थी हाय ये मजबुरिया 



राजकुमार पृथ्वी पूजा कर चुके थे और अपनी प्रजा के साथ थोडा व्यस्त थे वैसे भी कहा रोज रोज ऐसे मौके मिला करते थे और कुछ देर बाद राजकुमारी दिव्या अपनी सखियों के साथ आये, रूप में दिव्या अपनी माँ की ही छाया थी रंग ऐसा की जैसे किसी ने दूध में चुटकी भर केसर मिला दिया हो 



स्वभाव से थोड़ी चंचल , वो अब आई मंदिर में आज दिव्या का व्रत था जो उसे पूजा पश्चात ही खोलना था दिव्या जैसे ही अन्दर गयी रत्नों की चका चौंध ने किया उसको आकर्षित ऐसे रत्न उसने कभी नहीं देखे थे चंचल मन डोल आज्ञा शिवलिंग के ऊपर जो एक रत्न रखा था उठा लिया दिव्या ने पूजा करने आई थी मन में लालच भर गया 
छुपा लिया उस रत्न को उसने पूजा की और जैसे ही वो वापिस हुई.

वो हुआ जो शायद नहीं होना चाहिए था दिव्या जोरो से चीखी और बेहोश हो गयी अब अब घबराये राजकुमारी को डस लिया था सांप ने आजतक इस मंदिर के संपो ने कभी किसी को काटा

तह फिर ये अनहोनी कैसे हुई भगदड़ सी मच गयी राजा रानी सब भागते हुए आये दिव्या का बदन हुआ नीला ऐसी क्या खता हुई जो इसका ये हाल हुआ 

तुरंत वैद्यराज को बुलाया गया उन्होंने कहा की मामूली नाग का असर नहीं उनके बस की बात नही ये पर डर भी लगे महराज पल में सर कटवा दे , 

संयुक्ता को हर हाल में अपनी बेटी सही सलामत चाहिए तो तय हुआ की अब राज सपेरा ही नाग को मनाये जहर वापिस लेने को तो बुलाया गया 

महाराज- देवनाथ, कुछ भी करो, म्हाने म्हारी लाडो जीवित चाह सु 

देवनाथ- हुकुम, थारो आदेश महारा माथा पे पर मालिक जे नाग जहर वापिस लियो तो नाग मर ज्यवेगो 

महाराज- नाग की परवाह नहीं दिव्या की सलामती चाही 

अब देवनाथ क्या करे वो तो फंस गया बेचारा राज सपेरा वो राजकुमारी की जान बचानी बहुत जरुरी पर अब किस सांप ने काटा था उसको कोई देवता हो तो

खड़ी हुई परेशानी अब क्या करे राजा को ना कह नहीं सकता और जहर वापिस हुआ तो सांप मरे और हत्या का पाप उसे लगे अब करे तो क्या करे 

तो आखिर देवनाथ ने अपनी बीन उठाई और लगा मनाने सांप को उसके साथ डेरे के हर सपेरे ने लगाई बीन की तान पर कोई ना याए थोडा समय और बीता जिस देवनाथ को वरदान , जिसकी बीन का सम्मान स्वयम नागराज करे उसकी मनुहार को ठुकरा दिया नाग ने अब परेशान हुआ देवनाथ 

उसने बताई सारी बात राजा को पर उसे बेटी के प्राणों का मोह वो हुआ क्रोधित दिव्या हुई नीली धीरे धीरे जहर फैला जाये अब क्या किया जाये चारो तरफ गहरा सन्नाटा इतना की सासों की आवाज सर फोडती सी

लगे देवनाथ खुद चकित अब वो करे तो क्या करे क्या बीन ने धोखा दे दिया थोडा और समय बीता दिव्या गदर्न तक हुई नीली 

संयुक्ता दहाड़ी ऐलान कर दिया की अगर उसकी पुत्री ना बची तो हर एक नाग को मरवा देगी वो अब ये हुआ और अपमान इधर देवनाथ की पूरी कोशिश जारी थी

जहर दिव्या की थोडी तक आ गया था और तभी देवनाथ की बीन टूट गयी घोर अपशकुन अब राजा भी घबराया ये प्रभु ये क्या अनर्थ हुआ अब हारा देव नाथ भी 

इधर महारानी बोली- कुछ भी अक्र्के मेरी बेटी को बचाओ वर्ना हर सपेरे को मृतुदंड 

अब सबकी जान गले में अटकी , इधर दिव्या पल पल मर रही थी इधर देवनाथ और डेरे के प्राण रानी के क्रोध में आये चारो तरफ 

बस सवाल ही सवाल अब पिता को इस विवशता में देख कर मोहन से रहा ना गया उसने कहा – मैं बुलाऊंगा सांप को 

सबकी नजरे मोहन की औरजब राज सपेरा हार गया तो ये लड़का क्या करेगा वो जिसने कभी बीन हाथ में ना पकड़ी वो कैसे 

राजकुमारी के प्राण बचाए पर के कोशिश के क्या हर्ज़ भला पर वो कैसे करेगा देवनाथ ने एक नयी बीन मंगवाई मोहन के लिए उसने करी अब पुकार मोहन की तान से जैसे सबको नशा सा होने लगा खुद देवनाथ हैरान छोटे बड़े हजारो सर्प आ गए सब मोहन को देखे 
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