Chodan Kahani छोटी सी भूल
11-13-2018, 12:43 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
वही बता रही हूँ, “वाहा भी वो नया नया ही लगा था. शॉप ओनर को उशके बारे में कुछ नही पता. ओनर ने बताया कि उन्होने न्यूसपेपर में एक एलेक्ट्रीशियन के लिए अड्वर्टाइज़्मेंट निकाली थी, बिल्लू सबसे पहले आ गया और उन्होने उशे रख लिया. उन्हे तो उशके घर तक का नही पता. ओनर ने भी यही बताया कि वो बहुत कम बोलता था और अक्सर चुपचाप रहता था. पर वो उशके काम से खुस नही थे, क्योंकि उनके अनुशार वो अक्सर शॉप से गायब रहता था.”

ये सब सुन कर मैं हैरान रह गयी. ये ज़रूर था कि इन बातो से किसी नतीज़े पर नही पहुँचा जा सकता था. हां पर ये बात ज़रूर अजीब लग रही थी कि वो नया नया ही फरीदाबाद में आया था. क्या वो देल्ही से ही था. क्या वो देल्ही से ही मुझे जानता था, ये कुछ ऐसे सवाल थे जो मुझे बार बार परेशान कर रहे थे.

मैं हैरान थी कि लोगो के अनुशार वो गुम शुम चुपचाप रहता था, पर मेरे साथ तो बहुत ही बे-हुदा बकवास करता था, आख़िर क्यो ? मेरे लिए बिल्लू एक रहश्य बनता जा रहा था.

मुझे अब बिल्लू कोई बहुत ही ख़तरनाक मुजरिम मालूम हो रहा था. मैने मन ही मन में सोचा की अछा हुवा कि वो मारा गया, ऐसे कामीनो की इस दुनिया में कोई जगह नही है.

दीप्ति ने कहा, “ऋतु, बस इतना ही पता चला है अभी तक. मनीष बहुत मेहनत कर रहा है, कह रहा था कि जल्दी ही वो इस राज की गहराई तक पहुँच जाएगा”

“अब तो मुझे भी लग रहा है कि अछा किया तुमने मनीष को ये काम दे कर. सच में अब तो सॉफ हो गया है कि दाल में कुछ काला ज़रूर है” --- मैने गंभीरता से कहा

“कुछ काला नही, मुझे तो पूरी दाल ही काली लग रही है. खैर तुम चिंता मत करो, मेरा जेम्ज़ बॉन्ड सब कुछ पता करके जल्दी ही बता देगा” --- दीप्ति ने कहा

मैने हंसते हुवे पूछा, “ मेरा मतलब, लगता है तुम्हे उस से प्यार हो गया है, है ना”

“ह्म्म… पता नही यार बट आइ लाइक हिम वेरी मच” --- डिप्टी सोचते हुवे बोली.

मैने कहा, “ ओके, अछा ये बताओ तुम्हे क्या लगता है कि क्या बात हो सकती है.”

“पहले तुम ये बताओ कि क्या वो विवेक वकील है” ? --- दीप्ति ने पूछा.

“ हां है तो सही, पर क्यो” ----- मैने हैरानी में पूछा.

अरे पागल याद कर वो खून में लीखी बात, “डॉक्टर की तो यही सज़ा है पर वकील को हर हाल में मरना होगा” ---- दीप्ति ज़ोर से बोली.

“ओह नो, क्या तुम भी वही सोच रही हो जो मैं सोच रही हूँ” --- मैने दीप्ति से पूछा.

“तुम्हारा तो पता नही पर मुझे लगता है कि डॉक्टर का मतलब है संजय और वकील का मतलब है विवेक. मुझे जल्द से जल्द ये बात मनीष को बतानी होगी कि विवेक, वकील है, उसका काम आसान हो जाएगा” --- दीप्ति ने कहा

“मैने कहा, हां में भी यही सोच रही हूँ पर यार तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो कि उस लीख़ावट का मतलब संजय और विवेक से ही है” --- मैने दीप्ति से पूछा.

“पूरी डाइयरी में बस संजय और विवेक की ही डीटेल है और क्या चाहिए यकीन करने के लिए. अछा मैं फोन रखती हूँ, मनीष को ये बात बतानी ज़रूरी है कि विवेक वकील है, बाद में बात करेंगे” ---- दीप्ति ने बाइ करते हुवे कहा.

दीप्ति जाते जाते मुझे बहुत सारे सवाल दे गयी. मैं सारा दिन यही सब सोचती रही

16 अक्टोबर को दीप्ति का फोन आया

वो बोली, “ ऋतु, मनीष इस राज की गहराई तक पहुँचने वाला है. उसने मुझे कहा है कि कल तक सारी बात पता चल जाएगी. बस एक दिन की बात है और सचाई हमारे सामने होगी.

मैने कहा, “ ठीक है, मैं कल का बेशबरी से इंतेज़ार करूँगी, मैं बार बार सब कुछ सोच कर परेशान हो रही हूँ. जब तक मुझे पूरी बात पता नही चलती तब तक मुझे चैन नही आएगा.

दीप्ति बोली, “ठीक है फिर, कल का इंतेज़ार करो”

दीप्ति ने फोन रख दिया और मैं बे-सबरी से कल का इंतेज़ार करने लगी.

अगले दिन यानी 17 अक्टोबर 2008 को, शाम को दीप्ति का फोन आया

मैने झट से फोन उठा लिया.

“यार एक बहुत बुरी खबर है” --- दीप्ति मायूसी से बोली

मैने पूछा, “ क्या है बताओ तो सही”

“मनीष हॉस्पिटल में है, उस पर जानलेवा हमला हुवा है, बड़ी मुश्किल से जान बची है, मैं उस से मिलने फरीदाबाद जा रही हूँ, मुझे डर लग रहा है” ---

दीप्ति रोते हुवे बोली.

“क्या…. ये कैसे हो गया. किसने करवाया ये हमला. तुम चिंता मत करो में भी तुम्हारे साथ चलती हूँ” --- मैने दीप्ति से कहा.

“पता नही यार, अभी मनीष को होश नही आया है, उसके असिश्टेंट का फोन आया था कि वो हॉस्पिटल में है. मनीष ही होश में आकर बता सकता है कि ये किसका काम है.” – दीप्ति ने कहा

मैने कहा, “ह्म्म…. चलो तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा, ऐसा करो यही मेरे पास आ जाओ, यही से साथ साथ चलेंगे”

“ठीक है मैं अभी तुम्हारे घर आ जाती हूँ, वही से फरीदाबाद के लिए निकल लेंगे” ---- दीप्ति ने कहा

वो ऐसा पल था, जब मैं भी बहुत घबरा गयी थी. मैं सोच रही थी कि दीप्ति को कह दूं कि वो मनीष को बोल दे कि बंद करदे ये काम. मैं नही चाहती थी कि मनीष को कुछ हो. मुझे अब दीप्ति और मनीष की चिंता हो रही थी.

दीप्ति अपनी कार ले कर 8 बजे मेरे घर आ गयी.

मैने पूछा, क्या तुम्हे फरीदाबाद का रास्ता पता है, नही तो कोई प्राइवेट टॅक्सी कर लेते है.

दीप्ति ने कहा, “हां, हां पता है, मैं काई बार ऑफीस के काम से वाहा खुद ड्राइव करके जा चुकी हूँ, तुम्हे तो पता ही है, रास्ता लंबा नही है, कोई 2 घंटे में वाहा पहुँच जाएँगे”.

मैने कहा, “ठीक है चलो फिर”

पापा घर पर नही थे, मैने जाते जाते मॅमी को बता दिया कि मैं दीप्ति के साथ ज़रूरी काम से जा रही हूँ.

मन में फरीदाबाद जाते हुवे अपने घर की याद आ रही थी, सोच रही थी कि काश किसी तरह से संजय कहीं मिल जाए. पर ऐसा नही हुवा.
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