RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
मैने कहा, चुप कर ये अपनी बकवास, और एक ऑटो वाले को रोका और घर चली आई. उसको कॉलेज से निकाले जाने पर सभी लड़किया खुश थी.
उसके बाद, मैने उसे कॉलेज के आस पास भी नही देखा और मैने चैन से कॉलेज की डिग्री हाँसिल की. थोड़े दीनो बाद, मेरी शादी संजय से हो गयी और मैं इस सहर मे आ गयी.
ये घटना, मुझे इसलिए याद आई, क्योंकि आज भी, मुझे डर लग रहा था कि, कही ये, बिल्लू मेरे साथ कोई, ग़लत हरकत ना कर दे. मुझे अपनी और अपने परिवार की इज़्ज़त की चिंता हो रही थी.
पर आज सब कुछ मेरी अपनी ग़लती के कारण हो रहा था. अगर मैं, खिड़की वाला किस्सा, आगे ना बढ़ने देती, तो मैं आज इस मुसीबत मे ना होती.
मैं पछता रही थी कि मुझे उस बिल्लू की बात नही सुन-नि चाहिए थी, और उस दूसरे रिक्से मे घर चलना चाहिए था.
तेज हवा चल रही थी और बारिश कभी भी आ सकती थी. मैने पूछा ये कोन सा रास्ता है. वो बोला, तुझे घर जाना है ना, मैं तुझे घर ही ले जा रहा हू, ये शॉर्टकट है.
अचानक मुझे, अपने घर के पीछे का भाग दीखा और मेरी जान मे जान आई.
उसने रिक्शा, सीधे मेरी किचन की, खिड़की के पास ला कर, रोक दिया, और मैं सहम गयी कि, अब क्या होगा.
चारो तरफ अंधेरा था, और दूर-दूर तक कोई नही था. वाहा तो, दिन मे ही कोई नही होता था, रात मे तो किसी के होने का, सवाल ही नही था. यही कारण था कि, मैं घबरा रही थी.
पर मुझे ये भी सेकून था की अब मैं अपने घर के पास तो हू. मैं रिक्शे से उतर गई. वो भी उतर कर मेरे पास आ गया और बोला कि लो तुम्हारा घर आ गया.
मैने उस से पूछा कि कितने पैसे हुवे. वो बोला मुझे तेरे पैसे नही चाहिए. मैं जल्दी से जल्दी, वाहा से, चल देना चाहती थी. मैने 50 रुपये निकाले और कहा ये रख लो, पर उसने नही लिए. मैने सोचा यहा खड़े रहना ठीक नही है और, मैं अपने घर की तरफ चल दी.
चारो तरफ घास, फूस और लंबी झाड़िया थी, जो की अंधारे के कारण और भी भयनक लग रही थी.
अचानक, उसने आगे बढ़ कर, मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला कि, क्या तू थोड़ी देर रुक सकती है.
मैने कहा नही, और उसने मेरा हाथ छोड़ दिया, और बोला आराम से जा, मैं यही खड़ा हू, कोई डरने की ज़रूरत नही है.
मैं झाड़ियो से निकल कर, अपने घर के सामने आ गयी, और अपने घर का दरवाजा खोल कर, अंदर आ गयी.
मैने घर के अंदर आ कर चैन की साँस ली. मैने सोचा हे भगवान मैं आज बाल-बाल बच गयी.
मुझे इस बात का, सेकून था कि, बिल्लू ने वाहा अंधेरी झाड़ियो मे, मेरे साथ कोई ग़लत हरकत नही की, और मुझे चुपचाप घर आने दिया.
मैने पानी पिया, और सीधे हमारे बेडरूम मे, आ गयी. मैने देखा की, संजय सोए हुवे है. मैने कपड़े चेंज किए और किचन मे खाना बनाने लग गई.
तभी मुझे चिंटू का ख्याल आया. मैने सोचा आराम से खाना बनाने के बाद मैं चिंटू को मौसी के यहा से ले आउन्गि.
मैने बिल्लू का दिया खाना, जान-बुझ कर, उसके रिक्शे मे ही, छोड़ दिया था. मैने, रिक्से मे बैठे, बैठे ही ये सोच लिया था कि, ये किस्सा आज यही ख़तम कर दूँगी.
मुझे बहुत ही, गिल्टी फीलिंग हो रही थी कि, मैं कैसे इस लड़के की गंदी हरकते, और गंदी बाते, बर्दास्त कर रही थी. मुझे चुलु भर पानी मे, डूब जाना, चाहिए था.
मैने उसे एक बार भी ये अहसास नही कराया था कि मैं उसके साथ कुछ करूँगी या उसे कुछ दूँगी. वो खुद ही बेकार की अश्लील बाते कर रहा था. ये सब सोचते-सोचते खाना बन गया, पर संजय अभी, शो ही रहे थे. मैने उन्हे उठना, सही नही समझा.
मैं फ्रेश होने के लिए, नहाने चली गयी. मैं नहा कर, बाहर आई तो मुझे बारिश की आवाज़ सुनाई दी, मैने मन ही मन, चैन की साँस ली कि, शुक्र है बारिश पहले नही आई, वरना वो बिल्लू पागल हो जाता. मैं बारिश का नज़ारा लेने के लिए किचन की खिड़की मे आ गयी.
मैने बाहर देखा तो, हैरान रह गई कि, बिल्लू अभी भी, खिड़की के पास खड़ा है. मुझे देख कर, वो खिड़की के, और पास आ गया. मैने पूछा, क्या हुवा ? तुम अभी तक गये क्यो नही.
वो बोला, ऐसे मौसम मे, मैं घर जा कर, क्या करूँगा, घर जा कर भी, बार-बार तेरी याद आएगी, और मैं मूठ मार कर सो जा-उँगा, इससे अछा है मैं यही खड़ा रहू.
बाहर अंधेरा बहुत था, पर मैं उसे हल्का हल्का देख पा रही थी. मैने कहा पागल मत बनो, यहा से चले जाओ.
वो बोला, नही आज मैं यही रिक्शा पर सो
जा-उँगा.
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