RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
शाम को संजय के आने के बाद मैं ब्यूटी पार्लर चली गयी. वाहा थोड़ा टाइम लग गया और 8 बज गये. मैं बाहर आकर रिक्शे का इंतेजार करने लगी. अचानक एक रिक्शा मेरे सामने आकर रुका. पर मैं रिक्शा वाले को देख कर सहम गयी.
वो बिल्लू था. मैने पूछा, तुमने झूट कहा था कि तुम एलेक्ट्रीशियन हो.
वो बोला, नही, वो सच था, मेरा वो काम थोड़ा मंदा है इसलिए कभी-कभी ये किराए का रिक्शा भी चला लेता हूँ.
मैने कुछ नही कहा और हैरानी से वाहा खड़ी रही.
वो बोला, चलो बैठ जाओ मैं तुम्हे घर पर उतार दूँगा.
मैं उसे अचानक देख कर सहम गयी थी इसलिए समझ नही पा रही थी कि क्या करूँ.
फिर मैने सोचा घर तो जाना ही है, मैं लेट भी हो रही थी, और मैं डरते डरते उसके रिक्शे में बैठ ही गयी.
मैं रिक्शे मैं बैठ गयी और उसने रिक्शा चला दिया.
थोड़ी देर चलने के बाद वो बोला, मैने तुझे शाम को ब्यूटी पार्लर मे जाते हुवे देख लिया था.
मैने पूछा, तुम क्या, मेरा हर वक्त पीछा करते हो.
उसने जवाब दिया, अरे नही मैं यहीं रिक्शा स्टॅंड पर खड़ा था, शायद तुमने ध्यान नही दिया.
मैने कहा, ठीक है, रिक्शा ज़रा तेज चलाओ, में लेट हो रही हूँ.
वो बोला, आज मौसम कितना मस्त है ना.
मैने पूछा क्यों.
वो बोला, अरे उपर देखो बादल छाए हुवे है. तुझे भी ऐसा मौसम अच्छा लगता होगा ना.
मैं समझ गयी कि ये क्या सुन-ना चाहता है और मैं चुप रही और कुछ नही बोली.
थोड़ी देर बाद मैने कहा, मुझे घर जल्दी जाना है, प्लीज़ थोड़ा तेज-तेज चलाओ.
उसने जैसे कुछ नही सुना, और बोला, मेरा तो मन ऐसे मौसम मे तेरे जैसी मस्त आइटम की चूत मारने का करता है.
मैं ये सुन कर दंग रह गयी और कुछ नही बोली. मुझे ऐसा लग रहा था कि उसके रिक्शे में बैठ कर मेने जींदगी की सबसे बड़ी भूल कर ली है
उसने मुझे पीछे मूड कर देखा और मुझे आँख मारते हुवे बोला, क्या करू तू चीज़ ही ऐसी है.
मैने बिना कुछ कहे अपनी नज़रे झुका ली, और मैं कर भी क्या सकती थी.
मैने उसे फिर याद दिलाया , बिल्लू रिक्शा तेज चलाओ मुझे जल्दी घर जाना है.
पर वो धीरे-धीरे रिक्शा चलाता रहा, मानो उसने कुछ सुना ही ना हो.
वो बोला, एक शरत लगाती हो,
मैने ना जाने क्यो धीरे से पूछा, क्या,
वो बोला, आज कि रात, तेरा पति तेरी ज़रूर लेगा, ऐसे मौसम में कौन तेरी चूत नही मारेगा.
मैं कुछ भी बोलने की हालत में नही थी. मुझे लग रहा था कि ये लड़का कुछ ज़्यादा ही बोल रहा है और सारी शीमाए लाँघ रहा है. पर मैं कर भी क्या सकती थी, कही ना कही मेरी वजह से ही उसकी इतनी हिम्मत बढ़ी थी. मुझे शायद किचन की खिड़की बंद कर देनी चाहिए थी.
वो फिर पीछे मूड कर बोला, हे मुझपे तरस खा, आज मुझे भी दे, दे, देख ना इस मौसम में तेरे कारण मेरा लंड खड़ा हो गया है.
मैं कुछ नही बोली और चुपचाप उष्की बकवास सुनती रही. पर मेरे शरीर के रोम-रोम में एक अजीब शी हलचल हो रही थी.
वो फिर पीछे मुड़ा और बोला, बता चलती है क्या, मेरे साथ, मेरे घर मे कोई नही है.
मैने इस बार उसे सॉफ-सॉफ बोल दिया कि मुझे जल्दी घर जाना है, तुम रिक्शा तेज क्यों नही चलाते.
ये सुनते ही उसने रिक्शे की स्पीड बढ़ा दी. थोड़ी देर वो चुप रहा. मैं भी खामोश बैठी रही.
अचानक वह फिर पीछे मुड़ा और मुझे घूर कर देखा, और धीरे से बोला, लगता है मेरी सारी मेहनत बेकार गई. मैने वो सुन लिया, पर कोई रिक्षन नही किया. मैं मन ही मन सोच रही थी कि, बेचारे की, क्या हालत हो रही है . पर इसमे, मेरी तो कोई, ग़लती नही थी. यही तो, मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ा था. मैने तो इसे, अपनी खिड़की पर, आने को, नही कहा था. उसे बड़े-बड़े ख्वाब देखने से पहले, एक बार, सोचना चाहिए था.
मैं किसी भी हालत मे अपनी शीमाए नही लाँघ सकती थी.आख़िर मेरा एक हंसता, खेलता परिवार था. मैं ये सब, सोच ही रही थी कि, रिक्शा अचानक रुक गया. मैने पूछा क्या हुवा. वो बोला रिक्शे की चैन उतर गयी है. और वो चैन चढ़ाने के लिए, रिक्शे से नीचे उतरा और रिक्शे के पीछे आ गया. चैन चढ़ा कर वो बोला, मैं थोड़ा पेसाब कर लेता हू, और सामने की झाड़ियो मे चला गया.
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