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कायदा सेक्स कथा माझ्या मराठी बहीण 2
भाभी को ब्रा और पनटी तो मिली नही, लेकिन वो ये बात मुझे कहने मे
हिचक रही थी, और तोड़ा शर्मा भी रही थी, क्यो की मई उनको काँसे कम
70% नंगी देख चुका था. एब्ब और नंगी हो के वो मेरे सामने अपने अप
को लूस कॅरक्टर साबित नही करना चाहती थी. वो सिर्फ़ निघट्य पहन के
ही हॉल मे आ गयी, जब उनकी और मेरी नज़र एक हुवी तो उन्होने एक बहुत ही
सेक्सी स्माइल दी, लेकिन यूयेसेस स्माइल मे तोड़ा शर्मिलपन भी था. और चुपचाप
बिना कुछ कहे वो सोफे के पास और टेबल के पास कुछ ढूनदने लगी.
मैने पूछा, "क्या ढूंड रही हो भाभी?"
"कुछ नही संजय, मेरे कुछ कपड़े थे,"
"लेकिन कपड़े तो अप ले गयी ना"
"हा लेकिन मुझे दूसरे कपड़े चाहिए थे"
उन्हे कुछ- मिला नही तो वो किचन की तरफ जाने लगी, तभी सोफे के चेर के
पास उनके पैर मे कुछ चुबा. उन्होने एक करहा ली
"आआहाआआआआआअ"
"क्या हुवा भाभी"
"कुछ नही, शहेड कुछ चुबा", फिर उन्होने नीचे से ब्रा उठाई, उनके
हाट मे ब्रा लटक रही थी और मई देख के हसने लगा, फिर उन्होने भी
मुस्कुरा दिया और ब्रा को पीछे छुपा लिया, मैने कहा, भाभी मिल गया ना
कपड़ा, फिर मैने उनके जाँघो के बिच देख के कहा "लगता है एक कपड़ा
बाकी है मिलने का?" उसपे वो उनकी हस्सी रोक नही पे और वो किचन मे
जाने लगी, मई बेडरूम की तरफ बड़ा, और हतह मे उनकी पनटी ले ली, मैने
अपने आँखो के कोने से देखा की भाभी किचन की डोर पे ही खड़ी हो के
मुझे देख रही है. मैने ऐसे शो किया की मुझे पता नही है की वो
देख रही है, फिर मैने उनकी पनटी को अपने नाक से लगा लिया और खुश्बू
का मज़ा लेने लगा, उनका मुँह तो खुला का खुला रहे गया, यह सूब देख
के, शायद मई इतनी जल्दी ये सब करूँगा ये उन्होने एक्सपेक्ट नही किया था.
उनकी पनटी मे हल्की सी उनके छूट के और पेशाब की मिलीजुली एक मादक
खुसबू के साथ साथ वॉशिंग पाउडर की खूबू आ रही थी, क्यो की पनटी
धूलि हुवी थी इश्स लिए उनकी छूट की खुसभू का पूरा मज़ा तो नही आया.
लेकिन मुझे बहुत अच्छा लगा. भाभी ने किचन से आवाज़ लगाई...
"संजयययययययी... क्या कर रहे हो..."
"कुछ नही भाभी.... बस अप का एक और कपड़ा मिल गया.... "
और मई अपने हतहो मे उनकी पनटी ले के किचन मे चला गया. उन्होने
देख के मुस्कुरा दिया और कहा, “बड़े नॉटी हो गये हो देवेर्जी.. लगता
है बहुत खेले हुए हो.”. उहोने देवेर्जी पे जो सेक्सी अंदाज़ मे ज़ोरे दिया तो
मेरे तो होश ही उडद गये.मैने कहा “भाभी अप मुझे संजय की बजाए
इसी स्टाइल मे देवेर्जी कहा करो जैसा की अभी कहा.” वो मेरे इश्स बात पे
हँसने लगी. बोली "ठीक है अगर तुम्हे पसंद है तो यही कहूँगी लेकिन
मुझे संजय बड़ा पसंद है."|
मैने कहा क्या पसंद है भाभी आपको???"
वो मेरे बात का मतलब समाज़ गयी, और कहा की "मुझे संजय कहेना
पसंद है, संज्ज़े बुद्धू."
पनटी अभी भी मेरे हाथ मे थी और एब्ब मैने उनको ध्यान से देखा
अप्पर से नीचे तक, उस निघट्य मे उनके बदन की सब गोलाई सॉफ दिख रही
थी.. उनकी चूंचियो को ब्रा की ज़रूरत ही नही थी.. निघट्य से उनके छ्होटे
निपल बाहर मुँह निकले हुए थे.. पीछे से छूतदो के उभर और
मांसल जाँघो का शेप सॉफ नज़र आ रहा था. और मई सोचने लगा इन
मांसल जाँघो के बीच मे उनकी छूट के बारे मे. ज़रूर पवरोती की तरह
फूली हुई होगी. मुझे तो वो तो मानो सेक्स की देवी लग रही थी, गोल चेहरा,
खुले बॉल, मोटी गार्डेन, उभरा सीना, गोल गोल चिकने और गोरी भुजाए,
पहाड़ो जैसे साइड से ताने हुई चूंचिया, उनके बिच ब्रा ना होने पर भी
एक गहेरी कहयी. उनकी निघट्य बहुत पतली थी जिसके कारण उनके बदन का
गोरा हिस्सा उसमे से पूरा दिखाई दे रहा था.. उनके सीने से होते हुई
मेरी नज़र और नीचे गयी और मैने देखा … बहुत ही मुलाएँ सपाट
पेट (उनका पेट बाहर नही निकाला होने के कारण वो मोटी की बजाए गड्राए
बदन वाली एक सेक्सी औरत लगती थी) उसके नीचे बड़े कोट के बोटों जैसे
उनखी सेक्सी गहरी नाभि, नाभि से होते हुवे उनके सेक्सी छूट की तरफ एक
पतले बालो की लाइन गयी हुवी थी, उनके छूट शायद पूरी सॉफ थी,, उनकी
कमर बहुत पतली थी काँसे शायद 27-28 की थी. और चूतड़ तो बस पूछो
मत, उभरे हुए गोलाई लिए और आकर्षक थे, उनकी टाँगे भी बहुत चिकनी
थी, बिल्कुल केले के खंबे जैसी चिकनी. मई तो सीधे उनकी छूट के ख्यालो
मे खो गया सोचा उनकी छूट का कलौर पिंक होगा, और छूट के गुलाबी
अम्म औरतो से छोटे और चिपके होंगे (उनका डाइवोर्स करीब 8साल पहले
हो चक्का था और मेरे गाओं वाली भाभी ने बताया की वो तभी से अकेली
रहती है), छूट काफ़ी टाइट होगी, छूट का च्छेद बहुत छोटा होगा, बीच
मे जो दाना था वो एकद्ूम लाल, शायद भाभी रोज उसको अपने नाखूनओ से
कुरेड़ती होगी. मई उन्ही ख्यालो मे खोया था और मेरा लंड पंत के अंदर
से बाहर आन एके लिए अंगड़ाई लेने लगा था. उन्होने देखा की मई उनके
सारे बदन को घूर रहा हून, फिर उन्होने अपने अप को देखा और तब उनको
ख़याल आया की आरे अब्बी भी उन्होने सिर्फ़ निघट्य ही पहेनी है. उन्होने ज़हात
से मेरे हाथो से पनटी चीन ली और किचन टेबल पे पड़ी हुई ब्रा उठाई
और बेडरूम की तरफ चल पड़ी, तभी मैने कहा, "भाभी एब्ब क्या फायेदा",
वो बोली "कैसा फायेदा देवेर्जी, ज़रा खुल के कहो ना.."
"भाभी अप के हाथो मे जो यह 2 कपड़े है वो पहनने जा रही हो ना
बेडरूम मे."
"हा प्यारे देवेर्जी... क्यो.. नही पहनु क्या.........?"
"अरे भाभी जो च्छुपाने की लिए यह पहनने जा रही हो, वो तो हुँने सूब
कुछ देख लिया, और अभी नही, जब आया तभी देख लिया, फिर एब्ब हुंसे इन्हे
चीफ़ा के करेगी भी क्या.."
"प्यारे देवेर्जी.. ह्यूम पता है की अप देख चुके है, और अभी भी अप इन्हे
ही घूर रहे है.. और अभी आपका मान नही भरा है.. लेकिन मई इन्हे अपपसे
छुपाने के लिया नही पहन रही हू..."
"तो फिर भाभी...."
" आप ने तो सूब कुछ देख लिया.. एब्ब क्या आप यह च्चहते हो की दूसरे भी
यह सूब देखे..., इन सूब को दूसरो की नज़ारो से च्छुपाने की लिए पहन रही
हू संजे..."
"तभी भाभी ने कहा "संजय किसी को बताना मत हा...."
"क्या नही बताना है भाभी"
"यही जो कुछ तुमने देखा"
"क्या भाभी, मई संजा नही, मैने तो ऐसा कुछ देखा नही ..ज़रा खुल के
बताओ ना"
"अरे बाबा यही की तुमने मुझे नहाने के बाद जिसस हालत मे देखा और
मैने अंडर से कुछ नही पहेना उसके बारे मे कहे रही हून…
समझे. और तुम आज ही आए हो इसलिए मई इसे भूल जाती हून कीट उम घर पर
हो.. अकटुली मैं घर मे अकेली रहेती हून, तो मुझे ऐसे ही रहेने की
अददात पद चुकी है, और वैसे भी शाम को कोई आता नही है, इश्स लिए
नहाने के बाद मई हुमेशा टवल मे ही आती हू और हॉल मे ही चांग
करती हून, आईने मे देख के आप ना सारा बदन टवल निकल के साफ करती
हू, अभी तुम आज ही आई हो ना तो मुझे अभी तुम्हारी आदत नही पड़ी है,
मुझे लगा की मई अकेली ही हून इसी लिए यह सूब अंजाने मे हो गया."
"नही भाभी, बिल्कुल नही किसी को नही बतौँगा लेकिन जो कुछ हुवा अच्छा
हुवा. और हा आप आप नी स्टाइल चेंज मत करो, अभी भी आप रोज हमेशा की
तरह ही चेंज किया करो और नाहया करो, मुझे कोई प्राब्लम नही है
इससमे."
भाभी ने गुस्से मे कहा "क्या मतलब? क्या कहे रहे हो संजय?"
"श भाभी मेरे मतलब था की जो भी होता है अच्छे के लिए होता है
ना."
भाभी अभी बेडरूम के डोर पे ही खड़ी थी, और उनके हाथो मे पनटी और
ब्रा लटक रही थी, मई उनके बहुत करीब खड़ा था. तभी किसी की आवाज़ आई
"ओहूऊऊ सॉरी सॉरी... नामिता मुझे नही पता था की तुम बूससी हो..." एक
निहायट ही खूबसूरत, गोरी गोरी, पतली सी औरत लगभग 32 की होंगी, आप ने
आँखो पे एक हाथ रखते हुवे, और भाभी के हाथो मे लटकी हुवी ब्रा
और पनटी के ट्राफ् इशारा करते हुवे, बड़े ही नटखत और सेक्सी अंदाज़ मे
भाभी को चिढ़ते हुवे कहा "लगता है मुझे बाद मे आना च्चािए,
है ना नामिता, आप लोग चलने दीजिए आप ना प्रोग्राम, मई जा रही हू.."
"अरे प्रभा, आओ आओ ना, कहा चली.. तुम भी ना बस... तुम्हे तो हेर जघा
सूब कुछ वही प्रोग्राम ही दिखता है... आओ अंडर .. तुम जो कुछ समझहह
रही हो वैसा कुछ भी नही हो रहा है यहा. आओ तुम्हे मई मिलवती हू..
यह है संजय, सुनीता का मुँह बोला देवेर.. यहा नौकरी करने आया है,
रहने का प्राब्लम है इसलिए अभी ये यही रहेगा," यह बात सुनते ही प्रभा
की आँखो मे चमक आ गयी, और भाभी और प्रभा की आँखो आँखो मे
ही बात हुवी और दोनो मुस्कुराने लगी, मेरी कुछ समझहह मे नही आया.
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