Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:25 AM,
#21
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--15

गतांक से आगे.......................

चाचा को काटो तो खून नही.. शायद उन्हे भी किसी पोलीस वाले को ये बताते हुए थोडा अजीब लग रहा था कि मीनू 'तरुण' के बारे में सुनकर सदमे में आ गयी है..," बैठिए ना.. दरोगा साहब; जा पिंकी.. उपर से कुर्सी ला दे.. और कुच्छ चाय दूध ले आ, साहब के लिए!" चाचा ने पिंकी से कहा और उनके पास आकर खड़े हो गये...

वो पोलीस वाला भी शायद फ्री होकर ही वहाँ आया था.. चाचा के कहते ही धम्म से चारपाई पर बैठ गया,"ये ठीक है.. आपने बताया नही.. क्या हो गया इसको?"

दूसरा मोटा पोलीस वाला लट्ठ के सहारे कोहनी टिकाए उसके पास खड़ा रहा...

"ज्जई.. ववो.. तरुण इनको पढ़ाने आता था.. काफ़ी घुल मिल गया था.. हमारे परिवार से.. इसीलिए थोड़ी सी..." चाचा ने हिचकते हुए कहा....

"पर ये तो उसकी उमर की ही लग रही है... इसको पढ़ाने आता था वो?" पोलीस वाले ने मीनू का चेहरा गौर से देखते हुए पूचछा...

"ज्जी हां.. इसकी इंग्लीश थोड़ी कमजोर है.. इसको भी इंग्लीश पढ़ा देता था.. वैसे खास तो इन्न बच्चियों को ही पढ़ने आता था.. इनके एग्ज़ॅम चल रहे हैं.. दूसवी के..." चाची ने जवाब दिया...

"हूंम्म..." उसने मुझे उपर से नीचे तक घूर कर देखा.. मुझे लगा मानो उसकी आँखें पूच्छ रही हों..'ये बच्ची कहाँ से लग रही है?'.. कुच्छ देर तक मुझे यूँही घूरते रहने के बाद बोला," इन्न 'बच्चियों' को शायद इतना दुख नही है.. जितना आपकी बड़ी बेटी को है.." उसने बच्चियों शब्द पर कुच्छ खास ज़ोर दिया...

"नही नही.. दारोगा साहब.. मेरी दोनो बेटियों समेत हम दोनो को भी उस'से बहुत लगाव था.. बस.. ये.. मीनू बातों को थोड़ा ज़्यादा दिल पर लेती है.. इसीलिए.." चाचा बोलते बोलते रुक गये... वो थोड़े शर्मिंदा से लग रहे थे.. पोलीस वाले के बात कहने के ढंग से...

"तीनो बेटियाँ आपकी नही हैं क्या?" पोलीस वाला सवाल पर सवाल किए जा रहा था...

तभी पिंकी आई और दो कुर्सियाँ रख कर वापस चली गयी.. पोलीस वाला उठा और कुर्सी पर बैठ गया... दूसरे पोलीस वाले ने भी अपनी कुर्सी अलग खींची और उस पर बैठ गया.....

"जी.. नही.. ये.. अंजलि मेरे भाई की बेटी है.. ये भी कयि दिन से यहीं पढ़ने के लिए आ रही थी...." चाचा ने मेरी ओर इशारा किया...

"हुम्म.. कितने बजे आता था वो.. पढ़ाने?" उसने अगला सवाल किया.. कम से कम मेरी समझ में नही आ रहा था कि वो बात को कहाँ ले जाना चाहता है....

"यही कोई सात साढ़े सात बजे तक आता था.. कल भी इसी वक़्त आया था.. है ना?" चाचा ने बोल कर मेरी तरफ देखा...

मैने स्वीकृति में सिर हिलाया," हां.." और मेरी आँखों के सामने कल रात वहाँ हुई घटना तैरने लगी.. मैने नज़रें झुका ली....

"जाता कितने बजे था... वापस?" पोलीस वाले ने पूचछा...

"उसका कुच्छ पक्का नही था साहब.. 10..11.. 12 भी बज जाते थे कभी कभी.. पहले इनको पढ़ाता था.. बाद में मीनू को थोड़ी इंग्लीश सीखा देता था... " चाचा उस बात को खा गये कि कभी कभी वो 'यहाँ' भी सो जाता था...," कल 'वो' कयि दिन बाद आया था...!"

"हूंम्म्मम..." पोलीस वाले ने दूसरे पोलीस वाले को देखा.. उसने भी अपना सिर हिला दिया...

"कल कितने बजे गया था वापस..?" पोलीस वाले ने चाचा की ओर ध्यान से देखते हुए कहा...

"वो तो इन्हे पता होगा..?" चाचा ने मेरी और देख कर कहा,"कितने बजे गया था अंजू?"

अचानक मुझसे सवाल होने पर मैं हड़बड़ा सी गयी.. समझ में ही नही आया कि क्या कहूँ.. और क्या नही.. पोलीस वाला भी मेरी और ही देखने लगा था.. इसीलिए मैं और भी ज़्यादा परेशान हो गयी...

तभी पिंकी चाय लेकर आ गयी.. उसने चाय का कप पकड़ा और चुस्की लेकर बोला,"कोई बात नही... आराम से सोच कर बता दो...!"

"ज्जई.. यही कोई 11 बजे के आसपास गया होगा...!" मुझे यही कहना उचित लगा.. मुझे लगा अगर मैने उसके पहले जाने की बात बोल दी तो फिर और सवाल खड़े हो जाएँगे...

पोलीस वाला मेरी ही और देखता रहा...," ठीक ठीक याद है ना?"

मैने 'हां' में सिर हिला दिया,"जी.. ग्यारह या सवा ग्यारह बजे ही गया था..."

"चलो कोई बात नही... 2-4 दिन में पोस्टमोरटूम रिपोर्ट आ जाएगी.. मुझे बाद में आना पड़ेगा...!" उसके खड़ा होते ही दूसरा पोलीस वाला भी झट से चाय अधूरी छ्चोड़ कर खड़ा हो गया...

"जी.. कोई बात नही.. पर.. हमें जो कुच्छ पता था.. हम बता चुके हैं.. आप तरुण की रिपोर्ट के बाद यहाँ क्यूँ आना चाहते हैं.." चाचा ने आशंकित होकर पूचछा...

"ओहो.. ऐसी कोई खास बात नही है मलिक साहब.. बस.. गाँव में किसी ने मुझे बताया कि वो यहाँ पढ़ाने आता था.. फिर मीनू उसके साथ कॉलेज में भी पढ़ती है.. इस'से कुच्छ ना कुच्छ जानकारी मिल ही जाएगी.. उसके दोस्तों के बारे में.. आप बेफिकर रहें... !" पहली बार उस पोलीस वाले ने चाचा से तमीज़ से बात की..," अभी मीनू भी कुच्छ बताने की हालत में नही है.. इसीलिए कहा था की बाद में आउन्गा...!"

तभी मीनू उठ कर बैठ गयी.. अपने हाथों से अपने चेहरे पर सूख चुके आँसुओं को सॉफ करते हुए रूखी सी आवाज़ में बोली," जी.. अभी पूच्छ लीजिए.. मैं ठीक हूँ.."

"ओह्ह.. तो आप भी सब सुन रही थी.." पोलीस वाले ने पलट कर कहा और वापस आकर कुर्सी पर बैठ गया..

"जी क्या पूचछा है आपको? पूच्छ लीजिए.. मैं ठीक हूँ..!" मीनू ने नज़रें झुकाए हुए ही कहा....

पोलीस वाले ने चाचा की और देख कर कहा," मैं मीनू से अकेले में कुच्छ पूच्छना चाहता हूँ... आप थोड़ी देर के लिए उपर चले जाओ...!"

चाचा ने घबराकर चाची की ओर देखा और थोड़े से हड़बड़ाहट में बोले..," पर.. ऐसी क्या बात पूच्छनी हैं साहब.. आप पूच्छ लीजिए जो भी पूच्छना है.. हम कुच्छ नही बोलेंगे...!" और दोनो वहीं खड़े रहे.. मैं चलकर चाची के पास आकर खड़ी हो गयी...

"आप समझने की कोशिश करें.. मुझे कॉलेज की कुच्छ बातें पूच्छनी हैं.. आपके यहाँ रहते ये खुल कर बता नही पाएगी...!" पोलीस वाला लंबू बोला..

"हमारी बेटी ऐसी नही है साहब.. सीधी कॉलेज जाती है.. और सीधी आती है.. फालतू बातों पर ये ध्यान नही देती... और कम से कम अपनी मम्मी को तो सब कुच्छ बता ही देती है.. मैं चला जाता हूँ.. इसकी मम्मी यहीं बैठ जाएगी.." चाचा ने नाराज़ सा होते हुए कहा...

"देखिए.. मेरे लिए तो चाहे इसको पंचायत में ले चलो.. मैं तो वहाँ भी पूच्छ लूँगा... मुझे क्या फ़र्क़ पड़ता है.. मैं तो इसके भले के लिए ही आपको जाने के लिए बोल रहा हूँ.. सिर्फ़ इसी बात के कारण मैने आप लोगों को वहाँ नही बुलवाया.. मैं ऐसा भी कर सकता था.. बाकी आपकी मर्ज़ी है... हां मीनू.. मैं तुमसे कुच्छ भी पूछू.. इनके सामने.. तुम्हे कोई ऐतराज तो नही है ना... ?मतलब.. तुम्हारी सारे बातें तुम्हारी मम्मी को सच में पता होती हैं क्या?" इनस्पेक्टर की आँखें घूमाते हुए जाकर मीनू पर जम गयी...

मीनू कुच्छ देर अपना सिर झुकाए बैठी रही.. फिर मम्मी की और देख कर बोली," आप लोग जाओ मम्मी.. अंजू मेरे पास रह जाएगी...!"

चाचा चाची कुच्छ देर उनमाने से वहीं खड़े रहे.. फिर चाचा ने मूड कर कहा," ठीक है.. आ जाओ तुम भी..."

चाचा चाची दोनो उपर चले गये.. मैं और मीनू दोनो असमन्झस से उन्न पोलीस वालों को देखने लगे....

"कौनसे कॉलेज में हो मीनू?" पोलीस वाले ने मीनू को शरारती नज़रों से घूर कर देखा....

मीनू ने भी उन्न आँखों में ललक को पहचान लिया.. उसने तुरंत अपना सिर झुका लिया," जाट कॉलेज में...!"

"अरे वाह! मैं भी तो उसी कॉलेज में पढ़ा हूँ.. 2 साल पहले ही ग्रॅजुयेशन कंप्लीट की है वहाँ से.." पोलीस वाले ने कहा और मीनू के बराबर वाली चारपाई पर जाकर बैठ गया..," तभी पोलीस में सेलेक्षन हो गया था.. बाइ दा वे, आइ'म इनस्पेक्टर मानव!" उसने कहा और मीनू की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया... मिलाने के लिए!

पर मीनू के दोनो हाथ कंबल में ही दुब्के रहे.. उल्टा वह थोड़ी सी खिसक कर पिछे हो गयी...

"वेल..." इनस्पेक्टर ने अपना दूसरा हाथ भी आगे बढ़ाया और पहले बढ़े हुए हाथ की हथेली खुजलाने लगा.. अपनी खीज मिटाने के लिए...," के.के. मांन सर अब भी वहाँ हैं क्या? बड़ा अच्च्छा पढ़ते थे... वो मेरे फॅवुरेट सर थे...!"

"जी.. अब 'वो' प्रिन्सिपल हैं... पर आप ये बातें मम्मी पापा के सामने भी तो पूच्छ सकते थे... वो पता नही क्या सोच रहे होंगे.." मीनू ने शिकायती लहजे में कहा...और मुझे खड़ी देख कर बोली,"यहाँ आ जाओ अंजू.. मेरे पास बैठ जाओ!"

मैं जाकर उसकी चरपाई पर बैठ गयी....

अचानक 'वो' इनस्पेक्टर सेनजीदा सा होकर पिछे हट गया.. कुच्छ देर सोचता रहा.. फिर बोला..,"तो मैं ये मान लूँ कि अंजलि के सामने तुमसे कुच्छ भी पूच्छ लूँ.. तुम्हे कोई फ़र्क़ नही पड़ेगा...!"

"जी.. पूच्हिए!" मीनू ने आशंकित होकर जवाब दिया....

"तरुण को तुम कितना जानती थी..." इनस्पेक्टर ने पूचछा...

ये सवाल सुनते ही मीनू की आँखों में आँसू आ गये.. पर वो अपने को संयमित रखते हुए बोली," जी.. मेरे साथ कॉलेज में पढ़ता था.. बहुत इंटेलिजेंट था.. हमारे गाँव का था और हूमें पढ़ने आता था... बस!"

"बस?" इनस्पेक्टर ने मीनू के आख़िरी शब्द को दोहराया.. पर उसके 'बस' में प्रशनवचक भाव थे....

"जी... !" मीनू ने अपना सिर झुकाए हुए इतना ही कहा....

"पर.. आपको देख कर तो कोई भी कह सकता है कि आपको उस'से लगाव था.. 'फिल्मी' भाषा में कहूँ तो.. प्यार.. या ... आकर्षण... या... ज़्यादा खुल कर बोलूं तो...शारीरिक आकर्षण! तुम्हारे घर वालों ने पता नही 'इस' आकर्षण को आज तक क्यूँ नही पहचाना.... मैं तो देखते ही समझ गया था..." इनस्पेक्टर ने रुक रुक कर बात पूरी की....

मीनू और मैं.. दोनो उसकी बात सुनकर स्तब्ध हो गयी.. पर मैं कुच्छ ना बोली.. मैं अपना मुँह खोले मीनू की ओर देखने लगी....

"ययए.. आप क्या बात कर रहे हैं..? ऐसा कुच्छ नही था...!" मीनू सकपका कर बोली...

"तो फिर ऐसा होगा कि आप रोज़ यूँही रोती रहती होंगी.. कितने ही लोग मरते हैं रोज.. है ना?" इनस्पेक्टर ने व्यंग्य किया..

मीनू ने कोई जवाब नही दिया...

"बोलती क्यूँ नही..? ऐसा क्या था तुम दोनो के बीच.. जो आपको इस तरह से रोने पर मजबूर कर रहा है.. जैसे कोई अपना चला गया हो..!" इनस्पेक्टर ने सीधे सीधे पूचछा....

मीनू फफक पड़ी..," प्लीज़.. आप ऐसे सवाल ना करें.. हां.. वो हम सबको अच्च्छा लगता था... हमारे घर रोज़ आता था.. अब ऐसे तो घर में रहने वाले 'कुत्ते' के लिए भी दुख होता है.. तो क्या आप उसको भी उसी नज़र...."

इनस्पेक्टर मुस्कुराता हुआ बोला," तो तुम्हारे कहने का मतलब है कि 'तरुण' तुम्हारे लिए सिर्फ़ एक 'कुत्ता' था.. प्लीज़ डॉन'ट माइंड..!"

"म्‍मैइने तो सिर्फ़ उदाहरण दिया था.. आप...!" मीनू ने उसकी नज़रों में नज़रें डाल कर हताशा से देखा...

"चलो छ्चोड़ो.. कल जब वो आया तो यहाँ पर कौन कौन था...?" इनस्पेक्टर ने बात पलट दी...

"हम तीनो ही थे.. और एक बार पापा आए थे.. नीचे.. दरवाजा खोलने..." मीनू ने ये बात कह कर इनस्पेक्टर को एक और बात पकड़ा दी...

"क्यूँ? तुम में से कोई भी तो दरवाजा खोल सकती थी..?"

"ज्जई.. वो हमें उसकी आवाज़ सुनाई नही दी...!" मीनू ने वही सफाई दे डाली जो रात चाचा को दी थी...

"हूंम्म... फिर क्या हुआ?" इनस्पेक्टर ने इस अंदाज में पूचछा.. जैसे उसको पता हो कि कल रात यहाँ कुच्छ अलग हुआ हो...

मीनू भी उसके अंदाज को देख कर हड़बड़ा गयी...," ज्जई.. क्या मतलब..? बस पढ़ाया और फिर चला गया...!" मीनू की साँसें भारी हो गयी...

"कितने बजे?" इनस्पेक्टर ने पूचछा तो मैं डर गयी.. मुझे लगा कहीं मीनू उसके जल्दी वापस जाने की बात ना कह दे....

"यही.. कोई 11 बजे के आसपास..." मीनू का जवाब सुनकर मेरी जान में जान आई...

"आपने इस बात का जवाब बड़ी जल्दी दे दिया... इसका मतलब आप लेते हुए हमारी सारी बातें सुन रही थी..." इनस्पेक्टर ने अपनी आँखें सिकोड कर उसको घूरा....

"क्क्या मतलब..? मुझे पता था कि वो कितने बजे गया था.. मैने बता दिया.." मीनू इनस्पेक्टर को देखते हुए बोली....

"नही.. बस.. तुम्हारे पापा कह रहे थे कि वो कभी 10 बजे तो कभी 12 बजे जाता था.. इसीलिए मुझे लगा तुम्हे याद करके बोलना चाहिए था... वैसे.. कल क्या पढ़ाया था उसने?" इनस्पेक्टर अब सीरीयस होता जा रहा था...

इस सवाल पर हम दोनो ही बगले झाँकने लगे... फिर कुच्छ देर बाद मीनू बोली..," ऐसी बातें क्यूँ पूच्छ रहे हैं आप....?"

इनस्पेक्टर मुस्कुराता हुआ बोला," कोई बात नही... छ्चोड़ो! ये ही बता दो कि उसको किसने मारा है..?"

मीनू अचानक काँपने सी लगी," याइ..ये क्या.. पूच्छ रहे हैं आप? ंमुझे क्या पता?"

"हा हा हा.. इधर उधर की बात करूँ तो आपको तकलीफ़ होती है.. सीधे मतलब की बात पर आ जाउ तो आपको तकलीफ़ होती है.. ठीक है.. आप ही बता दीजिए कि क्या क्या पूछू.. ताकि मैं कातिल तक पहुँच जाउ? .. आख़िर ये ही तो काम है मेरा!" इनस्पेक्टर ने घाघ लहजे में कहा...

"एमेम..हमें क्या पता.. आप पता लगाइए.. मुझसे क्यूँ पूच्छ रहे हैं आप.. ये सब.."मीनू पूरी तरह से हड़बड़ा गयी थी...

"इसीलिए पूच्छ रहा हूँ.. क्यूंकी 'उसके' मर्डर के तार आपसे जुड़े हुए हैं.. पहले मैने ये सोचा था कि तुम्हारे और तरुण के संबंधों का तुम्हारे घर वालों को पता चल गया होगा.. इसीलिए उन्होने उसको ख़तम करवा दिया... पर अब.. उनसे बात करने के बाद मैं निसचिंत हूँ.. उनको कुच्छ नही पता इस बारे में.. पर 'तुम्हारे' चेहरे से ही लग रहा है कि 'भैंस' यहाँ फँसी खड़ी है... समझ गयी ना?" इनस्पेक्टर की बात सुनकर मीनू का बुरा हाल हो गया..

"मैं सच कह रही हूँ.. मुझे कुच्छ नही पता...!" मीनू सुबक्ते हुए बोली...

"तुम्हे मेरा शुक्रगुज़ार होना चाहिए.. मैने ये बातें तुम्हारे घर वालों के सामने नही कही.. गाँव वालों को किसी को नही पता कि मैं तहकीकात यहाँ से शुरू कर रहा हूँ... सिर्फ़ इसीलिए ताकि आप बेक़ुसूर निकलें तो तुम्हारी इज़्ज़त बची रहे... पर कम से कम अब मैं तो जानता ही हूँ कि तुम्हारे और तरुण के बीच संबंध था.. जो समाज की नज़रों में ग़लत था...

और ये भी कि तुम्हारा 'वो' एक ही यार नही था... और भी थे.. और तुम्हे पता है कि उनमें से किसने उसको मार दिया... और मुझे भी जान'ना है.. अब तुम सीधे तरीके से बताओ या टेढ़े तरीके से.. मर्ज़ी तुम्हारी है...?"

मैं अवाक सी होकर मीनू के चेहरे की और देखने लगी.. मीनू अजीब सी हिचकियाँ सी लेते हुए सिसकने लगी.. पर उस इनस्पेक्टर पर कोई फ़र्क़ नही पड़ा.. वो उसकी और देखता हुआ लगातार मुस्कुरा रहा था.. आख़िरकार मीनू की सिसकियाँ कम हुई और उसने तड़प कर पूचछा," ये सब कैसे कह रह हैं आप..? और क्यूँ?"

"इसीलिए.." इनस्पेक्टर ने कहा और 3 पन्ने उसको दिखा कर मुस्कुराता हुआ बोला..," बड़ी सुन्दर लिखाई है.... ये.. ये तुम्हारी ही लिखाई है ना..?"

हम दोनो की साँसें उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी.. मीनू हकलाते हुए बोली," यएए.. ये आपको कहाँ मिले?"

"देखा! ढूँढने पर हों तो भगवान भी मिल जाता है.. बस श्रद्धा होनी चाहिए... अब क्या कहती हो..?" इनस्पेक्टर अब भी मुस्कुरा रहा था...

"भगवान की कसम.. मुझे नही पता उसको किसने.. और क्यूँ......?" मीनू धीरे से बोली....

"कोई बात नही... वो सब बाद में देख लेंगे...अभी आराम करो.. मैं बार बार यहाँ आउन्गा तो घर वाले परेशन हो जाएँगे... कल कॉलेज आकर 'इस' नंबर. पर फोन कर लो.." इनस्पेक्टर मीनू को एक कागज पर नंबर. लिख कर देता हुआ बोला... मैं तुम्हे कॉलेज से लेने आ जाउन्गा.. बाकी बातें अब कल ही करेंगे..." इनस्पेक्टर ने मुस्कुरकर कहा और उसकी ओर हाथ बढ़ा दिया.. मिलाने के लिए!

मीनू सुन्न सी होकर इनस्पेक्टर के हाथ की ओर देखती रही.. फिर उसने अपना हाथ कंबल से बाहर निकाला और दूसरे हाथ से अपने आँसू पौंचछते हुए इनस्पेक्टर का हाथ पकड़ लिया....

"ये.. ये मेरे साथ क्या हो गया अंजू?.. अब क्या करूँ मैं? घर वालों को भी मेरे और तरुण के बारे में पता लग गया तो...? कितना विश्वास करते थे मुझपर.. मैं तो जी ही नही पाउन्गि अब!" पोलीस वालों के जाते ही मीनू ने रोना बिलखना शुरू कर दिया....!"

मैने भी भरे मंन से उसको शंतवना देने की कोशिश की,"नही पता लगेगा दीदी.. आप कुच्छ मत बताना उन्हे... उनको बताना होता तो वो आज ही ना बता देते.. आज भी तो उनको उपर भेज दिया था ना.. पहले ही..!"

"कुच्छ नही पता इन्न पोलीस वालों का.. ये सब इनकी चाल होती है.. अगर मुझसे इनको सच्चाई का पता नही लगा तो फिर थोड़े ही मेरे बारे में सोचेंगे... और जब मुझे खुद ही कुच्छ नही पता तो मैं बतौँगी क्या?" मीनू ने रोते हुए ही कहा...

"पर दीदी.. इन्होने आपको शहर में मिलने को क्यूँ बोला.. ?" मैने आशंकित होकर पूचछा....

"अब क्या पता?" मीनू ने अपने गालों पर लगातार लुढ़क रहे आउन्सुओ को पुंचछते हुए सुबकि ली...

"कहीं... उन्न लेटर्स के लिए अब ये तो आपको ब्लॅकमेल नही करेंगे ना..?" मेरे दिमाग़ में जो आया.. मैने बोल दिया...

मेरी बात सुनकर मीनू ने फिर से रोना शुरू कर दिया...

"मैं तो बस ऐसे ही कह रही हूँ दीदी.. पोलीस वाले ऐसा थोड़े ही कर सकते है.. आप चुप हो जाओ.. शायद उपर से कोई आ रहा है...!" मैने सीढ़ियों से आहत सुनकर कहा...

मीनू ने तुरंत अपने आँसू पौंच्छ लिए... तभी उपर से चाची और पिंकी दोनो नीचे आ गये...

"ऐसा क्या पूच्छ रहे थे वो?" चाची ने आते ही मीनू से सवाल किया...

मीनू कोई जवाब नही दे पाई.. अचानक मेरे ही मंन में कुच्छ आ गया जो मैने बोल भी दिया," कुच्छ खास नही चाची... तरुण के दोस्तों के बारे में पूच्छ रहे थे.. कैसे हैं क्या करते हैं.. तरुण पढ़ाई में कैसा है.. इस तरह की बातें..."

"इन्न बातों को पूच्छने के लिए वो हमें उपर क्यूँ भेजते..? ज़रूर कोई दूसरी ही बात होगी.. तुम कुच्छ छिपा रही हो ना?" चाची ने घूर कर मीनू को देखा...

"नयी मम्मी.. वो.. ये भी पूच्छ रहे थे कि तरुण की कोई गर्ल फ्रेंड तो नही थी.. उसका कोई इस तरह का लाफद..... कॉलेज में.. बस इसी तरह की बातें पूच्छ रहे थे.. इसीलिए आपको उपर भेज दिया होगा..!" मीनू ने मेरी बात थोड़ी सी और सुधार दी...

"तो.. तुमने कह दिया होगा ना की वो ऐसा नही था...?" चाची ने पास बैठकर पूचछा...

"हाँ..." मीनू ने अपना सिर हिलाते हुए कहा और फिर अपने आँसू पौच्छने लगी....

"कितना नएक्दील था बेचारा.. कीड़े पड़ें उनको जिन्होने इतना घटिया काम किया है... तू रो मत बेटी.. भगवान उनको ज़रूर सज़ा देंगे... बस कर.. अब अपनी पढ़ाई कर ले... इन्न बच्चियों का भी तो कल पेपर है ना... आज तो इन्न दोनो ने खाना भी नही खाया आकर... तू भी यहीं खा लेना अंजू.. मैं खाना बनाने जा रही हूँ.. आजा.. मेरे साथ उपर आ एक बार...!" चाची ने खड़ी होकर मुझे साथ आने को कहा....

"नही चाची.. मैं घर जा रही हूँ.. मम्मी चिंता कर रही होगी..."मैने कहा...

"अरे मैने फोन कर दिया था.. तू आ तो एक बार...!" चाची ने मेरा हाथ पकड़ा और उपर ले गयी...

"आजा.. किचन में आजा.. अंदर तेरे चाचा होंगे..! चाची ने कहा और मैं उनके साथ किचन में चली गयी....

"देख बेटी.. सच सच बताना.. कुच्छ भी छिपाना मत..." चाची ने कहा...

"क्या चाची..?" मेरा दिल धड़कने लगा...

"पोलीस वालों ने कुच्छ और बात भी पूछि थी क्या?" चाची ने मेरे गाल सहलाते हुए पूचछा...

"नही चाची.. बस उसके कॉलेज के बारे में ही पूच्छ रहे थे.. प्रिन्सिपल कौन है.. ? ऐसी ऐसी बातें..." मैने उनसे नज़रें मिलाए बिना ही जवाब दिया...

"तरुण यहाँ आता था तो तूने कुच्छ ऐसा वैसा तो महसूस नही किया ना?" चाची ने पूचछा..

मैं समझ तो सब गयी थी.. पर अंजान बनते हुए बोली," कैसा चाची...?"

"चल छ्चोड़.. एक बात मान लेगी ना मेरी...!" चाची ने प्यार से कहा...

"क्या?" मैं घबरा सी गयी...

"वो.. घर पर मत बताना की पोलीस वाले यहाँ आए थे.. और मीनू से पूचहताच्छ कर रहे थे.. समझ गयी ना.. बेवजह उन्हे भी चिंता होगी.. और बात कहीं की कहीं निकल जाती है बेटी.. तू तो जानती है कि मीनू कितनी भोली है..!"

"जी चाची... मैं तो वैसे भी किसी को नही बताती.." मैने भोलेपन से जवाब दिया....

"शाबाश.. जा अब.. पढ़ ले अच्छे से.. और मीनू को भी समझाना.. अब परेशान होकर मिलेगा भी क्या? वो बेचारा वापस तो नही आ जाएगा ना... जा.. मैं खाना बना देती हूँ.. तुम्हारे लिए..." चाची ने प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा...

"जी अच्च्छा चाची.." मैने कहा और नीचे आ गयी....

"अब क्या होगा दीदी.." पिंकी घबराई हुई मीनू का हाथ पकड़े पूच्छ रही थी....

"इसको.. बता दिया क्या?" मैने जाते ही मीनू से पूचछा...

मीनू ने हां में सिर हिलाया और बोली,"मेरी ये समझ में नही आ रहा कि 'वो' ऐसा क्यूँ कह रहे थे कि तुम्हारे कयि यार हैं.. और उनमें से ही किसी ने..."

"यूँही तुक्का मार रहे होंगे... वो तो ये भी कह रहे थे कि आपको पता है कि किसने मारा है तरुण को..." मैने कहा....

"हां.. हो भी सकता है...!" मीनू ने लंबी साँस लेकर कहा...

"फिर.. तुम कल उनको फोन करोगी क्या.. दीदी?" पिंकी ने पूचछा... मीनू ने कोई जवाब नही दिया.. पिंकी ने फिर कहा," बोलो ना दीदी..?"

"पता नही.. मेरी तो खुद समझ में नही आ रहा कि क्या करूँ...?" मीनू ने कहा....

"अगर करो तो उनके साथ बैठकर कहीं मत जाना दीदी... मैने देखा था.. वो बार बार आपको बुरी नज़र से देख रहे थे.." पिंकी ने भोला सा चेहरा बनाकर कहा...

मीनू ने उसकी इस बात का भी कोई जवाब नही दिया.. 'लड़के तो सभी ऐसे होते हैं.. उनकी तो नज़र ही बुरी होती है.. पर इनस्पेक्टर तो उस'से 4-5 साल ही बड़ा था...' .... मीनू मन ही मन सोचती रही....

अगले दिन हम दोनो तैयार होकर स्कूल जाने के लिए उनके घर से निकाल लिए.. मीनू तो तब तक उठी भी नही थी.. मैं उस'से बात करना चाहती थी.. पर चाची ने मना कर दिया. चाची ने बताया कि वो रात भर सोई नही है.

हम गाँव से निकले ही थे कि संदीप हमें पैदल ही जाता दिखाई दिया.. वो अकेला ही था.. हमें आता देख कर वह रुक गया..

"हेलो!" संदीप ने पहले पिंकी और फिर मुझे देख कर कहा..

"हाई.." जवाब सिर्फ़ मैने दिया.. पिंकी कुच्छ देर चुप रहने के बाद झिझकते हुए बोली..," कुच्छ पता चला.. तरुण के बारे में...?"

संदीप के चेहरे पर उदासी सी छा गयी," पता नही.. पर मनीषा कह रही थी कि उसने रात को लड़ाई सी की आवाज़ें सुनी थी.. चौपाल में!"

"कौन मनीषा? वही क्या जो ट्राक्टेर चलाती है.. और मोटरसाइकल भी?" पिंकी ने संदीप की ओर देख कर पूचछा...

"हां.. और क्या करे बेचारी !.. ना तो उसका कोई भाई है.. और ना ही 'मा' ... बाप शराब पीकर पड़ा रहता है 24 घंटे.. वही तो संभाल रही है घर को.." संदीप ने पिंकी की बात पर प्रतिक्रिया दी...

"पर उसने कैसे सुनी?" मैने पूचछा...

"अरे.. उसका घर चौपाल के साथ लगता हुआ ही तो है...!" संदीप बोला...

"हां.. वो तो मुझे पता है.. पर इतनी रात को.. वो जाग रही थी क्या?" मैने यूँही बात करने के लिए बात को आगे बढ़ा दिया.. संदीप से बात करते हुए मुझे बहुत अच्च्छा लग रहा था....

"वो तो कह रही है कि उसने 9:00 बजे के आसपास आवाज़ें सुनी थी... 'वो' भैंसॉं को चारा डालने के लिए घर के बाहर बरामदे में आई थी... तभी उसको चौपाल से कुच्छ बहस होने की आवाज़ें आई.. उसने अपनी दीवार से झाँक कर देखने की कोशिश की पर अंधेरे की वजह से कुच्छ दिखाई नही दिया... फिर वो ये सोच कर वापस चली गयी कि 'नशेड़ी' (नशा करने वाले) आकर बैठ गये होंगे...

मैने घबराकर पूचछा," उसने... किसको बताई है ये बात?"

"तरुण के घरवालों को.. और उस 'छ्होकरे' से इनस्पेक्टर को भी... क्यूँ?" संदीप ने बताने के बाद सवाल किया....

"नही.. कुच्छ नही..." मेरा दिल बैठ गया.. इनस्पेक्टर ने ये ' 9:00 बजे वाली बात का जिकर हमारे पास क्यूँ नही किया.. मैने तो उसको ये बताया था कि तरुण 11:00 बजे तक हमारे पास ही था.." मेरे मंन में अंजाना सा डर बैठता चला गया..

"अरे हां.. वो.. शिखा तुम्हे बुला रही थी.. कयि दिन पहले कहा था.. मुझे याद ही नही रहा..." संदीप ने कहा...

"किसको?" मैने पूचछा.. पिंकी कुच्छ बोल ही नही रही थी...

"तुम दोनो ही आ जाना.. क्या दिक्कत है?" वह मुस्कुराते हुए बोला...

"ठीक है.. हम दोनो आ जाएँगे...!" मैने उसको जवाब देकर पिंकी का हाथ पकड़ कर खींचा," क्या हो गया पिंकी?"

"कुच्छ नही.." उसने सिर्फ़ इतना ही कहा.. शायद उसके मंन में भी वही उधेड़बुन चल रही थी.. जो मेरे मंन में थी....

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स्कूल में जाते ही मुझे प्रिन्सिपल मेडम ने एक तरफ बुला कर पूचछा..," तुम्हारे गाँव में किसी लड़के का मर्डर हो गया ना?"

"जी.. तरुण का! " मैने सिर झुकाए हुए ही जवाब दिया...

"ये.. वही लड़का था ना.. जो.. परसों यहाँ आ गया था..?" मेडम बोलते हुई बीच में एक बार झिझकी....

"जी!" मैने यूँही उदासी भरी 'हामी' भरी....

"ओह माइ गॉड! मुझे भी वही लग रहा था.. आज न्यूसपपेयर में उसकी फोटो आई हुई थी.. ये सब कैसे हुआ?" मेडम ने पूचछा.....

"पता नही मेडम!" मैने नीरास्ता से जवाब दिया...

"हूंम्म... किसी को बताना मत... उस दिन वो लड़के फिर वापस आए थे.. 'सर' के साथ कुच्छ बात करके गये थे अकेले में... शायद इनके बीच 'कॉंप्रमाइज़' हुआ था कुच्छ... दूसरे लड़के से पूच्छना!"

"जी.. उस'से मैं बात नही करती मेडम.. सिर्फ़ शक्ल से ही जानती हूँ..." मैने कहा..

"चलो कोई बात नही... मुझे तो बड़ी दया आ रही है.. बेचारे की.. 'इन्न' सर की भी बहुत पोलिटिकल अप्रोच है.. कितने तो शराब के ठेके चलाते हैं इनके..... कहीं....." वह कुच्छ देर चुप रही,"... पर तुम इस बात का जिकर मत करना कहीं भी.. तुम्हारी बात भी सामने आ जाएगी नही तो! .... समझ गयी ना....?" मेडम ने फुसफुसते हुए मेरे कानो में बात डाल दी....

"जी.. मेडम.." मैने कहा और पिंकी के पास आ गयी...

"क्या कह रही थी मेडम?" पिंकी ने उसके पास जाते ही मुझसे पूचछा....

"छ्चोड़.. बाद में बताउन्गि.. पहले पेपर दे ले...!" मुझे उसको इस वक़्त बेवजह की टेन्षन देना अच्च्छा नही लगा...

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खैर.. हमारा पेपर अच्च्छा हो गया.. अगले दिन छुट्टी थी.. वापस आते हुए भी हम संदीप के साथ ही आए थे... वह पिंकी के घर के करीब तक हमारे साथ आया...

घर जाते ही हमने देखा.. मीनू नीचे अकेली ही बैठी थी...

"क्या हुआ? गयी नही क्या आज भी?" पिंकी ने पूचछा...

"नही...!" मीनू ने मरा हुआ सा जवाब दिया....

"फिर.. वो इनस्पेक्टर यहीं आ गया तो?" मैने भारी मन से कहा.....

क्रमशः.....................................
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास - by sexstories - 10-22-2018, 11:25 AM

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