Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:21 AM,
#1
Lightbulb  Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास 



हाई, मैं अंजलि...! खैर छ्चोड़ो! नाम में क्या रखा है? छिछोरे लड़कों को वैसे भी नाम से ज़्यादा 'काम' से मतलब रहता है. इसीलिए सिर्फ़ 'काम' की ही बातें करूँगी.

मैं आज 18 की हो गयी हूँ. कुच्छ बरस पहले तक में बिल्कुल 'फ्लॅट' थी.. आगे से भी.. और पिछे से भी. पर स्कूल बस में आते जाते; लड़कों के कंधों की रगड़ खा खा कर मुझे पता ही नही चला की कब मेरे कुल्हों और छातियो पर चर्बी चढ़ गयी.. बाली उमर में ही मेरे नितंब बीच से एक फाँक निकाले हुए गोल तरबूज की तरह उभर गये. मेरी छाती पर भगवान के दिए दो अनमोल 'फल' भी अब 'अमरूदों' से बढ़कर मोटी मोटी 'सेबों' जैसे हो गये थे. मैं कयि बार बाथरूम में नंगी होकर अचरज से उन्हे देखा करती थी.. छ्छू कर.. दबा कर.. मसल कर. मुझे ऐसा करते हुए अजीब सा आनंद आता .. 'वहाँ भी.. और नीचे भी.

मेरे गोरे चिट बदन पर उस छ्होटी सी खास जगह को छ्चोड़कर कहीं बालों का नामो-निशान तक नही था.. हुलके हुलके मेरी बगल में भी थे. उसके अलावा गर्दन से लेकर पैरों तक मैं एकद्ूम चिकनी थी. क्लास के लड़कों को ललचाई नज़रों से अपनी छाती पर झूल रहे 'सेबों' को घूरते देख मेरी जांघों के बीच छिपि बैठी हुल्के हुल्के बालों वाली, मगर चिकनाहट से भरी तितली के पंख फड़फड़ने लगते और चूचियो पर गुलाबी रंगत के 'अनार दाने' तन कर खड़े हो जाते. पर मुझे कोई फरक नही पड़ा. हां, कभी कभार शर्म आ जाती थी. ये भी नही आती अगर मम्मी ने नही बोला होता,"अब तू बड़ी हो गयी है अंजू.. ब्रा डालनी शुरू कर दे और चुन्नी भी लिया कर!"

सच कहूँ तो मुझे अपने उन्मुक्त उरजों को किसी मर्यादा में बाँध कर रखना कभी नही सुहाया और ना ही उनको चुन्नी से पर्दे में रखना. मौका मिलते ही मैं ब्रा को जानबूझ कर बाथरूम की खूँटि पर ही टाँग जाती और क्लास में मनचले लड़कों को अपने इर्द गिर्द मंडराते देख मज़े लेती.. मैं अक्सर जान बूझ अपने हाथ उपर उठा अंगड़ाई सी लेती और मेरी चूचिया तन कर झूलने सी लगती. उस वक़्त मेरे सामने खड़े लड़कों की हालत खराब हो जाती... कुच्छ तो अपने होंटो पर ऐसे जीभ फेरने लगते मानो मौका मिलते ही मुझे नोच डालेंगे. क्लास की सब लड़कियाँ मुझसे जलने लगी.. हालाँकि 'वो' सब उनके पास भी था.. पर मेरे जैसा नही..

मैं पढ़ाई में बिल्कुल भी अच्छि नही थी पर सभी मेल-टीचर्स का 'पूरा प्यार' मुझे मिलता था. ये उनका प्यार ही तो था कि होम-वर्क ना करके ले जाने पर भी वो मुस्कुरकर बिना कुच्छ कहे चुपचाप कॉपी बंद करके मुझे पकड़ा देते.. बाकी सब की पिटाई होती. पर हां, वो मेरे पढ़ाई में ध्यान ना देने का हर्जाना वसूल करना कभी नही भूलते थे. जिस किसी का भी खाली पीरियड निकल आता; किसी ना किसी बहाने से मुझे स्टॅफरुम में बुला ही लेते. मेरे हाथों को अपने हाथ में लेकर मसल्ते हुए मुझे समझाते रहते. कमर से चिपका हुआ उनका दूसरा हाथ धीरे धीरे फिसलता हुआ मेरे नितंबों पर आ टिकता. मुझे पढ़ाई पर 'और ज़्यादा' ध्यान देने को कहते हुए वो मेरे नितंबों पर हल्की हल्की चपत लगते हुए मेरे नितंबों की थिरकन का मज़ा लूट'ते रहते.. मुझे पढ़ाई के फ़ायडे गिनवाते हुए अक्सर वो 'भावुक' हो जाते थे, और चपत लगाना भूल नितंबों पर ही हाथ जमा लेते. कभी कभी तो उनकी उंगलियाँ स्कर्ट के उपर से ही मेरी 'दरार' की गहराई मापने की कोशिश करने लगती...

उनका ध्यान हर वक़्त उनकी थपकीयों के कारण लगातार थिरकति रहती मेरी चूचियो पर ही होता था.. पर किसी ने कभी 'उन्न' पर झपट्टा नही मारा. शायद 'वो' ये सोचते होंगे कि कहीं में बिदक ना जाऊं.. पर मैं उनको कभी चाहकर भी नही बता पाई की मुझे ऐसा करवाते हुए मीठी-मीठी खुजली होती है और बहुत आनंद आता है...

हां! एक बात मैं कभी नही भूल पाउन्गि.. मेरे हिस्टरी वाले सर का हाथ ऐसे ही समझाते हुए एक दिन कमर से नही, मेरे घुटनो से चलना शुरू हुआ.. और धीरे धीरे मेरी स्कर्ट के अंदर घुस गया. अपनी केले के तने जैसी लंबी गोरी और चिकनी जांघों पर उनके 'काँपते' हुए हाथ को महसूस करके मैं मचल उठी थी... खुशी के मारे मैने आँखें बंद करके अपनी जांघें खोल दी और उनके हाथ को मेरी जांघों के बीच में उपर चढ़ता हुआ महसूस करने लगी.. अचानक मेरी फूल जैसी नाज़ुक योनि से पानी सा टपकने लगा..

अचानक उन्होने मेरी जांघों में बुरी तरह फँसी हुई 'निक्कर' के अंदर उंगली घुसा दी.. पर हड़बड़ी और जल्दबाज़ी में ग़लती से उनकी उंगली सीधी मेरी चिकनी होकर टपक रही योनि की मोटी मोटी फांकों के बीच घुस गयी.. मैं दर्द से तिलमिला उठी.. अचानक हुए इस प्रहार को मैं सहन नही कर पाई. छटपटाते हुए मैने अपने आपको उनसे छुड़ाया और दीवार की तरफ मुँह फेर कर खड़ी हो गयी... मेरी आँखें दबदबा गयी थी..

मैं इस सारी प्रक्रिया के 'प्यार से' फिर शुरू होने का इंतजार कर ही रही थी कि 'वो' मास्टर मेरे आगे हाथ जोड़कर खड़ा हो गया,"प्लीज़ अंजलि.. मुझसे ग़लती हो गयी.. मैं बहक गया था... किसी से कुच्छ मत कहना.. मेरी नौकरी का सवाल है...!" इस'से पहले मैं कुच्छ बोलने की हिम्मत जुटाती; बिना मतलब की बकबक करता हुआ वो स्टॅफरुम से भाग गया.. मुझे तड़पति छ्चोड़कर..

निगोडी 'उंगली' ने मेरे यौवन को इस कदर भड़काया की मैं अपने जलवों से लड़कों के दिलों में आग लगाना भूल अपनी नन्ही सी फुदकट्ी योनि की प्यास बुझाने की जुगत में रहने लगी. इसके लिए मैने अपने अंग-प्रदर्शन अभियान को और तेज कर दिया. अंजान सी बनकर, खुजली करने के बहाने मैं बेंच पर बैठी हुई स्कर्ट में हाथ डाल उसको जांघों तक उपर खिसका लेती और क्लास में लड़कों की सीटियाँ बजने लगती. अब पूरे दिन लड़कों की बातों का केन्द्र मैं ही रहने लगी. आज अहसास होता है कि योनि में एक बार और मर्दानी उंगली करवाने के चक्कर में मैं कितनी बदनाम हो गयी थी.

खैर; मेरा 'काम' जल्द ही बन जाता अगर 'वो' (जो कोई भी था) मेरे बॅग में निहायत ही अश्लील लेटर डालने से पहले मुझे बता देता. काश लेटर मेरे क्षोटू भैया से पहले मुझे मिल जाता! 'गधे' ने लेटर सीधा मेरे शराबी पापा को पकड़ा दिया और रात को नशे में धुत्त होकर पापा मुझे अपने सामने खड़ी करके लेटर पढ़ने लगे:

" हाई जाने-मन!

क्या खाती हो यार? इतनी मस्त होती जा रही हो कि सारे लड़कों को अपना दीवाना बना के रख दिया. तुम्हारी 'पपीते' जैसे चून्चियो ने हमें पहले ही पागल बना रखा था, अब अपनी गौरी चिकनी जांघें दिखा दिखा कर क्या हमारी जान लेने का इरादा है? ऐसे ही चलता रहा तो तुम अपने साथ 'इस' साल एग्ज़ॅम में सब लड़कों को भी ले डुबगी..

पर मुझे तुमसे कोई गिला नही है. तुम्हारी मस्तानी चून्चिया देखकर मैं धन्य हो जाता था; अब नंगी चिकनी जांघें देखकर तो जैसे अमर ही हो गया हूँ. फिर पास या फेल होने की परवाह किसे है अगर रोज तुम्हारे अंगों के दर्शन होते रहें. एक रिक्वेस्ट है, प्लीज़ मान लेना! स्कर्ट को थोड़ा सा और उपर कर दिया करो ताकि मैं तुम्हारी गीली 'कcचि' का रंग देख सकूँ. स्कूल के बाथरूम में जाकर तुम्हारी कल्पना करते हुए अपने लंड को हिलाता हूँ तो बार बार यही सवाल मंन में उभरता रहता है कि 'कच्च्ची' का रंग क्या होगा.. इस वजह से मेरे लंड का रस निकलने में देरी हो जाती है और क्लास में टीचर्स की सुन'नि पड़ती है... प्लीज़, ये बात आगे से याद रखना!

तुम्हारी कसम जाने-मन, अब तो मेरे सपनो में भी प्रियंका चोपड़ा की जगह नंगी होकर तुम ही आने लगी हो. 'वो' तो अब मुझे तुम्हारे सामने कुच्छ भी नही लगती. सोने से पहले 2 बार ख़यालों में तुम्हे पूरी नंगी करके चोद'ते हुए अपने लंड का रस निकलता हूँ, फिर भी सुबह मेरा 'कच्च्छा' गीला मिलता है. फिर सुबह बिस्तेर से उठने से पहले तुम्हे एक बार ज़रूर याद करता हूँ.

मैने सुना है कि लड़कियों में चुदाई की भूख लड़कों से भी ज़्यादा होती है. तुम्हारे अंदर भी होगी ना? वैसे तो तुम्हारी चुदाई करने के लिए सभी अपने लंड को तेल लगाए फिरते हैं; पर तुम्हारी कसम जानेमन, मैं तुम्हे सबसे ज़्यादा प्यार करता हूँ, असली वाला. किसी और के बहकावे में मत आना, ज़्यादातर लड़के चोद्ते हुए पागल हो जाते हैं. वो तुम्हारी कुँवारी चूत को एकद्ूम फाड़ डालेंगे. पर मैं सब कुच्छ 'प्यार से करूँगा.. तुम्हारी कसम. पहले उंगली से तुम्हारी चूत को थोड़ी सी खोलूँगा और चाट चाट कर अंदर बाहर से पूरी तरह गीली कर दूँगा.. फिर धीरे धीरे लंड अंदर करने की कोशिश करूँगा, तुमने खुशी खुशी ले लिया तो ठीक, वरना छ्चोड़ दूँगा.. तुम्हारी कसम जानेमन.

अगर तुमने अपनी छुदाई करवाने का मूड बना लिया हो तो कल अपना लाल रुमाल लेकर आना और उसको रिसेस में अपने बेंच पर छ्चोड़ देना. फिर मैं बताउन्गा कि कब कहाँ और कैसे मिलना है!

प्लीज़ जान, एक बार सेवा का मौका ज़रूर देना. तुम हमेशा याद रखोगी और रोज रोज चुदाई करवाने की सोचोगी, मेरा दावा है.

तुम्हारा आशिक़!

लेटर में शुद्ध 'कामरस' की बातें पढ़ते पढ़ते पापा का नशा कब काफूर हो गया, शायद उन्हे भी अहसास नही हुआ. सिर्फ़ इसीलिए शायद मैं उस रात कुँवारी रह गयी. वरना वो मेरे साथ भी वैसा ही करते जैसा उन्होने बड़ी दीदी 'निम्मो' के साथ कुच्छ साल पहले किया था.

मैं तो खैर उस वक़्त छ्होटी सी थी. दीदी ने ही बताया था. सुनी सुनाई बता रही हूँ. विस्वास हो तो ठीक वरना मेरा क्या चाट लोगे?

पापा निम्मो को बालों से पकड़कर घसीट'ते हुए उपर लाए थे. शराब पीने के बाद पापा से उलझने की हिम्मत घर में कोई नही करता. मम्मी खड़ी खड़ी तमाशा देखती रही. बॉल पकड़ कर 5-7 करारे झापड़ निम्मों को मारे और उसकी गर्दन को दबोच लिया. फिर जाने उनके मंन में क्या ख़याल आया; बोले," सज़ा भी वैसी ही होनी चाहिए जैसी ग़लती हो!" दीदी के कमीज़ को दोनो हाथों से गले से पकड़ा और एक ही झटके में तार तार कर डाला; कमीज़ को भी और दीदी की 'इज़्ज़त' को भी. दीदी के मेरी तरह मस्ताये हुए गोल गोल कबूतर जो थोड़े बहुत उसके समीज़ ने छुपा रखे थे; अगले झटके के बाद वो भी छुपे नही रहे. दीदी बताती हैं कि पापा के सामने 'उनको' फड़कते देख उन्हे खूब शरम आई थी. उन्होने अपने हाथों से 'उन्हे' छिपाने की कोशिश की तो पापा ने 'टीचर्स' की तरह उसको हाथ उपर करने का आदेश दे दिया.. 'टीचर्स' की बात पर एक और बात याद आ गयी, पर वो बाद में सुनाउन्गि....

हाँ तो मैं बता रही थी.. हां.. तो दीदी के दोनो संतरे हाथ उपर करते ही और भी तन कर खड़े हो गये. जैसे उनको शर्म नही गर्व हो रहा हो. दानो की नोक भी पापा की और ही घूर रही थी. अब भला मेरे पापा ये सब कैसे सहन करते? पापा के सामने तो आज तक कोई भी नही अकड़ा था. फिर वो कैसे अकड़ गये? पापा ने दोनो चूचियों के दानों को कसकर पकड़ा और मसल दिया. दीदी बताती हैं कि उस वक़्त उनकी योनि ने भी रस छ्चोड़ दिया था. पर कम्बख़्त 'कबूतरों' पर इसका कोई असर नही हुआ. वो तो और ज़्यादा अकड़ गये.

फिर तो दीदी की खैर ही नही थी. गुस्से के मारे उन्होने दीदी की सलवार का नाडा पकड़ा और खींच लिया. दीदी ने हाथ नीचे करके सलवार संभालने की कोशिश की तो एक साथ कयि झापड़ पड़े. बेचारी दीदी क्या करती? उनके हाथ उपर हो गये और सलवार नीचे. गुस्से गुस्से में ही उन्होने उनकी 'कछि' भी नीचे खींच दी और गुर्राते हुए बोले," कुतिया! मुर्गी बन जा उधर मुँह करके".. और दीदी बन गयी मुर्गी.

हाए! दीदी को कितनी शर्म आई होगी, सोच कर देखो! पापा दीदी के पिछे चारपाई पर बैठ गये थे. दीदी जांघों और घुटनो तक निकली हुई सलवार के बीच में से सब कुच्छ देख रही थी. पापा उसके गोल मटोल चूतदों के बीच उनके दोनो छेदो को घूर रहे थे. दीदी की योनि की फाँकें डर के मारे कभी खुल रही थी, कभी बंद हो रही थी. पापा ने गुस्से में उसके नितंबों को अपने हाथों में पकड़ा और उन्हे बीच से चीरने की कोशिश करने लगे. शुक्रा है दीदी के चूतड़ सुडौल थे, पापा सफल नही हो पाए!

"किसी से मरवा भी ली है क्या कुतिया?" पापा ने थक हार कर उन्हे छ्चोड़ते हुए कहा था.

दीदी ने बताया कि मना करने के बावजूद उनको विस्वास नही हुआ. मम्मी से मोमबत्ती लाने को बोला. डरी सहमी दरवाजे पर खड़ी सब कुच्छ देख रही मम्मी चुप चाप रसोई में गयी और उनको मोमबत्ती लाकर दे दी.

जैसा 'उस' लड़के ने खत में लिखा था, पापा बड़े निर्दयी निकले. दीदी ने बताया की उनकी योनि का छेद मोटी मोमबत्ती की पतली नोक से ढूँढ कर एक ही झटके में अंदर घुसा दी. दीदी का सिर सीधा ज़मीन से जा टकराया था और पापा के हाथ से छ्छूटने पर भी मोमबत्ती योनि में ही फँसी रह गयी थी. पापा ने मोमबत्ती निकाली तो वो खून से लथपथ थी. तब जाकर पापा को यकीन हुआ कि उनकी बेटी कुँवारी ही है (थी). ऐसा है पापा का गुस्सा!

दीदी ने बताया कि उस दिन और उस 'मोमबत्ती' को वो कभी नही भूल पाई. मोमबत्ती को तो उसने 'निशानी' के तौर पर अपने पास ही रख लिया.. वो बताती हैं कि उसके बाद शादी तक 'वो' मोमबत्ती ही भरी जवानी में उनका सहारा बनी. जैसे अंधे को लकड़ी का सहारा होता है, वैसे ही दीदी को भी मोमबत्ती का सहारा था शायद

खैर, भगवान का शुक्र है मुझे उन्होने ये कहकर ही बखस दिया," कुतिया! मुझे विस्वास था कि तू भी मेरी औलाद नही है. तेरी मम्मी की तरह तू भी रंडी है रंडी! आज के बाद तू स्कूल नही जाएगी" कहकर वो उपर चले गये.. थॅंक गॉड! मैं बच गयी. दीदी की तरह मेरा कुँवारापन देखने के चक्कर में उन्होने मेरी सील नही तोड़ी.

लगे हाथों 'दीदी' की वो छ्होटी सी ग़लती भी सुन लो जिसकी वजह से पापा ने उन्हे इतनी 'सख़्त' सज़ा दी...

दरअसल गली के 'कल्लू' से बड़े दीनो से दीदी की गुटरगू चल रही थी.. बस आँखों और इशारों में ही. धीरे धीरे दोनो एक दूसरे को प्रेमपात्र लिख लिख कर उनका 'जहाज़' बना बना कर एक दूसरे की छतो पर फैंकने लगे. दीदी बताती हैं कि कयि बार 'कल्लू' ने चूत और लंड से भरे प्रेमपात्र हमारी छत पर उड़ाए और अपने पास बुलाने की प्रार्थना की. पर दीदी बेबस थी. कारण ये था की शाम 8:00 बजते ही हमारे 'सरियों' वाले दरवाजे पर ताला लग जाता था और चाबी पापा के पास ही रहती थी. फिर ना कोई अंदर आ पता था और ना कोई बाहर जा पता था. आप खुद ही सोचिए, दीदी बुलाती भी तो बुलाती कैसे?

पर एक दिन कल्लू तैश में आकर सन्नी देओल बन गया. 'जहाज़' में लिख भेजा कि आज रात अगर 12:00 बजे दरवाजा नही खुला तो वो सरिया उखाड़ देगा. दीदी बताती हैं कि एक दिन पहले ही उन्होने छत से उसको अपनी चूत, चूचियाँ और चूतड़ दिखाए थे, इसीलिए वह पागला गया था, पागल!

दीदी को 'प्यार' के जोश और जज़्बे की परख थी. उनको विस्वास था कि 'कल्लू' ने कह दिया तो कह दिया. वो ज़रूर आएगा.. और आया भी. दीदी 12 बजने से पहले ही कल्लू को मनाकर दरवाजे के 'सरिय' बचाने नीचे पहुँच चुकी थी.. मम्मी और पापा की चारपाई के पास डाली अपनी चारपाई से उठकर!

दीदी के लाख समझने के बाद वो एक ही शर्त पर माना "चूस चूस कर निकलवाना पड़ेगा!"

दीदी खुश होकर मान गयी और झट से घुटने टके कर नीचे बैठ गयी. दीदी बताती हैं कि कल्लू ने अपना 'लंड' खड़ा किया और सरियों के बीच से दीदी को पकड़ा दिया.. दीदी बताती हैं कि उसको 'वो' गरम गरम और चूसने में बड़ा खट्टा मीठा लग रहा था. चूसने चूसने के चक्कर में दोनो की आँख बंद हो गयी और तभी खुली जब पापा ने पिछे से आकर दीदी को पिछे खींच लंड मुस्किल से बाहर निकलवाया.

पापा को देखते ही घर के सरिया तक उखाड़ देने का दावा करने वाला 'कल्लू देओल' तो पता ही नही चला कहाँ गायब हुआ. बेचारी दीदी को इतनी बड़ी सज़ा अकेले सहन करनी पड़ी. साला कल्लू भी पकड़ा जाता और उसके च्छेद में भी मोमबत्ती घुसती तो उसको पता तो चलता मोमबत्ती अंदर डलवाने में कितना दर्द होता है.

खैर, हर रोज़ की तरह स्कूल के लिए तैयार होने का टाइम होते ही मेरी कसी हुई चूचिया फड़कने लगी; 'शिकार' की तलाश का टाइम होते ही उनमें अजीब सी गुदगुदी होने लग जाती थी. मैने यही सोचा था कि रोज़ की तरह रात की वो बात तो नशे के साथ ही पापा के सिर से उतर गयी होगी. पर हाए री मेरी किस्मत; इस बार ऐसा नही हुआ," किसलिए इतनी फुदक रही है? चल मेरे साथ खेत में!"

"पर पापा! मेरे एग्ज़ॅम सिर पर हैं!" बेशर्म सी बनते हुए मैने रात वाली बात भूल कर उनसे बहस की.

पापा ने मुझे उपर से नीचे तक घूरते हुए कहा," ये ले उठा टोकरी! हो गया तेरा स्कूल बस! तेरी हाज़िरी लग जाएगी स्कूल में! रॅंफल के लड़के से बात कर ली है. आज से कॉलेज से आने के बाद तुझे यहीं पढ़ा जाया करेगा! तैयारी हो जाए तो पेपर दे देना. अगले साल तुझे गर्ल'स स्कूल में डालूँगा. वहाँ दिखाना तू कछी का रंग!" आख़िरी बात कहते हुए पापा ने मेरी और देखते हुए ज़मीन पर थूक दिया. मेरी कछी की बात करने से शायद उनके मुँह में पानी आ गया होगा.

काम करने की मेरी आदत तो थी नही. पुराना सा लहनगा पहने खेत से लौटी तो बदन की पोरी पोरी दुख रही थी. दिल हो रहा था जैसे कोई मुझे अपने पास लिटाकर आटे की तरह गूँथ डाले. मेरी उपर जाने तक की हिम्मत नही हुई और नीचे के कमरे में चारपाई को सीधा करके उस पर पसरी और सो गयी.

---------------------------------------------------------------------------
Reply


Messages In This Thread
Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास - by sexstories - 10-22-2018, 11:21 AM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,579,261 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 553,264 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,266,585 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 957,552 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,698,185 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,118,203 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 3,016,213 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,277,207 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,108,500 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 292,441 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 3 Guest(s)