RE: Gandi Kahaniya एक आहट जिंदगी की
मेरा नाम नजीबा है…..मेरी शादी 19 साल की उम्र मे हुई थी…..पर शादी के कुछ ही महीनो बाद मेरे पति की मौत की आक्सिडेंट मे हो गयी….मैं विधवा बन अपने माँ बाप पर बोझ बनकर उनके घर बैठ गयी…..माँ बाप ने बहुत कॉसिश की, पर कही अच्छा रिश्ता ना मिला…फिर एक दिन मेरे मामा ने मेरी शादी अंजुम नाम के आदमी से तय कर दी. तब अंजुम की उम्र 35 साल थी और मेरी 20 साल. अंजुम की पहली पत्नी का इंतकाल शादी के 13 साल बाद हुआ था…..और उसकी एक *** साल की बेटी भी थी….अंजुम रेलवे मे सरकारी जॉब करते थे. इसलिए घर वालो ने सोचा कि सरकारी नौकरी है….और किसी चीज़ की कमी भी नही….इसीलिए मेरी शादी अंजुम के साथ हो गयी….
शादी कहिए या समझौता….पर सच तो यही था कि, शादी के बाद मुझे किसी तरह की ख़ुसी नसीब ना हुई……ना ही मैं कोई अपना बच्चा पैदा कर सकी, और ना ही ना मुझे पति का प्यार मिला….बस यही था कि, बिना किसी परेशानी के 3 वक़्त की रोटी और कपड़े मिल जाते थे ….शादी के 3-4 साल बाद मुझे अपने पति पर उनके बड़े भाई की पत्नी के साथ कुछ चक्कर है शक होने लगा….और मेरा ये शक भी ठीक ही निकला….एक दिन जब उनके भाई की बीवी हमारे यहाँ आई हुई थी. तब मेने उन्हे ऊपेर वाले रूम रंगरेलियाँ मनाते हुए देख लिया….
जब मेने इसके बारे में अंजुम से बात की, तो वो उल्टा मुझ पर ही बरस उठे. पता नही उस ने उनपर क्या जादू किया था….अंजुम ने मुझे सॉफ-2 बोल दिया कि, अगर ये बात किसी को पता चली तो वो मुझे तलाक़ दे देंगे….और मेरी बुरी हालत कर देंगे…मैं ये सब चुप चाप बर्दस्त कर गयी….जितने दिन फ़ातिमा दीदी हमारे यहा रुकती, अंजुम और फ़ातिमा दोनो शराब के नशे मे धुत होकर वासना का नंगा खेल घर मे खेलते…उन दोनो को मेरी जैसे कोई परवाह ही नही थी….कभी-2 तो मेरी बगल मे ही बेड पर फ़ातिमा को चोदते.
जिसे देख मैं भी गरम हो जाती. पर अपनी ख्वाहिशो को अपने सीने मे दबाए रखती. पर फ़ातिमा ने अंजुम की जिंदगी इस क़दर तबाह कर दी थी कि, वो जो कभी कभार मुझसे सेक्स करते थे….वो भी करना छोड़ दिया…..धीरे-2 उनकी मर्दाना ताक़त शराब मे डूबती चली गयी. कोई दिन ऐसा नही होता जब वो नशे मे धुत गिरते पड़ते घर ना आए हो….
फिर मेने नाजिया अंजुम की पहली पत्नी से जो बेटी थी मेने उसकी परवरिश मे ध्यान लगाया…नाजिया भी 18 साल की हो चुकी थी….कभी -2 अकेले मे बैठ कर सोचती थी कि, यही मेरी इस दुनिया मे आने की वजह है…मेरा दुनिया मे होना ना होना एक बराबर है….. पर कर भी क्या सकती थी….जैसे तैसे जिंदगी कट रही थी…..फिर एक दिन वो हुआ जिसने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी….मेने कभी सोचा भी ना था….कि ये बेरंग दिखने वाली दुनिया इतनी हसीन भी हो सकती है…..पर मुझे इसका अहसास तब हुआ, जब हम सब की जिंदगी मे राज आया.
राज की एज 20 साल की है….20 की उम्र मे ही ग्रॅजुयेशन कर लिया था…उसके घर पर सिर्फ़ राज और उसकी माँ ही रहते थे….बचपन मे ही पिता की मौत के बाद माँ ने राजको पाला पोसा पढ़ाया लिखाया…उसके पापा के गुजरने के बाद माँ को उनकी जगह रेलवे मे नौकरी मिल गयी थी…सिर्फ़ दो जान थे…..इसीलिए पैसो की कभी तंगी महसूस नही हुई…राज की पढ़ी लिखाई भी एक साधारण से स्कूल और फिर गवर्नमेंट कॉलेज से हुई थी..इसीलिए राज की माँ को उसकी पढ़ी लिखाई का ज़्यादा खरच नही उठाना पड़ा….
ग्रॅजुयेशन करने के बाद ही, राज ने रेलवे मे जॉब के लिए फॉर्म भर दिए थे. उसके बाद टेस्ट्स हुए और राज पास हो गया….और जल्द ही राज को नौकरी भी मिल गयी…राज बेहद खुश था….पर एक दुख भी था….क्योंकि राज की पोस्टिंग बिहार मे हुई थी…क्योंकि राज पंजाब का रहने वाला था…इसीलिए वहाँ नही जाना चाहता था…पता नही कैसे लोग होंगे वहाँ के….कैसी उनकी भाषा होगी. बस यही सब ख़याल राज के दिमाग़ मे थे….
राज की माँ भी उदास थी….पर राज के लिए सकून की बात ये थी कि 10 दिन बाद ही राज की माँ की रिटाइयर्मेंट होने वाली थी….इस लिए वो अब सकून के साथ बिना किसी टेन्षन के राज के मामा यानी अपने भाई के घर रह सकती थी….जिस दिन माँ को जॉब से रिटाइयर्मेंट मिला….उससे अगले ही दिन राज बिहार मे सिवान के लिए रवाना हो गया. वहाँ एक छोटे से कस्बे के स्टेशन पर उसे टिकेट काउंटर अपायंट किया गया था… जब राज वहाँ पहुँचा..और स्टेशन मास्टर को रिपोर्टिंग की, तो उन्होने स्टेशन के बाहर ही बने हुए स्टाफ हाउस मे से एक फ्लॅट राज को दे दिया….
जब राज फ्लॅट के अंदर गया तो, अंदर का हाल देख कर परेशान हो गया… फर्श जगह -2 से टूटा हुआ था….दीवारो पर सीलन के निशान थे…बिजली की फिटिंग जगह-2 से उखड़ी हुई थी….जब राज ने स्टेशन मास्टर से इसकी शिकायत की , तो उसने राज से कहा कि, उसके पास और कोई फ्लॅट खाली नही है….अड्जस्ट कर लो यार… स्टेशन मास्टर की एज उस वक़्त 45 साल थी….और उसका नाम रफ़ीक था….
रफ़ीक: यार राज कुछ दिन गुज़ारा कर लो…फिर मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ…
राज: ठीक है सर..
उसके बाद रफ़ीक ने राज को ट्रेन्स का शेड्यूल बताया….जिस स्टेशन पर राज ड्यूटी थी…वहाँ पर सिर्फ़ दिन को ही 5 ट्रेन्स का स्टॉप था..शाम 5 बजे के बाद वहाँ कोई ट्रेन नही रुकती थी…..इसीलिए राज की ड्यूटी 9 बजे से शाम 5 बजे तक ही थी…. धीरे-2 राज की जान पहचान स्टेशन पर बाकी के एंप्लाय से भी होने लगी… जब कभी राज फ्री होता तो, टिकेट कॅबिन से बाहर निकल कर प्लेट फॉर्म पर घूमने लगता….सब कुछ बहुत अच्छा था….
सिर्फ़ राज के फ्लॅट को लेकर……रफ़ीक भी अभी तक कुछ नही कर पाया था…..राज उस से बार-2 शिकायत नही करना चाहता था….एक दिन राज दोपहर को जब फ्री था, वो अपने कॅबिन से निकल कर बाहर आया तो देखा रफ़ीक भी प्लॅटफॉर्म पर चेअर पर बैठे हुए थे….राज को देख कर उन्होने उसे अपने पास बुला लिया…
रफ़ीक: सॉरी राज यार…..तुम्हारे फ्लॅट का कुछ कर नही पा रहा हूँ…
राज: कोई बात नही सर….अब सब कुछ तो आपके हाथ मे नही है….ये मुझे भी पता है…..
रफ़ीक: और बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ….अगर किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो बेझिजक बोल देना…
राज : सर जब तक मेरे फ्लॅट का इंतज़ाम नही हो जाता….आप मुझे कही रेंट पर ही रूम दिलवा दो…
रफ़ीक: (थोड़ी देर सोचने के बाद) अच्छा देखता हूँ….(तभी रफ़ीक की नज़र, रेल की पटरियों पर काम कर रहे मेरे पति अंजुम पर पड़ी….अंजुम स्टेशन पर गॅंग मॅन का काम करते थे….वो यहाँ रुकने वाली ट्रेन्स के डिब्बो मे पानी भरने और पटरियों की निगरानी का काम करते थे…..उसे देख रफ़ीक ने अंजुम को आवाज़ लगाई…)
रफ़ीक: अर्रे ओई अंजुम ज़रा इधर आ….
अंजुम:आया बड़े बाबू….
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