Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
10-15-2018, 10:56 PM,
#16
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
8

गतान्क से आगे…………………………………….

हम सब कितने खूश थे..'

सिंधु ने आख़िर बोल ही दिया..." ये सब भाई के लंड और दीदी की चूत का कमाल है...चाहे जो भी हो दीदी ..तेरी चूत है कमाल की..ऐसी खुली ..साली अपनी तो किस्मत ही खुल गयी ...भाई अब से तुम रोज इसकी चूत खुली की खुली ही रखना ..."

बिंदु उसे मारने को दौड़ी ..पर मैने उसे पकड़ लिया . और उसे चूम लिया ...और कहा " सिंधु ठीक ही तो कह रही है बिंदु..तू सही में कमाल की है.."

" उफफफफ्फ़..भाई तू भी ना.." और शरमाते हुए अपना चेहरा मेरे सीने पर रख दिया..बिंदु ने अपनी अदा दिखा ही दी ...

और फिर मा और सिंधु भी हम से चिपक गये .. हम सब नये घर की खुशियाँ एक दूसरे से बाँटने में जुटे थे....

दूसरे दिन मा ने मिसेज़. केपर से बात कर ली और हम सब अपने थोड़े से सामान के साथ अपने नये घर शिफ्ट हो गये ...नये घर के साथ हमारी एक नये जिंदगी की शुरुआत हुई....

सब बड़े खुश थे..सिंधु तो झूम रही थी खुशी के मारे ..उसे इस बात की खुशी थी के अब अपने प्यारे भाई के साथ इतमीनान से चुदाइ कर सकती है..बिंदु भी काफ़ी खुश थी पर उसकी खुशी में बाथरूम ने चार चाँद लगा दिए थे....उसे नाले की ओर जाने में बड़ी मुश्किल होती थी ...

और मैं..? मुझे तो बस मा का इंतेज़ार था ..कब मैं इस घर की चारदीवारी में , एक शकून भरे माहौल में उस के साथ खो जाऊं ..उसकी बाहों में , उसके सीने में समा जाऊं ....उसे इतना प्यार करूँ के हम दोनो सब कुछ भूल एक दूसरे में समा जायें ....मैं सिहर उठा इस सोच में ..मैं मा से लिपटने , उसमें समा जाने को तड़प रहा था ...

हमारे नये घर का माहौल ही अलग था ..कहाँ वो भीड़ भाड़ वाली झोपड़ी..जहाँ बाहर भी भीड़ और शोर-गुल ..और अंदर भी चार चार लोगो की जमात .... यहाँ हर तरफ बिल्कुल शांत था , अंदर भी बहार भी ..

म्र्स केपर के बंगले के चारों-ओर काफ़ी खुली जगह थी ...पेड़ पौधों से भरी..एक माली इनकी देख भाल करता... हमारा क्वॉर्टर बंगले के पीछे था , बंगले से लगा ...सामने भी खुला था और अपने पीछे भी खुला ...बड़ा मस्त था यहाँ का माहौल ...

मा म्र्स. केपर से पूछ कर उनके यहाँ से कुछ पूराने और बेकार पड़े फर्निचर लेती आई..दो तीन स्टील की कुर्सियाँ ..एक पुराना सा स्टील का पलंग ..जैसा हॉस्पिटल्स में होता...और एक स्टील का टेबल भी ...

इन्ही सब की सेट्टिंग और सॉफ सफाई में एक दिन निकल गया ...

मा सुबेह ही हमारी चाइ बना , बंगले पर चली जाती और वहाँ के काम निबटा ..करीब 12 बजे आ जाती ...खाने की चिंता नहीं रहती..खाना म्र्स केपर के यहाँ से लेती आती ...उनका बचा खुचा भी हमारे लिए बहुत था ...फिर शाम को करीब 4 बजे फिर जाती और रात का खाना साथ लिए करीब 8-9 बजे आ जाती ...

बिंदु और सिंधु भी अपने काम से सुबेह जा कर 12-1 बजे तक आ जाती थीं ..मैने भी अपना काम इसी हिसाब से सेट कर लिया था ...दो पहर के बाद मैं भी फ्री रहता था ..

मा की चाहत अपने चरम पर थी ...मैं पागल होता जा रहा था ...शायद मा का भी कुछ वोई हाल था ..सिंधु जब भी मेरे लौडे को थाम्ती ..बड़ी भूखी निगाहों से मा मेरे लंड को देखती. ..

रात हम सब खाना खा कर मा के कमरे में लेटे थे..मा स्टील वाले पलंग पर लेटी थी और मैं नीचे बीचे बिस्तर पर अपनी दोनो प्यारी बहनो के बीच..

अभी तक नये घर में चुदाई नही हुई थी ..आज मेरा मन चुदाई का उद्घाटन करने का था ..

मैं मा की ओर चेहरा किए लेटा था हम दोनो एक दूसरे को बड़ी ललचाई नज़रों से देख रहे थे ...और सिंधु मेरी ओर करवट लिए मेरी जाँघ पर अपना पैर रखे मेरे लौडे को मेरे पॅंट के उपर उपर से ही सहलाए जा रही थी ..और बिंदु मेरे से सटी हुई लेटी लेटी ही सिंधु की हरकतों का मज़ा ले रही थी ...

मैं गरम होता जा रहा था ..और लगातार मा को ही देखे जा रहा था..मा ने मेरी हालात समझ ली ..उस ने अपने ब्लाउस और ब्रा उतार कर अपनी चूचियों नंगी कर दीं ..और मुझे दिखा दिखा मसल्ने लगी ....उनकी निगाहें मेरे पॅंट के उभार की ओर थी

मैने मा की ओर देखते हुए कहा

" मा क्या देख रही है...देख ना सिंधु मुझे पागल कर रही है.." मैने कहा

मा ने जवाब दिया " अरे जग्गू वो बेचारी देख ना कितना प्यार करती है तेरे से...तभी तो ऐसा कर रही है .."

मा का जवाब सुनते ही सिंधु का मेरे लौडे से खेलना और भी ज़ोर पकड़ लिया ...और उसकी तंग मेरे जांघों के और भी उपर आ गये , उसका घूटना मेरे बॉल्स को दबा रहा था मैं मचल उठा ..

'"ऊफ्फ सिंधु...क्या कर रही है रे .." मैने कराहते हुए कहा ..

" क्या करूँ भाई..तेरा लंड है ही इतना मस्त..हाथों मे लेती हूँ ना..मुझे ऐसा लगता है मानो ये मेरी चूत के अंदर है .." सिंधु ने कहा और उसकी पकड़ और भी टाइट हो गयी

"मा सिंधु की किस्मत कितनी अच्छी है..उसे जो अच्छा लगता है कितने आसानी से मिलता जा रहा है .." मैं मा की ओर देखते हुए कहा ...मेरी नज़रों में मा ने अपने लिए तड़प देखी , और कहा

" अरे तो मेरे बेटे को किस ने रोका है....तेरा भी जो मन आए कर ना ..."

और ऐसा कहते हुए मा ने अपनी सारी भी कमर तक उठा दी ..और मेरी ओर थोड़ा और झूकती हुई अपनी टाँग घूटने से मोडते हुए उपर कर ली और फैला दी ..उसकी चूत , मुँह खोले मेरे सामने थी ..मैं तो पागल हो उठा .......

सिंधु और बिंदु भी बोल उठी " हां भाई ..तेरे को किस ने रोका ...हम सब तेरे लिए ही तो हैं ना .."

" सच्च ..?" ...मैने सब से पूछा .. मेरी नज़र अभी भी मा पर ही थी ..मा एक टक मुझे ही देखे जा री थी , उसका चेहरा तमतमाया और आँखें सूर्ख लाल , उस ने कुछ कहा नहीं...वो शायद अपने बेटे के अगले कदम का इंतेज़ार कर रही थी..

सिंधु अब मेरे से चिपक गयी थी और मुझे चूम रही थी उस ने अपने खेल को आगे बढ़ाते हुए मेरे पॅंट की ज़िप खोल मेरे लौडे को आज़ाद कर दिया . मेरा लौडा और भी कड़क होता हुआ उसकी मुट्ठी से जकड़ा था ...

बिंदु की नज़रें फटी की फटी थीं ... उस ने मेरे सीने में अपना सर रखे अपना मुँह छुपा लिया ..

मैं सीधा लेटा था और उसकी मुट्ठी में मेरा लौडा हवा से बातें कर रहा था..

मेरा मन तो मा को चोद्ने का था ..पर सिंधु के पागलपन और बिंदु की अदाओं को देख मैने सोचा चलो पहले इन्हें शांत कर दूँ ...फिर मा के साथ अपने कमरे में.......उफफफफ्फ़..मा के साथ होने की बात से ही मुझे झुरजुरी आने लगी...

मैने सिंधु को सीधा कर अपने बगल कर दिया..और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया ..उसके सलवार को उसकी घुटनों तक कर दिया ..उसकी गीली चूत नंगी थी..और अपनी उंगलियाँ उसकी फाँक के उपर नीचे करने लगा ..सिंधु सिहर उठी ..और अपनी पकड़ और भी मजबूत कर ली मेरे लौडे पर...

बिंदु को अपने सीने से लगे रहने दिया और अपना दूसरा हाथ उसकी सारी के अंदर ले जाता हुआ उसकी चूत की फाँक पर भी मैं अपनी उंगली फेरने लगा ....

दोनो बहनो की चूत इतनी गीली थी ..मेरी उंगलियाँ फीसलती हुई उपर नीचे हो रही थी ..मेरी नज़र बराबर मा की ओर ही थी ...मैं "ऊवू मा ..ऊवू मा' की रट लगाए जा रहा था..मा अपने हाथों से अपनी चुचियाँ मेरी ओर किए मसल्ति जा रही थी ..

सिंधु सिसकारियाँ ले रही थी..मा मेरे लौडे को ही देखे जा रही थी और बिंदु मेरे से और भी चिपकती जा रही थी

मेरा लौडा सिंधु की हथेली में कड़क और कड़क होता जा रहा था ..मा मेरे लौडे को देख अपनी चूत और भी फैलाती जाती ..उसकी गुलाबी चूत से रस रीस रहा था ..और मा की नज़रें लगातार मेरे पर थी ...

अब सिंधु का भी हाथ और ज़ोर पकड़ता जा रहा था ..जैसे जैसे मेरी उंगलियाँ उसकी चूत पर उपर नीचे होती उसका हाथ उतनी ही तेज़ी से मेरे लौडे की चॅम्डी को उपर नीचे करती ..और बिंदु तो बस सिसकारियाँ लिए जाती और मुझ से ज़ोर और जोरों से चिपकती जाती ...और मेरे होंठ चूस्ति जाती ..उसने अपनी टाँग मेरी जाँघ पर रख दी थी ...और मेरी जाँघ अपने पैर से दबाती जाती ..

मुझ से रहा नहीं जा रहा था ....मेरा लौडा सिंधु की हथेली में कड़क होता जा रहा था ...मुझे ऐसा महसूस हुआ अब फॅट पड़ेगा ....मैं .."मा, मा..." कर रहा था ...सिहर रहा था ..."अया आ " कर रहा था ..सिंधु समझ गयी मैं झड़ने वाला हूँ, उसने अपने हाथ चलाने में और तेज़ी कर दी..तेज़ और तेज़ , मेरी उंगलियाँ भी उनकी चूत पे और भी तेज़ी से उपर नीचे होने लगी ...और फिर मेरा लौडा सिंधु की मजबूत पकड़ के बावजूद झटके पे झटका खाता खाता वीर्य का जोरदार फ़ौव्वररा छोड़ दिया , साथ साथ मेरे हाथ भी दोनो बहनो की चूत पर इतने जोरों से घिसाई की दोनो " हा हााईयईईईईईईईईईईईई हाइईईईईईईईईईई हाइईईईईईईईईईईई " करते चूतड़ उछालते उछालते अपनी अपनी चूतो के रस से मेरे हाथ गीले कर दिए और दोनो अकड़ते हुए ढीली पड़ गयीं ...हाँफने लगीं ...

मैं " मा मा "की रट लगाए उसे देखता देखता पस्त पड़ गया ...

मा की चूत से भी रस बूरी तरह टपक रहा था ..उसकी आँखें भी नशीली थीं ..मुझ से चूद्ने को बेताब ....

थोड़ी देर बाद मेरी सांस ठीक हुई ..दोनो बहेनें अभी भी सुस्त पड़ी थीं ..

मैं उठा ..मा की तरफ बढ़ा ..उन्हें अपनी गोद में उठाया , मा ने अपनी बाहें फैलाए अपने बेटे के गले को थामते हुए अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया

" हां बेटा ..ले चल मुझे ..ले चल ....बहुत प्यासी है रे मेरी चूत...चल तेरे कमरे में ..." मा ने मेरे कान में धीमी आवाज़ में फूसफूसया ..

और मैं मा को उठाए ,उसके सीने को अपने सीने से लगाए ...उसकी चुचियाँ अपने सीने से चिपकाए था ...मा की टाँगें मेरे कमर के गीर्द थीं ..मुझसे बूरी तरह चिपकी ...मैं उन्हें बेतहाशा चूमे जा रहा था ..और अपने कमरे की ओर बढ़ता जा रहा था...

कमरे में जाते ही मैने मा को अपनी खाट पर बिठा दिया ..उसके पैर खाट से नीचे थे ..मेरा मुरझाया लौडा मा को गोद में लेने और उनकी जांघों के बीच घीसने से तन्न था..मैने अपना पॅंट उतार फेंका ..अपनी शर्ट भी उतार दी ...और मा का ब्लाउस तो पहले से ही उतरा था ...मैं उसके पैर की तरफ झूकता हुआ ..उसकी सारी और पेटिकोट भी उतार दी ...मा चुपचाप बैठी मेरी हरकतें देख रही थी ...अपने को अपने बेटे के हाथों नंगी होती देख उसके बदन सिहर रहे थे.
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RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी - by sexstories - 10-15-2018, 10:56 PM

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