RE: Chudai Story मौसी का गुलाम
मौसी का गुलाम---16
गतान्क से आगे………………………….
ललिता नौकरानी दूसरे दिन वापस काम पर आने वाली थी, इसलिए मौसी ने मुझे चुदाई नहीं करने दी कारण नहीं बताया बोली की निरंतर रतिक्रीडा से एक दिन आराम सेहत के लिए ज़रूरी है हम पूरे कपड़े पहनकर घर में बिलकुल असली मौसी भांजे जैसे बैठे थे शाम को ललिता मिलने आई वह यह बताने आई थी कि वह गाँव से लौट आई है और कल से काम पर आएगी
वह मझली उम्र की कसे बदन की एक नाटी औरत थी उसकी स्वस्थ छरहरी काया से ही मालूम होता था कि काफ़ी मेहनती है इसीलिए ऐसी कसी हुई है थी वाहा साँवली पर उसकी त्वचा बड़ी चिकनी दमकती हुई थी मेरे ख्याल से वह पैंतीस और चालीस साल के बीच की होगी पिछली बार मैंने उसे चाहा सात साल पहले देखा था जब मैं और माँ यहाँ आए थे तब से अब तक मुझे उसमें कोई फरक नज़र नहीं आया, वैसी ही चुस्त तंदुरुस्त लग रही थी
आते ही मौसी उसपर गुस्से में बरस पडी कि इतने दिन कहाँ थी, दो दिन बोल कर गयी और दस दिन गायब रही मौसी की डाँट को वह बड़े आराम से मुस्कराते हुए सुनती रही जैसे कि उसे मालूम था कि इस डाँट में कोई दम नहीं है मौसी की आवाज़ में गुस्से के साथ एक बड़ी आत्मीयता और प्यार की भावना थी अपनी नौकरानी के लौट आने की खुशी भी उसमें थी
आख़िर मौसी शांत हुई और ललिता को बोली कि कल दोपहर से काम पर आ जाए ललिता ने फिर पूछा "बाई, पान लाऊ कल?" मौसी हँसने लगी और हाँ बोली मेरी ओर ललिता ने मुस्काराकर देखा और मुझे कुछ देर सिर से पाँव तक घूरती रही फिर एक बार मौसी की तरफ देखकर वह मुस्कराती हुई कल आने का वादा कराकर चली गयी
उनकी आपस की बात सुनकर मुझे शंका हुई कि कुछ बात है पर मौसी से पूछने की हिम्मत नहीं हुई सोचा कल पता चल ही जाएगा
रात को गहरी नींद सो कर हम ताजे होकर उठे मेरा लंड फिर मस्त तन्ना रहा था और मौसी भी मदमस्त लग रही थी पर सिवाय मुझे प्यार से चूमने के और अपना मूत पिलाने के, उसने कुछ नहीं किया जब वह खाना बना रही थी, मैं मचलता हुआ उसके पीछे खड़ा होकर उसके नितंबों की लकीर में साड़ी के उपर से ही अपना लंड घिसता हुआ ब्लओज़ के उपर से उसके मम्मे दबाने लगा
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