RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
फिर मेरे टांगों को पकड़कर उन्होने जोर से अपनी तरफ़ खींचा जिससे मेरी गांड सरक कर खाट के किनारे आ गयी. खाट की ऊंचाई बस इतनी थी कि मेरी चूत डाक्टर के लन्ड के एकदम सामने थी.
डाक्टर साहब ने अपने लन्ड का सुपाड़ा मेरी बुर के फांक मे रखा और ऊपर-नीचे रगड़ने लगे. मुझे लन्ड चूसकर काफ़ी चुदास चढ़ गयी थी. मैं आंखें बंद करके चूत पर लन्ड की रगड़ाई का मज़ा लेने लगी.
डाक्टर साहब ने अमोल को कहा, "इधर आओ और अपनी रखैल को कुछ खाने को दो."
"जी, डाक्टर साहब?"
"अपना लन्ड निकालो, बेटे, और उसे चुसाओ." डाक्टर साहब स्पष्ट करके बोले, "लड़की बहुत चुदासी हो गयी है."
अमोल ने अपनी पैंट और चड्डी उतार दी और मेरे मुंह के सामने अपना खड़ा लन्ड रख दिया. मैने पकड़कर उसे चूसना शुरु कर दिया.
डाक्टर साहब अभी भी मेरी चूत पर अपना सुपाड़ा घिसे जा रहे थे. मुझसे और बर्दाश्त नही हो रहा था. मैने अमोल का लन्ड अपने मुंह से निकाला और विनती करके बोली, "डाक्टर साहब! और मत सताइये! घुसा दीजिये अन्दर!"
"यह हुई ना बात!" डाक्टर साहब खुश होकर बोले, "अब बता सोनपुर मे तेरा सामुहिक बलात्कार हुआ था या सामुहिक चुदाई?"
"आप कृपा करके मुझे चोदिये!" मैं बोली.
"पहले मेरे सवाल का जवाब दे."
"पहले बलात्कार हुआ था....फिर मैं सबसे खुद ही चुदाई भी थी." मैने मजबूर होकर कहा.
डाक्टर साहब ने कमर के धक्के से अपना लन्ड मेरी चूत मे घुसा दिया और दो तीन बार पेलकर बोले, "बहुत चुदी हुई है तेरी चूत. सोनपुर के बाद और भी चुदी है क्या?"
"नहीं, डाक्टर साहब!"
"झूठ मत बोल." डाक्टर साहब ने कहा और उन्होने अपना लन्ड मेरी चूत से निकाल लिया.
"हाय, अन्दर डालिये अपने लन्ड को!" मैं चिल्लायी. एक हाथ से मैने अमोल के लन्ड को जोर से पकड़ा हुआ था.
"पहले बता!"
"हाँ हाँ! सोनपुर के बाद भी बहुत चुदाई हूँ!" मैने चिल्लाकर जवाब दिया.
"मै ठीक ही समझा था. तु एक चुदैल है." वह बोले.
डाक्टर साहब ने अपना लन्ड मेरी चूत मे फिर से घुसाया और मुझे कुछ देर तक चुपचाप पेलते रहे. मुझे बहुत आराम मिलने लगा. मैं अमोल के लन्ड को मज़े लेकर चूसने लगी और डाक्टर से चुदवाने लगी.
"कितनो से चुदवाई है?" डाक्टर ने पूछा.
"आह!! पांच-छह लोगों से." मैने कहा.
"उनसे अभी भी चुदवाती है?"
"हूं."
"सबसे अलग अलग चुदवाती है या एक साथ?"
"हाय, कभी अलग अलग...कभी एक साथ! आह!!"
"रोज़ चुदवाती है?"
"हाय, रोज़ चुदवाती हूँ! आह!! डाक्टर साहब! जोर जोर से चोदिये मुझे!" मैं मस्ती मे बोली.
"कभी रंडीगिरी की है?"
"नही....उफ़्फ़ क्या मज़ा आ रहा है!"
डाक्टर ने मुझे कुछ देर और चोदा. मैं तो झड़ने को आ गयी थी. आंखें बंद किये, अमोल के लन्ड को चूसते हुए मैं डाक्टर के लन्ड को चूत मे ले रही थी.
"लड़की, तेरा घर कहाँ है?" डाक्टर ने पूछा.
"उम्म!! रतनपुर मे."
"वहाँ कोई यार है तेरा?"
"ओफ़्फ़!! नही."
"मामा के यहाँ कब से ठहरी हुई है?"
"बस अभी आयी हूँ!"
डाक्टर ने चोदना बंद कर दिया और कड़क के कहा, "ठीक से जवाब दे!"
"हाय चोदना मत बंद कीजिये!! मैं झड़ने वाली हूँ!!" मैने बेबस होकर कहा, "एक-देड़ महीने से यहाँ हूँ! अब चोदिये मुझे!!"
डाक्टर ने और कोई सवाल नही किया. मुझे वह जोर जोर से पेलने लगे. मैं भी मस्ती मे कराह कराह कर अमोल के लन्ड को मुंह मे लेकर चुदवाने लगी.
थोड़ी देर मे मुझसे और रुका नही गया. "हाय मैं गयी!" बोलकर मैं चिल्ला उठी, "आह!! मैं झड़ी!! आह!! ओह!! मेरी माँ! मैं झड़ गयी!!"
मैं झड़ गई पर डाक्टर साहब कुछ देर और मुझे पेलते रहे. फिर मेरे पैरों को कसकर पकड़कर "ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ!" करते हुए मेरी चूत मे झड़ने लगे. उनका वीर्य मेरे चूत की गहराई को भरने लगा.
अमोल भी बहुत जोश मे आ गया था. मेरे मुंह को चोदते हुए वह मेरे मुंह मे झड़ने लगा. उसका गाढ़ा वीर्य मेरे मुंह मे भर गया और मेरे होठों से बाहर चूने लगा.
मैने किसी तरह उसका वीर्य गटक लिया और उसके लन्ड को चाटकर साफ़ किया.
डाक्टर साहब ने मेरी चूत से अपने लन्ड को निकाला, और लन्ड को मेरे ब्लाउज़ से पोछकर उन्होने अपनी पैंट पहन ली. अमोल ने भी अपनी पैंट पहन ली तो उसे लेकर डाक्टर साहब अपने कुर्सी पर जा बैठे.
मैने खाट से उठी और तौलिये से अपने चूत से बह रहे डाक्टर के वीर्य और मुंह से बह रहे अमोल के वीर्य को पोछा. फिर अपने कपड़े पहने लगी.
कपड़े पहनकर मैं भी डाक्टर के सामने जाकर बैठ गयी.
डाक्टर साहब मुझे दो गोलियाँ दी. "यह गोली आज रात को लेनी है." उन्होने कहा, "दो दिन बाद यह दूसरी गोली लेनी है. तीसरे दिन तुम्हारा मासिक शुरु हो जायेगा. बहुत भारी रिसाव हो सकता है. एक दो दिन मे तुम्हारा पेट का फूलना कम हो जायेगा."
"ठीक है, डाक्टर साहब." मैने सर झुकाकर जवाब दिया.
"और सुनो. तुम जैसी चुदक्कड़ लड़कियाँ चुदवाने से बाज तो नही आती है." डाक्टर साहब बोले, "जिससे चुदवाना हो चुदवाओ. पर कोई गर्भ निरोधक प्रयोग किया करो. बार-बार गर्भ गिराना अच्छी बात नही है."
"मुझे कंडोम पसंद नही है, डाक्टर साहब." मैने जवाब दिया.
"चुदैलों को कंडोम पसंद होते भी नही है!" डाक्टर साहब हंसकर बोले, "गर्भ-निरोधक गोलियाँ भी होती है. मैं एक लिखकर देता हूँ. बाज़ार से ले लेना."
"ठीक है डाक्टर साहब." मैने कहा.
"घर मे किसी और को इनकी ज़रूरत हो तो उन्हे भी दे देना." डाक्टर बोले.
"जी?" मैने उनका मतलब समझे बिना बोली.
अमोल ने कुछ हज़ार रुपये निकालकर डाक्टर साहब को दिये. "डाक्टर साहब, आपकी फ़ीस."
"रुपये रहने दो." डाक्टर साहब बोले, "गिरिधर चौधरी की भांजी को चोद लिया यही मेरे लिये बहुत है. अगर फिर से इसका गर्भ ठहर गया तो मेरा पास ले आना. इसको तो कोई जितना भी चोदे कम है."
"ठीक है, डाक्टर साहब." अमोल बोला.
"बेटी, तुम्हारे घर मे किसी और को मेरे सेवा की ज़रूरत पड़े तो बेहिचक ले आना." डाक्टर साहब ने मुझे कहा.
"मै समझी नही, डाक्टर साहब!" मैने कहा.
डाक्टर साहब कुछ देर चुप रहे फिर बोले, "बेटी, मैने घाट घाट का पानी पिया है. चोरी छुपे गर्भपात करने का काम मैं बहुत अर्से से कर रहा हूँ. इसी हाज़िपुर मे मैने कई औरतों का पेट गिरया है - जो अवैध संबंध बनाकर गर्भवती हो गयी थी. वे सारी औरतें बाहरी तौर पर शरीफ़ और अच्छे घरों की हैं. उनके राज़ मेरे पास सुरक्षित हैं. ईश्वर जानता है मैने कभी उस राज़ का फ़ायदा नही उठाया है."
"पर-पर मुझे इससे क्या मतलब?" मैने हकलाकर पूछा.
"बेटी, मुझे नही पता तुम्हारे मामा के घर मे क्या चल रहा है. पर कुछ तो चल ही रहा है." डाक्टर साहब बोले, "नही तो तुम एक महीने से उनके घर मे गर्भवती होकर बैठी हो, और पांच-छह लोगों से एक साथ कैसे चुदवा रही हो?"
सुनकर मैं चुप हो गयी.
"डरो मत. तुम्हारा राज़ मेरे पास ही रहेगा." डाक्टर साहब मेरे गालों को थपथपाकर बोले, "तुम्हारे घर मे किसी को मेरी ज़रूरत हो तो मेरे पास भेज देना. चूत तो मैं लूंगा ही, पर रुपयों मे कमी कर दूंगा. ठीक है?"
"जी." मैने सर झुकाकर जवाब दिया.
"अच्छा तो बच्चों, अब निकलो यहाँ से." डाक्टर साहब प्यार से बोले.
अमोल और मैं जल्दी से डाक्टर के दवाखाने से निकल पड़े.
रास्ते मे एक दुकान से अमोल ने गर्भ-निरोधक गोलियाँ खरीदी. फिर हम एक तांगा लेकर घर लौट आये.
मुझे देखते ही भाभी भागकर आयी और मुझे घर के अन्दर ले गई. मेरे आंचल को हटाकर मेरे पेट को देखकर बोली, "अरे वीणा, तुम्हारा पेट तो वैसे का वैसा ही है!"
"अरे भाभी, अभी गर्भपात हुआ कहाँ है!" मैने कहा, "मुझे दो गोलियाँ लेनी है. उससे अपने आप पेट गिर जायेगा."
"अच्छा? इतना आसन है?" वह हैरान होकर बोली.
"तुम नही जानती इन दो गोलियों के लिये मुझे कितने पापड़ बेलने पड़े!"
"क्यों क्या हुआ?"
"हाज़िपुर मे जो डाक्टर मिश्रा है, अमोल मुझे उसके पास ले गया था." मैने कहा, "हरामी ने पैसे तो नही लिये, पर इन दो गोलियों के बदले साले ने पहले मेरी चूत मारी."
"हाय राम! क्या कहती हो?" भाभी बोली.
"न मानो तो अपने भाई से पूछ लो." मैने हंसकर कहा, "वैसे बुड्ढा चोदता बुरा नही है. मैं तो मज़े से चुदवाई."
"चलो कोई बात नही. पैसे तो बच गये!" भाभी बोली.
"मै तो कहती हूँ, भाभी, तुम भी अपना गर्भ गिरा दो." मैने कहा, "क्यों किसी अनजान आदमी का बच्चा अपने पति पर थोप रही हो?"
"अरे मैं कैसे जा सकती हूँ डाक्टर मिश्रा के पास?" भाभी बोली, "वह तो हमारे घर के सब को जानते हैं! मैं उनके पास गयी तो हम सब की पोल खुल जायेगी."
"भाभी, गुस्सा मत करना, पर हमारी पोल लगभग खुल ही चुकी है." मैने सकुचा के कहा.
"क्या कह रही हो, वीणा!" भाभी चौंक कर बोली, "तुम ने उन्हे सब कुछ बता दिया क्या?"
"सब तो नही बतायी, पर उसको राज़ी करने के लिये कुछ कुछ बताना पड़ा." मैने कहा, "बाकी उसने खुद ही अंदाज़ा लगा लिया. बहुत शातिर दिमाग है कमीने की."
"हाय वीणा, अब क्या होगा?" भाभी डरकर बोली.
"भाभी, डरो मत. कुछ नही होगा." मैने कहा, "उसके पास बहुत सी औरते जाती हैं गर्भ गिराने और वह सब की चूत मारता है."
"वीणा, ऐसे आदमी पर तुम भरोसा कैसे कर सकती हो?"
"भरोसा करने के अलावा और कर भी क्या सकते हैं, भाभी!" मैने कहा, "खैर, डाक्टर साहब कह रहे थे हमारे घर मे किसी और को उनकी ज़रूरत पड़े तो उनके पास जा सकते हैं. हमारा राज़ वह अपने तक ही रखेंगे. क्या कहती हो, चलोगी उनके पास?"
"नही वीणा. ससुरजी से बात किये बिना मैं कहीं नही जाऊंगी." भाभी बोली.
"कोई बात नही. कोई जल्दी नही है." मैने कहा, "जब मन हो चली जाना. कुछ नही तो एक नया लन्ड मिल जायेगा चखने के लिये!"
डाक्टर साहब के कहे अनुसार मैने वह दो गोलियां ले ली. चौथे दिन तक मेरा पेट बिलकुल ही सपाट हो चुका था. देख के लग ही नही रहा था कि मेरे पेट मे कभी किसी का नाजायज़ बच्चा था.
अगले दिन मामाजी और अमोल मुझे हाज़िपुर स्टेशन छोड़ आये.
ट्रेन मे बैठने से पहले मैने अमोल से लिपटकर कहा, "अब की बार जब तुम मेरे घर आओगे, बारात लेकर आओगे."
"हाँ, मेरी जान." अमोल ने कहा, "तुम वह गर्भ-निरोधक गोलियाँ ले रही हो ना? देखो अब फिर से गर्भ मत बना लेना."
"चिंता मत करो." मैं बोली, "मैं अपना खयाल रखूंगी! और तुम भी किसी का गर्भ मत बना देना. नही तो डाक्टर मिश्रा बहुत जली-कटी सुनायेंगे!"
मामाजी हमे टोक कर बोले, "बच्चों, यह हाज़िपुर है, तुम्हारा शहर नही. यहाँ सरे-आम इतना प्यार जताओगे तो लोग पत्थर मारेंगे."
अमोल और मैं अलग हो गये और मैं ट्रेन मे अपने सीट पर जाकर बैठ गयी.
थोड़ी देर मे ट्रेन चल पड़ी. स्टेशन के छूटते ही मैं हाज़िपुर मे सबके साथ बिताये दिनो की याद मे खो गई.
बीच के एक स्टेशन से दो जाने पहचाने लोग चढ़े. एक काला, दुबला सा लड़का था. एक हट्टा-कट्टा नौजवान.
मुझे देखकर दुबला लड़का बोला, "गुरु, यह तो वही छमिया है!"
गुरु ने मुझे ध्यान से देखा और कहा, "हाँ बे! यह तो वही टॉयलेट वाली है. बहुत मज़ा दी थी साली."
दुबले लड़के ने मुझे कहा, "क्यों छमिया, आज फिर मज़ा लोगी क्या?"
मै तो उन्हे पहचान गयी थी, पर मैने तेवर दिखाकर कहा, "ये! छमिया किसको कहता है? घर पर माँ बहन नही है क्या?"
मेरे पास बैठे एक आदमी ने कहा, "सुअर की औलाद! ट्रेन मे लड़की छेड़ता है? ठहर तेरी माँ-बहन एक करता हूँ!"
गुरु बोला, "चेले, तु तो मरवायेगा आज! यह कोई और लड़की है."
"नही गुरु, यह छमिया ही है!" दुबला लड़का बोला.
"अबे कह रहा हूँ यह कोई और है! उस लड़की का पेट फूला हुआ था!" गुरु ने कहा, "इससे पहले कि जूते पड़ें, भाग ले यहाँ से!"
दोनो दोस्त वहाँ से तुरंत भाग लिये.
मैने फिर से अपनी आंखें बंद कर ली और अपने आने वाली शादी-शुदा ज़िन्दगी के सपनों मे खो गयी.
(समाप्त)
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