मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:19 PM,
#91
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मै कमर उठा उठाकर रामु से चुदवा रही थी. रामु मेरे ऊपर लेटकर मेरे नर्म होठों को पी रहा था. उसके मुंह से बीड़ी और शराब की महक आ रही थी, पर मुझे उस समय एक नौकर से चुदने मे बहुत मज़ा आ रहा था.

मैने अपने चारों तरफ़ नज़र डालकर देखा.

गुलाबी को अब होश आ गया था. वह नंगी बैठकर शराब पी रही थी और अपने पति से मेरी चुदाई देख रही थी.

भाभी अभी भी पस्त होकर पड़ी थी, पर मामाजी उस पर चढ़कर उसे चोद रहे थे. वह बस लेटे लेटे लन्ड ले रही थी.

किशन बैठकर शराब पी रहा था.

बलराम भैया लेटे हुए थे. उनका लन्ड तन का खड़ा हो चुका था जिस पर मामीजी चढ़ी हुई थी. वह अपने बेटे का लन्ड अपनी चूत मे ले रही थी और मस्ती मे कराह रही थी.

विश्वनाथजी का लन्ड अब सुस्त हो चुका था, पर तब भी 7-8 इंच का लग रहा था.

और अमोल सबकी वीडिओ बना रहा था.

तभी विश्वनाथजी उठकर आये और मेरे मुंह के पास बैठकर बोले, "वीणा, ज़रा मेरा लन्ड चूसकर खड़ा कर दे, बेटी."

ऐस प्रस्ताव मैं छोड़ने वाली नही थी. उनके लन्ड को पकड़कर मैने अपने मुंह मे ले लिया और मज़े लेकर चूसने लगी. मेरा मुंह उनके लौड़े से भर गया. लन्ड पर भाभी और गुलाबी के चूतों का रस लगा हुआ था और विश्वनाथजी का वीर्य भी. चूसने मे बहुत स्वाद आ रहा था.

नीचे रामु मेरे पैर पकड़कर मुझे चोदे जा रहा था. जल्दी ही विश्वनाथजी का लन्ड तनकर लोहे की तरह सख्त हो गया. 10 इंच का वह हथौड़ा मेरे मुंह मे आधा भी नही समा रहा था.

रामु हुमच हुमचकर मुझे और 10-15 मिनट पेलता रहा. मैं विश्वनाथजी का लन्ड चूसते हुए बीच मे एक बार झड़ भी गयी.

तभी अचानक मुझे जोर जोर से ठोकते हुए रामु झड़ने लगा. मेरी चूत मे उसका वीर्य गिरने लगा. "आह!! आह!! आह!! आह!!" करके वह लंबे लंबे धक्के लगाने लगा और अपना पानी छोड़ने लगा.

रामु झड़ गया तो मेरे ऊपर से हटकर बैठ गया.

मैने अपने मुंह से विश्वनाथजी का लन्ड निकाला और कहा, "विश्वनाथजी, अब मेरी बारी है आपके हबशी लन्ड को लेने की."
"हाँ, वीणा. मैं भी तुझे चोदना चाहता हूँ. बहुत दिन हो गये हैं, तेरी चूत को मारे हुए." विश्वनाथजी बोले.

विश्वनाथजी मेरे पैरों के बीच आये. मेरी चूत से रामु का वीर्य बह रहा था. मेरी गांड के नीचे गद्दा तो गीला हो चुका था क्योंकि मेरी चूत से बलराम भैया और किशन का वीर्य भी निकला था.

विश्वनाथजी ने अपना टमाटर जैसा सुपाड़ा मेरी चूत पर रखा और मेरी चूत मे दबाने लगे. रामु की चुदाई से मेरी चूत चौड़ी हो चुकी थी, पर विश्वनाथजी के मूसल के लिये तैयार नही थी.

"विश्वनाथजी, ज़रा धीरे घुसाइये!" मैने विनती की, "मै आज बहुत दिनो बाद चुद रही हूँ."

विश्वनाथजी मुस्कुराये और कमर के धक्के से मेरी चूत मे अपना गधे जैसे लन्ड घुसाने लगे. मेरी चूत का भोसड़ा बनने मे कोई कमी थी तो वह उस दिन पूरी हो गयी. उनका लौड़ा मेरी चूत को पूरी तरह चौड़ी करके अन्दर समाने लगा. मैं सांस रोक कर पड़ी रही, पर लन्ड जैसे खतम ही नही हो रहा था. जब लन्ड पेलड़ तक घुस गया तो मुझे लगा जैसे मैं अन्दर से बुरी तरह भर गयी हूँ. हालांकि सोनपुर मे मैं विश्वनाथजी से बहुत चुदवाई थी, इतने दिनो बाद उनका लन्ड लेने मे एक नयापन था.

जब मेरी सांसें काबू मे आयी तो मैने कहा, "विश्वनाथजी, अब चोदिये मुझे जी भर के!"

विश्वनाथजी अब मुझे चोदने लगे. अपने लन्ड को मेरी चूत से खींचकर निकालते, फिर पूरा अन्दर पेल देते. हर धक्के मे इतना सुख मिल रहा था कि मेरी जान ही निकली जा रही थी. मेरी आंखें पलट जा रही थी. सांसें बेकाबु हो रही थी. पूरा शरीर मस्ती मे कांप रहा था. मैं जोर जोर से "आह!! आह!! आह!!" करने लगी और विश्वनाथजी के धक्कों का मज़ा लेने लगी.

मेरे बगल मे मामाजी अपनी बहु को चोदते हुए झड़ने लगे. पर भाभी विश्वनाथजी से चुदकर इतनी थक गयी थी कि अपने ससुर के नीचे पुतले की तरह पड़ी रही.

उधर मामीजी बलराम भैया पर चढ़कर चुदे जा रही थी.

अमोल विश्वनाथजी के लौड़े से मेरी चूत के सत्यानाश का वीडिओ बना रहा था.

मैने उसे कहा, "अमोल, शादी के बाद...मै विश्वनाथजी को...घर पर बुलाऊंगी...आह!! और उनसे...ऐसे ही...उम्म!! ...चुदवाऊंगी...आह!! तुम कुछ नही कहना!! मैं उनके लौड़े के बिना...जी नही सकती!!"

अमोल एक हाथ से अपना लन्ड सहला रहा था और दूसरे हाथ मे कैमेरा पकड़कर मेरी वीडिओ बना रहा था.

विश्वनाथजी एक मन से मुझे पेलते जा रहे थे.

और 4-5 मिनट की चुदाई के बाद मैं अपना आपा पूरी तरह खो बैठी. मुझे चूत मे इतना सुख मिल रहा था कि मैं विश्वनाथजी को जकड़कर, उनकी पीठ मे अपने नाखुन गाढ़कर झड़ने लगी. मेरी आंखे पलट गयी और मैं चरम आनंद मे बेहोश हो गयी. चुदाई का ऐसा सुख मुझे सोनपुर मे भी नही मिला था.

जब मुझे होश आया तो देखा विश्वनाथजी मामीजी पर चढ़कर उन्हे चोद रहे थे. बलराम भैया अपनी माँ की चुदाई देख रहे थे और शराब पी रहे थे. भाभी उठ गयी थी और अपने देवर के बाहों मे नंगी बैठी अपनी सास की चुदाई देख रही थी और शराब पी रही थी.

गुलाबी शराब की एक बोतल लेकर बैठी थी और उसमे मुंह लगाकर सीधे बोतल से पी रही थी. वह अब तक नशे मे धुत्त हो चुकी थी. इतनी छोटी सी लड़की न जाने कैसे इतनी बड़ी शराबी बन गयी थी.

मामाजी ने मुझे उठाया और मेरे हाथ मे शराब की एक गिलास देकर बोले, "ले बेटी, थोड़ी पीकर गला तर कर. बहुत बुरी तरह झड़ी है आज तु!"
"नही, मामाजी!" मैने एक घूंट लेकर कहा, "मेरी चुदास अभी मिटी नही है!"
"नही आज के लिये बस कर. चार-चार लन्ड ले चुकी है तु."
"नही, मामाजी!" मैं उनके नंगे बदन से लिपटकर बोली, "अभी तो मुझे अपने अमोल से भी चुदवाना है!"

पर अमोल मामी की चुदाई की वीडिओ बना रहा था. विश्वनाथजी के मोटे लन्ड के जादू से मामीजी भी झड़ने लगी. विश्वनाथजी भी मामीजी को चोदते हुए झड़ने लगे.


सब लोग झड़ कर शांत हो गये तो सब ने शराब की एक एक और गिलास पी. सब नंग-धड़ंग बैठे थे. औरतों की चूतों से मर्दों का वीर्य बह रहा था. सबके शरीर को झड़कर आराम मिल गया था.

मामीजी, जो कि काफ़ी नशे मे थी, बोली, "चलो सब खाना खा लेते हैं. बहुत रात हो चुकी है. गुलाबी, जा रसोई मे और खाने की मेज पर खाना लगा."
"जाते हैं, म-मालकिन!" गुलाबी लड़खड़ाती आवाज़ मे बोली. वह शराब की बोतल लेकर उठने लगी तो उसके पैरों ने जवाब दे दिये. वह फिर बैठ गयी और फिर बोतल को मुंह मे लगाकर शराब पीने लगी.

"माँ, गुलाबी को छोड़िये." भाभी बोली, "यह बेवड़ी तो पूरी टुन्न हो गयी है. मैं जाती हूँ."
"मै भी आती हूँ, भाभी!" मैने कहा.

भाभी और मैं नंगे ही डगमगाते हुए रसोई मे चले गये.

"रामु, अपनी जोरु को समझा," मामीजी बैठक मे बोल रही थी, "यह तो पूरी शराबी बन गयी है. दिन रात शराब पीती रहती है. घर का काम भी शराब पीकर करती है."
"हम का करें, मालकिन!" रामु कह रहा था, "ई अब हमरी कोई बात ही नही सुनती है. जिससे मर्जी चुदवाती है. जब चाहे सराब पीती है."
"चुदवाती है तो चुदवाने दे." मामीजी बोली, "आखिर उस पर घर के मर्दों का भी हक है. पर तु अपने कमरे मे शराब रखनी बंद कर. जब कोई दावत हो तो तेरे मालिक विलायती शराब ला देंगे. तब उसे जितनी पीनी हो पी लेगी."
"ठीक है मालकिन." रामु बोला.

मैने भाभी से पूछा, "भाभी, गुलाबी की उम्र क्या है?"
"18-19 साल की ही है." भाभी हंसकर बोली, "पहले बहुत भोली थी. न शराब पीती थी, न लन्ड चूसती थी, न किसी पराये मर्द से चुदवाती थी. पर सब ने उसे चोद चोदकर पूरी रंडी बना दिया है. अब तो वह हर रोज़ पी पीकर सबसे चुदवाती है."
"यानी उसके बचने की कोई उम्मीद नही है..."
"ननद रानी, तुम तो अच्छी तरह जानती हो - लन्ड और दारु की लत छूटे नही छूटती" भाभी हंसकर बोली.

भाभी और मैने मेज पर खाना लगाया. एक तो नशे मे सब की हालत खराब थी. दूसरे हमे नंगे रहने मे बहुत मज़ा आ रहा था. सब लोग नंगे ही खाने बैठ गये. गुलाबी ने उस रात खाना नही खाया. वहीं गद्दे पर नशे मे धुत्त होकर नंगी सो गयी.

सब लोग खाना खा चुके तो अपने अपने कमरों मे जाने लगे.

मामा और मामीजी अपने कमरे मे चले गये. किशन अपने कमरे मे चला गया. बलराम भैया अकेले ही अपने कमरे मे चले गये. अमोल भी अपने कमरे मे चला गया. 

रामु घर की सारी बत्तियां बुझा रहा था. विश्वनाथजी भाभी का हाथ पकड़कर अपने कमरे मे ले जा रहे थे. दोनो पूरी तरह नंगे थे और एक दूसरे का सहारा लेकर डगमगाते हुए चल रहे थे. शायद विश्वनाथजी का भाभी को एक और बार चोदने का इरादा था.
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