मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:07 PM,
#26
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
कभी कभी जाने-अनजाने मे सासुमाँ का हाथ बेटे के खड़े लौड़े पर लग जाता था तो दोनो सिहर उठते थे. अब तक माँ-बेटे दोनो की शर्मओ-हया और विवेक बुद्धि हवस के तूफ़ान मे कहीं बह गये थे.

मेरे पीछे से ससुरजी ब्लाउज़ के ऊपर से मेरी चूचियों को दबा रहे थे. धीरे से मेरे कान मे बोले, "हाय यह क्या कर रही है कौशल्या अपने बेटे के साथ! लगता है बलराम को मादरचोद बनाकर ही छोड़ेगी."
मुझे तो मज़ा आ रहा था माँ-बेटे का कुकर्म देखकर.

"तेरा वह बहुत बुरी तरह खड़ा है रे, बलराम! मेरा बार बार हाथ लग जा रहा है." सासुमाँ बोली.
"माँ, तुम नीचे की तरफ़ दबाओ." मेरे वह बोले.
"नही क्यों, तुझे अच्छा नही लग रहा मैं ऊपर दबा रही हूं?" सासुमाँ ने कहा और फिर उनका हाथ बेटे के खड़े लन्ड पर लग गया.
"अच...अच्छा लग रहा है, माँ." वह अपनी सांस रोककर बोले.
"तो तु आराम से लेट ना, और मज़े ले." सासुमाँ बोली.
"माँ, कहीं मीना या गुलाबी अन्दर आ गयी तो क्या सोचेंगी." वह बोले.

सासुमाँ पलंग से उठी और बोली, "हाँ तु ठीक कह रहा है. मैं दरवाज़ा बंद कर देती हूँ. वह सोचेंगी तु सो रहा है."

बोलकर वह दरवाज़े के पास आयी. वहाँ मुझे और ससुरजी जो देखकर उनके चेहरे पर एक शर्मिली मुसकान बिखर गयी.
मैने फुसफुसाकर कहा, "माँ, बहुत बढ़िया चल रहा है! दरवाज़ा थोड़ा खुला रखिये. हम लोग देख रहे हैं."

सासुमाँ ने दरवाज़ा ठेल दिया और बेटे के बिस्तर पर जा बैठी. ससुरजी और मैं दोनो पाटों के फांक से अन्दर देखने लगे. ससुरजी की सुविधा के लिया मैने अपने साड़ी का आंचल गिरा दिया और अपने ब्लाउज़ के हुक खोलकर अपने ब्रा को ऊपर कर दिया जिससे वह आराम से मेरी नंगी चूचियों को मसल सके. वह मेरे चूतड़ मे अपना खड़ा लन्ड रगड़ने लगे, मेरी चूचियों को मसलने लगे और अन्दर का नज़ारा लेने लगे.

सासुमाँ फिर बेटे के लौड़े के पास उसके जांघ को दबा रही थी. वह बोली, "बलराम, ठीक से दबा नही पा रही हूँ. तेरा लुंगी और थोड़ा ऊपर कर दूं?"
"माँ फिर वह मेरा...वह बाहर आ जायेगा." मेरे वह बोले.
"तो आ जाये ना!" सासुमाँ बोली, "मै कोई पहली बार लौड़ा देख रही हूं?" बोलकर उन्होने बेटे की लुंगी को पेट पर चढ़ा दिया. उनका नंगा लन्ड सासुमाँ के आंखों के सामने था. मोटा, 8 इंच लंबा, सांवले रंग का लन्ड छत की तरफ़ खंबे की तरह खड़ा था.

"हाय, कितना सुन्दर है रे तेरा लौड़ा." सासुमाँ बोली, "बहु को चुसाता है क्या?"
"हाँ. मीना बहुत मज़े से चूसती है" वह बोले.
"तेरे पिताजी का लन्ड भी इतना ही बड़ा है." सासुमाँ बोली, "मैं तो अब भी रोज़ चूसती हूँ."

सासुमाँ की भाषा अब बहुत ही अश्लील होती जा रही थी. तुम्हारे भैया को भी अपने माँ के मुंह से ऐसे गन्दे शब्द सुनकर उत्तेजना हो रही थी.

"मै तेरा लन्ड पकड़ूं तो तुझे बुरा तो नही लगेगा?" सासुमाँ बोली, "बहुत दिन हो गये हैं कोई जवान लन्ड पकड़े हुए."

उनके बेटे ने ना मे सर हिलाया तो सासुमाँ ने एक हाथ से बेटे के मोटे लन्ड को पकड़ लिया और और हाथ को ऊपर-नीचे करके धीरे धीरे हिलाने लगी. मेरे उन्होने अपनी आंखें बंद कर ली और माँ के हाथ का मज़ा लौड़े पर लेने लगे.

"अच्छा, यह बता, तु बहु को अपनी मलाई पिलाता है क्या?" सासुमाँ ने पूछा.
"नही, माँ. बहुत नखरे करती है." वह बोले.
"हाय, कैसी मूर्ख औरत है!" सासुमाँ बोली, "ऐसा सुन्दर लौड़ा मिले तो मैं एक बून्द मलाई भी न छोड़ूं! कभी पूछना अपने पिताजी से, मुझे उनकी मलाई पीना कितना अच्छा लगता है. मैं समझाती हूँ बहु को! जल्दी ही मज़ा ले लेकर तेरी मलाई पियेगी."

कुछ देर बेटे का लौड़ा हिलाकर सासुमाँ बोली, "बलराम, बहुत मन कर रहा है तेरा लौड़ा थोड़ा चूसने का. बहुत दिन हो गये किसी जवान आदमी का लौड़ा चूसे हुए."
"चूसे लो, माँ!" मेरे वह गनगना कर बोले.

सासुमाँ ने तुरंत अपना मुंह बेटे के लन्ड पर झुकाया और आधा लन्ड मुंह मे ले लिया. फिर प्यार से बेटे के लौड़े को चूसने लगी.

तुम्हारे भैया अपने हाथों से बिस्तर के चादर को नोच रहे थे और अपने आप पर काबू रखने की कोशिश कर रहे थे. वैसे तो वह घंटे भर मुझे चोद सकते थे, पर अपनी माँ के द्वारा लन्ड चुसाने का उनका पहला अनुभव था.

"माँ, धीरे चूसो! हाय मेरा पानी निकल जायेगा!" वह आंखें बंद किये कसमसा कर बोले.
"तो निकाल दे ना!" सासुमाँ ने मुंह से लौड़ा निकाला और कहा. "मैं भी तो देखूं कितना स्वाद है तेरी मलाई मे."

सासुमाँ ने अपने ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और ब्लाउज़ उतार दी. फिर अपने ब्रा को ऊपर चढ़ाकर अपनी भारी भारी चूचियों को आज़ाद किया. फिर एक हाथ से बेटे का लन्ड पकड़कर चूसने लगी और दूसरे हाथ से उसके पेलड़ को छेड़ने लगी. बीच-बीच मे अपने निप्पलों को चुटकी मे लेकर मीस भी लेती थी.

तुम्हारे भैया अपनी कमर उठा उठाकर अपनी माँ के मुंह मे लन्ड पेलने लगे और बड़बड़ाने लगे. "हाय माँ, कितना अच्छा चूस रही हो! उम्म!! ऊंघ!! चूसना बंद मत करना. मैने पानी नही निकाला तो मर जाऊंगा! आह!! माँ, मेरा पानी निकल रहा है. तुम मुंह हटा लो! आह!! ओह!! आह!! ओह!!"

उन्होने अपना वीर्य छोड़ना शुरु किया पर सासुमाँ ने अपना मुंह नही हटाया. होठों को लन्ड के ऊपर-नीचे कर कर के बेटे के पेलड़ से मलाई निकालने लगी. उनका जब मुंह भर गया तो सफ़ेद वीर्य होठों से चूकर बाहर गिरने लगा. जब बेटा पूरा झड़ चुका तो सासुमाँ ने लन्ड से अपना मुंह हटाया और अपने मुंह का सारा वीर्य गटक कर पी गयी. फिर बेटे के लन्ड पर लगे वीर्य को चाट चाटकर खाने लगी.

ससुरजी मेरी चूचियों को मसलते हुए बोले, "बहु, कौशल्या ऐसी गिरी हुई औरत हो सकती है विश्वास नही होता. अपने बेटे का लन्ड चूसकर उसका वीर्य पी रही है! सोनपुर जाने के बाद वह सचमुच बहुत बदल गयी है."
"हाय बाबूजी, जैसे आप नही बदल गये सोनपुर जाकर!" मैने कहा. "आपके लन्ड की हालत बता रही है कि माँ-बेटे के कुकर्म को देखकर आपको भी बहुत मज़ा आ रहा है."

झड़ने के बाद भी तुम्हारे भैया का लौड़ा खड़ा का खड़ा रहा. उन्होने आंखें खोली तो अपनी माँ को बिना ब्लाउज़ के, चूचियां मसलते हुए देखा.

"आराम मिला तुझे, बेटा?" सासुमाँ ने पूछा, "बहुत तड़प रहा था बहु और गुलाबी के लिये. इसलिये मैने सोचा तेरा लन्ड चूसकर झड़ा देती हूँ."
"बहुत आराम मिला, माँ." मेरे वह बोले.
"अब मेरा हाल देख ना!" सासुमाँ अपने नंगी चूचियों को मसलते हुए बोली, "तेरा गरम लौड़ा चूसकर मेरा क्या हाल हो गया है! तेरे पिताजी तो रात को ही मेरी चूचियों को पीयेंगे. तब तक मैं क्या करूं?"
"हाय माँ! मैं चूस देता हूँ तुम्हारी चूचियों को!" मेरे वह बोले.

सासुमाँ ने अपने हाथ पीछे करके अपने ब्रा का हुक खोला और ब्रा को नीचे फेंक दिया. अब उनकी मांसल चूचियां खुल के हिल रही थी. तुम्हारे भैया लालची निगाहों से अपने माँ की चूचियों को देख रहे थे.
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