मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:06 PM,
#25
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
सासुमाँ अब जाकर अपने बेटे के पास पलंग पर बैठ गई. उनका आंचल ढलक रहा था और ब्लाउज़ के ऊपर से उनके विशाल चूचियों के बीच की घाटी दिखाई दे रही थी. तुम्हारे भैया की हालत इतनी खराब थी कि अपनी माँ की चूचियों को भी नज़रों से पीये जा रहे थे.

"क्या देख रहा है रे?" सासुमाँ ने पूछा.
"नही, कुछ नही!" उन्होने कहा और अपनी नज़रें फेर ली.
"सच मे, बलराम, औरत के भूख ने तुझे पागल ही बना दिया है." सासुमाँ हंसकर बोली, "तु तो अपनी माँ पर भी बुरी नज़र डाल रहा है! ठहर, मैं बात करती हूँ बहु से. गुलाबी राज़ी हो या ना हो, बहु का तो फ़र्ज़ बनता है तेरी प्यास बुझाने का!"
"नही माँ!" उन्होने कहा, "ऐसी बात नही है."
"अरे इतना शरमा क्यों रहा है?" सासुमाँ बोली, "तु एक जवान मर्द है. औरत के जोबन पर तेरी नज़र जाना तो स्वभाविक ही है. चाहे वह जोबन मेरा ही क्यों न हो."

फिर अपने आंचल को और थोड़ा नीचे कर के बोली, "वैसे एक ज़माने मे तुने तो मेरे दूध से बहुत खेला है."
"तब मैं बच्चा था, माँ." तुम्हारे भैया बोले.
"हाँ, पर तु जब मेरे दूध से खेलता था और चूसता था, मुझे मज़ा तो आता ही था." सासुमाँ बोली, "तुझे तो पता है, औरत को उसके जोबन दबवाने मे बहुत मज़ा आता है. बहु कह रही थी तुने आज गुलाबी के जोबन से बहुत खेला है?"

तुम्हारे भैया फटी-फटी आंखों से देखते हुए अपनी माँ की बातों को सुन रहे थे. सासुमाँ की रसीली बातें सुनकर उनका लन्ड उनके हाथ के काबू मे ही नही रह रहा था.

"अरे बोल ना!" सासुमाँ हंसकर बोली, "बहुत कसे कसे लगते हैं गुलाबी के जोबन. बहुत मज़ा आया होगा तुझे? मर्दों की रुचि मैं खूब समझती हूँ. तेरे पिताजी को भी कसे कसे जोबन बहुत पसंद हैं. किसी ज़माने मे वह मेरे जोबन को पगालों की तरह दबाते थे. और मुझे स्वर्ग का मज़ा आता था. पर अब मुझमे गुलाबी और मीना बहु जैसी बात कहाँ! उनकी नज़र तो अब गुलाबी और मीना बहु के जवान गोलाइयों को नापती रहती हैं!"

अपनी माँ की बातों को सुनकर तुम्हारे भैया जैसे गनगना उठे. कांपती आवाज़ मे बोले, "माँ, तुम कैसी बातें कर रही हो आज?"
"अरे ऐसे ही मन हुआ तुझसे बातें करूं! तु भी अकेले बिस्तर पर पड़े पड़े ऊब जाता होगा." सासुमाँ बोली, "बहु और गुलाबी तो रसोई मे व्यस्त रहती हैं. तुझे समय कैसे देंगी? सोचा मैं ही तेरा मनोरंजन कर दूं!"

तुम्हारे भैया की हालत देखने लायक थी. 10-15 दिनों से उन्होने कोई चूत नही मारी थी. मैं और गुलाबी पास आकर चूची दबवा रहे थे, चूत मसलवा रहे थे, उनका लन्ड भी हिला रहे थे, पर अपनी चूत नही दे रहे थे. और यहाँ उनकी माँ आकर अपना आंचल गिराकर ऐसी रसीली बातें कर रही थी. उनकी सारी कोशिशों के बावजूद उनका लौड़ा काबू मे नही रह रहा था. वह अपने घुटने मोड़कर अपनी जांघों के बीच अपने खड़े लन्ड को दबा के रखने की कोशिश कर रहे थे.

उनके दयनीय हालत को देखकर, सासुमाँ बोली, "अरे तु ऐसे क्यों पड़ा हुआ है? पेट मे दर्द है क्या?"
"नही माँ." वह बोले.
"तो सीधे होकर आराम से लेट ना!" सासुमाँ बोली और उनको पकड़कर सीधा करने लगी.
"नही, माँ, मैं ऐसे ही ठीक हूँ!" वह अपने जांघों मे अपने खड़े लन्ड को दबाये बोले.

तुम्हारे मामीजी ने अपने बेटे के लुंगी मे नज़र डाली और कहा, "अच्छा, तु इसकी वजह से शरमा रहा है! अरे मैने अपनी जवानी के दिनो मे ऐसे औज़ार बहुत देखे हैं!"
"क्या!" मेरे उनका मुंह खुला का खुला रह गया.
"क्यों मैं कभी जवान नही थी क्या?" सासुमाँ बोली.
"मेरा मतलब....तुमने कहा...तुमने ऐसे औज़र....बहुत देखे हैं..." वह बोले.
"हाँ देखे हैं ना...बहुत से देखे हैं. और उनसे खेला भी है." सासुमाँ बोली, "मै जवानी मे मीना बहु की तरह बहुत नटखट थी. अब तुझे क्या बताऊं, तु तो बेटा है मेरा, पर बहुत जी करता है काश उन दिनो के मज़े फिर से ले पाती."

कुछ देर के लिये सासुमाँ जैसे सपनों मे खो गयी. फिर अपने बेटे को बोली, "अरे तु अब भी वैसे ही पड़ा है? चल सीधे होकर लेट."

तुम्हारे भैया न चाहते हुए भी सीधे होकर लेट गये. अब उनका लौड़ा लुंगी को तम्बू बनाकर खड़ा हो गया.
सासुमाँ ने अपने होठों पर जीभ फेरा और कहा, "बहुत बड़ा है तेरा. तेरे पिताजी जैसा ही है. पूछुंगी बहु से वह पूरा ले पाती है या नही. और हाँ, जब तु गुलाबी के साथ करेगा ना, तो आराम से करना. रामु का उतना बड़ा नही है. बेचारी को तकलीफ़ होगी."
"माँ, तुम्हे कैसे पता रामु का कितना बड़ा है?" उन्होने हैरान पूछा.
"हम औरतें आपस मे बातें नही करती हैं क्या?" सासुमाँ बोली. फिर अपने मुंह को हाथ से ढक कर बोली, "हाय, तुने क्या सोच लिया, मैने रामु के साथ मुंह काला किया है!" फिर वह जोर से हंसने लगी.
"नही...मेरा वह मतलब नही था." तुम्हारे भैया हड़बड़ा के बोले.

हंसी रुकी तो सासुमाँ बोली, "वैसे रामु देखने मे जवान पट्ठा है. बस थोड़ा काला है. पर सुना है गुलाबी को रोज़ बहुत मज़ा देता है."
"माँ, तुम लोग आपस मे यह सब बातें करती हो?" उन्होने पूछा.
"तु नही जानता औरतें आपस मे क्या क्या बातें करती हैं." सासुमाँ बोली, "तेरे पिताजी का कितना बड़ा है, वह मेरे साथ कितना करते हैं, तुने बहु के साथ कहाँ कहाँ किया है....कुछ भी छुपा नही रहता. बहु तो तेरी तारीफ़ किये नही थकती. मुझे बहुत गर्व होता है मेरा बेटा ऐसा बांका जवान है जो अपनी गरम बीवी को रोज़ ठोक-बजाकर तृप्त रखता है."
"कहाँ! वह तो अब मेरे पास ही नही आती है, माँ!" मेरे वह बोले, "ना जाने क्या हुआ है उसे."
"अरे वह सोचती है तेरा पाँव ठीक नही हुआ है. धक्कम-पेली मे चोट बढ़ सकती है."
"मेरा पाँव बिलकुल ठीक हो गया है, माँ!" वह बोले, "बस तुम लोग ही मुझे घर के बाहर नही जाने देते हो."

"ठहर, मैं देखती हूँ.", बोलकर सासुमाँ बेटे के पाँव के पास जा बैठी और धीरे से दबाने लगी. बोली, "यहाँ दर्द है क्या?"
"नही." वह बोले.

सासुमाँ ने अपना हाथ थोड़ा और ऊपर उठाया और घुटनों को दबाकर पूछा, "यहाँ दर्द है?"
"नही, माँ."

सासुमाँ अब उनके जांघों को सहलाने लगी. उनकी आंखें तो बेटे के लुंगी मे खड़े लन्ड पर थी. उन्होने अपना आंचल पूरा गिरा दिया था जिससे ब्लाउज़ और ब्रा मे कसी उनकी बड़ी बड़ी चूचियां दिखाई दे रही थी. बेटे की निगाहें भी माँ की चूचियों पर ही थी. दोनो की सांसें फूल रही थी और आंखों मे लाल डोरे तैर रहे थे.

तुम्हारे भैया के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था और मैं चौखट के आड़ से अन्दर का नज़ारा देख रही थी. अचानक किसी ने मेरी चूचियों को पीछे से दबाया. मैं मुड़ी तो देखा तुम्हारे मामाजी है. मुझे चुप रहने का इशारा करके वह मेरे साथ अन्दर देखने लगे.

सासुमाँ ने बेटे की लुंगी लगभग कमर तक चढ़ा दी और वह अपने हाथ बेटे के जांघों के ऊपर की तरफ़ ले गयी और लगभग उनके लौड़े के पास दबाने लगी. "यहाँ दर्द है?" वह भारी आवाज़ मे बोलीं.
"माँ, मेरे पाँव मे मोच आया था, जांघ मे नही." मेरे वह बोले.
"तु चुप बैठ. कभी कभी पाँव का दर्द ऊपर चढ़ जाता है." सासुमाँ बोली और लौड़े के पास जांघों को दबाने लगी. लुंगी ऊपर उठ जाने की वजह से उनका काले रंग का मोटा पेलड़ लुंगी के नीचे से नज़र आ रहा था.
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