RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने सोचा था सब सो चुके होंगे, पर दरवाज़े के बाहर अपने देवर किशन को देखकर मैं चौंक उठी. वह भी मुझे देखकर सकपका गया.
कमरे के बाहर बैठकखाने की बत्ती जल रही थी और मुझे अपने अध-नंगेपन का ऐहसास होने लगा. मैने सिर्फ़ अपनी पेटीकोट पहनी हुई थी और ऊपर से नंगी थी. अपनी समेटी हुई साड़ी से अपने चूचियों को ढकने की कोशिश करते हुए मैं बोली, "देवरजी, तुम यहाँ?"
किशन हकलाने लगा और बोला, "भ-भाभी...वह म-मै तो बस यूं ही...रसोई की तरफ़ जा...जा रहा था...प-पानी पीने."
मैने उसे ऊपर से नीचे देखा तो पाया उसका औज़ार पजामे के अन्दर ठनका हुआ है. उसने अपने हाथों से अपने लौड़े को पजामे मे दबाने की बेकार कोशिश की.
"सच बोल रहे हो तुम, या फिर कुछ और कर रहे थे मेरे दरवाज़े के पास?" मैने पूछा. मुझे तो पूरा अंदाज़ा हो गया था कि किशन दरवाज़े की फांक से अपने भैया भाभी को जवानी का मज़ा लेते देख रहा था.
"नही, भाभी, म-माँ कसम! मैं सच ब-बोल रहा हूँ." किशन बोला.
बल्ब की धीमी रोशनी मे मेरा गोरा अध-नंगा शरीर किशन सामने था और वह मेरी जवानी को आंखों से पीये जा रहा था. मैं अपने पति के साथ चुदाई ना कर पाने की वजह से बहुत चुदासी हुई पड़ी थी. मेरा मन डोल गया. जी हुआ अपने देवर को उसके कमरे मे ले जाकर अपने सारे जलवे दिखाऊं और फिर उससे चुदाई करवाऊं. पर मैने जल्दबाजी करना उचित नही समझा. दिल पर पत्थर रखकर मैने कहा, "देवरजी, इस बारे मे हम कल बात करेंगे. जाओ, पानी पीकर सो जाओ!"
किशन छुटते ही रसोई की तरफ़ भागा. मैं अपने सास-ससुर के कमरे मे गयी. सोचा सासुमाँ के साथ ही सो जाऊंगी.
दरवाज़ा खट्खटाने पर सासुमाँ ने दरवाज़ा खोला. मुझे देखकर बोली, "क्या हुआ, बहु? और तु अध-नंगी क्यों है?"
मैने कहा, "माँ, आपके बेटे बहुत ज़िद कर रहे थे, तो मैने सोचा आपके कमरे मे सो जाऊं."
सासुमाँ हंसी और बोली, "अच्छा किया तु आई. बलराम को तुने बहुत चढ़ा दी है क्या?"
"हाँ. वह खुद चल पाते तो मुझे पटक कर अपनी दस दिनो की हवस मिटा लेते!"
सासुमाँ बिस्तर पर लेट गई. मेरे पास ब्लाउज़ और ब्रा तो था नही, पर मैने साड़ी पहनी शुरु की तो सासुमाँ बोली, "अरे बहु, तु साड़ी क्यों पहने लगी? आज ऐसे ही सो जा. तुझे तो सोनपुर मे मैने पूरा नंगा देखा है."
वैसे तो सासुमाँ और मैने सोनपुर मे एक दूसरे के सामने चुदाई भी की थी, पर मुझे थोड़ी शरम सी लगने लगी. मैने बत्ती बुझा दी और अपनी साड़ी एक कुर्सी पर रखकर उनके बगल मे एक चादर ओढ़कर लेट गई.
कुछ देर बाद सासुमाँ बोली, "बहु, सोनपुर की बहुत याद आ रही है. हम सबने बहुत मज़े लिये थे वहाँ."
मैं बोली, "माँ, विश्वनाथजी कह रहे थे उन्होने आपके साथ ट्रेन मे भी किया था?"
"हाँ रे!" सासुमाँ एक खुशी की सांस छोड़ती हुई बोली. "मेरे मैके जाते समय ट्रेन लगभग खाली ही थी. हम दोनो एक खाली कूपे मे बैठ थे. पहले तो विश्वनाथजी मेरी जांघों को सहलाने लगे, फिर मेरी चूचियों को दबाने लगे. मैने थोड़ा नखरा किया तो वह बोले, ’भाभीजी, आप कल रात चार-चार का लन्ड ली हैं. बस मुझे ही मौका नही मिला. कहो तो आपके पति को सब बता दूँ?’"
"फिर आपने क्या कहा?" मैने पूछा.
"सच बात तो यह थी कि मैं खुद उनसे चुदने को तैयार बैठी थी." सासुमाँ बोली, "मैने उन्हे अपनी चूचियां दबाने दी. कुछ देर बाद, नीचे से मेरी साड़ी मे हाथ डालकर मेरी चूत मे उंगली करने लगे. मेरी चूत तो बहुत ही गीली हो गयी थी. मुझे बोले, ’चलो भाभीजी, तुम्हे टॉलेट मे ले जाकर चोदते हैं.’ मैं तो घबरा गई."
"फिर?"
"फिर क्या, विश्वनाथजी कोई सुनने वाले लोगों मे हैं क्या?" सासुमाँ बोली, "मुझे जबरन टॉलेट के पास ले गये. उधर कोई नही था. एक टॉलेट खोलकर पहले मुझे अन्दर घुसा दिये, फिर खुद घुस गये. दरवाज़ा बंद करके वह मेरे ब्लाउज़ के हुक खोलने लगे. मैने कहा कि ऐसे ही साड़ी उठाके कर लो, पर वह माने नही."
"आपको पूरा नंगा कर दिया?"
"हाँ रे. मेरी साड़ी, ब्लाउज़, पेटीकोट सब उतार दिया. फिर खुद भी पूरे नंगे हो गये. क्या मज़ा आ रहा था चलती ट्रेन मे उनके नंगे बदन से अपने नंगे बदन को चिपकाने मे! डर भी लग रहा था कि कोई आ न जाये, और डर की वजह से मज़ा दुगना हो गया था." सासुमाँ बोली. "और ओह! कैसे खूंटे की तरह खड़ा था उनका विशाल लन्ड! मैं तो नीचे बैठकर कुछ देर उनका लन्ड जी भर के चूसी. फिर उन्होने मुझे आगे की तरफ़ झुकाया और पीछे से मेरी चूत मे अपना मूसल घुसा कर चोदने लगे."
"बहुत मज़ा आया होगा आपको?"
"हाँ, बहु. कभी मौका मिले तो ट्रेन मे किसी से चुदवाके देखना." सासुमाँ बोली, "ट्रेन तेजी से चल रही थी और डिब्बा जोरों से हिल रहा था. ट्रेन की ताल पर विश्वनाथजी मेरे चूचियों को मसलते हुए मुझे पेले जा रहे थे. मैं तो न जाने कितनी बार झड़ी. आते समय मैं खुद ही विश्वनाथजी को बोली कि मुझे ट्रेन के टॉलेट मे ले जाकर चोदें."
हुम कुछ देर अंधेरे मे चुपचाप लेटे रहे. आंखों मे नींद नही थी. मैं अपनी नंगी चूचियों को दोनो हाथों से मसल रही थी.
अचानक, सासुमाँ ने अपना हाथ मेरे एक चूची पर रखा और बोली, "बहु, अपने हाथों से कभी चूची दबाने का मज़ा आता है?" और फिर मेरे हाथ हटाकर मेरे निप्पल को छेड़ने लगी. मैं गनगना उठी.
"बहु, बहुत चुदवाने का मन कर रहा है क्या?" सासुमाँ ने भारी आवाज़ मे पूछा. वह कभी मेरी एक चूची को कभी दूसरी चूची को मसल रही थी.
"हा, माँ." मैने जवाब दिया.
"मै भी बहुत चुदासी हूँ." वह बोली. वह मेरे बहुत करीब आ गयी थी.
अचानक मैने उनकी सांसों को अपने चेहरे पर पाया, और वह मेरे होठों को पीने लगी.
वीणा, औरत के होठों मे वह बात नही जो एक मर्द के होठों मे होता है, पर इस वक्त मेरी जो हालत थी, मुझे सब कुछ मंज़ूर था. मैं भी पूरा साथ देकर सासुमाँ के होंठ पीने लगी. मैने उनके सीने पर हाथ रखा तो देखा कि उन्होने पहले से ही अपनी ब्लाउज़ और ब्रा उतार दी थी. तुम्हारी मामीजी थोड़ी मोटी हो गयी हैं और उनकी चूचियां काफ़ी बड़ी बड़ी हैं. हम दोनो एक दूसरे की चूचियों को मसल कर मज़ा देने लगे.
फिर सासुमाँ ने अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को एक एक करके मेरे मुंह मे ठूंसना शुरु किया. उनके मोटे मोटे निप्पलों को चूस चूसकर मैने उन्हे मज़ा दिया. फिर उन्होने मेरी जवान चूचियों को पिया.
"हाय बहु, क्या गोल, नरम चूचियां है तेरी!" सासुमाँ बोली, "तभी तो इन्हे पी पीकर तेरे ससुर का मन नही भरता!"
"माँ, आपकी चूचियां भी बहुत सुन्दर हैं." मैने कहा. "अपनी साड़ी उतारिये ना!"
सासुमाँ ने उठकर अपनी साड़ी उतार दी, फिर पेटीकोट भी उतारकर पूरी नंगी हो गयी. अंधेरे मे कुछ दिखाई नही दे रहा था. वह फिर मेरे ऊपर लेट गयी और मेरे पेटीकोट के नाड़े को खोल दी.
मैने पेटीकोट को पाँव से अलग कर दिया. अब हम दोनो सास-बहु पूरी तरह नंगे होकर एक दूसरे से लिपटे हुए थे. हमारे होंठ एक दूसरे की गहरी चुम्बन ले रहे थे और हमारे हाथ एक दूसरे की चूचियों को मसले जा रहे थे. सासुमाँ मेरे ऊपर लेटकर अपनी चूत से मेरी चूत को रगड़ रही थी. काफ़ी मज़ा आ रहा था और हम दोनो एक दो बार ऐसे ही झड़ गये.
फिर सासुमाँ उठी और मेरी चूत की तरफ़ घूम गई. अपने दोनो पैर मेरे दोनो तरफ़ रखकर उन्होने अपनी मोटी बुर मेरे मुंह पर रख दी और बोली, "बहु, ज़रा चाट दे मेरी चूत को. मैं भी तेरी चूत चाट देती हूँ." फिर झुक कर मेरी गरम, गीली चूत को चाटने लगी. किसी औरत के साथ मैने कभी 69 नही किया था, पर मुझे बहुत मज़ा आया.
मेरी जीभ जैसे सासुमाँ की बुर मे गयी वह कराह उठी. "आह!! ऊम्म!! बहु, बहुत अच्छा चाट रही है. पहले भी चाटी है क्या किसी की चूत?"
"नही माँ." मैने कहा.
"तो सीख ले. काफ़ी मज़ा आता है औरतों के साथ जवानी का खेल खेलने मे भी." सासुमाँ बोली, "मैं तो बचपन से अपनी छोटी बहन से साथ कर रही हूँ. मुझे जवान लड़कियाँ अच्छी लगती हैं चूसने चाटने के लिये. गुलाबी जल्दी से लाईन पर आ जाये तो मैं उसकी चूचियां और चूत चूसकर खाऊंगी. हाय बहु, तेरी चूत कितनी स्वादिष्ट है! आह!! और अच्छे से चाट, बहु!"
"हाय माँ, मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है!" मैने कहा, "उम्म!!"
कुछ देर बाद सासुमाँ बोली, "बहु, पूरा मज़ा नही आ रहा. जा रसोई मे देख, लंबे बैंगन होंगे. दो मझले आकर के बैंगन ले आ."
मैने उठकर बत्ती जलाई और अपनी साड़ी लपेटने लगी, तो सासुमाँ बोली, "अरी, साड़ी क्यों पहन रही है. ऐसे ही नंगी चली जा. सब सो चुके हैं. कोई नही देखेगा."
"हो सकता है देवरजी जगे हों." मैने कहा, "जब मैं और मेरे वह नंगे होकर थोड़ा प्यार कर रहे थे, देवरजी दरवाज़े के फांक से हमे देख रहे थे. मैं जब बाहर निकली तो उन्हे पकड़ लिया."
"हाय, तु अध-नंगी किशन के सामने चली गई?" माँ बोली.
"मुझे क्या पता था वह बाहर खड़े है! आंखे फाड़ फाड़कर मेरे अध-नंगे बदन को देख रहे थे. लौड़ा तो तनकर तम्बू हो गया था." मैने कहा.
"चलो अच्छा हुआ." सासुमाँ हंसकर बोली, "अब तुझे नंगा देखेगा तो कहीं बलात्कार न कर बैठे!"
सासुमाँ के कहने के मुतबिक मैं नंगी ही दरवाज़े के बाहर चली गई. बाहर की सारी बत्तियां बंद थी और अंधेरा था. पर किशन के कमरे मे तब भी रोशनी थी. मुझे इस तरह नंगे बाहर निकलने मे बहुत रोमांच हो रहा था. अगर कोई देख लेता तो मैं क्या जवाब देती? अब मुझे समझ मे आया कि सासुमाँ ने ट्रेन के टॉलेट मे विश्वनाथजी से क्यों चुदवाया था. पकड़े जाने का डर यौन सुख को और बढ़ा देता है.
रसोई मे बत्ती जलाये बिना मैने उस दराज़ को खोला जहाँ सब्जियां रहती हैं. टटोलकर दो मोटे-मोटे लंबे बैंगन उठाये और रसोई से बाहर आ गई. उत्तेजना से मेरा नंगा शरीर कांप रहा था. बैंगन लेकर सासुमाँ के पास जाने ही वाली थी कि मैने सोचा क्यों न देखा जाये किशन इतनी रात को जगकर क्या कर रहा है.
वीणा, हमारे घर मे सारे दरवाज़े पुरानी लकड़ी के हैं. उनमे जगह जगह दरारें और फांक पैदा हो गये है. उन फांकों से अन्दर देखना बहुत आसन है. मैने किशन के कमरे मे झाँका. वह अपने बिस्तर पर पूरी तरह नंगा लेटा हुआ था और एक पतली सी किताब पढ़ रहा था. उसका लन्ड खड़ा था और एक हाथ से वह उसे हिलाये जा रहा था.
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