मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:05 PM,
#14
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
चौथे दिन शाम को मामाजी के घर से बलराम भईया का खत आया कि उनको बहुत जोर की मोच लग गयी है और वह चल नही पा रहे हैं. उन्होने हमें जल्द से जल्द लौटने को कहा. मामाजी ने जाकर अगले दिन की टिकट बना ली. हम सब उदास हो गये क्योंकि हमारे मौज-मस्ती के दिन पूरे होने वाले थे.

उस शाम को मामीजी के कहने पर विश्वनाथजी जाकर रामेश, सुरेश, दिनेश, और महेश को बुला लाये.

शाम से ही बोतल पे बोतल शराब चलने लगी. भाभी, मामीजी, और मैने बहुत शराब पी. जब सब को बहुत नशा हो गया तब हम 9 लोग पूरी तरह नंगे हो गये. 6 मर्दों ने मिलकर एक ही बिस्तर पर हम तीनो औरतों की जम कर चुदाई की. एक एक औरत को दो दो आदमी चोद रहे थे. कोई हमारी चूत मार रहा था तो कोई गांड मार रहा था या मुँह चोद रहा था. मैं भाभी की चुदाई देख देख कर अपनी बुर चुदा रही थी, तो भाभी अपनी चूत और गांड मे एक साथ लण्ड लिये अपनी सास की चुदाई देख रही थी. बदल बदल के उन 6 आदमीयों ने हम 3 औरतों को चोद चोदकर बर्बाद कर दिया. हमारे गर्भ मे उन्होने ना जाने कितनी बार अपना वीर्य भरा. रात के 2 बजे जाकर हम सब थक कर सो गये.
अगले दिन अपना सामान पैक कर के हम स्टेशन की तरफ़ चल पड़े. जाते समय मामाजी ने विश्वनाथजी को हाज़ीपुर आने का न्योता दिया जिसे उन्होने खुशी खुशी मान लिया.


ट्रेन मे ज्यादा भीड़ नही थी. हम सब एक खाली कूपे मे बैठ गये.

ट्रेन चलने पर मामाजी बोले, "देखो जो कुछ सोनपुर मे हुआ वह बात यहीं रह जायेगी. पर हाज़ीपुर जाकर हमें बहुत ध्यान से चलना पड़ेगा. किसी को भनक भी पड़ गयी तो गज़ब हो जायेगा."

भाभी नखरा करके बोली, "तो क्या बाबूजी, हम घर मे मज़ा नही कर पायेंगे? आपसे बिना चुदे तो मैं एक दिन भी नही रह पाऊंगी!"
मामाजी- "अरे नही बहु, हम मज़ा तो करेंगे. पर छुपके करना पड़ेगा. घर मे बलराम है, किशन है, नौकर रामु और उसकी जोरु भी है..."
भाभी- "देवरजी (किशन) को तो मै सम्भाल लूंगी!"
मामाजी- "क्या मतलब?"
भाभी- "बाबूजी, यही तो उम्र है देवरजी की जवानी का मज़ा लेने के लिये! देखिये कैसे दो ही दिनो मे मै उसे मेरी चूत मारने के लिये पागल कर देती हूँ! फिर मै आपसे चुदुंगी तो वह कुछ नही बोलेंगे."
मामाजी- "बहु, तू तो एकदम रांड बन गयी है सोनपुर आ के! मेरे छोटे बेटे को भी नही छोड़ेगी?"
भाभी- "अरे छोड़िये ना, बाबूजी! सोनपुर मे कितना मज़ा आया खुलकर चोदा-चोदी करने मे. हाज़ीपुर जाकर मैं छुपते-छुपाते नही चुदाने वाली. मुझे बिलकुल मज़ा नही आयेगा."
मामीजी- "ठीक ही तो कह रही है बहु! किशन अब बड़ा हो गया है. घर मे चूत नही मिलेगी तो गाँव की औरतों पर मुँह मारने लगेगा. घर की बात घर मे ही रहे तो अच्छा है. किसी को क्या पता चलेगा कि भाभी देवर से चुदवा रही है?"
मामाजी- "वह तो ठीक है कौशल्या, पर रामु का क्या करेंगे. वह तो घर का आदमी नही है."
भाभी- "वह भी आप मुझ पर छोड़ दीजिये, बाबूजी! पहले मै रामु को पटा कर उससे चुदवा लूंगी. वैसे भी वह हर वक्त मेरी गोलाईयों को घूरता रहता है. फिर उसकी जोरु को पटाकर पहले देवरजी और फिर आपसे चुदवा दूंगी. फिर रामु अपना मुँह नही खोल पायेगा."
मामाजी- "अरे बहु, तूने तो सब कुछ सोच रखा है रे! सच, बहु हो तो ऐसी, क्यों कौशल्या? वैसे रामू की जोरु गुलाबी है बहुत कड़क माल! चोली मे उसके जवान चूचियों को देख कर मेरा तो लण्ड खड़ा हो जाता है. कैसे चूतड़ मटका मटका कर नाज़ से चलती है. उसे पटक कर चोद सकूं तो मज़ा ही आ जाये!"
भाभी- "बाबूजी आप मुझे थोड़ा वक्त दीजिये. जल्दी ही आप गुलाबी को उसके पति के सामने पटक कर चोद सकेंगे!"

सब लोग आने वाले दिनो के मज़े के बारे मे सोच कर खुश हो रहे थे. मैने कबाब मे हड्डी फेंक कर कहा, "आप लोग बलराम भईया को तो भूल ही गये! जब वह देखेंगे कि उनकी प्यारी बीवी अपने ससुर, देवर, और नौकर से सामुहिक चुदाई खा रही है, तो वह क्या बैठकर अपना लौड़ा हिलायेंगे? वह तो थाने मे जाकर आप सब पर केस ठोक देंगे! फिर जेल की चक्की पीसना सब लोग!"

मामीजी मुसकुराकर बोली, "मेरे बलराम को मैं सम्भाल लूंगी!"

"आप सम्भाल लेंगी!!" हम सब ने हैरान होकर मामीजी की तरफ़ देखा.

मामीजी- "सब लोग मुझे ऐसे क्या देख रहे हो? तुम सब ने अपना अपना इंतजाम कर लिया. बहु को चार चार लौड़े मिलेंगे. मुझे क्या मन नही करता सोनपुर की तरह सामुहिक ठुकाई खाने का?"
मामाजी- "तुम्हारे लिये मैं हूँ ना, कौशल्या! और रामु भी तो होगा."
मामीजी- "दो से मेरा क्या होगा? और तुम्हारा लण्ड तो मैं बरसों से ले रही हूँ."
मामाजी- "पर बलराम तुम्हारा अपना बेटा है, कौशल्या! यह तुम क्या कह रही हो?"
मामीजी- "तुम तो जी कुछ बोलो ही मत! हफ़्ते भर से अपनी सगी भांजी की चूत मार रहे हो, और यहाँ शराफ़त की माँ चुदा रहे हो!"
मामाजी- "कौशल्या, मामा-भांजी की चुदाई अलग बात है. पर तुम अपने बेटों से चुदवाने जैसी घिनौनी बात सोच भी कैसे सकती हो!"
मामीजी- "क्यों जी, तुम्हे सही-गलत का ठेका किसने दिया है? तुम्हारी बीवी और बहु हफ़्ते भर से रंडीयों की तरह सब से चुदती रही तब तुमने कुछ भी नही कहा. तुम्हारी बहु घर जा के अपने देवर और घर के नौकर से चुदवाने का कार्यक्रम बनाये बैठी है, पर तुम कुछ नही कह रहे हो. क्यों? क्योंकि तुम्हे भी अपनी हवस पूरी करने का मौका मिल रहा है. हमारी कोई बेटी होती तो मुझे पूरा यकीन है कि तुम अपनी हवस मिटाने के लिये उसे भी बर्बाद करके छोड़ते. तो मैं क्या गलत कर रही हूँ? मुझे अपने दो जवान पठ्ठों जैसे बेटों से चुदवाने का मन कर रहा है. देखती हूँ तुम कैसे मुझे रोकते हो!"

मैने झगड़ा मिटाने के लिये कहा, "मामाजी, मामी ठीक ही तो कह रही हैं. सोनपुर मे हम सब ने जो अय्याशियाँ की हैं, उसके बाद हमे मामीजी को कुछ कहने का हक नही बनता. जिसको जो करने मे मज़ा मिलता है उसे वह करने देना चाहिये."
भाभी- "वह सब तो ठीक है, माँ, पर आप यह सब करेंगी कैसे?"
मामीजी- "वह मुझ पर छोड़ बहु! बस तू गुलाबी को एक बार बलराम से चुदाने की व्यवस्था कर देना. फिर जैसा मैं कहूँ वैसा ही करना. जल्दी ही मैं अपने दोनो बेटों से अपना बिस्तर गरम करने लगुंगी. और तुम सब को भी घर मे खुल कर चुदाई करने की पूरी आज़ादी हो जायेगी."

यह सुन कर सब बहुत खुश हो गये. मामाजी ने भी और कोई आपत्ती नही की. पर मैने कहा, "आप सब तो हाज़ीपुर जाकर बहुत मज़े करेंगे. पर मेरा क्या होगा? घर जाने के बाद माँ और पिताजी मुझे लण्ड सूँघने का भी मौका नही देंगे! मैं तो बिना चुदाई के मर ही जाऊंगी!"

मामाजी बोले, "अरे बिटिया, हाज़ीपुर जाकर हम तुझे भूल थोड़े ही जायेंगे? हर 2-3 महीने मे तुझे अपने यहाँ बुला लेंगे. तू 1-2 हफ़्ते मज़े करके वापस अपने घर चली जाना!"
मैं- "उससे मेरा क्या होगा मामाजी! मुझे तो अब चुदाई की लत लग गयी है. मुझे तो रोज़ 2-3 लण्ड चाहिये!"
भाभी- "उदास मत हो, वीणा! तेरे लिये भी मैने कुछ सोच रखा है."
मैं- "क्या भाभी?"
भाभी- "समय आने पर बताऊंगी. पर अफ़्सोस, अभी तो कुछ दिन तुझे उपवासी रहना पड़ेगा."

इस तरह बातें करते करते हाज़ीपुर स्टेशन आ गया. मामीजी और भाभी उतर गयीं. मामाजी मुझे मेरे घर तक छोड़ कर अगले दिन हाज़ीपुर चले गये. और इस तरह मेरी मेले की सैर समाप्त हुई. 


मामाजी और मै शाम तक एक तांगे मे बैठकर गाँव मेहसाना पहुंचे. मामाजी के आवाज़ लगाते ही मेरे पिताजी, मेरी माँ, और मेरी छोटी बहन नीतु घर के बाहर आये. मामाजी ने अपने जीजा (मेरे पिताजी) और अपनी दीदी (मेरी माँ) के पाँव छुये.

"गिरिधर, कोई परेशानी तो नही हुई सोनपुर के मेले मे?" पिताजी ने मामाजी से पूछा.
"नही, जीजाजी." मामाजी मुझे आंख मारकर बोले, "परेशानी कैसी? बहुत मज़ा लिया वीणा बिटिया ने!"

सुनते ही नीतु बिफर पड़ी, "पिताजी! देखिये वीणा दीदी ने कितना मज़ा किया मेले मे! आप लोगों ने मुझे जाने ही नही दिया!"
पिताजी नीतु को बोले, "अरे तू कैसे जाती, बेटी? इतना बुखार था तुझे उस दिन!"
मामाजी बोले, "नीतु बिटिया, अगले साल जब सोनपुर मे मेला लगेगा हम तुझे ज़रूर ले जायेंगे!"

यूं ही बातें करते हुए हम अन्दर आ गये. रात के खाने तक हम सब सिर्फ़ मेले के बारे मे ही बातें करते रहे. मामाजी और मुझे बहुत कुछ बना-बना कर बोलना पड़ा क्योंकि हम लोगों ने मेला तो कम देखा था और बाकी सब कुकर्म ही ज़्यादा किये थे.

रात को खाने के बाद हम सोने चले गये. मामाजी को मेरे कमरे मे सोने को दिया गया. मैं उस रात नीतु के कमरे मे सोई.

नीतु काफ़ी रात तक मुझसे मेले के बारे मे पूछती रही फिर थक कर सो गयी.

उसके सोते ही मैं बिस्तर से उठी, धीरे से दरवाज़ा खोलकर बाहर आयी और अपने कमरे की तरफ़ गयी जहाँ मामाजी सोये हुए थे.

मैने दरवाज़ा खट्खटाया तो मामाजी ने खोला. "अरे वीणा बिटिया, तू यहाँ इतनी रात को?" उन्होने पूछा.

कमरे मे काफ़ी अंधेरा था. अटैचड बाथरूम की बत्ती जल रही थी जिससे थोड़ी रोशनी आ रही थी.

मैने अपने पीछे दरवाज़ा बंद किया और खाट पर जा बैठी.

"मामाजी, मुझे नींद नही आ रही है!" एक कामुक सी अंगड़ाई लेकर मैने कहा.
"तो मेरे कमरे मे क्यों आयी है?" आवाज़ नीची करके मामाजी ने पूछा.
"चुदवाने के लिये, और क्या?" मैने कहा, "आप कल चले जायेंगे. फिर न जाने मेरी किस्मत मे कब कोई लौड़ा होगा. इसलिये आज रात जी भर के आपसे चुदवाऊंगी."
"हश!! धीरे बोल, पागल लड़की!" मामाजी बोले, "यह विश्वनाथ का कोठा नही, तेरे माँ-बाप का घर है. दीदी और जीजाजी ने सुन लिया तो मुझे गोली मार देंगे!"
"मै कुछ नही जानती!" मैने हठ कर के कहा, "मुझे आपका लौड़ा चाहिये!"

मामाजी हंसे और बोले, "लौड़ा तो तु ऐसे मांग रही है जैसे कोई लॉलीपॉप हो!"

मामाजी मेरे सामने खड़े थे. मैने टटोलकर लुंगी की गांठ को खोल दी तो लुंगी ज़मीन पर गिर गयी. मैने मामाजी का काला लन्ड अपने हाथ से पकड़ा. उनका मोटा लन्ड पूरा खड़ा नही था पर ताव खा रहा था.

मैने कहा, "मामाजी, आपका लन्ड लॉलीपॉप से कुछ कम नही है. चूस के बहुत स्वाद आता है." बोलकर मैने उनका लन्ड अपने मुंह मे ले लिया और सुपाड़े पर जीभ चलाने लगी.

मामाजी को मज़ा आने लगा. वह दबी आवाज़ मे बोले, "आह! चूस बिटिया, अच्छे से चूस!"

मैं मन लगाकर मामाजी के लन्ड को चूसने लगी और उनके पेलड़ को उंगलियों से सहलाने लगी. जल्दी ही उनका लन्ड फूलकर कड़क हो गया. मामाजी मेरे सर को पकड़कर मेरे मुंह मे अपना लन्ड पेलने लगे.

कुछ देर बाद मामाजी ने मेरे मुंह से अपना लन्ड निकाल लिया और बोले, "चल लेट जा."

मैने खुश होकर अपनी साड़ी उतारनी चाही, तो मामाजी बोले, "कपड़े उतारने का समय नही है. बस लेट कर अपनी टांगें खोल. मैं जल्दी से तुझे चोद देता हूं."
"नंगे हुए बिना मुझे मज़ा नही आयेगा, मामाजी!" मैने आपत्ति जतायी.
"लड़की, अपने बाप के घर मे अपने मामा से चुदवा रही है यही कम है क्या?" मामाजी बोले, "इससे पहले कि किसी को भनक पड़ जाये, अपनी चूत मरा ले और निकल यहाँ से. मेरे घर जब आयेगी तब इत्मिनान से चोदूंगा तुझे."

मै अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठाकर बिस्तर पर लेट गयी, और अपनी दोनो टांगें फैलाकर अपनी चूत मामाजी के आगे कर दी. मेरी चूत इतनी गरम हो गयी थी के उससे पानी चू रही थी.
मामाजी मेरे पैरों के बीच बैठे. अपने 8 इंच के लन्ड का फूला हुआ सुपाड़ा मेरी चूत के फांक मे रखा और एक जोरदार धक्का मारकर अपना लन्ड 3-4 इंच घुसा दिया. मैं अचानक के धक्के से चिहुक उठी.

"चुप, लड़की! मरवायेगी क्या?" मामाजी ने डांटकर कहा.
"थोड़ा बताकर घुसाइये ना!" मैने जवाब दिया.

मामाजी ने अब धीरे से दबाव देकर अपना पूरा लन्ड मेरी संकरी चूत मे घुसा दिया और मेरे ऊपर सवार हो गये. मैने मामाजी को बाहों मे भर लिया और उनके होठों का चुम्बन करने लगी. मेरे होठों को पीते हुए मामाजी अपनी कमर उठा उठाकर मुझे चोदने लगे.
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