RE: Antarvasna kahani हवस की प्यासी दो कलियाँ
बस के एक तरफ तीन सीट्स होती है तो दूसरी दो सीट्स होती…दोनो दो सीट्स वाली तरफ बैठे हुए थे….मैने पीछे बैठ कर ललिता को आवाज़ लगाई…”ललिता इधर आजा…इधर जगह खाली है…” पर मेरे पीछे भी कुछ और स्टूडेंट्स चढ़ रहे थी…हमारे स्कूल की हिन्दी की टीचर सुनीता मेरे पास आकर बैठ गयी….
सुनीता: अर्रे वहाँ बैठे रहने दो ना उसे….मैं तुम्हारे साथ बैठती हूँ…गप्पें मारेंगे सारे रास्ते….
मैं: ललिता आजा ना….
मेने देखा कि राज ने धीरे से ललिता के कान मे कुछ कहा…ललिता ने एक बार मेरी तरफ देखा और थोड़े उदास से चेहरे से बोली…”मैं यही ठीक हूँ मॅम….” मुझे उसकी ये बात सुन कर बहुत हैरानी हुई…खैर बस चली पड़ी…बहुत लंबा सफ़र था..हम ने बीच मे दो बार ब्रेक लिया….और हम दोपहर को 2 बजे डलहौजि पहुँचे ….
जय सर, ने वहाँ पर एक होटेल पूरा का बूरा बुक करवा रख था…होटेल मे 40 रूम थे….हम 5 टीचर्स के लिए एक-2 रूम और 120 स्टूडेंट्स को बाकी के 35 रूम शेर करने थे….लड़कियों के लिए अलग और लड़को के लिए अलग…जय सर और मैथ वाले सर ने मिल कर सब बच्चों को बता दिया कि, कॉन किस रूम मे रहेगा…सफ़र की थॅकन से हम सभी पस्त थे….लंच तो हम ने रास्ते मे ही कर लिया था..
सब अपने -2 रूम्स मे जाकर आराम करने लगे….मैं भी अपने रूम मे पहुँची और फ्रेश होने के बाद बेड पर लेटते ही सो गयी…..डलहौजी का मौसम बेहद ठंडा था. जब मेरी आँख खुली तो 5 बज रहे थे….मैं फ्रेश होकर अपने रूम से बाहर आई तो एक स्टूडेंट्स से पता चला कि सब लोग बाहर होटेल के पार्क मे है…मैं बाहर पार्क मे आ गयी…और बाकी के टीचर्स के साथ जाकर बैठ गयी…
सभी स्टूडेंट्स इधर उधर बैठे हुए एक दूसरे से बातें कर रहे थे…पर मेरी नज़र ललिता को ढूँढ रही थी….पर मुझे ललिता कही दिखाई नही दी….मैं थोड़ा परेशान हो गयी क्योंकि मुझे राज भी कही नज़र नही आ रहा था…मैं चारो तरफ देख रही थी. तभी मुझे होटेल के अंदर से राज आता हुआ नज़र आया…और पार्क मे आया और अपने दोस्तो के पास जाकर खड़ा हो गया….तभी ये देख कर कि ललिता भी होटेल के अंदर से बाहर आ रही है…मैं एक से घबरा गयी….मैं उठ कर ललिता की तरफ गयी….
जैसे ही मैं ललिता के सामने जाकर खड़ी हुई, तो ललिता एक दम से घबरा गयी….उसके चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया….”कहाँ थी तुम सब लोग बाहर है….और तुम अंदर क्या कर रही थी….”
ललिता: जी वो मैं जी….वो मैं वॉशरूम गयी थी….
मैं: मेने देखा राज भी अभी बाहर आया था..तुमसे पहले कही वो तुम्हे परेशान तो नही कर रहा….
ललिता: जी जी नही मैं तो वॉश रूम मे थी…मुझे पता नही….
मैं: ललिता क्या चल रहा सच-2 बताओ…..
ललिता: जी मॅम मैं कुछ समझी नही….
मैं: देखो ललिता मैं तुम्हारी टीचर हूँ…और मुझे तुमसे बहुत ज़्यादा एक्सपीरियेन्स है… सच सच बताओ तुम दोनो के बीच मे क्या चल रहा है….कही वो तुम्हे किसी बात को लेकर ब्लॅकमेल तो नही कर रहा…
ललिता: जी नही मॅम ऐसी कोई बात नही है….
मैं: तो फिर जब मेने तुम्हे बस मे अपने पास बैठने के लिए बुलाया था….तो तुम क्यों नही आई…उसके पास से उठ कर या फिर तुम खुद उसके पास बैठना चाहती थी.
ललिता: नही मेम ऐसे कोई बात नही है सच मे….वो दरअसल मुझे विंडो वाली सीट पर ही बैठना था, क्योंकि मुझे बस मे वॉर्म्टिंग होने लगती है…इसलिए नही आई आपके पास…..आपके पास विंडो सीट नही थी…नही तो मेरा बुरा हाल हो जाता…
मैं: तुम सच कह रही हो ना…
ललिता: यस मॅम…
मैं: अच्छा आओ वहाँ चल कर बैठते है….
फिर सब लोग अपनी मस्ती मे लगे रहे….बाहर पार्क मे रात को डिन्नर की स्टॉल लग गयी थी..क्योंकि हर एक के रूम मे जाकर सर्व करना होटेल वालो के लिए मुस्किल था…हम सब ने वहाँ पर खूब मस्ती की….फिर रात को खाना खाया और अपने -2 रूम्स मे जाकर सो गये…क्योंकि अगली सुबह हम सब को डलहौजी घूमना था….मैं अपने रूम मे बेड पर लेटी सोच रही थी कि, ललिता एक दम से काफ़ी बदल गयी….अब वो राज की माजूदगी मे कम और मेरी माजूदगी मे ज़्यादा परेशान होने लगी थी…
यही एक बात मेरे दिमाग़ मे खटक रही थी….पर मैने तो ललिता को सॉफ-2 कहा था कि, अगर कोई तकलीफ़ हो तो मुझे बता दे….हो सकता है, सच मे उसको कोई प्राब्लम ना हो. और शायद मैं अपने मन मे बसी मर्दो के लिए नफ़रत के कारण ललिता को लेकर ज़्यादा पगेसिव हो रही हूँ…और मैं उस पर कुछ ज़्यादा ही नज़र रख रही हूँ…
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