RE: Antarvasna kahani हवस की प्यासी दो कलियाँ
भैया की आवाज़ और ये लफ़्ज सुनते ही मेरे हाथ पैर काँपने लगे.....नज़ाने क्यों अंदर क्या हो रहा देखने की टीस मन मे उठने लगी....पर अंदर झाँकना ना मुमकिन था....मैं हड़बड़ा कर पीछे हटी, और वापिस जाने के लिए मूडी...तो फिर से एक बार भाभी की आवाज़ ने मेरे कदमो को रोक दिया...
मैं मूड कर फिर से डोर के साथ कान लगा कर खड़ी हो गयी..."आह चेतन नही प्लीज़ हट जाओ….देखो तुम्हारा ये औजार तो सच मैं किसी काम का नही रहा..” शायद भाभी भैया के चंगुल से छूटने की कॉसिश कर रही थी…”अभी दीदी घर पर है मुझे जाने दो ना...कहीं वो उठ गयी तो,
भैया : अच्छा ठीक है लेकन कल मुझे तू अपनी चुनमुनियाँ देगी ना"
भाभी: हां अब तो पीछा छोड़ो मेरा…."
और फिर मुझे दोनो के खिलखिलाने की आवाज़ आई....मैं जल्दी से किचिन मे गयी....और पानी की बॉटल लेकर ऊपेर अपने रूम मे आ गयी....मुझे भैया से अब नफ़रत सी होने लगी थी...वो इंसान जो काम धंधा तो कुछ करता नही.....हमारे पैसो से अयाशी कर रहा है.....और मैं हूँ कि, खुद दिन रात मरती हूँ...
मैं गुस्से से भरी हुई अपने रूम मे आ गयी..........मेरा दिल कर रहा था कि मैं अभी जाकर भाई को धक्के देकर घर से बाहर निकल दूं. पर दुनिया और मरियादाओ के डर से कुछ नही कर सकती थी....मैं अपने रूम मे तो आ गयी थी....पर मेरे अंदर हलचल मची हुई थी....उम्र के 27 साल मे थी. और अभी तक सिर्फ़ सेक्स के बारे मे सुना ही था....और ना ही कभी दिल मे कभी कोई ऐसी हसरत ने जनम लिया था....मुझे तो अपने भाई की करतूतों ने मर्दो से नफ़रत करना सिखा दिया था.....और ना ही मैं चाहती थी...
जब कभी भी कोई रिस्तेदार मेरे लिए, कोई रिस्ता लेकर आता, तो एक अंजान सा डर मेरे दिमाग़ मे छा जाता....मैं नही चाहती थी कि, जो मेरी भाभी के साथ गुज़रा, वो मेरे साथ भी हो...जिसका पूरा ज़िमेदार मेरा भाई था.....उसने ना तो कभी अपनी पत्नी के सुख की परवाह की, और ना ही उसकी ज़रूरतों की, आख़िर वो भी कितने दिनो तक अपने माँ बाप के आगे हाथ जोड़ती रहे…और उनकी कमाई के पैसे खाती रहे. शाम को 5 बजे ट्यूशन के लिए बच्चे आ गये थे…भैया का पता नही कहाँ गये थे…उनको ट्यूशन देने के बाद मेने और भाभी ने रात का खाना तैयार किया….
जैसे तैसे रात हुई......रात का खाना खा कर ऊपेर अपने कमरे मे आई, तो एक बार फिर से मुझे मेरे इस कमरे की तन्हाई ने घेर लिया.....ना कोई दोस्त ना कोई साथी.....जिसके साथ कोई बात करती....तो सोचा कल के लेक्चर के लिए तैयारी कर लेती हूँ....और बुक उठा कर पढ़ने लगी......फिर भी रह-2 कर मन मे ख़याल आता कि, कहीं मैं अपने साथ ही तो बेइंसाफी तो नही कर रही....मैं क्यों अपनी हर ज़रूरत को ख़तम कर के जी रही हूँ.....जब कभी भी बाहर किसी प्रेमी जोड़े या बिहाए जोड़े को देखती.....तो मन मैं एक टीस सी उठती......
पर हार बार मन मार कर रह जाती...शायद ये सुख मेरे नसीब मे नही है....घड़ी की तरफ अचानक नज़र पड़ी, तो रात के 12 बज रहे थी....सुबह स्कूल भी जाना है...चल सो जा.....डॉली...."मेने अपने आप से कहा. और बिस्तर पर लेट गयी..."
अगली सुबह मैं जब उठी, तो लेट हो रही थी.....तैयार होकर नीचे आई तो, भाभी नीचे खड़ी थी...मुझे देखते ही बोली.....
भाभी : दीदी नाश्ता तैयार है.....लगा दूं ?
मैं: नही आज मैं लेट हो रही हूँ....स्कूल मैं ही कुछ खा लूँगी....
मैं तेज कदमो के साथ चलती हुई, मेन रोड की तरफ जाने लगी...डर था कि, कहीं बस ना निकल जाए......आज तो मानो जैसे बदल ज़मीन को छूने के लिए नीचे उतर आए हों...चारो तरफ काले बदल छाए हुए थे...आज हवा में ठंडक थी...जो बयान कर रही थी कि, कहीं बारिस हो रही है.और यहाँ भी होने वाली है....ये सोचते ही, मैं और तेज़ी से चलने लगी......पर मेरे तेज चलने का भी कोई फ़ायदा नही हुआ....एक दम से मानो जैसे बदल फॅट पड़े हो...
और तेज गड्गडाहट के साथ बारिश शुरू हो गयी... मैं जितना तेज चल सकती थी...उतनी तेज़ी से चलते हुए मेन रोड तक पहुँची....पर सर छुपाने के नाम पर वहाँ पर सिर्फ़ पेड़ ही था.....बस अभी तक नही अयेए थी....मैं पैड के नीचे खड़ी होकर बस का वेट करने लगी.....बारिश से से मेरा लाइट पिंक कलर का सूट एक दम भीग चुका था.......और मेरे बदन से इस कदर चिपक गया था...कि मेरेए ब्लॅक ब्रा और पैंटी उसमे से सॉफ झलकने लगी.......रोड पर से आते जाते मोहल्ले और आस पास के इलाक़े के लोग एक बार मेरी तरफ देखते और फिर अपनी नज़रें झुका कर आगे निकल जाते....
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