RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
“डॉक्टर…” उस अधिकारी ने डॉक्टर को पुकारा…
डॉक्टर झट से बॉडी की तरफ गया… और बोला “सर ही ईज़ डेड…”.
वह अधिकारी एक दम से मूड गया और वह जगह छोड़कर वहाँ से चला गया… वह जल्लाद वही बगल मे एक कमरे मे चला गया… वहाँ बाजू मे ही खड़ा एक स्टाफ मेंबर उस चेंबर मे, शायद चेंबर सॉफ करने के लिए घुस गया…. सबकुछ कैसे किसी मशीन की तरह चल रहा था… उन सब का भले ही वह हमेशा का काम हो फिर भी राज के लिए वह हमेशा होनेवाली बाते नही थी.. वह अब भी खड़ा एक एक चीज़ और एक एक हो रही बातें ध्यान से निहार रहा था.
अब डॉक्टर भी वहाँ से चला गया.
वहाँ सिर्फ़ राज अकेला ही बचा… वह अब भी वहाँ चुपचाप खड़ा था, उसके दिमाग़ मे शायद कुछ अलग ही चल रहा हो…
अचानक कोई जल्दी जल्दी उसके पीछे से वहाँ आगया.
“अच्छा… हो गया राज…” पीछे से आवाज़ आई.
राज ने मुड़कर पीछे देखा और उसका मुँह आस्चर्य से खुला का खुला ही रह गया… उसके सामने जल्लाद खड़ा था…. ये तो अभी अभी बगल के कमरे मे गया था…
फिर अभी के अभी ये इधर किधर पीछे से आ गया….
“साहब मुझे चिंता थी कि मेरी अनुपस्थिति मे पॅनल कौन ऑपरेट करेगा…” वह जल्लाद बोला.
“बाइ दा वे किसने ऑपरेट किया पॅनल…?” उस जल्लाद ने राज से पूछा…
राज को एक के बाद एक आस्चर्य के धक्के लग रहे थे…
राज ने बगल के कमरे की तरफ देखा…
“किसने ऑपरेट किया मतलब...? तुमने ही तो ऑपरेट किया…” राज ने अविश्वास के साथ कहा.
“क्या बात करते हो साहब…? में तो अभी अभी यहाँ आ रहा हूँ… कुछ काम से फँस गया था…” उस जल्लाद ने कहा.
राज ने फिर से चौंक कर उसकी तरफ देखा और फिर उस बगल के कमरे की तरफ देखा जिसमे वह थोड़ी देर पहले गया था.
“आओ मेरे साथ… आओ…” राज उसे उस बगल के कमरे की तरफ ले गया.
राज ने उस कमरे का दरवाज़ा धकेला… दरवाज़ा अंदर से बंद था… उसने दरवाज़े पर नॉक किया… अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी… राज अब वह दरवाज़ा ज़ोर ज़ोर से ठोकने लगा… फिर भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी… राज अपनी पूरी ताक़त के साथ उस दरवाज़े को धकेलने लगा.. वह भ्रम मे पड़ा जल्लाद भी अब उसे धकेलने मे मदद करने लगा.
ज़ोर ज़ोर से धकेल कर और धक्के देकर आख़िर राज ने और उस जल्लाद ने वह दरवाज़ा तोड़ा…
दरवाज़ा टूट ते ही राज और वह जल्लाद जल्दी जल्दी कमरे मे घुस गये… उन्होने कमरे मे चारो तरफ अपनी नज़रे दौड़ाई… कमरे मे कोई नही था… उन्होने एक दूसरे की तरफ देखा… उस जल्लाद के चेहरे पर असमंजस के भाव थे तो राज के चेहरे पर अगम्य ऐसे डर के भाव दिख रहे थे.
अचानक उपर से कुछ नीचे गिर गया… दोनो ने चौंक कर देखा… वह एक काली बिल्ली थी, जिसने उपर से छलाँग लगाई थी… वह बिल्ली अब राज के एक दम सामने खड़ी होगयि और एकटक राज की तरफ देखने लगी… वे आस्चर्य से मुँह खोलकर उस बिल्ली की तरफ देखने लगे धीरे धीरे उस काली बिल्ली का रूपांतर मीनू की सड़ी हुई मृत देह मे होने लगा… उस जल्लाद के तो हाथ पैर कापने लगे थे.. राज भी बर्फ जम जाय ऐसा एकदम स्थिर और स्तब्ध होकर उसके सामने जो घट रहा था वह देख रहा था धीरे धीरे उस सड़ी हुई मर्त्देह का रूपांतर एक सुंदर, जवान तरुणी मे हो गया.. हाँ, वह मीनू ही थी… अब उसके चेहरे पर एक सुकून झलक रहा था… देखते देखते उसकी आखों से दो बड़े बड़े आँसू निकल कर गालों पर बहने लगे और धीरे धीरे वह वहाँ से अद्रिश्य होकर गायब हो गयी… दोस्तो ये कहानी यही ख़तम होती है फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त
दा एंड
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