RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
पोलीस की गाड़ी ट्रॅफिक मे रास्ता निकालते हुए साइरन बजाते हुए तेज़ी से दौड़ रही थी और उस गाड़ी के पीछे और चार पाँच गाड़ियों का झुंड जा रहा था. साइरन के आवाज़ की वजह से ट्रॅफिक अपने आप हटकर उन गाड़ियों को रास्ता दे रही थी. उस आवाज़ के वजह से और इतना बड़ा पोलीस की गाड़ियों का झुंड देख कर आसपास के वातावरण मे एक अलग ही उत्सुकता और डर फैल गया था. ट्रॅफिक से रास्ता निकालते हुए और रास्ते से तेडे मेडे मोड़ लेते हुए आख़िर वो गाड़ियाँ अंकित के घर के आस पास आकर रुक गयी. गाड़ियों से पोलीस की एक बड़ी टीम तेज़ी से लेकिन एक अनुशाशन के साथ बाहर निकल गयी.
"चलो जल्दी... पूरे एरिया को घेर लो...क्विक... क़ातिल किसी भी हाल मे अपने हाथ से निकलना नही चाहिए..." राज ने अपने टीम को आदेश दिया.
पोलीस का वह समूह एक एक करते हुए बराबर अनुशाशन मे पूरी एरिया मे फैल गया और उन्होने पूरे एरिया को चारो तरफ से घेर लिया. इतने बड़े पोलीस के समुहके जूतों की आवाज़ से पूरे एरिया मे वातावरण तनाव पूर्ण हुआ था. अडोस पड़ोस के लोग कोई खिड़की से तो कोई पर्दे के पीछे से झाँककर बाहर क्या चल रहा है यह डर से देख रहे थे.
दो तीन पोलीस वालो को लेकर राज एक घर के पास गया. जिस आदमीने पहले अंकित की कहानी बयान की थी वह सकते की स्थिति मे वहीं खड़ा था.
"ज़रा बताइए तो कौन कौन से घर से अंकित के घर की सारी हरकते दिखती है और सुनाई देती है..." राज ने उस आदमीसे पूछा.
उस आदमीने राज को दो-तीन मकान की तरफ उंगली से इशारा करते हुए कहा,
"वे दो... और मेरा एक तीसरा..."
"हमे यह एरिया पूरी तरह से सील करना पड़ेगा..." राज अपने टीम को उन मकान की तरफ ले जाते हुए बोला.
राज ने उन तीन घरों के आलवा और दो-चार मकान अपने कार्यक्षेत्र मे लिए. एक के बाद एक ऐसे वह हर घर की तरफ अपने दो-तीन लागों को ले जाता और घर अगर बंद हो तो उसे नॉक करता था. कुछ लोग जब दरवाज़ा खोलकर बाहर आते थे तो उनके चेहरे पर आस्चर्य और डर के भाव दिखाई देते थे. बीच - बीच मे राज अपने साथियो को वाइयरलेस पर दक्ष रहने के लिए कहता था. ऐसे एक एक घर की तलाशी लेते हुए वे आख़िर एक मकान के पास पहुँच गये. दरवाज़ा नॉक किया. काफ़ी देर तक रुकने के बाद अंदर से कोई प्रतिक्रिया दिख नही रही थी. राज के साथ मे जो थे वे सब लोग अलर्ट हो गये. अपनी अपनी गन लेकर तैय्यार हो गये. फिर से उसने दरवाज़ा नॉक किया, इसबार ज़रा ज़ोर से.. फिर भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही आई...
लेकिन अब राज का सब्र जवाब दे गया,
"दरवाज़ा तोडो..." उसने आदेश दिया.
पवन जो ऐसे कारनामों मे तरबेज़ था, हमेश दरवाज़ा तोड़ने मे आगे रहता था, उसने और और दो चार लोगों ने मिलकर धक्के दे-देकर दरवाज़ा तोड़ दिया. दरवाज़ा टूटने के बाद खबरदारी के तौर पर पहले सब लोग पीछे हट गये अब फिर धीरे धीरे सतर्कता के साथ अंदर जाने लगे.
लगभग सारा घर ढूँढ लिया. लेकिन घर मे कोई होने के कोई आसार नही दिख रहे थे. किचन, हॉल खाली पड़े थे. आख़िर उन्होने बेडरूम की तरह उनका रुख़ किया. बेडरूम का दरवाज़ा पूरी तरह खुला पड़ा था. उन्होने अंदर झाँककर देखा. अंदर कोई नही था, सिर्फ़ एक टेबल एक कोने मे पड़ा हुआ था.
जैसे ही राज और उसके साथ एक दो पोलीस बेडरूम मे गये वे आश्चर्य के साथ आँखें फाड़ कर देखते ही रह गये. उनका मुँह खुला का खुला ही रह गया. बेडरूम मे एक कोने मे रखे उस टेबल पर माँस के टुकड़े और खून फैला हुआ था. सब लोग एक दूसरे की तरफ आश्चर्य और डर से देखने लगे. सब के दिमाग़ मे एक साथ ना जाने कितने सवाल उमड़ पड़े थे. लेकिन किसी की एकदुसरे को भी पूछने की हिम्मत नही बन पा रही थी. राज ने बेडरूम की खिड़की की तरफ देखा. खिड़की पूरी तरह खुली थी..
"यहाँ कौन रहता है...? मालूम करो..."राज ने आदेश दिया.
उनमे से एक पोलीस बाहर गया और थोड़ी देर बाद जानकारी इकट्ठा कर वापस आ गया.
"सर मैने इस मकान मालिक से अभी अभी संपर्क किया था.. वह थोड़ी ही देर मे यहाँ पहुचेगा.. लेकिन लोगों की जानकारी के हिसाब से यहा कोई रमेश नाम का आदमी किराए से रहता है..."वह पोलीस बोला.
"वह आए बराबर उसे पहले मुझ से मिलने के लिए कह दो... फ़ौरेंसिक लोगों को बुलाओ.. और इस अपार्टमेंट मे जब तक सारे सबूत इकट्ठा किए नही जाते तब तक और कोई भी ना आ पाए इसका ख़याल रखो..." राज ने निर्देश दिए..
थोड़ी देर मे बाहर जमा हुई लोगों की भीड़ मे मकान मालिक आगया और मकान मालिक आया... मकान मालिक आया ऐसी खुसुर फुसुर शुरू हो गयी.
"कौन है मकान मालिक...?" राज ने उस भीड़की तरफ जाते हुए पूछा.
एक अधेड़ उम्र आदमी सामने आकर डरते हुए दबे हुए स्वर मे बोला, "में हूँ..."
"तो आपके पास इस आपके किरायेदार का अतापता वाईगेरह सारी जानकारी होगी ही...?" राज ने उससे पूछा...
"हाँ है..." मकान मालिक एक कागज का टुकड़ा राज को थमाते हुए बोला.
राज ने वह काग़ज़ का टुकड़ा लिया. उसपर राजेश का अड्रेस, फोन जैसी सारी जानकारी मकान मालिक ने लिख कर दी थी.
"लेकिन यह सब देखते हुए यह जानकारी जाली और झुटि होगी ऐसा लगता है..." मकान मालिक डरते हुए बोला...
"मतलब...? आपने उसकी सारी जानकारी जाँच कर नही देखी थी...?" राज ने पूछा.
"नही... मतलब.. वह में करने ही वाला था..." मकान मालिक फिर से डरते हुए बोला...
इंस्पेक्टर राज ने अपने बज रहे मोबाइल का डिसप्ले देखा. फोन उसके ही पार्ट्नर का था. एक बटन दबाकर उसने वह अटेंड किया,
"यस..."
"सर हमे मीनू का दोस्त शरद का पता चल चुका है..." उधर से उसके पार्ट्नर का आवाज़ आई.
"गुड वेरी गुड..." राज खुशी होकर बोला.
राज के पार्ट्नर ने उसे एक अड्रेस दिया और तुरंत उधर आने के लिए कहा.
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.... शरद बेड पर पड़ा हुआ था और ज़ोर ज़ोर से खांस रहा था. उसकी दाढ़ी बढ़ चुकी थी और सर के बढ़े हुए बाल भी बिखरे हुए दिख रहे थे. ना जाने कितने दिनो से वह बेड पर इसी हाल मे पड़ा हुआ था. उसका घर से बाहर आना जाना भी बंद हो चुका था.
जब उसकी प्रिय मीनू का बलात्कार और कत्ल हो गया था तब वह इतना निराश और हटबल हो चुका था कि उसे आगे क्या करे कुछ सूझ नही रहा था. उन गुनहगारों को सज़ा हो ऐसा उसे तहे दिल से लग रहा था. लेकिन कैसे वह कुछ समझ नही पा रहा था. ऐसे मायूस और हटबल अवस्था मे वह शहर मे रात के अंधेरे मे पागलों की तरफ सिर्फ़ घूमता रहता तो कभी शाम को बीच पर जाकर डूबते सूरज को लगातार निहारती रहता. शायद उसे अपनी खुद की जिंदगी भी कुछ उस डूबते सूरज की तरह लगती हो. दिन रात पागलों की तरह इधर उधर भटकना और फिर थकने के बाद बार मे जाकर मदिरा मे डूब जाना. ऐसे उसकी दिनचर्या रहती थी. लेकिन ऐसा कितने दिन तक चलनेवाला था. आगे आगे तो उसका घूमना फिरना भी कम होकर पीना बढ़ गया. इतना बढ़ गया कि अब उसकी तबीयत खराब होकर वह ना जाने कितने दिन से बेड पर पड़ा हुआ था. बिस्तर पर पड़ी अवस्था मे भी उसका पीना जारी था. थोड़ी भी नशा उतर जाता तो उसे वह भयानक बलात्कार और कत्ल का द्रिश्य याद आता था और वह फिर से पीने लगता था.
अचानक उसे फिर से खाँसी का दौर पड़ गया. वह उठने का प्रयास करने लगा. लेकिन वह इतना क्षीण और कमजोर हो गया था कि वह उठ भी नही पा रहा था. कैसे तो दीवार का सहारा लेकर वह बेड से उठ खड़ा हुआ. लेकिन अपना संतुलन खोकर नीचे ज़मीन पर गिर गया. उसका खांस ना लगातार शुरू था. खाँसते खाँसते उसे एक बड़ा दौरा पड़ गया और उसके मुँह से खून आने लगा. उसने मुँह को हाथ लगाकर देखा. खून दिखते ही वह घबरा गया.
उठकर डॉक्टर के पास जाना चाहिए....
लेकिन वह उठ भी नही पा रहा था....
चिल्लाकर लोगों को जमा करना चाहिए...
लेकिन उसमे उतनी चिल्लाने की भी शक्ति बाकी नही थी...
क्या किया शरद...?
आख़िर उसने एक निर्णय मन ही मन पक्का किया और वह उसके हाथ मे लगे खून से फर्शपर कुछ लिखने लगा...
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क्रमशः……………………
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