Bhai Behen Chudai मैं ,दीदी और दोस्त
मैं ,दीदी और दोस्त
मित्रो आपके लिए एक और सेक्सी कहानी पेश कर रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगी .
परिचय
बचपन से मुझे प्यार करने वाले कम थे,लेकिन जो मिले वो बेपनाह प्यार करने वाले थे,मैं आकाश एक सीधा साधा सा बन्दा हु मेरी लाइफ भी बड़ी ही साधारण सी है लेकिन साधारण सी चीजो का अपना ही महत्व होता है मेरी सादगी ने मुझे बहुत दिया जो दिया वो थे प्यार करने वाला परिवार और दोस्त,परिवार में माँ बाप थे और एक बड़ी दीदी थी जो मुझसे एक ही साल की बड़ी थी और दोस्तों की बाते मैं आगे बताऊंगा,
मैं बचपन से ही शर्मीले किस्म का लड़का था,और दीदी बड़ी ही तेज और लड़ाकू थी ,सुन्दरता और आत्मविश्वास के कारण और भी खिल जाती थी,जो पहनती पुरे विस्वास से किसी की नहीं सुनती,घर में भी उनका ही हुक्म चलता,अपनी बात मनवाना उन्हें आता था या तो प्यार से ना मने तो मार से, पूरा स्कूल.टीचर और परिवार की चहेती और मेरी पहचान उनके भाई के नाम से ही होती थी,लोग मुझे आकाश कम और नेहा के भाई की तरह ज्यादा जानते थे,मेरी दीदी की एक ही कमजोरी रही वो था मैं,और मेरी कमजोरी भी मैं खुद ही था मेरा स्वभाव ही मेरी कमजोरी रहा,
मेरे बचपन के दोस्तों में एक राहुल ही था जिसे मैं दोस्त कह सकू मुझसे बिलकुल विपरीत था शायद इसलिए मेरा सबसे अच्छा दोस्त बना,राहुल और मैं एक ही क्लास में थे और दीदी हमसे एक क्लास की सीनियर,राहुल की कोई बहन नहीं थी इसलिए वो नेहा दी को ही अपनी बहन मानता था और दीदी भी उसे मेरी तरह ही मानती थी,उनका मानना था की मुझे तो दुनिया दारी की समझ नहीं है पर जब तक राहुल मेरे साथ है मुझे डरने की कोई जरुरत नहीं होगी,राहुल उनके लिए एक ऐसा भाई था जो उनके जान से प्यारे भाई की हिफाजत करता था.
स्कूल के दिनों में दीदी के नाम से राहुल मनमाने काम लोगो से करा लेता था ,जब कोई उसकी बात न मानता तो सीधे दीदी के पास पहुच जाता दीदी के काम निकलने के ढंग भी निराले थे टीचर से प्यार से,लडको को दुसरे लडको का डर दिखा कर और बच्चो को डरा कर या प्यार से काम निकल ही लेती थी,टीचर हमेशा से उनके ही थे,चपरासी से लेकर लेब वाले भईया तक उनकी बात कोई नहीं कटता था,बड़ी गजब का व्यक्तित्व है उनका,कुछ लडको से उनकी दोस्ती थी कुछ स्कूल के उनके क्लास के थे कुछ उनसे बहुत बड़े तो कुछ दुसरे स्कूल के,कुछ गुंडों जैसे भी थे तो कुछ बहुत ही पढ़ाकू जैसे भी थे,समझिये जिनसे वो मिली उससे दोस्ती कर ली....
राहुल भी कुछ ऐसा ही था,पर दोनों की एक ही समानता थी वो था मैं,मेरे लिए दोनों एक ही थे अपनी जान छिडकने वाले..
कहानी तब से सुरु करता हु जब दीदी का स्कूल खत्म हो गया और वो कॉलेज में चली गयी हम उस समय 12 में थे,इंजीनियरिंग कॉलेज था जहा हमारा भी जाना तय ही था उसके बाद मनेजमेंट में जाना और फिर बापू का बिजनेस करना ही हमारी नियति थी..खैर दीदी के जाने के बाद स्कूल में मेरा धयान राहुल ही रखता था,
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