kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
08-17-2018, 02:53 PM,
RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
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गतान्क से आगे…………………………………..

रीमा तो अपने जीजू के साथ मगन थी और अंजलि संजय से लगी हुई थी. लेकिन रजनी...

मेरे नेंदोई वो सुबह की गाड़ी से वापस चले गये थे.

सीढ़ी से उतरते समय नीचे सोनू मिला. मेरे मन में एक बात कौंधी,

हे तू रजनी को...वो बेचारी अकेली है उस का ख्याल क्यों नही रखता.

पर वो...गुड्डी...वो ... वो सोच में पड़ गया.

अर्रे तूने गोविंदा की पिक्चरे नही देखी क्या, एक साथ दो दो...तो तू किस हीरो से कम है.

मन तो उसका भी कर रहा था. मेने और पलिता लगाया.

अर्रे तेरे ही शहर में अगले साल वो मेडिकल की कोचिंग जाय्न करना वाली है, तेन्थ के बाद. एक साल से भी काम समय है. एलेवेन्थ, ट्वेल्फ्त वहीं से करेगी कोचिंग के साथ और अकेले रहेगी. तू उसका लोकल गार्डियन बन के रहेगा.पूरे दो साल...सोच वो एलेवेन्थ, ट्वेल्थ में होगी अकेले, तेरे तो मज़े हो जाएँगे, पटा ले.... माल है.

सच्ची कह रही हो, वो कोचिंग के लिए आ रही है. सच में ए-वन माल है...

लेकिन कहीं गुड्डी ने देख लिया ना तो और जलेगी. फिर दो के चक्कर में एक जो पट रही है वो भी ना हाथ से ...

अर्रे जलेगी तो और जल्दी पटेगी. बस तू देख के आ गुड्डी कहाँ हैं, आधे घंटे तक मे उसे उलझा के रखूँगी तब तक तू उसे चारा डाल. वो शायद किचन में ही होगी.

बस तुम उसको आधे घंटे तक बिज़ी रखना, तब तो मे चारा क्या चिड़िया को पूरा चुग्गा खिला दूँगा, बस देखती जाओ. और वो ये जा, वो जा.

पीछे से सीढ़ियो पे आवाज़ हुई. अंजलि थी, लेकिन बड़ी जल्दी में...मेने जब सामने देखा तो संजय था.

उसके पीछे से रजनी चली आ रही थी, अकेले. मुझे देख के उस का चेहरा खिल उठा. मेने मुस्करा के उस से पूछा, हे सोचा क्या.... वो समझ नही पर, बोली क्या भाभी. मेने उसे याद दिलाया, मेने बोला था ना, 'तेरे भैया की प्यास मे बुझाती हूँ और मेरे भैया की तुम बुझा देना, ' तो तूने बोला था कि सोचूँगी. तो सोचा क्या.

खिलखिला के वो जा रही अंजलि और संजय की ओर इशारे से बोली,

भाभी आप का एक भाई तो बुक हो गया.

तब तक सोनू किचन की ओर से लौट के आ गया. उसने मुझे इशारे से बताया कि गुड्डी किचन में ही है. सोनू टी शर्ट और जीन्स में बहुत स्मार्ट लग रहा था. रजनी उसे एक टक देख रही थी. सोनू की ओर इशारा करके मे बोली,

इस के बारे में क्या इरादा है.

ठीक लग रहा है, ट्राइ कर के देख सकती हूँ...देखूँगी. वो अदा से बोली.

तब तक सोनू पास आ गया था. मेने दोनों से कहा,

हे तुम ट्राइ करो और तुम अपने माल का ख्याल करो...मे तो चली किचन में. मेरी अच्छि ढूढ़नी हो रही होगी.

रजनी सोनू के साथ गयी, सीढ़ियों से कस के हंसते हुए रीमा उनके साथ उतर रही थी. और मे किचन में जा पहुँची.

किचन में तो घमासान मचा था. मेरी जेठानी, गुड्डी के साथ मेरी मन्झलि ननद भी...और वो मुझे देख के ( और शायद इसीलिए और ) अनदेखा करते हुए बोल रही थीं,

कितना काम बचा हुआ है. मुझे अभी सारी पॅकिंग करनी है, 7 बजे ट्रेन है. उसके बाद रजनी लोगों की भी ट्रेन साढ़े आठ बजे है. रास्ते के लिए भी खाना बना के पॅक होना है. फिर सभी लोगों के विदाई का समान...उपर से पिक्चर का अलग से प्रोग्राम बना लिया...दुल्हन के उपर ज़िम्मेदारी होती है. वो कुछ नही, बस बछेड़ियों की तरह...लड़कियो के साथ कुदक्कड़ ...मची हुई है. और करें कल की छोकरि से शादी...मेरा क्या काम काज में आउन्गि...पर घर की ज़िम्मेदारी.

मेरी जेठानी ने आँख के इशारे से मना किया कि मे बुरा ना मानूं. मे क्यों बुरा मानती. जैसे क्लास में कोई शरारती बच्चा देर से आए और चुप चाप बैठ के अपने काम करने लगे मे भी काम में लग गयी. मेने चारो ओर देखा, काम फैला पड़ा था. कुछ देर बाद मेने हिम्मत कर के मन्झलि ननद जी से कहा कि हम लोग किचन के काम सम्हाल लेंगे वो जाके पॅकिंग कर लें.

उन्होने हम लोगों की ओर देखा और भूंभूनाते हुए चली गयीं.

हम सब ने चैन की सांस ली यहाँ तक कि किचन में काम करने वाले महाराज और उनका साथ दे रहे रामू काका ने भी.

मेने जेठानी जी से समझ लिया कि क्या बनाना है. पता चला कि परेशानी पॅक किए जाने वाले खाने की थी. मांझली ननद जी को कुछ और पसंद था, उनके बच्चे को कुछ और, फिर जेठानी जी ने सोचा था कि जो इस समय सब्जी बन रही है वही कुछ उनके लिए पॅक कर दी जाए जो उनको सख़्त नागवार गुज़रा. लड़के की शादी में लड़कियो की विदाई भी पूरी दी जाती है, उसका भी हिसाब किताब सेट होना था, पॅकिंग होनी थी. मेने कहा 'दीदी, ऐसा है आप जा के ननद जी लोगों की जो विदाई है उसका इंतज़ाम करें मे यहाँ सम्हाल लूँगीं.' वो अचरज से बोली, अकेले. मेने हंस के गुड्डी की पीठ पे हाथ फेराते हुए कहा, ये है ना मेरी सहेली. काम करने के लिए ये काफ़ी है, मे तो इसका सिर्फ़ साथ दूँगी.

वो भी चली गयीं, अब बचे सिर्फ़ मे और गुड्डी.

परेशानी सिर्फ़ यही थी...टू मेनी कुक्स ...इन्स्ट्रक्षन देने वाले कयि और काम करने वाले कम...

मेने देखा एक स्टोव रखा हुआ था, गुड्डी से मेने बोला उसे जलाने को और शाम को ले जाने वाली सब्जी उस पे चढ़वा दी. फिर मेरी नज़र माइक्रोवे ओवन पे पड़ी. फिर मेने पूछा, ननद जी के बच्चो के लिए कौन सी सब्जी बनाने के लिए वो बोल रही थीं. वो कटी रखी थी. उसे मेने खुद बना के ओवन में रख दिया और रामू को पॅक होने वाली पूड़ी के लिए आटा गूथने के लिए बोला. गुड्डी से मेने कहा कि ऐसा करते हैं कि स्टोव पे सब्जी जैसे ही हो जाएगी कड़ाही चढ़ा देंगे, पूड़ी के लिए.

अलमारी में मेने ढूँढा, अल्यूमिनियम फ़ॉल भी मिल गया पॅक करने को. वो भी मेने निकाल के समझा दिया कि ले जाने वाली पूड़ी इसमें पॅक करके कैस रोल में रख देंगें. दस मिनट में ही मे ओवेन से सब्जी उतार चुकी थी और चीज़ें रास्टेन पे थीं. गुड्डी को मेने सब समझा दिया और कहा कि वो यहाँ से हीले नही बस सब चीज़ें मेने जैसे बोली है, देखती रहे बस मे ज़रा दीदी के पास से होके आ रही हूँ कि उनकी विदाई वाली पॅकिंग कैसे चल रही है.

गुड्डी बोली, ' आप ने तो...अभी यहाँ कितना तूफान मचा हुआ था और बस दस मिनट में,

अर्रे कमाल तो सब तेरा है, काम तो तू कर रही है, बस तू देखती रहना हिलना नही और उस के गाल पे एक प्यार से चपत लगा के मे बाहर निकल आई.

मे देखना चाहती थी कि सोनू और रजनी का मामला कितने आगे बढ़ा.

सीढ़ी के नीचे एक कमरा था. उसमें शादी की मिठाइयाँ, बाकी सब समान रखा जाता था. उधर कोई आता जाता नही था. मेरा शक था कि वो दोनो उधर ही...और जब मे दरवाजे के पास पहुँची तो मेरा शक सही निकाला. अंदर से हल्की हल्की आवाज़ें आ रही थीं, दरवाजा उठंगा हुआ था. दबे पाँव ...पंजो के बल...मेने देखा, सोनू उसे छेड़ रहा था,

बच्ची, छोटी सी बच्ची...

हे, मे अंजलि दीदी से सिर्फ़ एक साल ही छोटी हूँ, और उन्हे देखो, संजय तो उनसे नही कहता कि ...और नई भाभी भी तो, तुम्हारी दीदी भी मुझसे मुश्किल से तीन साल... वो इतरा के बोली.

तू बच्ची नही है बड़ी हो गयी है. सोनू उससे एक दम सॅट के बैठा था और उसका एक हाथ उसके कंधे के उपर था. उसे और अपने पास खींच के वो बोला.

एक दम...मे टीनएजर हूँ और वो भी पिच्छले पूरे दो सालों से, बच्ची कतई नही हूँ.

' चलो मे मान लेता हूँ कि तुम टीनएजर हो...अगर एक क़िस्सी दे दो. सोनू ने उसे और चढ़ाया.

लेकिन वो गुड्डी की तरह आसानी से हत्थे चढ़ने वाली नही थी.

हे ...हे चलो...मे ऐसे मानने वाली नही हूँ वो झटक के बोली. पर सोनू भी...

तो कैसे मनोगी बोलो ना...ऐसे मनोगी...और उसने सीधे उसक होंठो पे जब तक वो संभली एक ..पच्चक से...क़िस्सी ले ली.

मुझे लगा कि रजनी अब गुस्सा हो के उठ जाएगी और कहीं वो सोनू को....

गुस्सा तो वो हुई पर...गुस्से से वो बोली, क्या करते हो जूठा कर दिया, अभी मे भाभी से शिकायत करती हूँ.

हे हे मे तो डर गया क्या शिकायत करोगी...दीदी से. चिढ़ाते हुए सोनू ने और छेड़ा.

मे कहूँगी ... कहूँगी की...कि तुमने मेरी...ले ...ले ली.

अर्रे ऐसा मत बोलना...वो समझेंगी कि उनकी इस प्यारी ननद की पता नही मेने क्या ले ली.

मे बोलूँगी सॉफ सॉफ डरती थोड़े ही हूँ कि तुमने मेरी...क़िस्सी ले ली.

अगर वो पूच्छें कि कैसे...ली. मुस्कराते हुए सोनू ने कहा.

अब रजनी के लिए भी मुस्कराहट दबानी मुश्किल हो रही थी.

अबकी बार उसने सोनू के होंठो पे एक झटक से क़िस्सी ली और बोली, ऐसे.

अब वो खिलखिला के हंस रही थी, जल तरंग की तरह.

फिर तो सोनू ने भी...पुच्च...पुच्च्पुचक...पुच्चि...पुच्च पुच्च.

अब वो जब रुके तो सोनू ने उसके कसी फ्रॉक से, झलक रहे टीन उभार को साइड से...उंगली के टिप से...हल्के से छूआ, दबाया.

मुझे लगा कि अब वो ज़रूर गुस्सा ...कहीं सोनू को. लेकिन गुस्से की आवाज़ में वो बोली भी और उसने सोनू का हाथ वहीं बूब्स के स्वेल के साइड में पकड़ लिया...लेकिन हटाया नही.

ये क्या करते हो.

तेरा दिल ढूँढ रहा हूँ...जब तुम इतनी प्यारी हो तो तुम्हारा दिल भी...

मेरा दिल ...ग़लत जगह ढूँढ रहे हो, थोड़ी देर पहले यहीं था लेकिन अब मेरे पास नही है.

कहाँ गया ...कौन ले गया... सोनू ने उसके चेहरे के पास अपने होंठ ले जाके पूछा.

एक पल के लिए उसने सोनू के हाथो पे रखा अपना हाथ हटा दिया. सोनू को मौका मिल गया,

उसने एक झटके में उसके रूई के फाहे जैसे मुलायम उरोजो पे अपने हाथ हल्के से दबा के पूछा,

कौन है वो चोर ...बताओ तो उसकी मे ऐसी की...

उभार पे रखे उसके हाथ पे अपने हाथ रख के वो हल्के से बोली,

हे उसकी बुराई ना करो...मे उसको बहुत प्या... फिर वो रुक गयी और बोली, वो...वो बहुत अच्छा है, यही मेरे पास ही है वो फिर ढेर सारी चाँदी की घंटियों की तरह, खनखना के हंस दी.

हँसी तो फँसी...चलो इन लोगों की गाड़ी तो पटरी पे चल निकली. मे दबे पाँवों से वहाँ से खिसकी और अपनी जेठानी के कमरे में जा पहुँची.

वो तीन साड़ियाँ ले के कुछ उधेड़ बुन में पड़ीं थीं. मेरे पूछने पे वो बोली,

अर्रे यार इसमें से कौन सी सारी वो मझली ननद जी की विदाई के लिए निकालू. एक उनके लिए है, एक उनकी देवरानी को देनी होगी और एक रजनी की मा के लिए.

अर्रे तो पूच्छ लीजिए ना, उनसे जो उन्हे पसंद होगा बता देंगी. बूढो की तरह मे बोली.

अर्रे यही फरक है नई बहू में...तू समझती नही. वो चालू हो जाएँगी...जो तुम्हे पसंद हो मेरा क्या है और बताएँगी भी नही.

मे मान गयी उन की बात. पल भर सोचती रही फिर बोली,

दीदी, ऐसा करते हैं आप तीनो साड़ियाँ उनके पास ले जाइए और उन्हे सब बात बता दीजिए.

लेकिन उन्हे अपने लिए सारी पसंद करना के लिए मत बोलिए. सिर्फ़ उनसे कहिए कि आपको उनकी देवरानी की पसंद नही मालूम...क्या वो हेल्प कर सकती हैं. जब वो सेलेक्ट हो जाएगी तो फिर पूच्छ लें कि रजनी की मम्मी के लिए कौन सी सारी ठीक रहेगी.

वो तुरंत चली गयी और लौट के आईं तो उनके चेहरे पे खुशी झलक रही थी,

तूने बहुत सही आइडिया दिया...दोनो उन्होने खुशी खुशी बता दिया.

यही तो दीदी...उन्हे खुद बोलना नही पड़ा कि उन्हे ये वाली चाहिए और उपर से ये भी हो गया कि हर काम उनसे पूच्छ पूच्छ के होता है. मे ने कहा लेकिन वो अभी भी थोड़ी परेशान लग रही थीं क्या बात है दीदी... वो बोली, अर्रे यार अभी मे सब मेहनत से लगा रही हूँ फिर कोई आएगा देखने इनको क्या दिया, उनको क्या दिया...मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी और फिर जलन अलग.

बात उनकी एक दम सही थी. मे फिर बोली,

दीदी ऐसा करते हैं ना...सब गिफ्ट रॅप कर देते हैं फिर कोई खोलेगा भी नही अर्रे मेरी बन्नो, गिफ्ट रॅप का समान कहाँ से मिलेगा. आइडिया तो तेरा सही है...पर मेरी निगाह तब तक मेरे रिसेप्षन में मिले गिफ्ट्स पे पड़ गयी थी. मेने सम्हल के उन्हे अनरॅप किया और फिर सब कपड़े समान को गिफ्ट रॅप करना शुरू कर दिया...और साथ सब पे नाम भी और डिज़ाइन भी...लेकिन मे इस तरह बैठी थी कि मेरी निगाह एक साथ किचन पे और जिस कमरे में रजनी सोनू थे साथ साथ थी.

क्रमशः…………………………….
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