गतान्क से आगे.. "मैं वीरेन का पहला प्यार थी,कामिनी.",देविका उसके बेड पे उसका हाथ थामे बैठी थी,"..लेकिन जब उसने मुझसे कहा की उसे कारोबार मे कोई दिलचस्पी नही & वो मेरे साथ पॅरिस जाके पैंटिंग के बारे मे जितना चाहे सीखना चाहता है तो मुझे ये बात ज़रा भी अच्छी नही लगी.मेरे लिए वीरेन से भी ज़्यादा उसकी दौलत अहम थी.मैं ऐशोआरम की ज़िंदगी गुज़रना चाहती थी.इधर वीरेन 2 महीनो के लिए विदेश गया,उसका प्रोग्राम था की वो सब इंतेज़ाम कर के आएगा फिर हम शादी कर यहा से चले जाएँगे,उधर सुरेन जी मेरे इश्क़ मे पड़ गये.."
"..पहल मैने नही की थी मगर मैने उन्हे रोका भी नही & कुच्छ ही दीनो मे हमारी शादी हो गयी.वीरेन ने इस बात का कभी मुझसे कोई शिकवा नही किया मगर उसके अंदर ही अंदर ये लावा उबल रहा था.उसे हमेशा यही लगता रहा कि मैने ना केवल उसे धोखा दिया बल्कि उसके परिवार को भी उस से अलग किया.."
"..इसी नफ़रत ने उस से ये सब करवाया.",देविका की आँखे नम हो गयी.
"शाम लाल जी भी लालची आदमी थे मगर सुरेन जी 1 बहुत पहुँचे कारोबारी थी & वो उन्हे धोखा नही दे पा रहे थे.इत्तेफ़ाक़न उनकी & वीरेन की मुलाकात हो गयी & दोनो ने 1 दूसरे से अपने दिल की बात कह दी & ये सब प्लान बनाया.",शिवा बात आगे बढ़ा रहा था,"..वो जो इंदर को खत मिला था ना उस खत वाला स और कोई नही शाम लाल खुद थे.अपनी साली को उन्होने शादी के पहले ही अपने जाल मे फँसा लिया था & बाद मे जब वो अपने पति की मौत हो जाने के बाद उनपे शादी के लिए दबाव डालने लगी तो उसे रेल लाइन पे फेंक आए.."
"तुम्हे ये सब कैसे पता?"
"वो मेरे ही हाथो मरा था इसलिए."
"क्या?"
"जी.उस रात वीरेन अपने गुस्से मे पागल देविका को अपने हाथो से मारने के लिए एस्टेट आ पहुँचा था.इसी ग़लती ने उनका खेल बिगाड़ा.मैने वीरेन की गाड़ी देखी तो उनके पास जाने लगा मगर जब उन्हे शाम लाल से बात करते सुना तो मुझे सब समझ आ गया.घर मे आग लगी थी & वीरेन उसमे घुस गया.शाम लाल उसे रोक रहा था मगर वो गुस्से मे पागल था.मैं भी दोनो के पीछे घुसा & देविका को निकाल लाया.."
"..उसी हाथापाई मे शाम लाल मेरे हाथो मरा & वीरेन.."
"& वीरेन?",कामिनी के रुँधे गले से बड़ी मुश्किल से 2 लफ्ज़ निकले.इतना बड़ा धोखा..उसे सब समझ आ गया था-वीरेन ने उसका इस्तेमाल किया था केवल इसलिए की वो सहाय परिवार की वकील थी.
"मैने देविका को बचाने के लिए उसे परे धकेला तो वो गिर गया & जब मैं बंगल से बाहर भाग रहा था देविका के साथ तो वो हमारे पीछे थे लेकिन बंगल के दरवाज़े के पास उसका पैर कही फँसा & वो गिरा & आग की लपटो ने उसे घेर लिया."
"प्रसून को किसने मारा?"
"सारा प्लान शाम लाल का था.रोमा ने प्रसून को नीचे भेजा & इंदर उसे फुसला के मॅनेजर'स कॉटेज ले गया & उसका क़त्ल कर दिया.",देविका की सिसकिया कमरे मे गूँज उठी तो शिवा ने उसे बाहो मे भर लिया.
"मैं प्रसून की शादी के बाद वीरेन के साथ उसके कॉटेज मे रुकी थी & किसी ने कॉटेज मे झाँका था.लगता है वो इंदर ही था."
"नही कामिनी,वो शाम लाल था."
"आपको कैसे पता देविका जी?"
"क्यूकी रजनी वापस आ गयी है & उसने मुझे सब बताया है."
"रजनी कौन है?"
"मेरी नौकरानी.इंदर ने उसे अपने प्यार के जाल मे फँसाया & फिर हर रात उसके जिस्म से खेलता.उसी ने उसकी अर्ज़ी भी यहा तक पहुचाई थी & वोही उसे हमारी बाते भी बताती थी क्यूकी उस बेचारी को क्या पता था कि जिस से वो शादी के सपने देख रही थी वो दर-असल बस उसका इस्तेमाल कर रहा था.."
"..प्रसून की शादी के वक़्त शाम लाल यही था & उन दीनो रजनी भी यही थी.रजनी का कहना है कि जब तक वो यहाँ थी हर रात इंदर ने उसी के साथ गुज़ारी थी तो और कोई बचता ही नही."
सारी बाते सॉफ हो गयी थी सारे राज़ खुल गये थे रह गया था तो सिर्फ़ दर्द दोनो औरतो के दिलो मे.कामिनी ने देविका की ओर देखा,वो छली गयी थी लेकिन शिवा था उसके साथ उसका सहारा बनके मगर उसके पास कौन था?..वो तो फिर अकेली हो गयी थी..1 बार फिर छली गयी थी वो 1 मर्द के हाथो से....& फिर उसकी निगाह पड़ी कमरे मे दोबारा दाखिल होते हुए चंद्रा साहब पे.जब देविका आई थी तो वो बाहर चले गये थे.
यही 1 मर्द था जिसने उसे कभी धोखा नही दिया & यही 1 मर्द था जो इस वक़्त भी उसके साथ खड़ा था.कामिनी के दिल मे फिर से उमीद जाग गयी.वो खुद को इतना अकेला इतना कमज़ोर क्यू समझ रही थी.क्या कमी थी उसकी ज़िंदगी मे?..1 बुरा इंसान आया तो उसे भी अपने किए की सज़ा मिल गयी & चंद्रा साहब तो थे ही उसके साथ.हमेशा.
उसने देविका को देखा.शिवा ने उसके कंधे पे हाथ रखा & दोनो उस से विदा ले रहे थे,"..आप जल्दी से ठीक हो जाइए & मेरी सारी जयदाद को दान करने मे मेरी मदद कीजिए.",देविका उसका हाथ पकड़े हुए थी.
"फिर आप क्या करेंगी?"
"इस बार वो ग़लती नही दोहराउंगी जो शादी के पहले की थी,कामिनी जी.उपरवाले ने मुझे दूसरी ज़िंदगी दी है.अब ये ज़िंदगी बस शिवा की बाहो मे गुज़ार दूँगी."
"बेस्ट ऑफ लक."
"थॅंक्स.",& दोनो प्रेमी बाहर चले गये.
कामिनी ने चंद्रा साहब को देखा & मुस्कुराइ.ज़िंदगी कितनी हसीन थी & वो जवान.1 बुरा सपना था जो अब बीत चुका था,हक़ीक़त यहा सामने कहदी थी.उसने अपना हाथ अपने गुरु की ओर बढ़ा दिया & उनके चेहरे पे भी मुस्कान फैल गयी. दोस्तो कैसी लगी कहानी बताना मत भूलिएगा आपका दोस्त राज शर्मा ============================================================= समाप्त दा एंड