Mastram Kahani वासना का असर
08-15-2018, 11:40 AM,
#14
RE: Mastram Kahani वासना का असर
अचंभित करने वाली बात ये थी की चाची इस बार खुद को छुड़ाने के लिए मुँह से बोले शब्द के अलावा कोई कोशिश नहीं कर रही थी..ना हाथ मार रही थी ना पाँव..यहाँ तक मुझे उनके साँसों में भारीपन का भी अहसास हुआ।
मैं एक हाथ से लगातार चाची के बुर को रगड़े जा रहा था और मेरा दूसरा हाथ अब आगे से चाची के साड़ी को ऊपर उठाये जा रहा था। मेरे हाथ अब उसके नग्न..चिकने जाँघों पे थे..और मै उन्हें सहला नहीं रहा था बल्कि मुट्ठी में दबोचे मसल रहा था..खरोच रहा था। मेरा दूसरा हाथ अब बुर रगड़ाई छोर ऊपर की ओर सफर कर रहा था..चाची के सपाट पेट को मुट्ठी में दबोच मैंने उसे पुरे दम से मसल दिया..मेरा हाथ रेंगते-रेंगते अब चाची के तने हुए चुंचियाँ पे था..कुछ ही पलो में मैं अपने सगे चाचा की बीवी के चुँचियो को आंटा की तरह गूँथ रहा था। मै चाची के बदन के हर हिस्से को मसलना चाहता था..उसे दर्द देना चाहता था..शायद ये मेरे अंदर के गुस्से की देन थी की मैं चाची के साथ किसी जानवर की तरह पेश आ रहा था। ब्लाउज और ब्रा के ऊपर से भी मै चाची के तन चुके निप्पल को महसूस कर सकता था। अब हालात ये थी की मेरा पूरी तरह कठोर हो चूका लण्ड चाची के गाण्ड के दरार में साड़ी के ऊपर से ही लगातार घीस रहा था। आगें के तरफ से मेरा दाहिना हाथ उसके साड़ी को ऊपर उठा के नग्न तंदरुस्त जांघो पे रगड़..दबोच और खरोंच मारते जा रहा था। मेरा बायां हाथ चाची के कसे हुए चुंचियों को बारी-बारी से कभी पूरी हथेली में दबोच कर बेदर्दी से मसल रहा था तो कभी ब्लाउज के उपर उभड़े उसके सख्त निप्पल को चुटकी में ले के मसल रहा था। चाची बोहोत जोर-जोर से साँसे ले रही थी लेकिन वो अपने मुँह से एक शब्द भी बाहर नहीं निकलने दे रही थी। जब-जब मैं उसके जाँघों के चिकने गोश्त को मुट्ठी में पकड़ के मसलता था या उसकी सख्त चुँचियो को गूँथ देता था तो मुझे अपने लौड़े पे चाची के गोल-मटोल गाण्ड का दबाब बढ़ता हुआ महसूस होता था। मेरा बायां हाथ अभी उसकी चुंचियों के मर्दन में लगा था लेकिन मेरा दाहिना हाथ चाची के जांघो को भभोरते हुए उसकी चुत के ऊपर आ चुका था। मुझे अपने हथेली पे चाची के छोटे काली झांटे चुभते हुए महसूस हो रहे थे। मैने चाची के छोटे-छोटे झांटो को चुटकी में पकड़ा और बेदर्दी से उसे उखाड़ने की कोशिश करने लगा, चाची ने एक जोर की सांस ली और मुझे अपने लौड़े पे उसके चूतड़ दबते हुए महसूस हुए। चाची कामुक हो रही थी..और दूसरी तरफ मैं वासना और गुस्से के मिश्रण में जानवर बन चूका था। अब मेरी अंगुलियां चाची के बुर के भगनासे(clit) को ढूंढ रही थी लेकिन चाची के दोनों जाँघे सटे हुए के कारण मेरी अंगुलियां वहां तक पहुँच नहीं पा रही थी। मैंने अपने बाये हाथ को चुँचियो से हटाया और पीछे ला के चाची के गाण्ड में हाथ घुसा के दोनों जांघो को फैलाने की कोशिश की लेकिन चाची सख्ती से अपना जांघो को जोड़े खड़ी रही। मैंने एक दो बार और कोशिश की लेकिन असफल रहा। मेरा गुस्सा फिर से ऊपर चढ़ चूका था। मैंने अपने दाहिने हाथ के हथेली में चाची के बुर को दबोचते हुए उसके कान में गुस्से से फुसफुसाया..
"साली रण्डी..पैर फैला वरना तेरा यहीं बलात्कार कर दूँगा.."
चाची के मुँह से "आह" निकली और अचानक उसने अपना पैर फैला दिया और मेरा हाथ जो जबदरस्ती उसके जाँघों के बीच घुसने की कोशिश कर रहा था..फिसलते और चाची के कसे हुए भोसड़े को रगड़ता उसके रसीली बुर के छेद पे आ गया। अचानक मेरे सामने सुबह का वो दृश्य आ गया जब मैंने चाची पे अधिकार जमाते हुए उसे चुत दिखाने को बोला था..और जब मैंने कामुकता में उसे गाली दी थी उसके बाद चाची अति-कामुक हो के अपने चुत को रगड़ने लगी थी। कहीं चाची सबमिसिव(submissive) टाइप की औरत तो नहीं है जिन्हें अपमानित(humiliate) हो के.. वश में हो के चुदाई करने में मजा आता है। इस सोच ने मेरे अंदर भड़की वासना को प्रचण्ड कर दिया..कुछ देर पहले मेरे अंदर ना जाने कहाँ से पैदा हुए जानवर को जंगली बना दिया। मेरे अंगुलियों के बीच चाची की भगनासा थी और मै उसे चुटकियों में पकडे अपने सारी ताकत से मसले जा रहा था..मेरे दूसरे हाथ ने पीछे आके चाची के गोल-मटोल..कसे हुए गाण्ड को बेपर्दा कर दिया था। अब मैं चाची के कसे हुए तंग नंगी गाण्ड के दरार में अपना लौड़ा रगड़ रहा था..मेरे कठोर लौड़े का सुपाड़ा चाची के गाण्ड के चिप-चिपे छेद से रगड़ खता हुआ उसके रस उगलती चुत के छेद पे धक्के मार रहा था। चाची अब कामुकता में पूरी तरह डूब चुकी थी..उसके मुँह से लगातार सीत्कार निकल रही थी। पर मैं उसे दर्द देना चाहता था..मेरे अंदर का जानवर उसे दर्द में देखना चाहता था। मैंने अब उसके कड़क और पूरी तरह गीली हो चुकी भगनासा(clit) को छोरा और और अपनी बीच वाली ऊँगली को उसके बुर के फड़फड़ाती हुई छेद में पेलता चला गया..उफ़्फ़ काफी टाइट छेद थी..सच में इसकी जवानी को अभी निचोड़ा जाना बाकी था..चाची के मुँह से एक सन्तुष्ट "ओह्ह" निकली और उसके हाथ के नाख़ून मेरे हाथ में धँसते चले गये..उसने अपना गाण्ड पुरे जोर से मेरे लौड़े पे दबा दिया जैसे की वो मेरे लौड़े को या तो तोड़ देना चाहती हो या अपने गाण्ड के छेद में घुसा लेना चाहती हो। अब तक चाची के दहकती चुत में मै दो ऊँगली घुसा चूका था। मेरा दूसरा हाथ अब उसके होंठो को अँगूठे से मसल रहा था..क्या रसीले होंठ थे..मैंने उन होंठो को मसलते हुए अपनी एक ऊँगली चाची के मुंह के अंदर घुसा दीया..और एक पल में चाची ने मेरे ऊँगली को अपने जीभ और तालु के बीच लपेट चूसना चालू कर दिया..उफ़्फ़ इस औरत के अंदर बोहोत आग भरी पड़ी है। चाची की कम चुदी चुत के लपलपाती छेद में फंसी मेरी ऊँगली गति पकड़ चुकी थी..और उसके मखमली गाण्ड के तंग दरारों में रगड़ खाता मेरा लौड़ा भी अपनी गति पा चूका था। मैंने चाची के मुँह के अंदर फँसी ऊँगली बाहर निकाली और उसके चिकने गालो पे एक जोर का तमाचा जड़ दिया..चाची चिहुँक पड़ी..और उसे सँभलने का वक़्त दिए बिना मैंने दूसरा चांटा भी रसीद कर दिया..फिर लगातार चांटा पे चांटा और मेरे मुँह से निकलने वाले बोल थे..
"रण्डी तू नखड़े दिखा रही थी..साली तू एक छिनार औरत है जो अपने ही बेटे सामान लड़के से गर्म हो के मजे ले रही हो..रण्डी..मादरचोद.."
अगले ही पल मेरे मुँह से एक जोरदार "आह" निकली..क्युकी अचानक चाची ने अपने गाण्ड को किसी पागल की तरह आगे-पीछे करना स्टार्ट कर दिया था..मेरा लौड़ा प्रचण्ड तरीके से उसके तंग दरारों में रगड़ खा रहा था..चाची ने अपनी कामुकता की सीमा को लाँघ दिया था..सच में वो एक रखैल टाइप औरत थी। अब उसकी चुत में ऊँगली रख पाना मुश्किल था और मेरी ऊँगली फिसलती हुई बाहर निकल गयी..चाची अपने कमर को हिला कर लगातार मेरे लौड़े पे अपने गाण्ड से धक्के मारे जा रही थी..कभी-कभी मेरे लौड़े का सुपाड़ा उसकी बूर की छेद को भेद कर हल्का अंदर भी घुस जा रहा था। मैंने चाची के चुत को फिर से मुट्ठी में दबोचा और दूसरे हाथ से उसकी कसी हुई चुंचियाँ को निचोड़ने लगा..मै भी अपना कमर हिला कर उसके धक्के लगाने की गति की बराबरी करने लगा था। इधर मेरे हथेली ने चाची के चुत पे अपनी पकड़ ढीली की और उसकी आग उगलती चुत को नीचे से थप-थपाने लगा..मै अपने टट्टे में वीर्य को उबलते हुए महसूस कर सकता था..मेरी वासना अब उफ़ान पे थी..और ना जाने कब मैने चाची के चुत को थप-थपाने के बदले उसकी प्यासी बूर पे थप्पड़ मारने लगा..जैसे-जैसे मेरे टट्टे उबल रहे थे वैसे-वैसे मेरी चुत पे थप्पड़ मारने की गति बढ़ती जा रही थी.. मै कामुकता में जलने लगा था..मेरे अंदर का गुस्सा अब लावा बन के निकलने वाला था..मेरे मुँह से गंदे शब्दो की बारिश हो रही थी..
"आह..रण्डी..तू रखैल बन के रहेगी मेरी..छिनार औरत तू पर्सनल रण्डी है मेरी..मेरे चाचा की बीवी मेरी रखैल बन के रहेगी..तुझे मै जब चाहूं तब पटक के चोदुंगा छिनार..आह"
चाची ने अपने कमर की गति और तेज कर दी..जैसे वो आज मेरे लौड़े को घीस-घीस कर तबाह कर देगी और उसके के मुंह से कामुक फुसफुसाहट निकली..
"आह..माँहह..और तेज चांटे मारो..ओह्ह..अपनी रखैल के स्सस्सी..चुत पे..हहहह.. उफ़्फ़.."
ये कहने के साथ ही वो थोड़ा और झुकी और तेजी के साथ उसका हाथ नीचे से..उसके दोनों टांगो के बीच से निकल कर मेरे टट्टो पे आगये..और बिना एक पल देरी किये..उसने उन्हें मुट्ठी में दबोच हलके से मसल दिया..फिर वो उसे नाखूनों से खरोचने लगी.. उसकी इस कामुक हरकत से मेरे गाण्ड के छेद में एक सुरसुरी सी दौड़ गयी..मेरे लिए रुकना मुश्किल होने लगा। मेरा लण्ड और भी तेजी से लगातार चाची के चिकने पिछवाड़े के दरारों में फिसलता कभी उसके भगनासा पे रगड़ खा रहा था तो कभी हल्का सा उसके पूरी तरह गीली छेद में घुस जा रहा था। मेरे हाथ अब उसके प्यासी चुत पे चटा-चट चांटे बरसा रहे थे..मै अब कभी भी वीर्य की बारिश कर सकता था..मेरा दूसरा हाथ उसके चुँचियो को छोर उसके सख्त चुताड़ो को नाख़ून से खरोंच रहे थे..और तभी मेरी नजर उसके फैले हुए चुतड़ो के फांक के बीच पड़ी..उफ़्फ़.. बाल रहित चाची की भुड़ी.. चिकनी और छोटी सी गाण्ड की छेद..फूल-सिकुड़ रही थी..मेरी ऊँगली ने ना जाने कैसे खुद ही उसके गाण्ड के छेद तक का सफर तय कर लिया और अगले ही पल बिना किसी चिकनाई के मैं अपनी बीच वाली ऊँगली एक झटके में उसकी सिकुड़ती गाण्ड के छेद में पेलता चला गया..मजे में मेरे मुंह से एक जोरदार गाली निकली..
"साली रण्डी..आह"
और इसके ही साथ चाची बुरी तरह काँपने लगी..और मेरा सुपाड़ा फिसलता हुआ उसके चुत के छेद को हल्का सा फैला ज़रा सा अंदर दाखिल हुआ और मैंने अपने गाण्ड के छेद को सिकोड़ते हुए वीर्य की बारिश चाची के छिनार चुत में कर दी..
चाची के चुत से एक कराह निकली..
"हाय..माँहह..मै गयी..उफ़्फ़.."
मेरी ऊँगली उसके गाण्ड के छेद में जड़ तक धंस चुकी थी..मेरी हथेली ने उसके चुत को मुट्ठी में ले के बुरी तरह भींच दिया था..चाची की कमर और गाण्ड शांत पड़ गयी थी और साथ ही मेरे लण्ड ने भी वीर्य उगलना बंद कर दिया था।
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RE: Mastram Kahani वासना का असर - by sexstories - 08-15-2018, 11:40 AM

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