Mastram Kahani वासना का असर
08-15-2018, 11:40 AM,
#13
RE: Mastram Kahani वासना का असर
आपको जोर से भूख लगी हो और आपके सामने आपका मनपसंद पकवान परोसा गया हो..मन को कितनी शांति मिलती है..दिल कितना खुश हो जाता है। लेकिन जैसे ही आपने अपना हाथ पकवान की ओर बढ़ाया, वो झट से गायब। अब आप अपनी मन की व्यथा बताओ? दिल का दर्द सुनाओ?
कमरे में सुप्त होते लिँग के साथ खड़ा मेरा हाल भी यही था। अभी कुछ देर पहले मेरे हाथों में कभी बुआ के मदमस्त उरोज थे तो कभी उसकी हाहाकारी नितम्ब। मेरे हाथ कभी उसके चुस्त जाँघों को सहला रहे थे तो कभी उसके चौड़े चूतड़ को और हद तो ये थी थोड़ी देर पहले मेरा अकड़ा हुआ लण्ड उसकी लपलपाती चुत के चुदी-चुदाई छेद को भेद के उसके गहराई में उतरा हुआ था लेकिन तब भी मैं उसे चोद नहीं पाया था..मेरी वासना-पूर्ति अभी भी आधी अधूरी ही थी। मैं अपने सुस्त पर रहे लिंग पे अभी भी उसकी चुदासी चुत के काम-रस को महसूस कर पा रहा था..उसकी बुर की गहराइयों की गर्माहट अभी भी मेरे लिंग को झुलसा रही थी। लेकिन अब बुआ यहाँ नहीं थी..उसके बड़े-बड़े चुंचियाँ भी यहाँ नहीं थी..न ही थे उसके हाहाकारी चौड़े चुतर और ना ही उसकी फैली हुई शादी-शुदा बुर।
ये माजरा अजीब था..बुआ पहल भी करती थी..एक हद तक साथ भी देती थी..गर्म भी होती थी..चुदासी में उसकी चुत रस भी टपकाती थी..लेकिन मैं उसे चोद नहीं पाता था। रिश्ते-नाते..मर्यादा की दिवार उतनी कमजोर नहीं थी जितना मैंने सोचा था। एक गर्म चुदासी औरत जो लगातार लगभग एक सप्ताह से सिड्यूस(seduce) हो रही थी..उसके चुत को कई बार मसला जा चूका था..कितनी बार उसे कठोर लौड़े का अहसास दिलाया गया था और एक बार उसके गहराइयो में लिंग को उतारा भी गया था लेकिन तब भी वो मर्यादा की जर्जर हो चुकी दीवार को संभाले हुई थी। लेकिन मेरा धैर्य अब जवाब दे रहा था..मेरे खड़े लौड़े पे हर बार धोखा हो रहा था..प्यासा कुएँ के पास जा तो रहा था लेकिन कुआँ हर बार थोड़ी दूर खिसक जा रही थी और शायद इस बार तो गायब ही हो गयी थी। कमरे में खड़े क्षण-प्रतिक्षण मेरा गुस्सा और झुंझलाहट बढ़ता जा रहा था। मेरे मन में अजीब-अजीब विचार आ रहे थे..जैसे की मै अभी बुआ के पास जाऊँ और उसे कमरे में बन्द कर के जबरदस्ती गालियों के साथ चोद डालू। मैं उसे अपमानित(Humiliate) कर के बिस्तर पे पटक कर रगड़ डालू.. मुझे खुद पे गुस्सा भी आ रहा था कि बुआ के चांटा मारने के बाद मैंने उसे जाने क्यु दिया..उसे वही पटक कर चोद क्यु नहीं दिया। लेकिन अब क्या हो सकता था..चिड़िया तो उड़ चुकी थी। कमरे में खड़ा मै खुद से हजार सवाल पूछ रहा था और मेरे मस्तिष्क और दिल के पास कोई जवाब नहीं था। क्षोभ..अपमान..गुस्से..झुंझुलाहट के मारे मेरा दम घूँट रहा था..कमरे में रहना अब मै सहन नहीं कर पा रहा था और इसी विचार ने मेरा ध्यान छत पे जाने की ओर आकर्षित किया और शायद इसलिए भी क्युकी मै कहीं एकांत में बैठ कर अपने हार पे रोना चाहता था..अपने गुस्से को बाहर निकलना चाहता था। अपने सुश्त पड़े लिँग को तो मैंने कब का पायजामे में डाल दिया था, अब अपने दोनों हाथों को जेब में डाल मै एक ऐसे जुआरी की तरह कमरे से बाहर निकला जो अपना सब कुछ इस आखिरी दाँव में हार गया हो। 
छत की सीढियाँ चढ़ते हुए मेरा दिमाग विचारों से भरा पड़ा था और मेरा गुस्सा क्षण-प्रतिक्षण बढ़ता जा रहा था। सीढ़ियों के मोड़ पे मुड़ते ही मै ठिठक के खड़ा हो गया..सामने कुछ 7-8 सीढ़ियों के बाद छत पे प्रवेश करने का दरवाजा था और दरवाजे के उस पार छत पर कपडे सुखाने के लिए बँधी रस्सी पे गीले कपड़े डालती चाची खड़ी थी। चाची नहा के आयी थी। गीले बाल..गेहुआँ रँग..पतली-सुराहीदार गर्दन और गर्दन में भड़कता हुआ मंगल-सूत्र। 
"ये मँगल-सूत्र वाली औरते लौड़े में आग लगा देती है"
उसके नीचे मध्यम आकार की लेकिन ठोस चुँचियां..बिलकुल संतरे की तरह मुलायमता लिए हुए कठोर। सपाट पेट..गहरी नाभी और फिर मेरी नजरे चाची के दोनों तंदरुस्त जाँघों के बीच आके ठहर गयी जहाँ से थोरी ऊपर साड़ी बँधी हुई थी और ठीक दोनों जांघो के जोड़ के पास साड़ी की बिलकुल हल्की सी ढ़लान..और मेरे नजरो के सामने सुबह की वो अत्यधिक कामुक घटना धड़-धड़ाते हुए गुजरने लगी। मेरी वासना जो नीचे कमरे में बुआ के जाने के बाद सुस्त पर गयी थी वो फिर जागती हुई महसूस हुई और नीचे पायजामे में सर उठाता मेरा लिँग इस बात की गवाही दे रहा था। चाची कल रात को पहनी गयी लाल बनारसी साड़ी के मैचिंग लाल लेस वाली कच्छी को निचोड़ रही थी। अभी भी मैं बुआ को भुला था नहीं था..उसका अधेर बदन..उसके तिरिस्कार..उसका मारा हुआ चांटा मेरे अंदर एक कामुकता भरा गुस्सा उतपन्न कर रह था। और तभी चाची नीचे आने को पलटी और उसकी आँखे मेरी आँखों से टकराई और वो ठिठक के एक पल के लिए रुक गयी फिर जैसा आज सुबह से होता आ रहा था, उसने अपनी नजरे झुकायी और फिर सीढ़ी से उतरने लगी। उन्ही कुछ पलो में जब हमारी नजरे मिली थी मेरी वासना पूरी तरह जग उठी थी और इस बार मेरे अंदर फैले गुस्से और झुंझुलाहट ने मेरे डर को पूरी तरह दबा दिया था। कुछ ही पलो में वो जिस सीढ़ी पे मै खड़ा था उसी सीढ़ी पे थी और अगले पल वो मेरे नीचे वाली सीढ़ी पे थी और उसके अगले पल वो शायद उसके नीचे वाली सीढ़ी पे होती लेकिन उससे पहले मेरा हाथ पीछे की ओर गया और चाची के मांसल बाँहों को पकड़ लिया, चाची वहीँ किसी बूत की तरह जम गयी और इस से पहले वो कुछ समझ पाती मैंने उसे ऊपर की ओर खींच लिया। चाची ने ऊपर आने से विरोध करते हुए अपने बाँह को छुड़ाने का प्रयत्न किया लेकिन मेरी पकड़ मजबूत थी। मैं चाची को खींचते हुए या युँ कहे घसीटते हुए ऊपर दरवाजे के बगल में ख़ाली जगह पे लाके, उसे दीवार से सटा कर खड़ा कर दिया। चाची वहाँ सहमी सी खड़ी थी और मेरे दोनों हाथ उसके जवान, ताजे शादी-शुदा बदन के इर्द-गिर्द दीवारों पे जमे थे। मै अपनी वासना से जलती आँखों से उसे घूरे जा रहा था..मेरी चाची सक्ल से बड़ी मासूम थी यारो..उसके होंठ बोहोत रसीले थे..गुलाबी रंगत लिए फड़फड़ाते हुए बिलकुल चूसने के लिए बने होंठ। उसके गले और ब्लाउज के बीच का नग्न हिस्सा बिलकुल चिकना था और उसके नीचे साँसों के साथ उछलती हुई उसकी ठोस चुंचियाँ मेरे तने हुए लण्ड में खलबली मचा रही थी..और फिर मेरी नजर उसके चिकने-लम्बे गले में चमकते हुए मँगल-सूत्र पे पड़ी और मैंने बिना एक पल गवाएँ चाची के कंधे पे छाये उसके रेशमी बालों को पीछे करते हुए अपना सर उसके गले में छुपा दिया। चाची के दोनों हाथ मेरे सीने पे आके मेरे शरीर को पीछे धकेलने लगे और वो बोल पड़ी..
"आप पागल हो गए है..ओफ़ क्या कर रहे है..छोड़िए मुझे नीचे जाने दीजिए..कोई आ जायेगा.."
इस वासना की आंधी में मै भगवान की भी नहीं सुनता तो फिर मैं अपने सगे चाचा की जवान बीवी की कैसे सुन लेता। मै लगातार उसकी गले पे चुम्बन की बारिश करते जा रहा था..मेरे हाथ उसके कमर और नंगे पेट को सख्ती से पकड़े हुए उन्हें मसल रहे थे..अब मैं चाची के गले को उसके नंगे कंधे से लेके उसके ठोढ़ी तक अपने खुरदरे जीभ से चाटने लगा था..चाची पूरी जोर आजमाइश करते हुए छूटने की प्रयास में जुटी हुई थी और साथ ही साथ मैं उसके जिस्म में हल्की सिहरन भी महसूस कर पा रहा था..मेरे हाथ अब उसके कमर और पेट से उसके ब्लाउज तक का सफर तय कर चुके थे और अब उसके दोनों मध्य्म आकार के मस्त चुँचियो पे फिसल रहा था। चाची अब पहले से ज्यादा मेरे कैद से निकलने का प्रयत्न कर रही थी। अब वो पहले से ज्यादा छटपटाने लगी थी लेकिन मेरे ऊपर एक अलग तरह का भूत सवार था। चाची के हाथों से लगातार मेरे सीने पे होती ज़ोर-आजमाइश से मेरे सीने में हल्का-हल्का दर्द भी होने लगा था, लेकिन बिना दर्द की परवाह किये मेरे हाथ उसके चुस्त चुँचियो को अपने हथेली में जकड चुके थे। उफ़्फ़.. क्या सख्त और मुलायम थे उसके चुंचियाँ.. बिल्कुल संतरे की तरह मुलायम कठोरता लिए हुए। मै उसके चुँचियो को मुट्ठी में लिए दबाये जा रहा था..चाची मेरे नीचे छटपटा रही थी..शायद मजे में या मेरे कैद से छूटने के लिए लेकिन उस लड़ाई में उसका टखना बार-बार मेरे अकड़े हुए लौड़े से टकड़ा रहा था। मैं चाची के गर्दन के मांस को अपने होंठो में लेके चूसने लगा और नीचे मेरी अँगुलियों ने उसके निप्पल को ढूंढ़ के उसे मरोड़ डाला। चाची सीत्कार उठी..उसके फुसफुसाहट मेरे कानों में उभड़े..
"स्सीSSS.. आह..आप पागल हो गए है..प्लीज़ छोड़िये मुझे..सुबह मै बहक गयी थी इसका ये मतलब नहीं की आप मेरे साथ..आह.. कुछ भी कर लेंगे..गलती हो गयी थी मुझसे..आह..दर्द हो रहा है छोड़िये मुझे..स्सस्सस्सीSS.. बेटे सामान हैहहह..आप मेरे.."
उस समय मै कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था..वासना मेरे पे सनीचरा की तरह सवार था..अगर वो मेरी माँ भी होती तो भी शायद मैं नहीं रुकता। मै चाची की बातों को अनसुनी करते हुए..चुप-चाप बिना कुछ बोले उसके जवान बदन के उतार-चढ़ाव से खेल रहा था। मेरा एक हाथ उसके चुँचियो को छोर चूका था और उसके सपाट पेट को सहलाने के बाद उसके उभड़े हुए चुतड़ो के गोलाइयों को हलके से मसल रहा था। चाची अब छूटने के लिए ज्यादा जोर लगा रही थी। मेरा चेहरा अभी भी उसके गर्दन के नीचे छुपा हुआ था और उसके गर्दन को कुरेदने के बाद मेरे जीभ अब उसके उरोजों के ऊपर के नंगे छाती वाले हिस्से को चाट रहे थे। मेरे दूसरा हाथ उसके बायें तरफ वाली चुँची के निप्पल को ब्लाउज और ब्रा के ऊपर से चुटकी में पकड़ मसल रहे थे। मेरा दाहिना हाथ अब चाची के चुतड़ो से हट कर साड़ी के ऊपर से ही उसके तंदरुस्त जाँघ को सहलाये जा रहा था। मेरे हाथ अब उसके चुत से कुछ ही दूर थे और अगले ही पल मेरे मुट्ठी में उसकी चुत थी..आज मेरी मासूम चाची ने कच्छी नहीं पहनी थी। मैंने उस फुले हुए जवान को चुत मुट्ठी में लेके हौले से मसल दिया। एका-एक चाची ने अपने कमर को आगे फिर पीछे कर के एक जोरदार झटका दिया जिसके कारण मेरा हाथ उसके जिस्म से दूर हो गया..मैंने झट से अपना चेहरा उसके गर्दन के पास से निकाला और उसके चेहरा पे देखा वहाँ मुझे गुस्सा दिखा..ठीक बुआ की तरह वाला गुस्सा। चाची सुबह के बाद से पहली बार मेरी आँखों में देख रही थी..उसने मुझे घूरते हुए कहा..
"छोड़िये आप मुझे और जाने दीजिए यहाँ से..नहीं तो मैं चिल्ला दूँगी और फिर नीचे जाके सबको बता दूँगी..आप क्या कर रहे थे मेरे साथ.."
ये उसी तरह के लफ्ज़ थे जो बुआ ने मुझे थोड़ी देर पहले नीचे कमरे में कहा था। मेरे अंदर पहले से ही गुस्सा और अपमान भरा पड़ा था..और हार की झुंझुलाहट मेरे दिल को डुबोये जा रही थी और फिर एक और अपमान और हार। मेरे अंदर एका-एक..ना जाने कहाँ से एक वहशी ने सर उठाना सुरु किया। मुझे वहां चाची और बुआ एक साथ ही दिखी..एक ही शरीर में। मैंने अपना हाथ बढ़ाया और सीधा चाची के कमर को पकड़ कर उन्हें उल्टा घुमा दिया, अब चाची की गोल-मटोल गाण्ड मेरे तरफ थी और उनका चेहरा दीवार की तरफ। मैंने एक हाथ से अपने पायजामे के अंदर से अपना अकड़ा लौड़ा निकाला और चाची के गाण्ड के दरार में साड़ी के ऊपर से ही धाँस के रगड़ना सुरु कर दिया। मेरा चेहरा उनके कानों के पास था..मैं उनके कान के लवो को हलके से काटते हुए फुँफकारा..
"मादरचोद..भोसड़ी वाली..सबको बताएगी..जा अब जा के बता तेरे बेटे सामान भतीजे ने तेरी गाण्ड मार ली.."
चाची स्तब्ध थी की ये हो क्या रहा है। भौचक्का थी की ये मुझे क्या हो गया। मेरा हाथ अब आगे आके उसके बुर पे था और मै साड़ी के ऊपर से ही उसके बुर को पागलो की तरह रगड़े जा रहा था..और पीछे से मैंने धक्के लगाना स्टार्ट कर दिया था..साड़ी के ऊपर से ही मैं धक्के लगाये जा रहा था। कुछ देर बाद चाची की फुसफुसाहट फिर गूंजी..
"प्लीज़ छोर दीजिए..कोई आजायेगा तो क्या सोचेगा.."
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