Mastram Kahani वासना का असर
08-15-2018, 11:40 AM,
#12
RE: Mastram Kahani वासना का असर
"मेरा बस चले तो मैं आपको यहाँ से जाने ही ना दू"
मैंने फिर से साड़ी को गाण्ड के दरार में ही फंसे रहने दिया और हाथो को बुआ के तंदरुस्त जांघो पे फिराते हुए उसके दोनों गुम्बदनुमा चुतड़ो को मसलते हुए..उसके पीठ पे उसके ब्रा-स्ट्रेप को टटोलने लगा।
बुआ की साँसे अब भारी हो चली थी और भारी साँसों के बीच बुआ के स्वर फूटे..
"बस-बस रहने दो..4-5 दिन बैठा के खिलाओगे और फिर बोलोगे बुआ अब अपना रास्ता नापो"
मेरे हाथ उसके ब्रा-स्ट्रेप से खेलने के बाद..उसकी नंगी कमर को सहलाने के बाद..अब मेरे हाथ ने फिर से उसके मांसल चुतड़ो को दबोच लिया था।
"नहीं ऐसा नहीं है बुआ मुझे तो लगता है आपने शादी ही बेकार की..सारी उम्र यही रह जाती"
ये कहने के साथ मैंने अपनी उँगलियों को फिर से उसके दरारों में घूंसा दिया और इस बार पूरा अंदर तक..यहाँ तक की मै अपनी उँगलियों पे उसके सिकुड़ते हुए गाण्ड के छेद को महसूस कर सकता था..मैंने उसकी गाण्ड के छेद को उंगलियो से कुरेदा और फिर दरार में फंसी उसकी साड़ी को बाहर निकालते हुए एक फिर से अंदर पेवस्त कर दिया। अब बुआ की साँसे अधिक भारी हो चली थी और उसका शरीर हल्के झटके खा रहा था। 
"दादी आपने क्यों की बुआ की शादी..इनको यहाँ ही रख लेती"
इस बार मैंने अपने उँगलियों को गाण्ड के दरार में पूरा नीचे तक ठूंस दिया था और फिर मैंने अपनी उंगलियों पे बुआ के काली झांटो को महसूस किया और फिर..अआह..जन्न्त का द्वार..बुआ की मखमली..चुद-चुद कर फैली हुई शादी-शुदा बुर पे मेरी अंगुलियाँ फिसलने लगी थी। बुआ ने अपनी कमर को हिलाया ताकि मेरा हाथ उसके चुत के पास से हट जाये.. लेकिन इस बार भी फायदा मुझे ही हुआ..मेरा अकड़ा हुआ लौड़ा बुआ के कमर पे रगड़ खा गया और मस्ती में आके मैंने खुद से बुआ के कमर पे लण्ड रगड़ते हुए उसके फुले हुए चुदासी बुर को मुट्ठी में दबोच लिया।
मेरे और बुआ के बीच चल रही वासनामयी कुश्ती से अनजान दादी ने कहा..
"बेटी पराया धन होती है बउवा.. कब तक उसको रोक कर रख सकते है..एक ना एक दिन तो चली ही जाती है"
बुआ के बुर को मसलते हुए मेरे मन में विचार आया..
"अपनी इस बेटी को तब तक रोक लो जब तक मैं इसे चोद ना लूँ"
अब तक बुआ के दोनों जांघो के बीच जगह बन गयी थी..मतलब बुआ ने अपने दोनों पैरों को हल्का सा फैला दिया था। अब ये एक सामान्य प्रतिक्रिया थी या बूआ की चुत फिर से चुदासी हो गयी थी..इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था। लेकिन मेरे अंदर की आग अब हर पल अपनी सारी सीमाओं को तोड़ती जा रही थी..मेरी वासना ने मेरे हर सोच-विचार..अच्छे-बुरे..डर-भय सब पे विजय पा ली थी। अब मेरा वजूद इस बात पे आके ठहर गया था कि बुआ के चुत में मेरा लौड़ा जाना चाहिए।
तभी बाहर से किसी ने आवाज़ लगायी..मेरा हाथ झट से बुआ के चुत से..उसके गाण्ड से दूर हो गया। लेकिन बुलावा दादी का था। 
दादी का बिस्तर से उतरना..फिर चल कर कमरे से बाहर जाना और फिर मेरे और बुआ से ओझल होने के बीच मेरे दिल और दिमाग ने बिना कुछ सोचे-समझे..एक हाहाकारी फैसला ले लिया।
"आज बुआ को चोदना है..कैसे भी..जैसे भी..आज या तो 'जय' नहीं तो 'छय'.."
दादी के ओझल होने के बाद बुआ कुछ कर पाती इससे पहले ही मेरे हाथ उसके कमर के दोनों तरफ जम गए थे और इससे पहले वो कुछ सोच पाती..मै बिलकुल उसके पीछे आ चुका था और मेरा लण्ड अब उसके चौड़े गाण्ड के फैले हुए दरारों के बीच था। उसके कमर को जकड़े हुए और अपने लौड़े को उसके दरारों के बीच ठेलते हुए मैंने उसे आगे की ओर धकेलना सुरु कर दिया था। बुआ अचंभित थी..चकित थी..इससे पहले वो कुछ समझ पाती वो पलंग के किनारों से सटी खड़ी थी और मेरे पास उसे और आगे धकेलने के लिए जगह नहीं थी। मैंने अपने कमर को जितना हो सकता था उतना बुआ के दरारों के बीच ठेल रखा था और लगातार उसके चौड़े चुतड़ो के बीच साड़ी और पेटिकोट के ऊपर से ही सूखे धक्के लगाये जा रहा था। मेरे हाथ अब उसके कमर को छोर कर उसके नंगे पेट को मसल रहे थे..फिर मेरी अंगुलियो ने उसके गहरी नाभि को ढूंढ लिया और मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली से बुआ के नाभि को कुरेदना सुरु कर दिया। बुआ के मुँह से एक "स्सस्स..सिसस्स.." फूटी।
अब मेरे हाथ उसके नंगे पेट को छोर.. उसकी गहरी नाभी को छोर ऊपर की ओर फिसल रहे थे। और कुछ ही पलो में मेरे हाथ उसके गुदाज..बड़े-बड़े..मोटे-ताजे चूचियों पे थे। मैंने अपनी छिनार बुआ के दोनों चुँचियो को दोनों हथेली में दबोचा और जितना हो सके उतने जोर से मसल दिया..
बुआ कराह उठी..
"आह.. तुम पागल तो नहीं हो गए..स्सस्स..दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा..उफ़्फ़.."
हाँ..मै पागल ही तो हो गया था..वासना में..अपनी अधेर..शादी-शुदा..मंगलसूत्र पहने..माँग में सिन्दुर भरे..चुदी-चुदाई.. कामुक..चुदासी बुआ के वासना में मै पागल हो गया था।
मै लगातार बुआ के चुँचियो को मसलता जा रहा था..उसकी चुँचियां स्पंज की तरह थी जो पूरी तरह से मेरे हथेलियों में आभी नहीं रही थी। बुआ के कड़क निप्पल वाले चुँचियो को दबाते-दबाते मै उसकी गर्दन पे झुका और पागलो की तरह उसके गर्दन को चाटने लगा..उसके बाल बार-बार मेरे मुँह में आ रहे थे..लेकिन उसके गले के नमकीन स्वाद के सामने उन रेशमी बालों की हैसियत क्या थी। मै उसके कानों के लवो को अपने होंठो के बीच लेके उसे किसी टॉफी की तरह चूसने लगा..और फिर मेरे जीभ बुआ के कानों के अंदर तक घुस गये और मै जानवर की तरह उसके सारे कान को चाटने लगा। बुआ लगातार खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। उसके मुँह से लगातार सिसकारी फुट रही थी। मेरे जीभ अब बुआ के नंगे कंधे पे चल रहे थे..मेरी हथेली में उसकी चुंचियों का अहसास लगातार मेरे वासना को भड़का रही थी। उसके नंगे कंधे को चाटते-चाटते मैंने अपना लौड़ा पूरी ताकत से उसके विशाल गाण्ड के दरार में पेल दिया और ठीक उसी वक़्त मैंने उसके कंधे पे अपने दाँत गड़ा दिए..बुआ कराह उठी..
"आह.. हरामी..क्या कर रहा है तू..कोई आ जायेगा..छोड़ मुझे..ओह..माँ.."
लेकिन वासना मेरे ऊपर कीसी भूत की तरह सवार हो चुकी थी। अगले ही पल मेरे हाथ बुआ के चुँचियो को छोर उसके जांघो पे आ गए थे..और मैं उसके जांघो पे फैली उसकी साड़ी को ऊपर उठाये जा रहा था। बुआ ने एक दो बार मेरे हाथों को झटकने की कोशिश की थी लेकिन मै यूँ हार मानने वाला नहीं था। साड़ी अब पूरी ऊपर उसके कमर तक आ चुकी थी..मैंने अपने हाथों को आगे से बुआ के चिकने और मांसल जांघो पे फिराया और उसे अपने नाखूनों से खखोरते हुए उसके नंगे बिना कच्छी के बुर को हथेली में दबोच लिया। बुआ सीहर उठी थी..उसकी गाण्ड ने मेरे पजायमे के अंदर छिपे कठोर लण्ड पे एक हल्का सा धक्का दिया। बुआ भी चुदासी हो रही थी..मेरी छिनार बुआ गर्म हो के मेरे लौड़े पे ठोकर मार रही थी। मैंने उँगलियों में उसके काले झांटो को दबोचा और उसे उखाड़ने लगा..बुआ कराह उठी..उसने अपने चौड़े गाण्ड से मेरे लौड़े को मसल दिया। अब मेरे लिए रुकना उतना ही मुश्किल था जितना बिना ऑक्सीजन के रहना..मै नीचे झुक गया था और टखने पे बैठा बुआ के चौड़े..गुदाज हाहाकारी गाण्ड को निहार रहा था..एक दम चिकने..कसे हुए चूतड.. और तंग गाण्ड की दरार..मेरी कामुकता की आग में घी का काम कर रही थी। बुआ की गाण्ड सच में हाहाकारी थी..मैं उसके दोनों चुतड़ो को मुट्ठी में दबोच उसे भभोरने लगा था..बुआ अपने गाण्ड को हिला कर उसे छुपाने या मुझे भड़काने की कोशिश कर रही थी पता नहीं लेकिन अब तक मेरे जीभ उसके चिकने चुतड़ो को चाट-चाट कर गीला कर रहे थे और तभी मैंने उसके कसे हुए चुतड़ो को दाँत में पकड़ काट बैठा..मेरे अंदर कही से एक जानवर आ गया था। बुआ हलके से चीख बैठी..उसने अपने दोनों मुट्ठी में चादर को दबोच रखा था। मैंने ज्यादा देर करना उचित नहीं समझा..लोहा गर्म था..हथौड़ा चलाने में देरी करना मूर्खता होती। मै अब खड़ा हो चूका था और मेरा लौड़ा पायजामा को अलविदा कह चुका था। बुआ ने पलट कर देखा मै क्या कर रहा हूँ..इसे पहले वो कुछ बोल पाती.. मैंने उसके पीठ पे हाथ डाल उसे बिस्तर से टिका दिया। और उसके चुतड़ो के दोनों पट को हाथ से फैला रहा था तभी बुआ बोली..
"नीचे मत करो..वहां नहीं.."
मै कन्फ्यूज़ हो गया..मेरे मुँह से फुसफुसाहट निकली..
"नहीं..मै गाण्ड नहीं मार रहा हूँ..मै तो.."
आगे का शब्द बोलने में मुझे कुछ अजीब सा लगा..
लेकिन तब तक बुआ बोल चुकी थी..
"हरामी मेरी चुत भी मत मार..ऊँगली से कर दे या चाट दे..लौड़ा मत कर प्लीज़"
मुझे लगा बुआ बस नखरे कर रही है..और वैसे भी मेरे ऊपर वासना ने अपना तांडव कर रखा था..
मैंने अपना लण्ड बुआ के चुत के ऊपर रखा और एक ज़ोरदार धक्का मारा.. बुआ चिल्ला उठी..
और मुझे मेरी जन्न्त मिल गयी थी..स्वर्ग यही था..मेरी छिनार..चुदासी..अधेर उम्र की एक शादी-शुदा बुआ..चौड़े-उभड़े गाण्ड..बड़ी-बड़ी माँसल चुंचियों..काली-काली झांटो सहित चुत वाली बुआ के बुर में ही स्वर्ग था।
मैंने अपना लौड़ा आधा बाहर खींचा और दुबारा अंदर करने ही वाला था कि बुआ एकाएक पलट गयी..मैने हड़बड़ी में उसकी कमर को पकड़ना चाहा लेकिन तब तक उसकी हाथो ने मुझे धक्का दे दिया था। मैं ठीक से संभल भी पता तब तक बुआ अपनी साड़ी नीचे कर चुकी थी। मैंने उसकी बाँहों को पकड़ा और..
"बुआ प्लीज़ बस एक बार.."
"चट्टटटाक्क्क" बुआ के हाथ मेरे गालो पे थे और उसके हाथ हटने के बाद मेरे हाथ अपने खुद के गालो को सहला रहे थे।
बुआ का चेहरा अभी भी कामुक था..अभी भी उसकी साँसे भारी थी..उसकी आँखों में अभी भी चुदासी झलक रही थी..लेकिन फिर भी उसका इंकार था..
बुआ बोल पड़ी..
"हरामी तुम को रात में भी समझाई थी ना..हजार बार समझाने पे भी समझ नहीं आती ना..अब तुम एक बार भी मेरे शरीर को छू के देख..भैया-भाभी को बताउंगी ही..मै उनको (फूफा जी) भी बताउंगी उसके बाद तुम अपना हाल देखना..हरामी..दोगला.."
इसके बाद वो पलटी और कमरे से निकल गयी। मै स्तब्ध सा खड़ा रह गया..
"ये पतिव्रता धर्म..संस्कार..रिश्ते की मर्यादा था..या कुछ और.."
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