RE: Chudai Kahani लेडी डाक्टर
ओह गॉश!!! इतनी प्यारी और खूबसूरत चूत मैंने ब्लू-फिल्मों में भी नहीं देखी थी। उसकी बाकी जिस्म की तरह उसकी चूत भी बिल्कुल चिकनी थी। एक रोंये तक का नामोनिशान नहीं था। मुझसे अब सहन नहीं हो रहा था। मैंने दीवानों की तरह उसकी सलवार और पैंटी को पैरों से अलग करके दूर फेंक दिया। पैरों के सैंडलों को छोड़ कर अब वो नीचे से पूरी नंगी थी। उसकी आँखें बंद थीं। मैंने संभल कर उसकी दोनों टाँगों को उठाया और उसे अच्छी तरह से सोफे पर लिटा दिया। वो अपनी टाँगों को एक दूसरे में दबा कर लेट गयी। अब उसकी चूत नज़र नहीं आ रही थी। सोफे पर इतनी जगह नहीं थी कि मैं भी उसके बाजू में लेट सकता। मैंने अपना एक हाथ उसकी टाँगों के नीचे और दूसरा उसकी पीठ के नीचे रखा और उसे अपनी बाँहों में उठा लिया। उसने ज़रा सी आँखें खोलीं और मुझे देखा और फिर आँखें बंद कर लीं।
मैं उसे यूँ ही उठाये बेडरूम में ले आया। बिस्तर पर धीरे से लिटा कर उसके पास बैठ गया। उसने फिर उसी अंदाज़ में अपनी दोनों टाँगों को आपस में सटा कर करवट ले ली। मैंने धीरे से उसे अपनी तरफ खिसकाया और उसे पीठ के बल लिटाने की कोशिश करने लगा। वो कसमसाने लगी। मैंने अपना हाथ उसकी टाँगों के बीच में रखा और पूरा जोर लगा कर उसकी टांगों को अलग किया। गुलाबी चूत फिर मेरे सामने थी। मैंने उसकी टांगों को थोड़ा और फैलाया। चूत और स्पष्ट नज़र आने लगी। अब मेरी अँगुलियाँ उसकी क्लिटोरिस (भगशिशन) को सहलाने के लिये बेताब थीं। धीरे से मैंने उस अनार-दाने को छुआ तो उसके मुँह से सिसकारी-सी निकली। हलके-हलके मैंने उसके दाने को सहलाना शुरू किया तो वो फिर कसमसाने लगी।
थोड़ी देर मैं कभी उसके दाने को तो कभी उसकी चूत की दरार को सहलाता रहा। फिर मैं उसकी चूत पर झुक गया। अपनी लंबी ज़ुबान निकाल कर उसके दाने को छुआ तो वो चींख पड़ी और उसने फिर अपनी टाँगों को समेट लिया। मैंने फिर उसकी टाँगों को अलग किया और अपने दोनों हाथ उसकी जाँघों में यूँ फँसा दिये कि अब वो अपनी टाँगें आपस में सटा नहीं सकती थी। मैंने चपड़-चपड़ उसकी चूत को चाटना शुरू किया तो वो किसी कत्ल होते बकरे की तरह तड़पने लगी। मैंने अपना काम जारी रखा और उसकी चार इंच की चूत को पूरी तरह चाट-चाट कर मस्त कर दिया।
वो जोर-जोर से साँसें ले रही थी। उसकी चूत इतनी भीग चुकी थी कि ऐसा लग रहा था, शीरे में जलेबी मचल रही हो। उसने अपनी आँखें खोलीं और मुझे वासना भरी नज़रों से देखते हुए तड़प कर बोली... “खुदा के लिये अपना लंड निकालो और मुझे सैराब कर दो!”
मैंने उसकी इलतिजा को ठुकराना मुनासिब नहीं समझा और अपनी पैंट उतार दी। फिर मैंने अपनी शर्ट भी उतारी। इससे पहले कि वो मेरे लंड को देखती, मैं उस पर झुक गया और उसके पतले-पतले होंठों को अपने मुँह में ले लिया। उसके होंठ गुलाब जामुन की तरह गर्म और मीठे थे और वैसे ही रसीले भी थे। पाँच मिनट तक मैं उसके रसभरे होंठों को चूसता रहा। फिर मैंने अपनी टाँगों को फैलाया और उसकी जाँघों के बीच में बैठ गया। अब मेरा तमतमाया हुआ लंड उसकी चूत की तरफ किसी अजगर की तरह दौड़ पड़ने के लिये बेताब था। अब उसने फिर आँखें बंद कर लीं।
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