RE: Chudai Kahani लेडी डाक्टर
“पागल हो तुम...” वो फिर हंस पड़ी... “या तो तुम मुझे उल्लू बना रहे हो... या सचमुच दीवाने हो...!”
मैंने फिर अपने चेहरे पर दुखों का पहाड़ खड़ा कर लिया। वो मुझे गौर से देखने लगी। शायद ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी कि मैं सच बोल रहा हूँ या उसे बेवकूफ बना रहा हूँ।
फिर वो गंभीर हो कर बोली... “ये बताओ... जब तुम्हारा पेनिस खड़ा हो जाता है और तुम अकेले होते हो... बाथरूम वगैरह में... या रात को बिस्तर पर... तो तुम उसे ठंडा करने के लिये क्या करते हो?”
“ठंडा करेने के लिये???”
“हाँ... ठंडा करेने के लिये...!”
“मैं नज़ीला आंटी से कहता हूँ कि वो मेरे लिंग को अपने मुँह में ले लें और खूब जोर-जोर से चूसे...!”
वो थूक निगलते हुए बोली... “नज़ीला आंटी...??? आंटी कौन?”
“मेरे घर की मालकीन... मैं उनके घर में ही पेइंग गेस्ट के तौर पर रहता हूँ...!”
“अरे, इतनी बड़ी दुकान है तुम्हारी... और पेइंग गेस्ट?”
“असल में ये दुकान भी उन ही की है... मैं तो उसे संभालता हूँ...!”
“पर अभी तो तुमने कहा था कि तुम उस दुकान के मालिक हो...!”
“एक तरह से मलिक ही हूँ... नज़ीला आंटी का और कोई नहीं है... दुकान की सारी जिम्मेदारी मुझे ही सौंप दी है उन्होंने...!”
“तो वो... मतलब वो तुम्हें ठंडा करती हैं...?”
“हाँ वो मेरे लिंग को अपने मुँह में लेकर बहुत जोर-जोर से रगड़ती हैं और चूस-चूस कर सारा पानी निकाल देती हैं... और कभी-कभी मैं...”
“कभी-कभी....?” वो उत्सुकता से बोली।
“कभी-कभी मैं उन्हें...” मैं रुक गया। वो बेचैनी से मुझे देखने लगी। मैंने बात ज़ारी रखी... “मैं उन्हें भी खुश करता हूँ!”
“कैसे?” वो धीरे से बोली।
मैं इत्मीनान से बोला... “नज़ीला आंटी को मेरे लिंग का साइज़ बहुत पसंद है... और जब मैं अपना लिंग उनकी योनी में डालता हूँ... तो वो मेरा किराया माफ कर देती हैं!”
मैंने देखा कि डॉक्टर ज़ुबैदा हलके-हलके काँप रही है। उसके होंठ सूख रहे हैं।
मैंने एक तीर और छोड़ा... “ग्यारह इंच का लिंग पहले उनकी योनी में नहीं जाता था... लेकिन आजकल तो आसानी से जाने लगा है... अब तो वो बहुत खुश रहती हैं मुझसे... और उसकी एक खास वजह भी है...!”
“क्या वजह है?” डॉक्टर की आँखों में बेचैनी थी।
“मैं उन्हें लगभग आधे घंटे तक...” मैंने अपनी आवाज़ को धीमा कर लिया और बोला... “चोदता रहता हूँ...!”
डॉक्टर अपनी कुर्सी से उठ गयी और बोली... “अच्छा तो... तुम अब जाओ...!”
“और मेरा इलाज???”
“इलाज??? इलाज वही... नज़ीला आंटी!” वो मुस्कुराई।
“दुकान में???”
“मैंने कब कहा कि दुकान में... घर पर...”
“दुकान छोड़ कर नहीं जा सकता... और वैसे भी आजकल आंटी यहाँ नहीं है... बैंगलौर गयी हुई है।”
“तो ऐसा करो... सुनो... अ...”
मैं उसे एक-टक देख रहा था।
वो बोली... “देखो...”
मैंने कहा... “देख रहा हूँ... आप आगे भी तो बोलिये।”
“हुम्म... एक काम करो... जब भी तुम्हारा पेनिस खड़ा हो जाये... तो तुम मास्टरबेट कर लिया करो... और मास्टरबेट क्या होता है वो भी बताती हूँ...”
वो दरवाजे की तरफ देखने लगी, जहाँ कंपाऊंडर खड़ा किसी से बात कर रहा था। वो मेरी तरफ देख कर धीरे से बोली... “अपने पेनिस को अपने हाथों में ले कर मसलने लगो... और तब तक मसलते रहना... जब तक कि सारा पानी ना निकल जाये और तुम्हारा पेनिस ना ठंडा हो जाये...!”
मैंने अपने सर पर हाथ मारा और कहा... “अरे मैडम! ये ग्यारह इंच का कबूतर ऐसे चुप नहीं होता। मैंने कईं बार ये नुस्खा आजमाया है... एक-एक घंटा लग जाता है, तब जा कर पानी निकलता है।”[/color]
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