RE: Chudai Story समाज सेविका
मुझसे बर्दाश्त नही हो रहा था. मैने उसे एक तरफ
हटाया और फिर अपने अंडरवेर के साथ अपनी पॅंट
उतार दी. उसने मेरे लंड को तना हुआ देखा तो झट से
उसे पकड़ लिया. मैं काँप गया. उसने अपनी नाज़ुक
उंगलियों से मेरे लंड को थामा और दो उंगलियों से
उसकी मालिश करने लगी.. धीरे धीरे, कोमलता
से...सौम्यता से.
मेरे तन बदन मे आग सी लगी हुई थी.
वो ख़ास तौर से मेरे लंड के निचले तरफ की नस को
मसल रही थी, जिससे मेरा बुरा हाल था. कभी वो
लंड लंड के हेड को मसल्ति, तो कभी लंड के झाड़ को
अपनी उंगलियों से दबाती. फिर उसने अपनी मुट्ठी मे
मेरे लंड को पूरी तरह थाम लिया और हेड से जड तक
मसाज करने लगी. उसकी कोमल हथेली किसी स्वर्ग से
कम नही थी. लंड से निकलने वाली तरंगे मेरी आत्मा
तक को सराबोर कर रही थी.
मेरे आँखे बंद थी. अचानक मुझे अपने लंड पर कुछ
गीला गीला सा महसूस हुआ. देखा तो पता चला कि
उसने मेरे को अपने मूह मे ले लिया है. उसके रसीले
होंठ मेरे लंड के एक एक भाग को सहला रहे थे. मेरे
लंड का हेड उसके मूह मे था. फिर उसने धीरे धीरे
पूरे लंड को अपने मूह मे भर लिया. मैं अपना सर
इधर उधर करने लगा. ये पहला इत्तेफ़ाक था कि किसी
औरत ने मेरे लंड को अपने मूह मे लिया हो. मेरे सारे
शरीर मे सनसनी सी दौड़ने लगी. अजीब अजीब सी
तरंगे सरसराने लगी.
वो मेरे लंड को अपने मूह मे आगे पीछे करने लगी.
और मेरा बदन काँपने लगा. धीरे धीरे बड़ी
नज़ाकत से वो मेरे लंड को अपने मूह मे मसल रही थी
और मुझे दुनिया मे ही जन्नत का मज़ा आने लगा
था.
कभी वो मेरे लंड के हेड को चूसति तो कभी ज़बान
से सारे लंड को चाटते हुए उसकी जड तक पहुँच
जाती. ऐसा अनुभव मुझे पहले कभी नही हुआ था.
मैं तो इस औरत का गुलाम बन गया.
वो उसी तरह प्यार से मेरे सारे लंड को निहाल कर रही
थी. और मेरे रोम रोम मे करेंट दौड़ रहा था. उसके
मूह मे मेरा पूरा लंड आ गया था. वो किसी कुलफी की
तरह उसे चूसे जा रही थी. धीरे धीरे, धीमे
धीमे. आख़िर मेरे बदन मे एक लंबा सा तनाव आया
और फिर मैने अपने दाँतों को एक दूसरे मे गढ़ा कर
अपना सारा वीर्य उसके मूह मे खारिज कर दिया. वो
लंड को दबा दबा कर सारा वीर्य चूसने लगी. और
मैं तड़प तड़प कर एक एक बूँद उसके होंठों मे
टपकाने लगा.
फिर जब सारा वीरया निकल गया तो उसने मेरा लंड
छोड़ा और हट कर बैठ गयी. मई भी रिलॅक्स हो कर सोफे
पर आधा लेट गया. मेरा लंड धीरे धीरे सामान्या
होने लगा.
वो लंड को देखने लगी और मेरी तरफ देखते हुए
बोली... 'चार बजने वाले है...मेडम का आने का वक्त
हो गया.' मैं बोला...'नही वो आज नही आएगी...मैने
तुम से झूट बोला था.'
उसकी आँख चमकने लगी और वो मेरे खरीब आ गयी.
उस वक्त वो साड़ी पहनी हुई थी. मैने उसकी साड़ी के
अंदर हाथ डाला और उसकी जाँघो को सहलाता हुआ
उसकी चूत तक पहुँचा. उसने एक सिसकारी ली.
उसकी पैंटी गीली हो चुकी थी...इतनी गीली, जैसे किसी
ने पानी मे भिगो दी हो. मैं पैंटी के उपर से ही उसकी
चूत को मसल्ने लगा. वो बिन पानी की मछली की तरह
तड़पने लगी. फिर मैने उसकी पैंटी के अंदर हाथ
डाला. अंदर का भाग किसी भट्टी की तरह गर्म था. मैं
उसकी चूत की दरार ढूँढने लगा. मेरी उंगलिया
उसकी क्लाइटॉरिस से टकराई और वो हल्के से काँप गयी.
मैं अपनी उंगली से उसकी क्लाइटॉरिस को मसलने लगा और
वो बेकरार होने लगी. मैने उसे सोफे पर लिटा दिया और
वो मूह दूसरी तरफ करके लेट गयी. मैने उसकी साड़ी
और पेटिकोट उठाई. उसकी गुलाबी पैंटी चूत के अमृत
से तर बतर थी. मैने पैंटी को पकड़ा और उसे
घसीटता हुआ उसकी जाँघो तक ले आया. फिर उसने
उठ कर खुद ही अपनी पैंटी उतार दी और दोबारा लेट
गयी. उसके घुटने उपर थे और टांगे फैली हुई. उसकी
बेहद खूबसूरत चूत अब बिल्कुल नंगी मेरे सामने थी.
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