RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"मेरे वहाँ .. मेरे पिछे! पिछे मुझे बहुत दर्द हो रहा है" भूलवश ममता ने अपना कथन तो पूरा कर लिया मगर साथ ही साथ खुद के लिए गर्त का भी इंतज़ाम कर बैठी. अपने मम्मो पर अपने पुत्र के विशाल पंजो की मसलन की सीधी चोट को वह अपनी चूत के अन्द्रूनि हिस्से में महसूस कर रही थी, संकरे मार्ग पर आकस्मात अत्यधिक स्पंदन होने लगा था मानो जल्द ही उसका सामना एक ऐसे अनियंत्रित स्खलन से होने वाला हो, जिसके उपरांत निश्चित ही वह ऋषभ की नज़रों में पूरी तरह से गिर जाती और उसी से बचने के उद्देश्य से उसे अत्यंत निर्लज्जतापूर्णा ढंग से अपने गुदा-द्वार में उठती पीड़ा का झूठा स्वांग रचना पड़ा था.
"तो क्या तुम पहले नही बता सकती थीं ? अब तक तो मैं तुम्हारी गान्ड के छेद की जाँच कबकि पूरी कर चुका होता मा" ऋषभ ने हल्की सी नाराज़गी जताई मगर अपने हाथो को ममता के मम्मो से हटाने का कोई प्रयत्न नही करता, हलाकी मम्मे चूसने की उसकी अभिलाषा अब तक बरकरार थी और उसकी गान्ड के छेद से खेलना शुरू करने से पूर्व वह इक अंतिम प्रयास करने के विषय में ही विचार कर रहा था.
"कैसे कहती रेशू ? क्या मैं बेशरम बन जाती ?" ममता ने फुसफुसाते हुए पुछा, जब कि अब तक उसके स्वयं के हाथ ज़बरदस्ती उसके पुत्र के पंजों द्वारा उसके मम्मो को निचोड़ रहे थे. वह अच्छे से जानती थी कि जिस नैसर्गिक सुख का लाभ वह वर्तमान में उठा रही है, भविश्य में सदा के लिए उससे वंचित रह जाना था.
"ओफफ्फ़ ओह्ह्ह मा! तुम बे-वजह कितना सोचती हो" कहते हुवे ऋषभ पुनः अपने होंठ अपनी मा की गर्दन से सटा देता है मगर इस बार उसने दिशा और अपने बीते कार्य में परिवर्तन कर लिया था.
"पिच्छले आधे घंटे से नंगी हो. तुम्हारी सहजता की खातिर मैने भरकस प्रायस किए हैं, इसके बावजूद अब तक तुम्हारी शरम का अंत नही हुआ" बोल कर वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के ममता की गर्दन को चाटना शुरू कर देता है. झुर्रियों रहित अत्यंत कड़क! चिकनी चमड़ी, ऊपर से नमकीन पसीने से सराबोर. उस मादक स्वाद को चखने के उपरांत ऋषभ के लंड में अचानक से कठोरता का वास हो जाता है, जिसकी असहनीय रगड़ के कारण तत्काल ममता अपनी नग्न पीठ के छिल जाने का एहसास करने लगती है.
"ओन्णन्न् सीईईईईईई रेशू! लगता है, वहाँ अचानक से दर्द बढ़ गया है .. तू कुच्छ करता क्यों नही" कमान्ध ममता कराहते स्वर में चीखी और अपने निचले धड़ को तीव्रता से मेज़ पर पटकने लगती है. उसके हाथ थे जो रुकने का नाम नही ले रहे थे, अपने पुत्र के पंजों को बलपूर्वक अपने मम्मो पर दबाती हुवी वह उसकी लप्लपाति जिह्वा के आनंद में किसी दूसरी दुनियाँ में पहुँच चुकी थी, जहाँ सिवाए रोमांच के कुच्छ और शेष ना था.
"आह्ह्ह्ह मा! मेरे हाथो को छोड़ॉगी तब ना मैं तुम्हारी पीड़ा का निदान कर सकूँगा" प्रत्युत्तर में ऋषभ भी सीत्कार उठा, चुस्त फ्रेंची की जाकड़ में क़ैद उसका विशाल लंड अब टूट कर बिखर जाने की स्थिति में परिवर्तन हो चला था. अनाचार की परिभाषा इतनी अधिक उत्तेजक होती होगी, दोनो के ही तंन और मन इस बात को स्वीकार कर बुरी तरह सिहरने लगे थे.
"तू मुझे क्यों दोष दे रहा है ? तेरे हाथ हैं, क्या तू खुद इन्हे नही छुड़वा सकता ?" ममता ने खिसियाते हुवे पुछा, बल्कि उसकी चाह थी कि वक़्त वहीं थम जाए और वह जी भर कर अपने पुत्र के मजबूत हाथो द्वारा अपने मम्मो की मसलन का लुफ्ट उठाती रहे. ऋषभ की गीली खुरदूरी जीभ का स्पर्श उसे बेहद गुदगुदा रहा था, पति राजेश संग की गयी सभी रतिक्रियाओं से अधिक श्रेष्ठकर ! अधिक कामुक और उससे भी कहीं अधिक रोमांचकारी.
"तुम्हारी इक्षाओ के विरुद्ध कैसे जाउ मा ? कितने लंबे अरसे बाद तो तुम्हे पा सका हूँ, मानो इस बीच मैने कयि जनम ले लिए हों और हर जनम तुम्हे पाने की चाह में सिर्फ़ तड़प कर बिताया हो" कहने के पश्चात ही ऋषभ ममता के मन्गल्सूत्र के स्वर्ण कुंडे को अपने नुकीले दांतो से बलपूर्वक चबाने लगा, यक़ीनन वह अपनी मा के मश्तिश्क से उसके पतिव्रता होने के गौरव को खंडित कर देने पर आमदा हो चला था.
"उफफफ्फ़ तेरी बातें रेशू! जाने सुन कर मुझे क्या होता जा रहा है ? क्या मेरे रोग का इलाज वाकयि संभव है ?" अपने इस विचित्र प्रश्न के ज़रिए ममता ने अपनी हार सुनिश्चित कर दी, अपने पुत्र के साथ अमर्यादित संसर्ग स्थापित करने के अलावा उसके पास अब कोई अन्य विकल्प मौजूद ना था.
"है मा! संभव है! मैं वादा करता हूँ कि कॅबिन छोड़ने से पूर्व तुम्हारे चेहरे की सारी उदासीनता को हर लूँगा, तुम्हारे रोग की पूर्णरूप से समाप्ति कर दूँगा" अपनी मा को सांत्वना दे कर तुरंत ऋषभ ने उसके हाथो से अपने हाथ छुआ लिए, अथक प्रयास के उपरांत मन्गल्सूत्र के कुंडे की मजबूती को भी उसने काफ़ी हद्द तक कमज़ोर कर देने में सफलता अर्जित कर ली थी और अब वक़्त आ चुका था जब उसे अपने सबसे पसंदीदा खेल को अंजाम देना था. शुरूवात से ही औरतो के गुदा-द्वार में उसकी रूचि चूत से कहीं अधिक रही थी और मेज़ पर नंगी बैठी उस औरत का उसकी मा होना उसकी कामोत्तजना की पराकाष्ठा का सूचक था.
"मा! तो फिर खोलो अपने चूतड़ो की दरार को. मैं देखता हूँ, तुम्हारी गान्ड के छेद में क्या दिक्कत है" आनंदित स्वर में अपने अश्लील कथन को पूरा कर ऋषभ अपने ठीक पिछे रखी कुर्सी पर विराजमान हो जाता है, तत-पश्चात उसकी वासनामई आँखें फॉरन उसकी मा के लंबे! स्याह बालो से निच्चे की ओर फिसलने लगी. उसकी सुनहली रंगत की पीठ कॅबिन के प्रकाश में बेहद चमकती प्रतीत हो रही थी और चूतड़ो के दोनो पाट परस्पर उसके तलवो पर टिके होने के कारण अधिकांश पूर्व से ही फैले हुए थे मानो किसी गोल मटके को लंबवत आकार में काट कर, दोनो भागो को इस तरह मेज़ की सपाट सतह पर खड़ा कर दिया गया हो जिनके द्वारा हृष्ट-पुष्ट चूतड़ो के सर्वाधिक सुंदर आकार को पारदर्शित किया जा सके. चूतड़ो की दरार की अत्यधिक गहराई के नतीजन उसके भीतर उगी घुँगराली झांतों की अधिकता देख ऋषभ बौखला सा जाता है.
|