RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
अरे ड्र. साहेब !! गान्ड मेरी तो दर्द भी मेरा हुआ ना, रोगी मैं खुद हूँ और जब मुझे ही सब कुच्छ मंज़ूर है तो फिर यह इजाज़त क्यों देंगे भला ?" मासूमियत से ऐसा पुच्छ कर रीमा अपनी कुर्सी से उठी और वहीं अपनी सारी को अपने पेटिकोट से बाहर खिचने लगती है.
"नही नही रीमा जी !! अभी रुकिये, पहले इस नो ऑब्जेक्षन सर्टिफिकेट पर विजय जी के दस्तख़त हो जाने दीजिए" ड्र. ऋषभ रीमा के पति को घूरता है जो बेहद दुखी मुद्रा में उस नो ड्यूस सर्टिफिकेट को ऐसे पढ़ रहा था जैसे उसकी प्रॉपर्टी की वसीयत हो और जिसमें उसके बाप ने अपनी सारी दौलत पड़ोसी की औलाद के नाम कर दी हो.
"ईश्ह्ह !! आख़िर तुम चाहते क्या हो विजय ? क्या यही कि तुम्हारी बीवी तड़प्ते हुवे मर जाए ? हा !! शायद अब तुम्हें मेरी कोई फिकर नही रही" रीमा दोबारा क्रोध से तिलमिलाई.
"लाओ जी ड्र. साहेब !! वो ठप्पे वाली स्याही की डब्बी मुझे दो, मैं खुद अपना अंगूठा लगाती हूँ" उसने प्रत्यक्ष-रूप से अपने अनपढ़ होने का सबूत पेश किया. हलाकी वह पूर्व से ऐसी चरित्र-हीन औरत नही थी, पिच्छले महीने ही अपने गाओं से अपने पति के पास देल्ही आई थी. जीवन-पर्यंत अपनी बूढ़ी सास की देख-भाल के अलावा उसे किसी भी अन्य काम में कोई रूचि नही रही थी मगर आज अपने पति द्वारा सतायि वह अबला नारी किसी अनुभवी रंडी में परिवर्तित हो चली थी. इसकी एक मुख्य वजह ड्र. ऋषभ का आकर्षित व्यक्तित्व, सुंदर चेहरा, मांसल कलाई, बेहद गोरी रंगत, अत्यंत निर्मल स्वाभाव इत्यादि विशेताएँ या उसके वस्त्र-विहीन कठोर जिस्म का जितना हिस्सा वह अपनी खुली आँखों में क़ैद कर पाई थी, उसके कोमल हृदय को पिघलाने में सहायक उतना काफ़ी था.
"उम्म्म !! वो तो नही है रीमा जी मगर यह पेन ज़रूर है" ड्र. ऋषभ ने अपने हाथ में पकड़ा पेन विजय के चेहरे के सामने घुमाया, अपने समक्ष खड़ी अत्यधिक छर्हरे शरीर की स्वामिनी रीमा की अश्लील बातों व हरक़तो के प्रभाव मात्र से उसके पॅंट के भीतर छुपे उसके शुषुप्त लंड ने अंगड़ाई लेना प्रारंभ कर दिया था.
"डॉक्टर. !! मेरी बीवी और बच्चो से बढ़ कर मेरे लिए कुच्छ भी नही, चलिए मैं साइन कर देता हूँ. अब आप भी जल्दी से इनका इलाज करना शुरू कर दीजिए" विजय के कथन और मुख पर छाई मायूसी का कहीं से कहीं तक कोई मेल नही बैठ पता, मजबूरी-वश उसे सर्टिफिकेट पर अपने दस्तख़त करने ही पड़ते हैं. यदि वह दो दिन पहले अपने ऑफीस के जवान चपरासी की बातों के फेर में नही आया होता तो यक़ीनन आज उसे यूँ शर्मिंदगी का सामना नही करना पड़ता. हुआ कुच्छ ऐसा था कि उसके चपरासी ने उसके सामने अपनी नयी-नवेली दुल्हन के संग की जाने वाली संभोग क्रियाओं का अती-उत्तेजक विश्लेषण किया था, ख़ास कर अपनी जवान बीवी की गान्ड चोदने के मंत्रमुग्ध आनंद की बहुत ज़ोर-शोर से प्रशन्सा की थी और उनके दरमियाँ चले उस लंबे वार्तलाब के नतीजन विजय ने पिच्छली रात ज़बरदस्ती अपनी पत्नी की इक्षा के विरुद्ध उसकी गान्ड मारी, जिसे वह स्वयं पहले अप्राक्रातिक यौन संबंध समझता था.
जवान लौन्डे-लौंडिया तो वर्तमान में प्रचिलित चुदाई से संबंधित सभी आसनो का भरपूर लाभ उठाते हैं मगर अधेड़ो की दृष्टि-कॉन से आज भी एक निश्चित व सामान्य स्थिति में अपनी काम-पीपसा को शांत कर लेना उचित माना जाता है, मुख मैथुन या गुदा-मैथुन को वे सर्वदा ही पाश्चात्य सन्स्क्रति का हवाला दे कर अनुचित करार देते आए हैं.
"अब उतारू साड़ी ?" अपने पति को टोन्चति रीमा ने सवाल किया जैसे पराए मर्द के समक्ष नंगी हो कर उससे बदला लेना चाहती हो, हां काफ़ी हद्द तक उसके अविकसित मश्तिश्क के भीतर कुच्छ ऐसा ही द्वन्द्व चल रहा था.
"यहाँ नही रीमा जी !! वहाँ उस एग्ज़ॅमिन बेड पर" ड्र. ऋषभ अपनी चेर से उठ कर कॅबिन के दाईं तरफ स्थापित मरीज़ो वाले बिस्तर के नज़दीक जाते हुवे बोला. उसके पिछे-पिछे मिस्टर. & मिसेज़. सिंग भी उधर पहुँच गये.
"साड़ी उतारने की को ज़रूरत नही !! बस थोड़ी उँची ज़रूर कर लीजिए" उसके कहे अनुसार रीमा ने फॉरन अपनी स्राडी को पेटिकोट समेत अपनी पतली बलखाई कमर पर लपेट लिया और बिस्तर पर चढ़ने का भरकस प्रयत्न करने लगती है परंतु अपने गुदा-द्वार की असहनीय पीड़ा से विवश वह इसमें बिल्कुल सफल नही हो पाती.
ड्र. ऋषभ ने उस स्वर्णिम मौके की नज़ाकत को भुनाना चाहा और बिना किसी झेप के तुरंत वह रीमा के मांसल नंगे चुतडो के दोनो दाग-विहीन पाटों को अपने हाथो के विशाल पंजो के दरमियाँ कसते हुए उसके भारी भरकम शरीर को किसी फूल की तरह हवा में काफ़ी उँचाई तक उठा लेता है, कुच्छ पल अपने अत्यधिक बल का उदाहरण पेश करने के उपरांत उसने उसे बिस्तर की गद्दे-दार सतह पर छोड़ दिया जैसे वह मामूली सी कोई वजन-हीन वस्तु हो.
"उफ़फ्फ़" अपने पुत्र सम्तुल्य पर-पुरुष के हाथो के कठोर स्पर्श को महसूस कर रीमा सिसक उठी.
"मैं तो चड्डी भी नही पहन पाई !! देखो ना ड्र. साहेब इन्होने अपनी वेह्शियत से किस कदर अपनी नादान पत्नी को अपनी वासना का शिकार बनाया है" बिस्तर पर घोड़ी बन जाने के पश्चात ही उसने अपने चुतडो को वायुमंडल में उभारते हुवे कहा, उसकी कामुक आँखें परस्पर कभी अपने पति के उदासीन चेहरे पर गौर फरमाने लगती तो कभी अपने उस जवान नये प्रेमी के मुख-मंडल पर छाइ खुशी को निहारने में खो सी जाती.
क्रमशः.................................................................
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