RE: Biwi Sex Kahani सारिका कंवल की जवानी
तभी एक लड़की के चिल्लाने की तेज़ आवाज आकर शांत हो गई। मैं सपाक से उनकी तरफ देखते हुए पूछने लगी- यहाँ और कौन है?
वो दोनों मुस्कुराते हुए मुझे अन्दर चलने को बोलीं और कहा- खुद देख लो।
अन्दर जाते ही जो नज़ारा मैंने देखा उसे देख कर तो मेरे जैसे होश ही उड़ गए।
उम्म्ह… अहह… हय… याह…
मैं दरवाजे के सामने ही खड़ी थी और वो नजारा मुझे सुधबुध खोने पर विवश कर रहा था।
अन्दर मैंने देखा के बिस्तर पर दो मर्द हैं.. जिसमें से एक पीठ के बल लेटा हुआ नज़ारा देख रहा था और दूसरा भी नंगा लेटा हुआ अपने लंड को हाथ से सहला रहा था।
उनके पास में एक बहुत गोरी औरत थी, जिसके भरे-भरे स्तन और उठे हुए चूतड़ थे वो भी एकदम नंगी.. टांगें फैला कर पीठ के बल लेटी हुई थी। उसके ऊपर एक 50-55 साल का आदमी उसकी टांगों को पकड़े हुए हवा में झुलाते हुए अपने लंड को उसकी चूत में तेज़ी से धकेलता हुआ अन्दर-बाहर कर रहा था।
इतना देख कर अभी मैं हैरान ही थी कि शालू ने मेरा हाथ पकड़ अन्दर खींचा। मैंने दो कदम आगे बढ़ाए ही थे कि मेरी बाईं ओर मैंने देखा कि एक औरत चेयर पर आगे की तरफ नंगी हो कर झुकी हुई है और पीछे वो मेरा दोस्त उसके स्तनों को दबोचे हुए उसके चूत में लंड घुसा कर धक्के दे रहा था।
मैं जब बाहर से अन्दर आ रही थी तो कराहने, सिसकने और हाँफने की आवाज उम्म्ह… अहह… हय… याह… बढ़ती जा रही थीं और जब अन्दर आई तो ऐसा माहौल था कि पूरा कमरा उन दोनों औरतों की कराहों से गूंज रहा था।
मुझे देखते ही मेरे उस पुराने मित्र ने धक्के लगाने छोड़ दिए और वो मेरी तरफ आ गए। तभी वहाँ बिस्तर पर लेटा हुआ आदमी खड़ा होकर उस औरत के पास चला गया। लेकिन उस औरत ने उसे मना किया और कहा- पहले इन सबसे मिल तो लेने दो।
मुझे आई देख कर वे लोग भी.. जो बिस्तर पर सम्भोग कर रहे थे.. वो भी अलग हो गए और सब लोग बैठ कर मेरी ओर देखने लगे।
मैं तो शर्म से पानी-पानी हुई जा रही थी साथ ही ये नज़ारे देख कर घबराने के साथ-साथ कुछ दंग भी थी। मेरे सामने 4 नंगे मर्द और दो नंगी औरतें थीं। हम तीनों बबिता शालू और मैं ही बस कपड़ों में थे।
तब मेरे उस मित्र ने कहा- शालू और बबिता से तो आप मिल ही चुकी हो। इन से मिलो.. ये रामावतार जी हैं, बबिता के पति।
रामावतार वो थे.. जो नंगी औरत के साथ बिस्तर पर सम्भोग कर रहे थे। वो जो लेटा हुआ था और बिस्तर पर जो औरत संभोग कर रही थी.. उनके बारे में बताया गया।
‘ये विनोद और अमृता हैं.. पति-पत्नी हैं।’
फिर वो जो मेरे मित्र के हटने के बाद उठ कर खड़े हुए थे.. वो कांतिलाल जी थे और जिसके साथ मेरा मित्र खुद सम्भोग कर रहा था.. वो रमाबेन जी थीं.. मतलब कांतिलाल की पत्नी थीं।
रामावतार और बबिता कानपुर से आए थे। कांतिलाल और रमा जी गुजरात से.. और विनोद और अमृता कनाडा में रहते थे। वे कनाडा से छुट्टियों में यहाँ आए थे।
ये सब व्यस्क दोस्तों को खोजने की साईट से ही मिले थे।
अब इन सभी से मुझे भी मिलवा दिया गया था। सबसे जान पहचान होने के बाद मैंने थोड़ी राहत की सांस ली.. क्योंकि उनकी सोच बड़े खुले विचारों की थी। उनकी सोच जानकर ऐसा लगा.. जैसे ये भारतीय नहीं बल्कि कोई विदेशी लोग हों।
विनोद और अमृता तो खैर हिंदी कम अंग्रजी ज्यादा ही बोलते थे। सबके अपने-अपने परिवार और बच्चे थे.. सिवाए शालू के.. क्योंकि वो शादीशुदा नहीं थी।
शालू ही अकेली हम में सबसे कम उम्र की थी.. बाकी हम सब 45 के ऊपर ही थे। बबिता 40 की थी, रामजी 43, अमृता 46 की, शालू 32 की और मैं 47 की, विनोद 50, रामावतार जी 48, कांतिलाल भी 50 के थे।
मैंने ऐसा पहली बार नजारा देखा कि नंगे होकर कुछ लोग मुझे अपना परिचय दे रहे हैं। मेरा ध्यान तो बस इस पर था कि अब आगे क्या होगा। उनकी बातों से तो ऐसा लग रहा था जैसे उनके लिए ये सब आम बात थी.. पर मेरे लिए ये सब नया था।
इन सबसे मुझे तारा की उन सारी बातों पर यकीन हो चला था जिसमें उसने अलग-अलग लोगों के साथ सामूहिक सम्भोग की बात कही थी।
मैं ये सब सोच ही रही थी कि तभी मेरे पीछे से कांतिलाल जी ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरा पल्लू नीचे गिरा दिया, मैं तुरंत पीछे घूमी तो वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे।
मैंने पलट कर अपना पल्लू वापस उठाने का प्रयास किया तो मेरे पुराने वाले मित्र ने मेरा हाथ पकड़ कहा- इन खूबसूरत स्तनों को क्यों छुपा रही हो?
मेरे ब्लाउज से मेरे अधनंगे स्तन दिख रहे थे और सबकी निगाहें मेरे स्तनों पर थीं।
तभी अमृता और रमा जी मेरे सामने खड़े हो गए और मेरे स्तनों की बराबरी अपने से करने लगीं। अमृता बिलकुल किसी गोरी अंग्रेज की तरह ही गोरी, लम्बी और सुन्दर थी। उसके स्तन करीब 36 इंच के एकदम सुडौल थे। उसके कूल्हे भी उठे हुए थे.. चूत के बाल साफ़ किए हुए थे जिस वजह से उसकी चूत फूली हुई और एकदम चमकती हुई दिख रही थी।
उसकी चूत के द्वार पर सम्भोग की वजह से पानी सा लगा था.. जिससे ये अंदाज़ा हो रहा था कि उसकी चूत अभी भी गीली थी।
यही हाल रमा जी का भी था, उनकी चूत पर भी पानी सा था और उनकी चूत की दोनों पंखुड़िया बाहर की ओर लटकी सी थीं। उनकी चूत पर हल्के काले बाल थे.. जो कि छंटाई किए हुए थे। उनके स्तन अमृता से बड़े और गेहुंए रंग के थे और उन पर बड़े-बड़े चूचुक थे।
तभी बातें करते हुए रमा जी मेरे ब्लाउज के हुक खोलने लगी। उन्होंने एक-एक करके मेरे ब्लाउज और ब्रा खोल कर अलग कर दिया।
इसके बाद क्या था.. कांतिलाल जी ने मेरे स्तनों को पीछे से दबाते हुए मुझे बिस्तर पर खींच लिया और मुझे अपने ऊपर पीठ के बल लिटा कर मेरे गर्दन और गालों का चुब्बन शुरू कर दिया। पता नहीं मुझे अजीब सा लग रहा था फिर भी मैं विरोध नहीं कर रही थी।
कांतिलाल जब मेरे स्तनों को दबाते हुए मुझे चूम रहे थे.. तब अमृता ने मेरी साड़ी खींच कर खोल दी थी और पेटीकोट का नाड़ा भी खोल कर उसे खींचते हुए निकाल कर दूर फेंक दिया था।
अचानक मैंने देखा के मेरी बाईं ओर विनोद आ गिरा और उसके ऊपर शालू चढ़ गई। शालू जोरों से होंठों को होंठों से लगाकर चूमने लगी।
विनोद तो पहले से नंगा था सो विनोद धीरे-धीरे शालू को चूमते हुए उसके कपड़े उतारने लगा और कुछ ही पलों में शालू भी नंगी हो गई। इधर कांतिलाल जी के हाथों की पकड़ और भी मजबूत सा लगने लगी थी।
मुझे और मेरे कूल्हों के बीच उनका तना हुआ लंड मुझे चुभता सा महसूस हो रहा था। तभी मेरी जांघों पर किसी के गरम हाथों का स्पर्श हुआ मैंने अपना सर थोड़ा ऊपर करके देखा तो मेरा वो पुराना दोस्त मेरी ओर मुस्कुराता हुआ मेरी चूत को पैन्टी के ऊपर से चूमने लगा। उसकी नज़रें मेरी ओर थीं और होंठ मेरी चूत के ऊपर थे। अचानक उन्होंने मेरी पैन्टी को पकड़ एक झटके में खींच का निकाल दिया और मुझे पूरी तरह से निर्वस्त्र कर दिया।
इसके तुरंत बाद ही उन्होंने मेरी चूत को चाटना शुरू कर दिया। इधर कांतिलाल जी मुझे जोरों से पकड़े हुए अपने ऊपर लिटाए थे और मेरे स्तनों को बेरहमी से मसलते हुए मेरी गर्दन.. कंधों पर चुम्बनों की बरसात किए जा रहे थे।
मेरे पुराने मित्र की मेरी चूत में घूमती हुई जुबान मुझे बैचैन सी करने लगी। मेरे बदन में गर्मी सी आने लगी और चूत गीली ही होती चली जा रही थी।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी इंसान पर किसी बुरी आत्मा का साया हावी होता चला जाता है.. वैसे ही मेरे बदन पर वासना का साया हावी होता जा रहा हो।
अब तो मुझे यूँ लगने लगा कि मैं अब वासना के अधीन होती जा रही हूँ।
मेरी बैचैन इतनी बढ़ गई कि मैं पूरी ताकत लगा कर कांतिलाल जी की बांहों से आजाद हो उठ बैठी।
वो लोग एकाएक मुझे देखने लगे.. शायद उन्हें लगा होगा कि मुझे ये पसंद नहीं आया।
मैंने कुछ पलों के लिए सांस ली.. तो सामने देखा रामावतार जी कुर्सी पर बैठे हुए थे और उनका लंड रमा जी पकड़े हुए थीं। उनके बगल में बबिता जी भी खड़ी थीं।
वो लोग सभी मुझे आश्चर्य से देख रही थीं.. तभी मैंने अपने उस दोस्त को पकड़ा और होंठों से होंठ लगा उन्हें चूमने लगी। ये देख सभी को थोड़ी राहत सी मिली और फिर से सब अपने-अपने कामों में लग गए।
मेरे चूमने की स्थिति देखते ही कांतिलाल जी उठ कर फिर से मेरे पीछे से मेरे स्तनों से खेलने और मुझे चूमने लगे।
मैंने चोर नजरों से कमरे का नजारा देखने की सोची.. फिर हल्के से आँखों को खोल कर देखा तो हमारे ठीक सामने रामावतार जी वैसे ही कुर्सी पर बैठे थे और रमा जी उनका लंड चूसने के साथ सहला भी रही थी, वो जमीन पर घुटनों के बल खड़ी हुई थीं।
बबिता रामावतार जी के होंठों से होंठों को लगा चुम्बन कर रही थीं।
इस वासना के खुले खेल को देख कर मेरी कामोत्तेजना और बढ़ गई थी।
चुम्बन के दौरान रामावतार जी के दोनों हाथ बबिता के साड़ी के अन्दर थे और वो उनके चूतड़ों को दबा और सहला रहे थे। कुछ पलों के चुम्बन और चूसने की क्रिया के बाद बबिता अलग हुई और अपनी साड़ी उठा कर उसने अपनी पैन्टी उतार दी।
बबिता ने अपनी साड़ी को कमर तक उठाया और अपनी एक टांग को कुर्सी के ऊपर रख कर अपनी चूत खोल दी। बस फिर क्या था.. रामावतार जी ने दोनों हाथों से बबिता की जांघों को पकड़ा और उसकी चूत को चाटने लगे।
इधर जब मैंने नजर घुमाई तो देखा कि शालू विनोद के लंड के ऊपर उछल रही थी और विनोद उसके स्तनों को दबाते हुए खुद भी अपनी कमर उठा कर शालू के धक्कों का जवाब दे रहा था।
विनोद और शालू को देख कर मेरा तो अब ध्यान बंट सा गया था। मेरा शरीर एक तरफ तो पूरी तरह कामोत्तेजित था.. पर मन उत्तेजना के साथ उत्सुक भी था क्योंकि जो अब तक सिर्फ तारा से सुना था और व्यस्क फिल्मों में देखा था, वो सब कुछ मेरी आँखों के सामने था।
अब तक सामूहिक सम्भोग बस जान-पहचान में सुना था.. पर यहाँ तो मेरे लिए एक को छोड़ सभी अजनबी थे। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं था कि किसी अजनबी से मैंने पहली बार सम्भोग किया हो या समूह में पहली बार सम्भोग किया हो.. पर अभी मैं ऐसे माहौल में थी.. जहाँ बस लोग इसलिए मिले थे कि एक-दूसरे के बदन का स्वाद ले सकें। शायद मुझे भी लगने लगा था कि जैसे हर खाने का स्वाद अलग होता है.. वैसे ही अलग-अलग जिस्मों का स्वाद भी अलग होता है।
मैं एक तरफ तो सम्भोग का आनन्द लेना चाह रही थी.. वहीं मेरे मन और मस्तिष्क में दूसरों को सम्भोग रत देखने की भी लालसा भी थी। इधर जो मेरे तन-बदन में खलबली मची थी.. उसके लिए भी मैं बेचैन हुई जा रही थी। मेरे जिस्म के साथ ये पहली बार था कि दो मर्द एक साथ खेल रहे थे।
ये मेरी उत्तेजना को और भी बढ़ा रही थी। पता नहीं मेरे दिमाग में क्या आया.. जैसे कोई बिजली की रफ़्तार से उपाय सा आया और मैं अपने दोस्त को धक्का दे अलग होकर कांतिलाल की तरफ पलट गई और उन पर टूट सी पड़ी।
मैंने उनको धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया और उनके ऊपर चढ़ बैठी। मैं उनके ऊपर झुक कर उनके होंठों से होंठों को लगा कर चूसने लगी और फिर क्या था वे भी मेरे मांसल चूतड़ों मसलते हुए मेरा साथ होंठों से देने लगे।
मुझे उनका तना हुआ लंड मेरी चूत के इर्द-गिर्द चुभता सा महसूस हो रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था.. जैसे वो मुझे छूते हुए कर अपने अन्दर घुसने के रास्ते की तलाश कर रहा हो।
मेरे दिमाग में तो अब दोहरी नीति शुरू हो गई थी, मैं अब सबको देखना चाहती थी, मैंने अपनी चाल चलनी शुरू कर दी। मैं यह बात तो समझ रही थी कि सभी लोग यहाँ जिस्मों का मजा लेने आए थे.. पर उनके दिमाग में मेरी छवि कुछ और थी.. और मैं वो छवि बरकरार रखना चाहती थी।
बस ये सारी बातें सोचते हुए मैंने अपने बाएँ हाथ से कांतिलाल जी के लंड को पकड़ा और अपनी कमर ऊपर उठा कर लंड को अपनी चूत की छेद पर थोड़ा रगड़ दिया।
बस फिर क्या था.. उनका सुपाड़ा तो पहले से लपलपा रहा था। इधर मेरी चूत बुरी तरह गीली होने के कारण सुपारा चिकनाई से और भी गीला हो गया।
मैंने लंड को थोड़ा सीधा पकड़ते हुए चूत की छेद के तरफ दिशा दी और अपनी कमर को धीरे-धीरे दबाने लगी।
अगले ही पल उनका सुपारा पूरी तरह मेरी चूत के भीतर समा चुका था।
उनका लंड पूरी तरह सख्त था.. सो मैंने अपना हाथ हटा उनको दोनों हाथों से जकड़ लिया और अपनी कमर लंड पर दबाती चली गई। कांतिलाल जी का लंड अब तक आधा घुसा था.. उन्होंने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को पूरी ताकत से पकड़ा और नीचे से अपनी कमर जोर से उचका दिया।
उनका कड़क लंड सटाक से मेरी चूत में घुसता हुआ सीधा मेरे बच्चेदानी में लगा। अगले ही पल मेरे मुँह से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… ’ की आवाज कराह के साथ निकल पड़ी।
उनका लंड बहुत ही ज्यादा सख्त था और गरम महसूस हो रहा था। मुझे लगा कि वो जल्दी ही झड़ जाएंगे.. पर मैं उनके साथ पहली बार सम्भोग कर रही थी.. सो कुछ भी अंदाजा लगाना मुश्किल था।
मैं अब सब कुछ भूल कर उनके ऊपर अपनी कमर उचकाने लगी और उनका लंड मेरी चूत में अन्दर-बाहर होता हुआ मेरी चूत की दीवारों से रगड़ खाने लगा। मैं तो वैसे ही बहुत उत्तेजित थी और उनका भी जोश देख बहुत सुखद आनन्द महसूस कर रही थी। कुछ पलों के धक्कों के बाद कांतिलाल जी ने भी नीचे से पूरा जोर लगाना शुरू कर दिया। हम दोनों की कमर इस प्रकार हिल रही थीं.. जैसे एक-दूसरे से ताल मिला रही हों। इस ताल-मेल में मुझे सच में बहुत मजा आने लगा था।
हम दोनों का हर पल जोश बढ़ता ही जा रहा था और धक्कों की गति तेजी से बढ़ती ही जा रही थी। हमें धक्के लगाते हुए करीब 10 मिनट होने चले थे और हम एक-दूसरे के होंठों को चूमते, चूसते, चूतड़ों को दबाते मसलते, मजा ले रहे थे। वो मेरा एक दूध चूसते और काटते हुए धक्के लगाए जा रहे थे।
मुझे उनका लंड और उनका जोश वाकयी बहुत मजा दे रहा था। उनके धक्के कभी-कभी मेरी बच्चेदानी में जोर का चोट देते.. जिससे मैं एक मीठे दर्द के साथ कराह लेती और रुक जाती और फिर धक्के लगाने लगती।
मैं इधर मजे में सिसकते हुए कराह रही थी और वो उधर लम्बी-लम्बी साँसें लेते हुए मेरे जिस्म का मजा ले रहे थे। कुछ मिनट के बाद मेरा पूरा बदन गरम हो कर पसीना छोड़ने लगा और मेरे सर, सीने, जांघों के किनारों से पसीना बहने लगा। मेरी चूत पानी-पानी हो चली थी और पानी रिसने सा लगा था.. जो पसीने से मिलकर उनके लंड को तर कर रहा था। फिर धक्कों के साथ ‘फच.. फच..’ की आवाजें आने लगीं।
मैं अब थकान महसूस करने लगी थी, उनके धक्कों के सामने मेरे धक्के ढीले पड़ने लगे। वो भी काफी अनुभवी थे और जब इस तरह का जोश हो.. तो कोई मौका नहीं छोड़ना नहीं चाहता.. सो उन्होंने सटाक से मुझे बिस्तर पर पलट दिया और मेरे ऊपर से उठ गए।
मुझे तो पूर्ण संतुष्टि चाहिए थी तो मैं उनके यूं उठ जाने से एक पल के लिए बहुत ही झुंझका सी गई.. पर उन्होंने तुरंत तकिया लिया और मुझे कुतिया बन जाने का इशारा किया। मैं भी बिना समय गंवाए पलट कर घुटनों के बल झुक गई और अपने चूतड़ों को उठा दिया।
उन्होंने तकिया मेरे पेट के नीचे लगा दिया और मैं तकिए के सहारे झुक कर कुतिया बन गई।
वो मेरे पीछे घुटनों के बल खड़े हो गए और उन्होंने अपने लंड को बिना किसी देरी के मेरी चूत में घुसा दिया। अब वो मेरी कमर पकड़ कर जोर-जोर से धक्के लगाने लगे। इस स्थिति में उनके धक्के काफी तेज़ और जोरदार लग रहे थे क्योंकि उनके पास अपनी कमर घुमाने की पूरी आजादी थी।
मैं तो इतनी जोश में थी कि उनका हर धक्का मुझे और भी ज्यादा मजा दे रहा था।
करीब दस मिनट ऐसे ही धक्के लगाने के बाद तो मुझे अँधेरा सा दिखने लगा.. मेरी साँसें तेज़ होने लगीं.. मैं हाँफने और सिसकारने लगी।
अब मैं झड़ने वाली थी.. तभी कांतिलाल जी मेरे ऊपर झुक गए और चूतड़ों को छोड़ मेरे स्तनों को दबोचते हुए धक्के मारने लगे।
दो मिनट के धक्कों के बाद उन्होंने मेरा एक स्तन छोड़ मेरी कमर पकड़ कर अपनी ओर खींची, मैं उनका इशारा समझ गई कि वे मुझे अपनी कूल्हे उठाने को कह रहे हैं.. ताकि मेरी चूत की और गहराई में उनका लंड जा सके।
मैंने थोड़ा और उठा दिया और वो धक्के लगाने लगे। मेरी तो जैसे जान निकलने जैसी हो रही थी क्योंकि अब मैं झड़ने वाली थी। बस 2-3 मिनट के धक्कों में ही मैंने कराहते हुए.. लम्बी-लम्बी साँसें छोड़ते हुए अपने बदन को ऐंठते हुए पानी छोड़ना शुरू कर दिया।
मैं झड़ते हुए अपने चूतड़ उनके लंड की तरफ तब तक उठाती रही.. जब तक कि मैं पूरी तरह झड़ न गई।
जब तक मैं सामान्य स्थिति में आती.. कांतिलाल जी धक्के भी लगाते ही रहे। मैं उसी अवस्था में उनके झड़ने का इंतज़ार करती रही। मेरा पूरा बदन ढीला सा पड़ने लगा था.. पर उनके धक्कों की रफ़्तार और ताकत में कोई कमी नहीं थी।
करीब 5 मिनट के धक्कों के बाद उनका लंड मेरी चूत के भीतर और भी गरम लगने लगा। मैं समझ गई कि अब इनका वक्त आ गया। फिर क्या था.. ‘उम्म्म उम्म्म्म ओह्ह्ह्ह..’ की आवाज करते हुए 8-10 जोरदार धक्कों के साथ उन्होंने मेरी चूत को अपने रस से भर दिया और 1-2 धीमे धक्कों के साथ मेरे ऊपर निढाल होकर हांफने लगे।
कुछ पलों के बाद जब थोड़े शांत हुए तो हम अलग-अलग होकर वहीं बिस्तर पर गिर गए।
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