RE: Jawan Ladki Chudai कमसिन कलियाँ
कमसिन कलियाँ--25
गतान्क से आगे..........
राजेश: बेटा…हिम्मत रखो। सब ठीक हो जाएगा…लीना तुम बड़ी हो अब टीना की देखभाल की जिम्मेदारी तुम्हारी है। मै वकील साहिब से मिल कर आता हूँ। रास्ते में रेस्टोरेन्ट से खाना पैक करा कर भिजवा दूँगा तुम लोग खाना खा लेना…(कह कर घर से बाहर चला जाता है।)
लीना: टीना…अब क्या करें
टीना: दीदी तुम पापा के बेडरूम में जा कर आराम करो…मै कपड़े बदल कर आती हूँ।
लीना: मै भी कपड़े बदल लेती हूँ…
टीना: नहीं दीदी…आज यह तुम्हारे कपड़े तो पापा आ कर उतारेंगें
लीना: हिश्…श। तू पागल है…
टीना: नहीं दीदी…देख लेना
लीना: टीना तुझे तो पता है कि मुझे यह सब पसन्द नहीं है…
टीना: मै शर्त लगा सकती हूँ कि आज के बाद तुम्हें सिर्फ यही पसन्द होगा…बाकि कुछ नहीं।
लीना: तुझे कैसे पता…क्या पहले तूने किसी के साथ किया है।
टीना: हाँ…लेकिन यह मत पूछना कि किस के साथ क्योंकि उसका नाम मै नहीं बताने वाली। पर मुझे लगता है कि पापा तुम्हारे साथ आज रात कुछ नहीं करेंगें…
लीना: क्यों क्या मेरे में कोई खराबी है…
टीना: नहीं दीदी…परन्तु तुम जब तक खुद पहल नहीं करोगी तब तक वह कुछ नहीं करेंगें।
(दोनों बहनें इसी तरह की बातें करती हुई राजेश के आने का इंतजार करती है। दरवाजे की घंटी बजती है। टीना जा कर देखती है कि रेस्टोरेन्ट से खाने की डिलिवरी हुई है। दोनों बहने बातें करती हुई खाना खाती है और बचा हुआ खाना राजेश के लिए रख देती है।)
टीना: दीदी तुम पापा के बेडरूम में जा कर आराम कर लो…मै भी थक गयी हूँ मै भी सोने जा रही हूँ।
लीना: मै अकेली…नहीं मुझे डर लगता है।
(इस से पहले लीना कुछ और कहे, टीना तेजी से चलती हुई अपने कमरे में चली जाती है। लीना भी झिझकती हुई राजेश के बेडरूम मे जाती है…।)
(रात के ग्यारह बज रहें है। राजेश धीरे से लाक खोल कर घर में प्रवेश करता है। चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ है। राजेश आज की गहमागहमी से थक कर चूर हो गया है। वह सीधा अपने बेडरूम की ओर जाता है परन्तु भीतर घुसते ही ठिठ्क कर खड़ा हो जाता है। सामने लीना उसके बेड पर सुहाग की साड़ी पहने गहरी नींद में सोई हुई है। उसके सारे कपड़े अस्त वयस्त हालत में है। साड़ी सरक कर उपर हो गयी है और गोरी पिंडुलीयाँ नाईट्लैंम्प में चमक रही है। सीने का पल्लू भी हट गया है जिसकी वजह से लीना के गुदाज सीना लो-कट ब्लाउज के बाहर झाँक रहा है। धीरे-धीरे साँस लेने के कारण सीने के उभार एक लय के साथ उपर-नीचे होते हुए एक मादक निमन्त्रण देते हुए प्रतीत हो रहे है। उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान और अधखुले पंखुड़ियों से गुलाबी होंठ कुछ करने के लिए आमंत्रित करते हुए दिख रहे है। एक क्षण के लिए इतना लुभावना दृश्य देख कर राजेश कि धड़कन रुक गयी और फिर हिम्मत करके बेड के सिरहाने जा कर खड़ा हो गया)
राजेश: (हल्की आवाज में) लीना… लीना (कोई जवाब न मिलने पर) बेटा…(कहते हुए लीना के निकट लेट गया)…
(इतने हसीन दृश्य को देख कर राजेश की सारी थकान काफुर हो गयी और उसकी धमनियों में रक्त का प्रवाह तेज हो गया। बड़ी मुश्किल से अपने आप को काबू में करके नींद में खोने की प्रतीक्षा करने लगा। काफी देर तक करवटें बदलने के बाद जब रहा नहीं गया तो उठ कर जाने को हुआ…तभी लीना ने करवट ली और राजेश के सीने से लिपट कर फिर गहरी नींद में सो गयी। अब लीना के होंठ राजेश के सामने आ गये और सीने की कठोर पहाड़ियाँ राजेश के सीने में चुभने लगी। इससे पहले राजेश कुछ हरकत करता लीना ने अपनी एक टांग उठा कर राजेश की कमर पर रख दी।)
राजेश: (धीमे से लीना के कान के पास मुख ला कर) लीना…
लीना: (नींद में) हूँ…
राजेश: बेटा…
लीना: (अबकी बार थोड़े उनींदेपन में) हाँ…
(कहते है कि कामाग्नि के मारे हुए व्यक्ति का दिमाग सुन्न हो कर रह जाता है और शरीर के हरेक अंग का अपना दिमाग सक्रिय हो जाता है। राजेश के होंठ अपने आप की लीना के खुले हुए गुलाबी होंठों पर छा गये। लीना के निचले कोमल होंठ को अपने होंठों में थाम कर राजेश ने उनका रसपान आरंभ कर दिया। राजेश के हाथ भी अपने आप सरक कर लीना के नितंबों पर बेधड़क विचरने लगे।)
लीना: उ…ऊ…अ…आह
राजेश: लीना…(कहते हुए लीना की साड़ी के भीतर अपने हाथ को सरका दिया)
लीना: (तेज चलती साँसें लेती हुई नींद से जागते हुए) पा…आह…हा…य (कुछ और बोलती एक बार फिर से राजेश ने लीना के होंठों को अपने होंठों से सीलबन्द करते हुए करवट ले कर उसे अपने नीचे दबा लिया।)
(थोड़ी देर लीना के होठों का रसपान करने के बाद राजेश की निगाहें लीना के चेहरे पर आते-जाते भाव पर पड़ी। लीना आँखे मूंदे उत्तेजित हो कर अपना सिर इधर-उधर पटक रही है। अचानक लीना ने अपनी आँखे खोली तो राजेश की निगाहों से आँखें चार हो गयीं। बेचारी ने झेंप कर आँखे झुका ली।)
राजेश: (लीना के माथे को चूम कर) लीना…
लीना: (आँखे झुकाए) हूँ…
राजेश: आज हमारी सुहाग रात है…तुम्हें पता है न…
लीना: (उत्तेजना से तेज चलती साँसें लेती हुई) हूँ…
राजेश: अगर आज तुम्हें पसन्द नहीं है… तो फिर हम किसी और दिन अपनी सुहाग रात मना लेंगें।
लीना: पापा…
राजेश: (अपने जोश को काबू में करके) बेटा…तुम पहले तो अपने कपड़े ठीक करके बेड पर नई-नवेली दुल्हन की तरह घूंघट डाल कर बैठ जाओ…
लीना: पापा…क्या यह जरूरी है…
राजेश: बेटा…सुहाग रात जीवन में सिर्फ एक बार आती है… इस लिए यह ठीक से हो तो अच्छा है क्योंकि तुम अपने सारे जीवन में इसी रात की कल्पना सँजोए उस हर पल का सुख भोगोगी जो आगे चल कर तुम अपने पति के साथ गुजारोगी…
लीना: पापा…मुझे डर लगता है…
राजेश: बेटा डर कैसा… यह तो एक सुहागन की नियति है…
(राजेश लीना के उपर से हटता है और लीना भी उठ कर बैठ जाती है। लीना बेड से नीचे उतर कर अपनी अस्त-वयस्त साड़ी और ब्लाउज को ठीक करती है और फिर पहने हुए मुमु के जेवरों को ठीक से सेट करती है।)
राजेश: बेटा तुम बहुत सुन्दर हो… और आज तो जैसे कोई अप्सरा जमीन पर उतर आयी है…
(लीना घूंघट निकाल कर चुपचाप बेड के कोने पर बैठ जाती है। राजेश धीरे से लीना की ओर बढ़ता है और प्यार से घूंघट उपर करता है। लीना की धड़कन तेज हो जाती है। वह निगाहें नीची कर के अगले पल का इंतजार करती है। राजेश अपनी उँगलियों से लीना के चेहरे को उपर करता है। लीना की आँखे मुंदी हुई है और होंठ हल्के से खुले हुए हैं। राजेश धीमे से अपनी उँगली को लीना के अधखुले होंठों पर फिराता है।)
राजेश: लीना…अपनी आँखे खोलो
लीना: (गरदन हिला कर मना करती है)…
राजेश: प्लीज…(अभी भी लीना के कपकंपाते होंठों पर अपनी उंगली फिरा रहा है)
लीना: (आँखें खोलती हुई) पापा… (लीना की आँखों में लाल डोरे तैरते हुए दिखते है)
राजेश: लीना… आज से हमारा रिश्ता बदल जाएगा
(कहते हुए अपने गुड़िया सी बैठी हुई लीना को अपने आगोश में ले कर अपनी ओर खींच लेता है। लीना चुपचाप राजेश की गोद में सिमट कर आ जाती है। राजेश बड़े प्यार से लीना के माथे को टीका हटाता है और उसका माथा चूमता है। फिर नाक में पड़ी नथ को निकालता है और लीना के होंठों को चूमता है। लीना के होंठों को अपने होंठों में भर कर जी भर कर उनका रसपान करता है। फिर अपने हाथ पीछे ले जाकर गले से हीरों वाला पेन्डेन्ट और सोने की जंजीर को खोल कर पास ही सहेज कर रख देता है। उसी हाथ से पीछे लगे हुए ब्लाउज के हुक को टटोलता हुआ धीरे से खोलता है)
लीना: (अचकचाती हुई अपने को छुड़ाती हुई) पापा… यह क्यों…
राजेश: यह इस लिए कि पति-पत्नी के बीच में कोई भी बाधा न हो…(कहते हुए लीना के सुराहीदार गरदन पर अपने होंठ की मौहर लगाता हुआ बचे-कुचे हुक खोलता है)
लीना: (झिझकती हुई) उंह…
(हुक खुलने से पीठ नंगी होने के एहसास से लीना शर्म से अपना चेहरा राजेश के सीने में छिपा लेती है। राजेश धीरे से ब्लाउज को उतार कर सिरहाने रख देता है। लीना को अपने से अलग कर के राजेश की निगाह एक बार लीना के सीने पर पड़ती है। दूध सी सफेदी पर गुलाबीपन लिए लीना के सुडौल और उन्नत वक्ष और जाली वाली ब्रा मे से झांकते हुए गहरे बादामी रंग के उत्तेजना से फूले हुए अनछुए निप्पल बाहर निकलने के लिए बेचैन प्रतीत होते दिखते है। राजेश धीरे से लीना को बेड पर लिटा देता और उसको अपने नीचे दबा कर एक बार फिर से उसके होंठों के साथ खिलवाड़ करते हुए पीछे लगे हुए ब्रा के हुक को खोल देता है। लीना के चेहरे के हर हिस्से को राजेश अपने होंठों से नापता है। इस बार राजेश अपनी जुबान के अग्र भाग से लीना के होंठों को खोल कर उसकी जुबान के साथ छेडखानी आरंभ करता है। इस नये एहसास से लीना की कामाग्नि भड़क उठती है और वह राजेश को अपनी बांहों मे कस कर जकड़ लेती है। अब लीना भी बढ़-चढ़ कर राजेश का साथ देती है और अपनी जुबान से राजेश के मुख के साथ अठखेलियां खेलती है। कुछ देर एक दूसरे के साथ जुबान लड़ा कर राजेश अलग होता हुआ एक झटके के साथ ब्रा को शरीर से अलग कर देता है।)
लीना: नन…नहीं पापा… (कहते हुए अपने हाथों से अपने निर्वस्त्र वक्ष को ढकने की कोशिश करती है…)
राजेश: लीना… (उसके दोनों हाथों को अपने हाथों मे ले कर अलग करता है)… कितने सुन्दर कलश है… (एक पल एकटक देखते हुए) क्या तुम्हें पता है कि यह हूबहू मुमु के जैसे हैं… सिर्फ साईज में फर्क है…
(लीना इस से पहले कुछ और बोले राजेश झपट कर एक निप्पल को अपने मुख में ले कर उसका रस सोखने में लग जाता है। लीना को इस वक्त महसूस होता है कि एक स्त्री और मर्द के मुख में क्या फर्क होता है। लीना अजीब सी कश्मकश महसूस करती है उसके निप्पल से करन्ट उत्पन्न होते हुऐ पुरे शरीर में फैलता हुआ सीधे नीचे जाकर योनिद्वार पर दस्तक देता है। राजेश स्तनपान करते हुए महसूस करता है कि लीना अपने हाथों को राजेश के गले में डाल कर उसके सिर पर दबाव बना रही है।)
लीना: (सिसकारी भर कर) नहीं करो न…पापा
राजेश: आज की रात हमारे बीच पति-पत्नी का प्यार और भी प्रगाड़ हो जाएगा।
लीना: पापा…आह… मैं आपसे सब से ज्यादा प्यार करती हूँ। पर डर लगता है कि …
राजेश: आज तुम्हारे जीवन की वह रात है कि इन पलों को तुम सारे जीवन अपने दिल में सँजोए रखोगी… मेरी बात मान जाओ (लीना को अपने आगोश में लेकर कभी कान पर चूमता, तो कभी होंठ पर, कभी निशाने पर स्तन होते और कभी खड़े हुए दो निप्पल्स होते)…
लीना: प…अपा प्लीज न…हीं करो… न्… (बार-बार के राजेश के वारों से लीना के जिस्म के भीतर हलचल बढ़ा दी थी)
(दोनों के जिस्म कामोत्तेजना से जल रहे है। राजेश धीरे से लीना से अलग होता है और उसे बेड पर खड़ा करता है। लीना प्रश्नवाचक नजरों से राजेश की ओर देखती है। लीना के सीने पर जगह-जगह लाली उभर आयी है। दोनों शिखर कलश और कलश बार-बार चूमने और चूसने की वजह से लाल हो गये है। एक गिफ्ट रैपर को खोलने की तरह राजेश धीरे से साड़ी को लीना के बदन से अलग करता है। अन्दर लगी हुई आग को बुझाने के लिए लीना भी अनजानी राह पर चलने को तैयार है।)
लीना: (उपर से निर्वस्त्र पेटीकोट में खड़ी हुई) पापा…
राजेश: (पेटीकोट के नाड़े को पकड़ कर एक झटके के साथ खींचते हुए) बस यह आखिरी दीवार है हम दोनों के बीच में इसे भी हटना होगा…(नाड़ा खुलने से पेटीकोट बेड पर सरक कर गिर जाता है।)
लीना: नहीं करो…पापा…प्लीज (कहते हुए अपने हाथ से कटिप्रदेश को ढक लेती है।)
राजेश: अरे अभी एक दीवार और बाकी है…(लीना की पैन्टी की ओर इशारा करते हुए) खैर अब तुम लेट जाओ…(लीना धम्म से बेड पर बैठ जाती है। राजेश एक बार फिर से लीना को बेड पर लिटा देता है।)
लीना: पापा…प्लीज
(राजेश ने लीना को नीचे लिटा कर उसके थिरकते होठों को अपने होठों के कब्जे में लेकर लगातार चूमना आरंभ किया। दोनों अनावरित उन्नत पहाड़ियों सामने पा कर, राजेश के हाथ भी अपने कार्य मे लग गये। कभी चोटियों पर उँगलियॉ फिराता और कभी दो उँगलियों मे निप्पल को फँसा कर खींचता, कभी पहाड़ियों को अपनी हथेलियों मे छुपा लेता और कभी उन्हें जोर से मसक देता। उधर आँखे मुदें हुए लीना का चेहरा उत्तेजना से लाल होता चला जा रहा है।
राजेश: लीना अब आगे का सफर शुरु करें…
लीना: हुं….उई....प.आ...पा.…उ.उ.उ...न्…हई…आह.....
(राजेश का एक हाथ दाएँ वक्ष के मर्दन में लग जाता है और दूसरे हाथ से पैन्टी से ढकी योनिमुख को छेड़ता है। लीना का उत्तेजना से जलता हुआ नग्न जिस्म बेड पर राजेश की आँखों के सामने तड़पता है। राजेश पैन्टी से ढके बालोंरहित कटिप्रदेश और योनिमुख को अपनी उंगलियों से टटोलता है।)
लीना: उई....पअ.पआ....…उ.उ.उ..न्…हई…क्या कर आह.हो....(लीना अपने दोनों हाथों से राजेश का हाथ पकड़ने की कोशिश करती है, पर राजेश की उँगलियों सरका कर नाइलोन की पैन्टी में छिपी जुड़ी हुई संतरे की फाँकों को अलग करती है। राजेश की उंगली योनिच्छेद में जगह बनाती अकड़े हुए बीज पर जा टिकती है।)
लीना: .उई...माँ….पा.……प…उफ.उ.उ.पा..न्हई…आह.....
(राजेश अपनी उंगली से घुन्डी का घिसाव जारी रखता है। अपने होठों से लीना के होंठों को सीलबन्द कर देता है, अपने एक हाथ से कभी उत्तेजित खड़े हुए निप्पलों पर उँगलियॉ फिराता और कभी दो उँगलियों मे निपल को फँसा कर खींचता, कभी एक पहाड़ी को अपनी हथेली मे छुपा लेता और कभी दूसरी को जोर से मसक देता। लीना की असीम आनंद से भरी हुई सिसकारियाँ बढ़ती जाती हैं।)
राजेश: (लीना के निचले होंठ को चूसते और धीरे से काटते हुए) लीना…कैसा महसूस कर रही हो…
लीना: (शर्म से अधमरी हुई जा रही) हुं… (एक सिसकारी भरती हुई)…ठीक हूँ…
(एक बार फिर से कभी जुबान से फूले हुए निपल को छेड़ता और कभी पूरी पहाड़ी को निगलने की कोशिश करता है)।
लीना: (राजेश को ढकेलती हुई) .उई....अ.पआ...पा.…उ.उ.उ.न्…हई…आह.....
(बार-बार कसमसाती हुई लीना को स्थिर करने के लिए लीना के नग्न जिस्म को अपने शरीर से ढक देता है। अब राजेश नीचे की ओर अपना ध्यान लगाता है। दोनों पहाड़ियों के बीच चूमता हुआ नीचे की ओर सरकता है। नाभि पर रुक कर राजेश अपनी उँगलियों को पैन्टी की इलास्टिक मे फसाँ कर एक झटके से नीचे की ओर घुटनों तक सरका देता है। हल्की रोशनी में राजेश के सामने सफाचट और फूले हुए पाव की भाँति जुड़ी हुई संतरे की फाँकें विद्दमान होती है। इस नजारे को देख कर राजेश की उत्तेजना भी चरम-सीमा पर पहुँच जाती है।)
लीना: पापा…नहीं प्लीज…
(राजेश से अब रुका नहीं जा रहा है। बहुत देर से उसके तन्नायें हुए लिंगदेव अब सिर उठाने के लिए तड़प रहें है। लीना को वासना की आग में जलते हुए छोड़ कर राजेश बेड से उतर कर एक तरफ खड़ा हो जाता है।)
राजेश: लीना…एक मिनट के लिए मेरी ओर देखो… (लीना अपनी गरदन मोड़ कर राजेश की ओर देखती है)
लीना: क्या हुआ…पापा
राजेश: (अपनी शर्ट के बटन खोलता हुआ)… बेटा तुम ने तो अपना जिस्म मेरे हवाले कर दिया परन्तु अब मेरा भी फर्ज है कि मै अपनी पत्नी के हवाले अपना जिस्म कर दूँ…(कहते हुए अपनी शर्ट निकाल कर फेंक देता है।)
लीना: पापा…
राजेश: (पैन्ट उतारते हुए) लीना अपनी आँखे बन्द कर लो…एक सरप्राइज है, क्योंकि आज मै तुम्हें पति-पत्नी के बीच की दूरी बिलकुल मिटा देना चाहता हूँ… (पैन्ट और जांघिये को एक साथ उतार कर जमीन पर फेंक कर अपने लिंगदेव को कैद से आजाद कर के लीना की बढ़ता है। लीना कनखियों से राजेश की ओर देखती है तो उसकी निगाहें एक गोरे रंग का सर उठाए एक लम्बा सा, परन्तु बहुत मोटा, अजगर कि भाँति झूमता हुए लिंग पर पड़ती है।)
लीना: पापा… यह क्या है…(एक ट्क देखती हुई जड़वत रह जाती है)।
राजेश: (लिंगदेव को अपनी मुठ्ठी में लेकर हिलाते हुए) लीना… यह मेरा लंड है…इसको लौड़ा भी कहते है…इससे मिलो यह आज से सारे जीवन के लिए तुम्हारे गुलाम है… इसको प्यार करो…
(राजेश बेड पर चढ़ कर (69) पोजीशन बना कर अपने कसरती नग्न जिस्म से लीना का बदन ढक देता है। बड़े प्यार से जुड़ी हुई संतरे की फाँकों को खोल कर अकड़ी हुई घुन्डी पर अपनी जुबान टिका कर बहता हुआ लीना का रस सोखता है।)
लीना: .उई...माँ….पअपा..न्हई…आह.....
क्रमशः
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