Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
07-03-2018, 11:25 AM,
#31
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
राखी , अपने चेहरे का पसीना अपनी आंखे बंध कर के पुरे आराम से पोंछती थी, और मुझे उसके मोटे कन्दली के खम्भे जैसी जांघो का पुरा नजारा दिखाती थी। गांव में औरते साधारणतया पेन्टी नही पहनती है। कई बार ऐसा हुआ की मुझे उसके झांठो की हलकी-सी झलक देखने को मिल जाती। जब वो पसीना पोंछ के अपना पेटिकोट नीचे करती, तब तक मेरा काम हो चुका होता और मेरे से बरदास्त करना संभव नही हो पाता। मैं जल्दी से घर के पिछवाडे की तरफ भाग जाता, अपने लंड के खडेपन को थोडा ठंडा करने के लिये। जब मेरा लंड डाउन हो जाता, तब मैं वापस आ जाता। राखी पुछती,
"कहां गया था ?"
तो मैं बोलता,
"थोडी ठंडी हवा खाने, बडी गरमी लग रही थी।"
"ठीक किया। बदन को हवा लगाते रहना चाहिये, फिर तु तो अभी बडा हो रहा है। तुझे और ज्यादा गरमी लगती होगी।"
"हां, तुझे भी तो गरमी लग रही होगी राखी ? जा तु भी बाहर घुम कर आ जा। थोडी गरमी शांत हो जायेगी।"
और उसके हाथ से ईस्त्री ले लेता। पर वो बाहर नही जाती और वहीं पर एक तरफ मोढे पर बैठ जाती। अपने पैर घुटनो के पास से मोड कर और अपने पेटिकोट को घुटनो तक उठा के बीच में समेट लेती। राखी जब भी इस तरीके से बैठती थी तो मेरा ईस्त्री करना मुश्कील हो जाता था। उसके इस तरह बैठने से उसकी, घुटनो से उपर तक की जांघे और दीखने लगती थी।
"अरे नही रे, रहने दे मेरी तो आदत पड गई है गरमी बरदाश्त करने की।"
"क्यों बरदाश्त करती है ?, गरमी दिमाग पर चढ जायेगी। जा बाहर घुम के आ जा। ठीक हो जायेगा।"
"जाने दे तु अपना काम कर। ये गरमी ऐसे नही शान्त होने वाली"अब मैं तुझे कैसे समझाउं, कि उसकी क्या गलती है ? काश, तु थोडा समझदार होता।"
कह कर राखी उठ कर खाना बनाने चल देती। मैं भी सोच में पडा हुआ रह जाता कि, आखिर राखी चाहती क्या है ?
रात में जब खाना खाने का टाईम आता, तो मैं नहा-धो कर किचन में आ जाता, खाना खाने के लिये। राखी भी वहीं बैठ के मुझे गरम-गरम रोटियां शेक देती। और हम खाते रहते। इस समय भी वो पेटिकोट और ब्लाउस में ही होती थी। क्योंकि किचन में गरमी होती थी और उसने एक छोटा-सा पल्लु अपने कंधो पर डाल रखा होता। उसी से अपने माथे का पसीना पोंछती रहती और खाना खिलाती जाती थी मुझे। हम दोनो साथ में बाते भी कर रहे होते। मैने मजाक करते हुए बोलता,
"सच में राखी , तुम तो गरम ईस्त्री (वुमन) हो।"
वो पहले तो कुछ समझ नही पाती, फिर जब उसकी समझ में आता की मैं आयरन- ईस्त्री न कह के, उसे ईस्त्री कह रहा हुं तो वो हंसने लगती और कहती,
"हां, मैं गरम ईस्त्री हुं।",
और अपना चेहरा आगे करके बोलती,
"देख कितना पसीना आ रहा है, मेरी गरमी दुर कर दे।"
"मैं तुझे एक बात बोलुं, तु गरम चीज मत खाया कर, ठंडी चीजे खाया कर।"
"अच्छा, कौन सी ठंडी चीजे मैं खांउ, कि मेरी गरमी दुर हो जायेगी ?"
"केले और बैगन की सब्जियां खाया कर।"
इस पर राखी का चेहरा लाल हो जाता था, और वो सिर झुका लेती और धीरे से बोलती,
"अरे केले और बैगन की सब्जी तो मुझे भी अच्छी लगती है, पर कोइ लाने वाला भी तो हो, तेरा जीजा तो ये सब्जियां लाने से रहा, ना तो उसे केले पसंद ,है ना ही उसे बैगन।"
"तु फिकर मत कर। मैं ला दुन्गा तेरे लिये।"
"हाये, बडा अच्छा भाई है, बहिन का कितना ध्यान रखता है।"
मैं खाना खतम करते हुए बोलता,
"चल, अब खाना तो हो गया खतम. तु भी जा के नहा ले और खाना खा ले।"
"अरे नही, अभी तो तेरा जीजा देशी चढा के आता होगा। उसको खिला दुन्गी, तब खाउन्गी, तब तक नहा लेती हुं। तु जा और जा के सो जा, कल नदी पर भी जाना है।"
मुझे भी ध्यान आ गया कि हां, कल तो नदी पर भी जाना है। मैं छत पर चला गया। गरमियों में हम तीनो लोग छत पर ही सोया करते थे। ठंडी ठंडी हवा बह रही थी, मैं बिस्तर पर लेट गया और अपने हाथों से लंड मसलते हुए, राखी के खूबसुरत बदन के खयालो में खोया हुआ, सप्ने देखने लगा और कल कैसे उसके बदन को ज्यादा से ज्यादा निहारुन्गा, ये सोचता हुआ कब सो गया मुझे पता ही नही लगा। सुबह सुरज की पहली किरण के साथ जब मेरी नींद खुली तो देखा, एक तरफ जीजा अभी भी लुढका हुआ है, और राखी शायद पहले ही उठ कर जा चुकी थी। मैं भी जल्दी से नीचे पहुंचा तो देखा की राखी बाथरुम से आ के हेन्डपम्प पर अपने हाथ-पैर धो रही थी। मुझे देखते ही बोली,
"चल, जल्दी से तैयार हो जा, मैं खाना बना लेती हुं। फिर जल्दी से नदी पर नीकल जायेन्गे, तेरे जीजा को भी आज शहर जाना है बीज लाने, मैं उसको भी उठा देती हुं।"
थोडी देर में, जब मैं वापस आया तो देखा की जीजा भी उठ चुका था और वो बाथरुम जाने की तैयारी में था। मैं भी अपने काम में लग गया और सारे कपडों के गठर बना के तैयार कर दीया। थोडी देर में हम सब लोग तैयार हो गये। घर को ताला लगाने के बाद जीजा बस पकडने के लिये चल दीया और हम दोनो नदी की ओर। मैने राखी से पुछा की जीजा कब तक आयेन्गे तो वो बोली,
"क्या पता, कब आयेगा? मुझे तो बोला है की कल आ जाउन्गा पर कोइ भरोसा है, तेरे जीजा का ?, चार दिन भी लगा देगा।"
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