kamukta kahani अय्याशी का अंजाम
06-27-2018, 12:01 PM,
#33
RE: kamukta kahani अय्याशी का अंजाम
जय अभी भी टेन्शन में था कि रात को क्या हुआ होगा.. गुड्डी कब गई.. रात को.. या सुबह.. उसकी बेचैनी उसको रश्मि के कमरे में ले गई.. जहाँ रश्मि आराम से सोई हुई थी।
जय धीरे से उसके पास गया उसके सर पर हाथ फेरा.. तभी रश्मि की आँख खुल गई और वो जय को देख कर हल्का सा मुस्कुरा दी।
रश्मि- गुड मॉर्निंग भाई.. क्या बात है.. सुबह-सुबह मेरे कमरे में.. सब ठीक तो है ना?
जय- गुड मॉर्निंग.. मेरी गुड्डी.. सब ठीक ही है.. वैसे तुम यहाँ कब आई.. मुझे तो पता भी नहीं चला?
रश्मि बिस्तर पर बैठ गई और वो ऐसे बर्ताव कर रही थी.. जैसे उसको कुछ पता ही नहीं है।
रश्मि- आपके सोने के कोई 10 मिनट बाद ही मैं वापस यहाँ आ गई थी.. वहाँ नींद ही नहीं आ रही थी।
जय- अरे अरे.. रात भर बिना एसी के सोई.. मेरी प्यारी बहना..
रश्मि- अरे नहीं भाई.. एसी चल तो रहा है.. बस ठंडक कम कर रहा था। मैं सो गई.. तो पता ही नहीं चला।
जय- अच्छा ठीक है.. चल जल्दी से फ्रेश हो ज़ा.. साथ में नाश्ता करेंगे, आज काफ़ी वक्त बाद ऐसा मौका मिला है।
रश्मि- ओके ब्रो.. आप नीचे जाओ.. मैं बस 10 मिनट में रेडी होकर आती हूँ।
जय जब कमरे से बाहर निकला तो विजय भी अपने कमरे से बाहर आ रहा था। जय को देख कर वो मुस्कुराने लगा।
जय- क्या बात है.. बड़ा खुश नज़र आ रहा है.. क्या कोई अच्छा सपना देख लिया रात को?
विजय- अरे नहीं भाई.. आपको देख कर मुस्कुरा रहा हूँ.. सुबह-सुबह गुड्डी के कमरे से जो आ रहे हो।
जय- तो इसमे हँसने की क्या बात है.. मैं अपनी बहन को उठाने गया था।
विजय- हाँ जानता हूँ.. आप अपने गेम के लिए कुछ भी कर सकते हो और मुझे पक्का यकीन है.. आप गुड्डी को मना भी लेंगे और गेम को जीत भी जाएँगे।
जय- थैंक्स मुझ पर भरोसा करने के लिए.. चल आ जा.. आज गुड्डी के साथ नाश्ता करेंगे..
विजय- हाँ चल यार मुझे भी बड़ी भूख लगी है।
वो दोनों नीचे बैठ कर रश्मि का वेट कर रहे थे.. तभी एक नॉर्मल सी मैक्सी पहन कर रश्मि नीचे आई।
जय- अरे गुड्डी.. ये क्या पहना है.. क्या घूमने ऐसे बाहर जाओगी?
रश्मि- भाई.. ये आपको किसने कहा कि मैं ऐसे बाहर जाऊँगी.. ये तो आप नाश्ते के लिए मेरा वेट कर रहे थे.. इसलिए जल्दी में पहन कर आई हूँ.. वैसे बाहर जाने का मेरा अभी कोई मूड भी नहीं है।
विजय- अरे क्या गुड्डी.. सारा दिन घर में ही रहोगी क्या.. अब छुट्टियाँ मनाने आई हो.. तो घूमो-फ़िरो थोड़ा लाइफ को एन्जॉय करो।
रश्मि- ओके.. मगर मेरी एक शर्त है.. वो आपको माननी होगी।
जय- कैसी शर्त गुड्डी.. बोलो?
रश्मि- भाई अब मैं छोटी बच्ची नहीं हूँ.. घर में तो चलता है.. मगर बाहर आप मुझे गुड्डी नहीं कहोगे और मैं जो कहूँ.. करोगे.. जहाँ चाहूँ.. घुमाओगे.. बोलो है मंजूर?
जय- हा हा हा हा.. तू भी ना कमाल करती है.. अच्छा बाबा.. बाहर तुझे रश्मि ही बुलाएँगे और बाकी तू जो कहेगी वैसा करेंगे.. चल अब आजा.. नाश्ता कर ले, हमें तो बहुत जोरों की भूख लगी है।
तीनों ने नाश्ता किया और यूँ ही बातें करते रहे।
रश्मि- काका.. मेरा जूस कहाँ है.. आपको पता है ना.. मुझे सुबह जूस चाहिए..
काका- लो बिटिया.. आपका जूस तैयार है.. मैंने कभी देने में देर की है.. जो आज करूँगा।
रश्मि- काका आपकी यही बात मुझे पसन्द है.. आप बोलने के साथ हर चीज़ रेडी रखते हो।
काका- बेटी बरसों से यहाँ काम कर रहा हूँ.. इतना भी नहीं समझूँगा क्या.. कि किस वक़्त किसको क्या देना है।
दोस्तो, यह काका इनके यहाँ बहुत पुराना नौकर है.. इसके बारे में आगे बाद में बताऊँगी.. अभी इन पर ध्यान दो।
नाश्ते के बाद रश्मि रेडी होने के लिए अपने कमरे में चली गई और विजय ने बाहर आकर रंगीला को फ़ोन लगाया।
विजय- हाँ बोल भाई.. क्या बात है.. अब एकदम फ्री हूँ.. किसलिए फ़ोन किया था?
रंगीला- तुम अभी पिंक कैफे आ जाओ और हाँ.. अकेले ही आना.. जय को कहो वो रश्मि के करीब होने की कोशिश करे.. उसको दोस्त बनाओ.. तभी आगे का काम सही होगा.. समझे?
विजय- अरे यार इतनी सी बात के लिए मेरी नींद खराब कर दी तुमने.. यह बात तो तुम उस वक्त भी बता सकते थे।
रंगीला- उस वक्त बताता तो तू वापस सो जाता.. चल अब जल्दी कर.. वहाँ से निकल.. मैं यहाँ तेरा वेट कर रहा हूँ और हाँ सुन एक्टिंग आती है ना तुझे?
विजय- कैसी एक्टिंग.. मैं समझा नहीं?
रंगीला- यहाँ आकर खुद ब खुद समझ जाएगा.. तेरे अन्दर का कलाकार बाहर आ जाएगा.. हा हा हा.. चल जल्दी कर अब निकल वहाँ से..
विजय ने फ़ोन बन्द किया… कुछ सोचा फिर जय को अन्दर जाकर बता दिया कि रंगीला ने बुलाया है.. तुम गुड्डी के साथ दोस्ती करो.. ज़्यादा से ज़्यादा करीब हो जाओ।
जय- मैं सब संभाल लूँगा.. तू निकल.. मैं उसको शॉपिंग पर लेके जाऊँगा और उसके बाद थोड़ा घूम कर आएँगे… ओके..
विजय ने ‘बेस्ट ऑफ लक’ कहा और वहाँ से निकल गया।
जय नीचे बैठा हुआ रश्मि का वेट कर रहा था.. जब रश्मि कमरे से बाहर आई तो जय बस उसको देखता ही रह गया, वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।
रश्मि ने सफ़ेद और लाल रंग का सलवार सूट पहना हुआ था.. हल्का सा मेकअप होंठों पर लाल लाली और खुले बाल… उसकी सुंदरता को और बढ़ा रहे थे।
रश्मि नीचे आकर जय के सामने खड़ी हो गई और एक सेक्सी स्माइल दी। जय अभी भी उसको निहार रहा था।
रश्मि- हैलो.. भाई.. कहाँ खो गए.. ऐसे क्या देख रहे हो मुझे?
जय- ओह्ह.. कुछ नहीं.. तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो..
रश्मि- ओह्ह.. रियली.. थैंक्स भाई.. अब बोलो कहाँ चलना है?
जय- अरे तुम हुक्म करो.. जहाँ जाना चाहो.. मैं तुम्हें ले जाने को तैयार हूँ।
रश्मि- भाई मेरे सारे कपड़े ओल्ड फैशन हो गए हैं पहले कुछ शॉपिंग करेंगे उसके बाद सोचेंगे.. कि कहाँ जाना है.. ओके?
जय- जो हुक्म मेरी प्यारी बहना.. गाड़ी तैयार है.. आइए चलिए..
रश्मि- ये क्या भाई.. मेरा मजाक बना रहे हो क्या.. सीधे-सीधे बोलो ना.. ये क्या लगा रखा है?
जय- अरे मजाक कर रहा हूँ.. तू नाराज़ क्यों होती है.. चल अब आ जा..
दोनों बातें करते हुए घर से निकल गए.. थोड़ी देर बाद दोनों सिटी सेंटर में थे। 
रश्मि ने जय से कहा कि ड्रेस पसन्द करने में वो उसकी मदद करे..
जय- चलो वो सामने वाली शॉप में अच्छे कपड़े दिख रहे हैं।
दोनों वहाँ जाकर कपड़े देखने लगे.. रश्मि को अभी भी रात की बात से कुछ कन्फ्यूजन सा था.. वो अपने आपसे जूझने लगी।
रश्मि अपने मन में ही कहने लगी- अब तुम तो अपने भाई पर फिदा हो गई हो.. मगर वो तुम्हारे बारे में ऐसा सोचता है या नहीं.. ये भी देखना होगा। वैसे काजल ने कहा था कि दुनिया का कोई भी लड़का पहले लड़का है बाद में किसी का बेटा या भाई.. तो जय को आजमाना पड़ेगा।
जय- अरे क्या सोच रही है.. कुछ पसन्द आया तुम्हें?
रश्मि- भाई वो ड्रेस कैसा रहेगा?
रश्मि ने एक छोटे से टॉप और स्कर्ट की तरफ इशारा किया।
जय- अरे वो तो बहुत अच्छा है.. मगर थोड़ा छोटा नहीं है?
रश्मि- क्या भाई आजकल यही चलता है.. अगर आपको पसन्द नहीं तो जाने दो..
जय- अरे नहीं नहीं.. बहुत अच्छा है मैंने तो बस ऐसे ही कहा था..
रश्मि- ओके भाई.. मैं इसको ट्राई करके देखती हूँ… फिटिंग कैसी है!
जय- ओके जाओ.. देख आओ.. मैं तब तक कुछ और देखता हूँ।
रश्मि- नहीं आप ट्रायल रूम के बाहर खड़े रहो.. मुझे कैसे पता लगेगा.. आप देख कर बताना.. अच्छा है या नहीं.. ओके..
जय ने ‘ओके’ कहा.. तो रश्मि वो ड्रेस लेकर अन्दर चली गई और कुछ देर बाद जब वो बाहर आई.. तो जय बस रश्मि को निहारने लगा।
दोस्तो, वो ड्रेस रश्मि के जिस्म से चिपका हुआ था डार्क ब्लू टॉप.. जो बहुत शॉर्ट था.. उसमें से रश्मि की नाभि भी आराम से दिख रही थी और उसके कसे हुए मम्मे टॉप को फाड़ कर बाहर आने को बेताब थे। नीचे का ब्लैक स्कर्ट भी उसकी जाँघों तक मुश्किल से आ रहा था। उसकी गोरी-गोरी जाँघें देख कर एक बार तो जय की नियत भी बिगड़ गई.. मगर उसने जल्दी से अपने आपको संभाला।
जय- वाउ सो नाइस गुड्डी..
रश्मि- भाई.. मैंने क्या कहा था.. गुड्डी नहीं.. रश्मि.. ओके..
जय- ओह्ह.. सॉरी सॉरी.. रश्मि.. यह ड्रेस बहुत अच्छा है.. तुम इसमें किसी गुड़िया जैसी लग रही हो।
रश्मि कुछ नहीं बोली और वापस अन्दर चली गई.. उस ड्रेस को निकाला.. अपने कपड़े पहने और मुँह फुला कर बाहर आ गई।
जय को कुछ समझ नहीं आ रहा था.. कि आख़िर हुआ क्या..
रश्मि- चलो भाई.. मुझे कुछ नहीं लेना यहाँ से..
जय- अरे क्या हुआ.. इतना गुस्सा क्यों हो गई.. मैंने क्या कहा.. बता तो?
रश्मि- आपको तो तारीफ करना भी नहीं आता.. जाओ मैं आपसे बात नहीं करती।
जय- अरे यार, प्लीज़ अब नाराज़ मत हो.. पहले बता तो.. मैंने ऐसा क्या कहा.. जो तुझे बुरा लगा?
रश्मि- भाई मैंने इतना मॉर्डन ड्रेस पहना और अपने कहा मैं गुड़िया जैसी लग रही हूँ।
जय- अरे तो इसमे बुरा क्या है?
रश्मि- मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ.. जो गुड़िया जैसी लगूं.. ओके..
जय- ओह्ह.. तो ये बात है.. मैं तो भूल ही गया कि अब मेरी गुड़िया बड़ी हो गई है.. ओके बाबा कान पकड़ कर सॉरी.. बस अब तो मान जाओ..
रश्मि- नहीं.. पहले बताओ उस ड्रेस में अगर कोई और लड़की होती तो आप उसकी तारीफ कैसे करते?
जय- अरे दूसरी लड़की कौन यार?
रश्मि- मान लो आपकी कोई फ्रेण्ड हो तो?
जय- प्लीज़ डोंट माइंड.. हाँ अगर और कोई होती तो मैं कहता बहुत सेक्सी लग रही हो.. मगर तुम मेरी बहन हो ऐसे बोलना अच्छा नहीं लगता ना..
रश्मि- भाई ये क्या बात हुई.. मैं आपकी फ्रेण्ड नहीं हूँ क्या.. और मैं किसी से कम हूँ क्या.. क्या कमी है मुझमें…?
जय- अरे रश्मि.. तू तो मेरी बचपन की फ्रेण्ड है.. और तुझमे. क्या कमी होगी.. तू तो दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की है।
रश्मि- ओह्ह.. भाई थैंक्स.. अब मेरी तारीफ खुलकर करना.. हाँ तो मैं ये ड्रेस ले लूँ.. क्या कहते हो?
जय- अरे इसमे. पूछना क्या है.. ले लो ना.. अच्छा है वो.. और अब जो भी ड्रेस लो.. पहले मुझे पहन कर दिखाना ताकि मैं तेरी तारीफ करूँ.. अब खुश..
उसके बाद रश्मि ने दो और सेक्सी ड्रेस लिए।
अब जय भी खुलकर उसकी तारीफ करने लगा था.. मगर रश्मि अभी भी सोच में थी कि जय उसको किस नज़र से देख रहा है।
अचानक उसके दिमाग़ में एक आइडिया आया!
रश्मि- भाई आप कुछ नहीं ले रहे क्या.. कब से मैं ही लिए जा रही हूँ।
जय- अरे नहीं.. कुछ दिन पहले ही मैंने शॉपिंग की है।
रश्मि- अच्छा जाने दो भाई.. आपको मेरी फ्रेण्ड की बात बताऊँ.. आपको बहुत हँसी आएगी।
जय- हाँ बताओ… ऐसी क्या बात है?
रश्मि- वो मिडल क्लास फैमिली से है.. तो वहाँ ऐसे हाई फैशन कपड़े नहीं पहनते हैं और खास कर शॉपिंग के वक्त उसके साथ उसके पापा या भाई हों.. तो बस पूछो मत..
जय- अरे इसमे हँसने की क्या बात है.. शॉपिंग तो ज़्यादातर घर वालों के साथ ही की जाती है।
रश्मि- हाँ पता है.. आगे तो सुनो.. एक बार वो अपने भाई के साथ गई.. उसको कुछ कपड़े और अंडरगारमेंट लेने थे.. अब कपड़े तो उसने ले लिए.. भाई के सामने वो ब्रा पैन्टी कैसे खरीदे.. ये दिक्कत की बात थी।
रश्मि ने ये बात एकदम नॉर्मल होकर कही.. इस पर जय ने भी ज़्यादा गौर नहीं किया कि रश्मि क्या बोल रही है.. मगर ये रश्मि की चाल थी।
जय- अरे जब भाई के साथ आ ही गई तो लेने में क्या हर्ज है.. अगर उसको शर्म आ रही थी.. तो भाई को दुकान के बाहर भेज देती.. इसमें क्या है.. खैर.. फिर क्या हुआ.. उसने लिए या नहीं?
रश्मि- नहीं.. भाई के सामने लेने में उसको शर्म नहीं आई.. मगर फिर भी उसने नहीं लिए..
जय- अरे ये क्या बात हुई.. शर्म भी नहीं आई.. फिर भी नहीं लिए..
रश्मि- हा हा हा हा.. आगे तो सुनो.. क्यों नहीं लिए.. हा हा हा हा!
जय- अरे तू हँसना बन्द कर पहले.. बात तो बता मुझे..
रश्मि- हा हा.. उसने दो ड्रेस लिए तो उसके भाई ने कहा.. पहन कर दिखाओ बराबर फिट हैं या नहीं.. तो उसने सोचा अब अंडरगारमेंट लूँगी तो कैसे दिखाऊँगी हा हा हा हा..
रश्मि की बात सुनकर जय भी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा।
जय- हा हा हा वो भी कोई हा हा पागल ही थी हा हा.. कुछ भी सोच लिया उसने.. इस दुनिया में भी कैसे-कैसे लोग हैं हा हा हा..
रश्मि- बस बस भाई ऐसे ज़्यादा हँसना ठीक नहीं.. आपके पेट में दर्द हो जाएगा। 
जय- अब क्या इरादा है.. और कुछ लेना है या चलें?
रश्मि- लेना तो है मगर…
जय- अरे क्या लेना है.. ले लो.. ये मगर क्या है?
रश्मि- भाई मुझे अंडरगारमेंट लेने हैं मगर आपने तो कहा था.. अब जो भी लेना हो.. पहले मुझे पहन के दिखाना तो थोड़ी सोच रही हूँ…
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